बकाया मुकदमों पर नियंत्रण

0 views
Skip to first unread message

Mani Ram Sharma

unread,
Aug 7, 2017, 10:19:12 PM8/7/17
to



भारत के समस्त न्यायिक

प्राधिकारियों से विनम्र निवेदन                                                         24351/2017

 

मान्यवर,

बकाया मुकदमों पर नियंत्रण

राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड से प्रकट आंकड़ों के अनुसार भारत में बकाया मामलों की स्थिति इस प्रकार है :-

1.      10 वर्ष से अधिक समय से  बकाया –  9%

2.      5  से 10 वर्ष  तक बकाया –               16%

3.      2 से 5 वर्ष तक बकाया –                   29% 

4.      2 वर्ष से कम बकाया -                       46%

इस प्रकार औसत मामले की  बकाया अवधि 3.81 वर्ष अर्थात 3 वर्ष 10 माह आती है  जिसमें मूल दीवानी व अपराधिक तथा रिट, अपील , पुनरीक्षा, पुनर्विलोकन व विविध मामले शामिल हैं| ध्यातव्य है कि मूल मामले में बहस के अतिरिक्त साक्ष्य भी होता  है जिसमें समय लगना स्वाभाविक है| किन्तु खेद का विषय है  कि न्यायालयों द्वारा रिट, अपील, पुनरीक्षा, पुनर्विलोकन व विविध  मामलों में  बड़ी संवेदनहीनता पूर्वक कार्यवाही होती है और उनमें भी समान रूप से विलम्ब किया जाता है जबकि इन्हें मात्र बहस व शपथ पत्र  के आधार पर निर्णित करना होता है व इनमें तुलनात्मक रूप से बहुत कम ऊर्जा, समय  व  श्रम लगता है |  न्यायालयों के इस रुख से  न्यायिक कार्यवाही का उद्देश्य ही विफल हो जाता है | अब समय आ गया है  जब न्यायालयों को स्वानुशासन से इस स्थिति पर  नियंत्रण करना चाहिए और  तर्कसंगत समय सीमा के भीतर न्याय सुनिशिचित किया जावे |

न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि  अपरिहार्य परिस्थितियों   को छोड़कर किसी भी मूल प्रकरण के निस्तारण में 3 वर्ष 10 माह , रिट व अपील में 1 वर्ष , पुनरीक्षा , पुनराविलोकन व विविध मामल में निर्णय में 6 माह से अधिक  विलम्ब नही हो| इस हेतु यह  बहाना कभी भी आड़े नहीं आना चाहिए कि वकील सहयोग नहीं करते क्योंकि न्याय प्रशासन न्यायाधीश का दायित्व है , और  इस कार्य के लिए वे जनता से वेतन व भत्ते ले रहे हैं, न कि किसी वकील का|  अपवादों को छोड़कर प्रत्येक पेशी पर प्रत्येक प्रकरण में कार्यवाही अवश्य होनी चाहिए और जिस चरण के लिए प्रकरण निश्चित था,  पेशी पर वह उस चरण से आगे बढ़ जाना चाहिए| स्थगन भी अपरिहार्य परिस्थितियों   में  दिए जाने  चाहिए और न्यायाधीश को स्थगन देने से परहेज करना चाहिए |

 

अब कम्प्यूटरीकृत वातावरण में इस स्थिति पर नियंत्रण करना आसान है |  इसे मूर्त रूप देने के लिए वर्ष में चार  बार – 1 जनवरी , 1 अप्रैल , 1 जुलाई और 1 अक्टूबर  को 3 वर्ष से अधिक समय से बकाया मूल मामलों व  6 माह से अधिक समय से बकाया अन्य मामलों की  सूचि कंप्यूटर से बनाकर  उन्हें  प्राथमिकता क्रम में निपटाया जाना चाहिए और  प्रतिदिन  की सुनवाई सूचि में  यथा संभव 18% मामले 10 वर्ष से अधिक पुराने, 24% मामले 5- 10 वर्ष पुराने , 29% मामले 2-5 वर्ष पुराने व मात्र  23% मामले 2 वर्ष से कम पुराने शामिल होने चाहिए|  शेष 6% विशेष प्राथमिकता यथा जमानत, स्टे,   वरिष्ठ नागरिक, विधवा  व अन्य के लिए सुरक्षित रखे जाने जाने चाहिए | अभिप्राय यह है कि पुराने मामलों को सुनवाई हेतु जल्दी जल्दी सूचीबद्ध किया जाना चाहिए और उनमें तारीख पेशी तुलनातमक रूप से कम अंतराल से दी जानी चाहिए|  न्यायालय विशेष की बकाया स्थिति के अनुसार इस प्राथमिकता क्रम में इसी सिद्धांत का अनुसरण करते हुए आंशिक परिवर्तन  किया जा सकता  है|  स्मरण रहे  कि विधि के समक्ष समानता के अधिकार में प्रत्येक नागरिक का  यह मूल अधिकार है कि जो पहले आये, पहले न्याय पाए ताकि इस लोकतंत्र का कल्याण हो सके और न्यायपालिका की विश्वसनीयता, छवि  व साख  बनी रह सके| 

सादर ,

भवनिष्ठ                                                                                   दिनांक 7.8.17

 

मनीराम शर्मा

एडवोकेट

सरदारशहर

 

 

  


Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages