गहराई इतनी है पाटों के दरमियां और यह नितंबों के उठान, लचक पतली कमर की तन गयी जैसे कमान... झलकती छबि जिस्म में इक ज्वाला उठती क्या करें, तुम भी तो प...
गहराई इतनी है पाटों के दरमियां और यह नितंबों के उठान, लचक पतली कमर की तन गयी जैसे कमान... झलकती छबि