आदरणीय श्री रामानुज आसवा जी,
नमस्कार!
आपकी और से दिनांक 13.05.2011 को भेजा गया
"यूं ट्यूब" देखा| इस पर प्रतिक्रिया करने से मैं अपने आपको रोक नहीं पाया हूँ!
"बहुत खूब, अदभुत, शानदार और वास्तव में सांसें रोककर देखने लायक आलौकिक कारनामा!"
आदरणीय श्री रामानुज आसवा जी, यह उस परम शक्ति का कमाल है, जिसे हम "आत्मशक्ति" कहते
हैं!"
आदरणीय श्री
रामानुज आसवा जी, ये शक्ति अर्थात
"आत्मशक्ति" कैसे प्राप्त होती है, इसके बारे में, मैं विनम्रता पूर्वक
कुछ अनुभवजनित बातें लिखने का विनम्र साहस कर रहा हूँ| आशा है कि इन बातों
पर आप और आपके ग्रुप के विद्वान पाठकों द्वारा बिना पूर्वाग्रह के चिंतन,
मनन और शोधन किया जाएगा|
1-आम
तौर पर संसार में उच्च समझी जाने वाली ताकतें-"सत्ता, शक्ति और
सुविधाओं"
के मध्य जकड़ा या अटका या फंसा हुआ आम व्यक्ति "धनबल, जनबल और बाहुबल" की
ताकत की सर्वोच्चता की बात करता रहता है और इन तीनों ताकतों के बल पर, वह
संसार को कब्जे में कर लेने की डींगें भी हांकता रहता है!
2-इसके
विपरीत कुछ लोग अकेले "बुद्धिबल" की ताकत के भरोसे "धनबल, जनबल और बाहुबल"
इन तीनों बलों को अपने अन्दर समाहित कर लेने की बातें करते देखे जा
सकते
हैं!
3-मेरा मानना है कि
उक्त बिन्दु 1 एवं 2 में वर्णित 'बल' या 'ताकत' की सब बातें, केवल भौतिक
बातें हैं, जिनका भौतिक जगत में ही महत्व है, लेकिन अध्यात्मिक जगत में
"धनबल, जनबल, बाहुबल और बुद्धिबल" सहित चरों ताकतों का तब तक कोई महत्व
नहीं है, जब तक कि इंसानी शरीर में (क्योंकि यह मस्तिष्क का विषय नहीं,
जैसा कि कुछ लोगों को गलतफहमी है) इन सब चारों बलों
या
ताकतों से परे और सर्वोच्च आलौकिक "आत्मबल" की "अनुभूति" नहीं हो!
4-"आत्मबल" की परतीति या अनुभूति या सुखानुभूति तब होती है, जबकि व्यक्ति को अपनी "आत्मा की अनुभूति" होने लगती है|
5-इस
संसार में "आत्मानुभूति" की "सुखानुभूति" का "रसास्वादन" और "आलौकिक
आनन्द" प्राप्त करने वालों के पास ही "आत्मबल" की ताकत होती है! जो इस
संसार की
सर्वोच्च ताकत है! क्योंकि-
(1) "आत्मा में परमात्मा का निवास है और प्रत्येक आत्मा में परम शक्ति के 'अंश' का निवास है!"
(2) "जहाँ 'अंश' है, वहाँ सम्पूर्णता का दर्शन होना तय है!
(3) जहाँ बीज है, वहाँ वृक्ष उगने और फलित होने की आकांक्षा ही नहीं, बल्कि सुनिश्चितता है!"
(4)
ऐसा
जिनको समझ में आ गया है, वे समझ सकते हैं कि "अंश (आत्मा) में सम्पूर्ण
(ईश्वर/परमात्मा) और सम्पूर्ण (ईश्वर/परमात्मा) में अंश (आत्मा) के इस
अदभुत समायोजन की शक्ति का नाम भी "आत्मशक्ति" है!
(5) "आत्मा, परमात्मा और आत्मशक्ति" को जानने, पहचानने और अनुभव करने का सुगम और सरल मार्ग है-"ध्यान"!
(6) "ध्यान" जिसका हिन्दू, मुसलमान,
ईसाई,
सिक्ख, बौद्ध या अन्य किसी धर्म या सम्प्रदाय से कोई वास्ता नहीं है!
(7)
क्योंकि ध्यान सारभौमिक सत्य है, जिसमें सुकरात, महावीर, एडीसन, ईशू,
कृष्ण, राम, शिव, मोहम्मद, परमहंश, रजनीश जैसे सभी महाज्ञानी और महापुरुष
अपने अपने तरीके से परमानंद की अनुभूति प्राप्त करते रहे हैं!
शुभकामनाओं सहित
सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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Warm Regards and Best Wishes.
Company Secretary by profession, Acupressure therapist by hobby, Human
by nature, trying to alleviate the pains of suffering humanity.