माननीय राष्ट्रपतिजी
भारत सरकार
नई दिल्ली
महोदय,
भ्रष्टाचार पर नियंत्रण- निवेदन अस्वीकार करने की शक्ति वरिष्ठ को सौम्पना
आपको ज्ञात ही होगा कि सरकार द्वारा विभिन्न सेवायें ऑनलाइन करने के बावजूद जनता को अभी भी कोई विशेष राहत नहीं मिली है । विभिन्न सेवायें के लिये समय प्रतिमान भी निर्धारित किये गये हैं किंतु वास्तविकता के धरातल पर ये सब बेमानी और मह्त्वहीन हैं। अपने छुपे हुए उद्देश्यों के लिये सरकारी मशीनरी बारबार और अनुचित आपतियां लगाती रहती है, जनता का शोषण करती है।
इस अस्वस्थ और भ्रष्ट परम्परा को रोकने के लिये यह आवश्यक है कि किसी भी आवेदन या प्रार्थना पत्र में सभी आपत्तियां एक और प्रथम बार में ही लगायी जायें, टुकडों में नहीं । कमजोर वर्ग के हितों की रक्षा के लिये सरकारी बैंकों में यह नीति निर्धारित है कि कमजोर वर्ग के ऋण आवेदन को स्वीकार करने की शक्ति तो सम्बंधित शाखा प्रबंधक को है किंतु अस्वीकार करने की शक्तियां एक चरण ऊपर यानि सिर्फ नियंत्रण अधिकारी में निहित हैं जिससे निचले स्तर पर कमजोर वर्ग का ऋण आवेदन निरस्त नही हो सकता । ठीक इसी नीति को सरकार समस्त प्रशासनिक कार्यवाहियों में लागू करे और यह भी अतिरिक्त निर्देश जारी करे कि प्रार्थनापत्र को स्वीकार करने की भी एक समय सीमा हो,उसके बाद सम्बंधित अधिकारी उस पर कोई भी कार्यवाही करने से वंचित (Functus Officio) कर दिया जावे तथा इस समय सीमा के बाद प्रकरण स्वत: ही वरिष्ठ अधिकारी को अंतरित समझा जावे। ऐसे अंतरित मामलों में वरिष्ठ अधिकारी को अपने कनिष्ठ को समय सीमा के भीतर उचित निर्देश देने की शक्ति होगी। यदि इस समय सीमा में बिना किसी उचित कारण से निर्देश नही दिया जावे तो प्रार्थना पत्र को स्वीकृत समझा जावेगा। आयकर व बिक्री कर विभागों में पहले कर निर्धारण की कोई समय सीमा नहीं हुआ करती थी और अधिकारी भेंटपूजा के लिये मामले लम्बित रखते थे। किंतु उसके बाद यह प्रावधान कर दिया गया है कि निश्चित समय सीमा के बाद प्रस्तुत कर विवरणी को स्वत: ही स्वीकृत समझा जायेगा। इससे सम्बंधित अधिकारी की प्रार्थी के साथ रिश्वत के लिये मोलभाव करने की क्षमता पर अंकुश लगेगा। मुझे विश्वास है कि आप इस सुझाव को उपयोगी पायेंगे और लागू करने के लिये अपना सक्रिय ध्यान देंगे ।
जय भारत .....
भवनिष्ठ दिनांक 09.03.19
मनीराम शर्मा
नकुल निवास
सरदारशहर – 331 403
जिला -चुरू (राज )