जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)
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https://www.counterview.net/2024/05/informal-outdoor-workers-excluded-govt.html
खुले में काम करने वाले करोड़ों श्रमिकों को अत्यधिक गर्मी और लू से बचाने के लिए तत्काल सरकारी कार्रवाई करने, हीट-वेव को जलवायु आपदा घोषित करने और आर्थिक रूप से प्रभावित श्रमिकों को आपदा भत्ता प्रदान करने की एन.ए.पी.एम मांग करता है।
जलवायु परिवर्तन और हीट-एक्शन नीति में, अनौपचारिक व खुले-में-कार्यरत मजदूरों को शामिल नहीं करना निंदनीय: जलवायु न्याय (क्लाइमेट जस्टिस) और श्रम-अधिकारों को तुरंत सुनिश्चित करो!
21 मई, 2024: पूरे भारत में 'चुनावी गर्मी' ज़ोर पकड़ चुकी है, जो हम सभी को साफ़-साफ़ दिखाई भी दे रही है। हालाँकि, एक और गर्मी है जो नागरिकों, विशेष रूप से करोड़ों खुले में काम करने वाले श्रमिकों को प्रभावित करती है, यह न तो 'चुनावी मुद्दा' है और न ही इस पर सामाजिक रूप से पर्याप्त ध्यान दिया जाता है। भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों हिस्सों में मेहनतकश लोग, जो चिलचिलाती धूप में भी हमारे गाँवों और शहरों के लिए अनाज पैदा करते हैं, हर तरह का निर्माण कार्य करते हैं, शहरों व गांवों को चलाते हैं, हमें विभिन्न प्रकार की सेवाएँ प्रदान करें, लेकिन इसी वर्ग का अभी तक 'मुख्यधारा' के जलवायु न्याय और नीतिगत विमर्श में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं किया गया है। एनएपीएम (NAPM) में, हम इसे एक गंभीर मुद्दे को उजागर करने की उम्मीद करते हैं जो कि अधिकारियों और बड़े पैमाने पर समाज की ओर से तत्काल कार्रवाई किये जाने का हकदार है।
पिछले महीने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने चेतावनी दी है कि हर साल कम से कम 70% श्रमिक अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आते हैं और उन्हें इस तीव्र गर्मी में काम करना पड़ता है । 2000 से 2020 तक अत्यधिक गर्मी के संपर्क में आने वाले श्रमिकों की संख्या में कम से कम एक तिहाई बढ़त हुई है। इस वृद्धि का कारण ग्लोबल वार्मिंग और हर साल कार्यबल में शामिल होने वाले श्रमिकों की संख्या में वृद्धि है। अनौपचारिक और बाहरी श्रमिकों की बहुत अधिक संख्या के साथ-साथ, इस वर्ष भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है। इसका हमारे श्रमिकों के स्वास्थ्य और आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि 2023 की पहली छमाही में गर्मी के कारण 252 लोगों की मौत हो गई। इस वर्ष भीषण गर्मी के कारण यह संख्या अधिक होने की संभावना है।
ग्रामीण श्रमिकों में खेत मजदूर, नरेगा श्रमिक सबसे असुरक्षित हैं जबकि निर्माण मजदूर दूसरी सबसे कमजोर श्रेणी हैं जो मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में गर्मी के संपर्क में आते हैं। “हीट आइलैंड प्रभाव”, जो मानवीय गतिविधियों के कारण शहरों में स्थानीय रूप से निर्मित अत्यधिक गर्मी है, बाहरी श्रमिकों की परेशानियों को बढ़ाता है। गर्मी से संबंधित बीमारियों के खतरे में अन्य बाहरी श्रमिक जैसे खनन श्रमिक, देहाढ़ी मजदूर, परिवहन कर्मचारी, गिग श्रमिक, सड़क विक्रेता, स्वच्छता कर्मचारी, कचरा बीनने वाले श्रमिक, हमाल श्रमिक, मछुआरे, नमकदान श्रमिक आदि शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर अंदर काम करने वाले श्रमिकों को ऐसे स्थानों में काम करना पदे, जहां उचित वेंटिलेशन ना हो और गरमी ज़्यादा हो, तो वे भी गर्मी से संबंधित बीमारियों के खतरे में हो सकते हैं। इस प्रकार, छोटे कारखानों के श्रमिक, घर-आधारित श्रमिक और घरेलू कामगार भी अत्यधिक गर्मी के प्रभाव के जोखिम में होते हैं। महिला श्रमिकों को पुरुषों की तुलना में अधिक जोखिम होता है, क्योंकि वे अधिक सीमित और बंद जगहों में काम करती हैं, चाहे वह बाहरी काम हो या घर का काम। बड़ी संख्या में बाहरी श्रमिक अक्सर दलित, बहुजन, आदिवासी, विमुक्त, अल्पसंख्यक समुदायों सहित सामाजिक रूप से हाशिए पर रहने वाले समूहों से संबंधित होते हैं।
ILO हमें यह सलाह देता है कि श्रमिकों और कार्यस्थलों को क्लाइमेट चेंज एक्शन के केंद्र में होना चाहिए। विशेष रूप से, हीट एक्शन योजनाओं में श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके अलावा, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य पर कानून को भी तत्काल जलवायु परिवर्तन के खतरे को मुख्यधारा में लाना चाहिए। भारत की नीतियों में ये जलवायु परिवर्तन, हीट एक्शन और व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसी चिंताएं और एक्शन गायब हैं । हीट-वेव को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति और कार्य योजना में मान्यता देने के बावजूद, भारत सरकार ने इस वर्ष की अत्यधिक हीट-वेव को आपदा घोषित नहीं किया है। इससे हमारा श्रमिक वर्ग किसी भी सहायता से वंचित हो रहा है। आईएलओ (ILO) का कहना है कि जब श्रमिक इन सुरक्षा उपायों के प्रति अधिक आश्वस्त होते हैं और उन्हें आय या आजीविका खोने का डर नहीं होता है, तो वे अत्यधिक गर्मी के संपर्क से खुद को बचाने में ज़यादा सक्षम होते हैं।
नेशनल अलायन्स ऑफ़ पीपुल्स मूवमेंट्स (NAPM), भारत के अनौपचारिक और बाहरी श्रमिकों को ऐसी महत्वपूर्ण नीतियों और कार्यक्रमों से बाहर राखे जाने की कड़ी निंदा करता है, जो उन्हें अत्यधिक गर्मी से बचा सकती हैं।
हम निम्नलिखित बिंदुओं पर तत्काल कार्रवाई की मांग करते हैं:
2. जलवायु परिवर्तन से निपटने की नीतियों, जिनमें जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना भी शामिल है, में बाहरी और अनौपचारिक मज़दूरों को अत्यधिक संवेदनशील श्रेणी के रूप में जोड़ा जाना चाहिए, एवं उन की जरूरतों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। श्रमिकों के इस समूह के भीतर अलग-अलग कमजोरियों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र विशिष्ट कार्रवाई की जानी चाहिए। महिला श्रमिकों को विशेष ध्यान एवं सुरक्षा दी जानी चाहिए।
हम अनौपचारिक और खुले-में-कार्यरत श्रमिकों की स्थितियों के बारे में गहराई से चिंतित हैं, जो लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी के संपर्क में रहने के कारण गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करते हैं। उन नीतियों से उनका पूर्ण बहिष्कार जो उन्हें पर्याप्त सुरक्षा और राहत प्रदान कर सक्ती है, उनकी जोखिम को बढ़ाता है। जलवायु कार्रवाई से संबंधित प्रासंगिक नीतियों और एजेंडे पर चर्चा और बातचीत से श्रमिकों की चिंताएं और आवाजें भी गायब हैं। हम भारत सरकार और सभी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों से आह्वान करते हैं कि वे प्रभावी उपायों और उपरोक्त सभी मांगों का जल्द से जल्द कार्यान्वयन करने के माध्यम से इस संकट को तुरंत स्वीकार करें और इसका समाधान करें।
ई-मेल: napm...@gmail.com