1. MUKHWAS IN ENGLISH. 2. हम मूरख तुम ज्ञानी ....3. एक बात जो ठीक से नही कह पा रहा…4. Dynamic Architecture building..5.Sholay Cricket 6. भुखमरी को बढाते ये माँसाहारी और माँस उद्योग।

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Ramanuj Asawa

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Apr 28, 2011, 12:03:49 AM4/28/11
to NGP_PROF_...@googlegroups.com
From: Vishal Mahesh <vishal...@yahoo.com>
 MUKHWAS IN ENGLISH......A few words of wisdom.....
I kind of liked the contents of these lines, from the internet......
 
---The  rich  man  gives small  tips,  because  he  doest not  want  the  world  to  know  that  he  is  rich....
     The  poor  guy  always  gives  bigger  tips,  because  he  does  not  want  anybody  to  know
     that  he  is  poor...  How  true.......
 
---  Never  criticize your  wife's  faults.. Just  imagine  it  may have  been that  these  little  imperfections,
      prevented  her  from  getting  a  better  and  understanding  husband......
 
--- Problem  is  the  distance  between  the  EXPECTED  and  the  REALITY....
     So either expect  less,  and  get  more...  OR  else,
     Accept  the  reality, then  there  are  no  PROBLEMS.....


हम मूरख तुम ज्ञानी ....

दुनिया का चलन है ....हम जो है बस वही सही है , हम चतुर , सत्यवादी , निर्मल हृदय ,ईमानदार , कार्यकुशल , परोपकारी , ज्ञानी , ....जो हैं वो बस हम है ...." तुम मूरख हम ज्ञानी "
कभी कभी हम सब के मन में यह खयाल जरुर आता है ..
हालाँकि ऐसे लोंग भी होते हैं जो सिर्फ अपने को मूर्ख मानते हैं , उन्हें हर व्यक्ति अपने से ज्यादा बुद्धिमान लगता है , मगर इनकी गिनती सिर्फ अन्गुलियों पर की जा सकती है ..जो दुर्लभ प्राणियों की इस जमात में खुद को शामिल कर इठलाते हैं ... ." हम मूरख तुम ज्ञानी "
खांचों में जीते हैं हम लोंग , हमारे मापदंड , मर्यादायें इन खांचों के साथ बदलती रहती है .... अपनी भूमिका बदलते ही सोच भी अपनी सुविधानुसार परिवर्तित हो जाती है ..क्यों नहीं हम ये मान सकते कि दुनिया में हर रंग जरुरी है , हर शख्स ,हर वस्तु की अपनी खूबियाँ हैं , अपनी खामियां भी हैं ....स्वाद सिर्फ मीठा या तीखा ही नहीं देता ...नमकीन , खट्टा और कसैला मिलकर ही भोजन का स्वाद बढ़ाते हैं ..
देखिये तो जो हम है और जो हम नहीं हैं उसके लिए हम क्या -क्या सोचते हैं ....
मैं विवाहित हूँ .....इसलिए सभी अविवाहित उत्श्रंखल, चरित्रहीन है ...!
मैं अविवाहित हूँ ...विवाहितों का भी कोई जीवन है जैसे काराग्रह के बंदी हों.
मैंने प्रेम विवाह किया है ....अरेंज मैरिज वही करते हैं जिन्हें कोई लड़का /लड़की घास नहीं डालती , ये तो मां -बाप ने शादी करवा दी वरना कुंवारे ही रह जाते .
मेरा अरेंज मैरेज है .... प्रेम विवाह छिछोरापन है .
मैं धार्मिक हूँ .....इसलिए सभी नास्तिक पापी हैं , घृणा करने योग्य हैं .
मैं नास्तिक हूँ ....धार्मिक मान्यताओं का पालन करने वाले पाखंडी हैं .
मैं .... धर्म को मानती हूँ ....इसलिए दूसरे धर्मों में कोई सार नहीं है , उनमे कुछ भी अच्छा नहीं है .
मैं .... प्रान्त से हूँ ....सभ्य लोंग बस यहीं बसते हैं .
मैं .... भाषी हूँ ...बस मेरी बोली सबसे मीठी , बाकी सक बकवास .
मैं नेता हूँ ....पूरी जनता मेरी प्रजा है .
मैं अमीर हूँ ....गरीबों को जीने का कोई अधिकार नहीं है .
मैं गरीब हूँ ....अमीर सिर्फ नफरत किये जाने योग्य हैं .
मैं सत्यवादी हूँ ....दुनिया कितनी झूठी है .
मैं शिक्षित हूँ ......इसलिए सभी अशिक्षित जंगली हैं , गंवार हैं ..
मैं साहित्यकार हूँ ... .दूसरों को लिखने का शउर ही नहीं है , क्या -क्या लिख देते हैं .
मैं ब्लॉगर हूँ ...साहित्यकार , लेखक क्या चीज है, पैसों के भरोसे पैसों के लिए लिखते हैं ...मेरी जो मर्जी आये लिखता हूँ .
मैं कवि हूँ ....कवितायेँ लिखना कितना दुष्कर है , कहानी लिखने में क्या है , जो देखा आसपास लिख दो , कोई तुक , बहर का ख्याल नहीं रखना पड़ता .
मैं कहानीकार हूँ ....कवितायेँ तो यूँ ही लिख दी जाती हैं , कोई भी पंक्ति कैसे भी जोड़ दो , बस तुक मिलाने की जरुरत है , आधुनिक कविता में तो तुक की भी जरुरत नहीं .
मैं वैज्ञानिक हूँ ....ज्योतिष पाखंड है , सिर्फ बेवकूफ बनाने का जरिया है .
मैं ज्योतिषी हूँ ....वैज्ञानिकों का भाग्य तो हम ही बता सकते हैं ...
मैं बॉस हूँ ....मातहतों को अपने बॉस के साथ विनम्रता से पेश आना चाहिए ,ऑफिस के कार्य के अलावा थोड़े बहुत घर के काम भी कर दिए तो क्या हर्ज़ है ..
मैं मुलाजिम हूँ ...बॉस को कर्मचारियों से प्यार से पेश आना चाहिए , हम तनख्वाह ऑफिस के काम की लेते हैं , इनके घर का कम क्यों करें ...
मैं पुरुष हूँ .....स्त्रियों की अकल उनके घुटने में होती है !
मैं स्त्री हूँ ......पुरुषों के घुटने कहाँ झुकते हैं, कौन नहीं जानता !
मैं कामकाजी महिला हूँ ...घर बैठे सिर्फ डेली सोप देखना , पास पड़ोस में सास बहू की चुगलियाँ और काम क्या होता है इन गृहिणियों को .
मैं गृहिणी हूँ ....सुबह सवेर सज- संवर कर निकल जाना , घर और बच्चों को आया के भरोसे छोड़कर ...काम तो बहाना है.
मैं सास हूँ ....आजकल की बहुएं ना , आते ही पूरे घर पर कब्जा कर लेती हैं , बहू को ससुराल का हर कार्य आदर पूर्वक करना चाहिए..
मैं माँ हूँ ...बेचारी मेरे बेटी से ससुराल वाले कितना काम करवाते हैं , बहू का हक तो उसे मिलना ही चाहिए .
मैं बहू हूँ ....ये सासू माँ , समझती क्या है अपने आप को , जब देखो हुकम चलाती है .
मैं बेटी हूँ ....माँ ने अपनी बहुओं को कितना सर चढ़ा रखा है .
मैं ननद हूँ ...भाभियाँ भाई को अपने वश में रखती हैं , भाई को अपनी बहनों को तीज त्यौहार पर महंगे गिफ्ट देने चाहिए .
मैं भाभी हूँ ....ननद बिजलियाँ होती हैं , आग लगाने के सिवा कुछ नहीं जानती , तीज त्योहारों पर अपने भाई से महंगे तोहफों की मांग करती रहती हैं .
मैं पिता हूँ ....आजकल बच्चे कितने अनुशासनहीन है , हम तो अपने पिता से कितना डरते थे , उन्हें कभी हमें पढने के लिए कहना ही नहीं पड़ता था ..
हम बच्चे हैं .....हमारे पिता को कभी उनके माता पिता ने पढने के लिए नहीं टोका ,मगर ये हमेशा हमारे सर पर सवार रहते हैं ..

मैं ही मैं हूँ ....इस मैं को तो !!!
...............................................................
http://paricharcha-rashmiprabha.blogspot.com/2011_02_01_archive.html

एक बात जो ठीक से नही कह पा रहा…..

आज गुजरा शहर के कोर एरिया से..तो कुछ अध्यापक बन्धु मिले तो ठहर लिया सड़क के किनारे, तभी एक फ़ल वाला अपनी चलती फ़िरती दुकान को घर ले जाने की तैयारी में था, और उसने कुछ खराब हो चुके अंगूर सड़क के किनारे लगा दिए…मैने सारे मामले को अपने हिसाब से गढ़ लिया ..कि कोई गाय आयेगी और उसे ये अंगूर खाने को मिल जायेगें…तभी एक अधेड़ आदमी उन्हें बटोरने लगा बड़े इत्मिनान से और जब सारे सड़े-गले अंगूर उसकी थैली में समा गये तो वह बड़े इत्मिनान से साईकिल में थैली को टांगकर चल पड़ा…देखिए यह है आवश्यकता का एक रूप जो व्यक्ति और हालात के हिसाब से बदलता रहता है..एक के लिए जो अंगूर खराब हो चुके थे..दूसरे के लिए बेशकीमती थे….इसलिए मित्र संसार में हर वस्तु कीमती है..मोल आप को लगाना है अपनी जरूरत के हिसाब से….आइन्दा से किसी भी चीज को हिकारत से मत देखिएगा…पता नही वह किसी के लिए कितनी कीमती हो..

कृष्ण कुमार मिश्र

http://manhanvillage.wordpress.com/

From: Priya Malhotra <priya.ma...@gmail.com>

Hi,

The Dynamic Architecture building, which will be constantly in motion changing its shape, will be able to generate electric energy for itself as well as for other buildings. Forty-eight wind turbines fitted between each rotating floors as well as the solar panels positioned on the roof of the building will produce energy from wind and the sunlight, with no risk of pollution.

See it here - http://www.funonthenet.in/articles/rotating-towers.html

Amazing!

From: Vishal Mahesh <vishal...@yahoo.com>


To enjoy Sholay Cricket click the following URL Link
भुखमरी को बढाते ये माँसाहारी और माँस उद्योग।
From: nikhilesh thakar <nikhile...@gmail.com>


भुखमरीकुपोषण के कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कारण गिनाए जाते रहे हैंलेकिन मांसाहार की चर्चा शायद ही कभी होती होजबकि वास्तविकता यह है कि दुनिया में बढ़ती भुखमरी-कुपोषण का एक मुख्य कारण मांसाहार का बढ़ता प्रचलन है। इसकी जड़ें आधुनिक औद्योगिक क्रांति और पाश्चात्य जीवन शैली के प्रसार में निहित हैं। दुनिया में यूरोप कीसर्वोच्चता स्थापित होने के साथ ही मांसाहारी संस्कृति को बढ़ावा मिलना शुरू हुआ। आर्थिक विकास और औद्योगीकरण ने पिछले दो सौ साल में मांस केंद्रित आहार संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विकास व रहन-सहन के पश्चिमी माडल के मोह में फंसे विकासशील देशों ने भी इस आहारसंस्कृति को अपनाया। इन देशों में जैसे-जैसे आर्थिक विकास हो रहा है वैसे-वैसे मांस व पशुपालन उद्योग फल-फूल रहा है।

गौरतलब है कि 1961 में विश्व का कुल मांस उत्पादन 7.1 करोड़ टन थाजो 2007 में बढ़कर28.4 करोड़ टन हो गया। इस दौरान प्रति व्यक्ति खपत बढ़कर दोगुने से अधिक हो गई। विकासशील देशों में यह अधिक तेजी से बढ़ी और 20 वर्षो में ही प्रति व्यक्ति खपत दोगुनी से अधिक हो गई। मांस की खपत बढ़ाने में मशीनीकृत पशुपालन तंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

उदाहरण के लिए पहले चीन में पोर्क्स (सूअर का मांस) सिर्फ वहां का संभ्रांत वर्ग खाता था,लेकिन आज वहां का गरीब तबका भी अपने रोज के खाने में उसे शामिल करने लगा है। यही कारण है कि चीन द्वारा पोर्क्स के आयात में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

औद्योगिकीकरण व पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभाव के कारण उन देशों में भी मांस प्रमुख आहारबनता जा रहा है जहां पहले कभी-कभार ही मांस खाया जाता थाजैसे भारत। भारत में भी नॉन वेज खाना स्टेटस सिंबल बनता जा रहा है। जिन राज्यों व वर्गों में संपन्नता व बाहरी संपर्क बढ़ा हैउनमें मांस के उपभोग में भी तेजी आई है। इस कारण हमारे ट्रैडिशनल फूड की बड़ी उपेक्षा हुई है। इस क्रम में परंपरागत आहारों की घोर उपेक्षा हुई। पहले गांवों में कुपोषण दूर करने में दलहनोंतिलहनोंगुड़ की महत्वपूर्ण भूमिका होती थीलेकिन खेती की आधुनिक पद्धतियों व खानपान में इन तीनों की उपेक्षा हुई। इसकी क्षतिपूर्ति के लिए विटामिन की गोली दी जाने लगी।

पहले प्राकृतिक संसाधनों पर समाज का नियंत्रण होने से उसमें सभी की भागीदारी होती थी,लेकिन उन संसाधनों पर बड़ी कंपनियोंभूस्वामियों के नियंत्रण के कारण एक बड़ी जनसंख्या इनसे वंचित हुई। शीतल जल के प्याऊ की जगह बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बोतलबंद पानी ने ले ली और वह दूध से भी महंगा बिक रहा है।

फार्म एनिमल रिफार्म मूवमेंट के अनुसार अमेरिकी उपभोक्ता मांस की भूख के कारण न केवलपर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैंअपितु अमेरिकी आहार आदतें दुनिया भर में फैल रही हैं। विज्ञान व तकनीक का क्षेत्र हो या फैशनयह धारणा दुनिया भर में फैल गई है कि जो अमेरिका कर रहा है वह ठीक है।

मांस की खपत बढ़ाने में मशीनीकृत पशुपालन तंत्र की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पहलेगांव-जंगल-खेत आधारित पशुपालन होता था। इस पद्धति में खेतीमनुष्य के भोजन और पशुआहार में कोई टकराव नहीं था। दूसरी ओर आधुनिक पशुपालन में छोटी सी जगह में हजारों पशुओं को पाला जाता है। उन्हें सीधे अनाजतिलहन और अन्य पशुओं का मांस ठूंस-ठूंस कर खिलाया जाता है ताकि जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा मांस हासिल किया जा सके। इस तंत्र में बड़े पैमाने पर मांस का उत्पादन होता हैजिससे वह सस्ता पड़ता है और अमीर-गरीब सभी के लिए सुलभ होता है।

इस आधुनिक पशुपालन ने प्रकृति व मनुष्य से भारी कीमत वसूल की। इस पशुपालन में पशु आहार तैयार करने के लिए रासायनिक उर्वरकोंकीटनाशकोंपानी का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। सघन आवासरसायनों और हार्मोन युक्त पशु आहार व दवाइयां देने से पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। पशुपालन के इन कृत्रिम तरीकों ने ही मैड काऊबर्ड फ्लू व स्वाइन फ्लू जैसी नई महामारियां पैदा की हैं।

मक्का और सोयाबीन की खेती के तीव्र प्रसार में आधुनिक पशुपालन की मुख्य भूमिका रही है। आज दुनिया में पैदा होने वाला एक-तिहाई अनाज जानवरों को खिलाया जा रहा हैजबकि भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। अमेरिका में दो-तिहाई अनाज वसोयाबीन पशुओं को खिला दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया की मांस खपत में मात्र10 प्रतिशत की कटौती प्रतिदिन भुखमरी से मरने वाले 18 हजार बच्चों व हजार वयस्कों का जीवन बचा सकती है।

मांस उत्पादन में खाद्य पदार्थों की बड़े पैमाने पर बर्बादी भी होती है। एक किलो मांस पैदा करने में किलो अनाज या सोयाबीन की जरूरत पड़ती है। अनाज के मांस में बदलने की प्रक्रिया में90 प्रतिशत प्रोटीन, 99 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट और 100 प्रतिशत रेशा नष्ट हो जाता है। एक किलो आलू पैदा करने में जहां मात्र500 लीटर पानी की खपत होती हैवहीं इतने ही मांस के लिए10,000 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। स्पष्ट है कि आधुनिकऔद्योगिक पशुपालन के तरीके से भोजन तैयार करने के लिए काफी जमीन और संसाधनों की जरूरत होती है। इस समय दुनिया की दो-तिहाई भूमि चरागाह व पशु आहार तैयार करने में लगा दी गई है। जैसे-जैसे मांस की मांग बढ़ेगीवैसे-वैसे पशु आहार की खेती बढ़ती जाएगीऔर इससे ग्रीनहाउस गैसों में भी तेजी से बढ़ोतरी होगी।




--
Warm Regards and Best Wishes.

CS Ramanuj Asawa
Company Secretary by profession, Acupressure therapist by hobby, Human by nature, trying to alleviate the pains of suffering humanity.
cell 094228-03662
email:asawar...@gmail.com
http://groups.google.co.in/group/ngp_prof_thinktank
http://painrelieffoundation.com
http://ramanujasawa.blogspot.com/
#205, Himalaya Enclave, 1, Shivajinagar,
NAGPUR 440010
Visit for pain relief/ training with prior Appointment
Mon - Fri  8 am  to 9.30 am

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु  निरामयः
सर्वे  भद्राणि  पश्यन्तु, मा कश्चिद दुखभाग भवेत्.
May all be happy. May all enjoy health and freedom from disease.
May all have prosperity and good luck. May none suffer or fall on evil days.
 


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