जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)
राष्ट्रीय कार्यालय: ए /29-30, हाजी हबीब बिल्डिंग, नायगाव क्रास रोड, दादर (पू.), मुंबई 400014 |
ई-मेल: napmindia@gmail.com | वेब:www.napm-india.org
ट्विटर: @napmindia | ब्लॉग: www.napmindia.wordpress.com
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लद्दाख के पश्मीना मार्च के लिए
देश-व्यापी समर्थन का अपील
साथियों, जिंदाबाद!
जैसे कि हम सब जानते हैं, पीपल्स मूवमेंट फॉर 6th शेड्यूल के नेतृत्व में, लद्दाख में चल रहे जन आंदोलन का अगला दौर शुरू हुआ है। हाल ही में, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक जी का 21 दिन का अनशन पूरा हुआ। उनके साथ, हज़ारों लद्दाखी नागरिक इस आंदोलन में शामिल हुए थे, तथा पूरे देश भर से उस आंदोलन को समर्थन मिला। फिर भी, भारत सरकार ने अपनी चुप्पी नही तोडी और ने ही आंदोलनकारियों के साथ कोई सार्थक चर्चा कर रही हैं।
इस शांतिपूर्ण आंदोलन में, लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमक्रैटिक अलाइअन्स (KDA) मिलकर, दो प्रमुख मांग उठा रहे हैं:
1. लद्दाख को राज्य का दर्जा देकर, वहां लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं शुरू करें, और
2. लद्दाख में संविधान के अनुसूचि 6 लागू करके, स्थानीय समाज को स्वयंनिर्णय का अधिकार दे।
दरअसल यह संविधानिक अधिकारों की ही मांग है और हिमालय बचाने के लिये, केंद्र सरकार द्वारा थोंपा जानेवाला कॉर्पोरेट-पक्षीय, विनाशकारी ‘विकास’ रोकने की; जिसका हम समर्थन करते है। संदर्भ के लिये एन.ए.पी.एम का वक्तव्य और विकल्प संगम, अन्य समूहों का वक्तव्य देखें, इसका समर्थन करे: https://chng.it/d256wQNvLx
अब आंदोलन का अगला चरण शुरू हुआ है, जिसमें महिलाओं ने इस हफ्ते अनशन किया है। महिलाओं के बाद युवा, अन्य लोग इसमें शरीक होंगे और ज़रूरत हो तो, फिर से सोनम जी अनशन पर बैठेंगे, यह ऐलान किया गया है। विनाशकारी ‘विकास’ के चलते लद्दाखी जनता; खास कर चरागाह समूहों - को अपने क्षेत्र से विस्थापित और संसाधनों से वंचित होना पड रहा है, जिसे लद्दाखी जनता विरोध कर रही है। दूसरी ओर, भारत सरकार कितना भी छिपा रही हो, चीन द्वारा भारत के बडे क्षेत्र पर अतिक्रमण हो रहा है, जिससे स्थानीय जनता को विस्थापन का सामना करना पड रहा है। क्षेत्रीय संप्रभुता के संबंध में उठाई गई चिंताओं को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इन सभी तथ्यों को उजागर करने और लद्दाख की अस्मिता व अस्तित्व बचाने के लिये, 7 अप्रैल से इस क्षेत्र में पश्मीना मार्च का ऐलान किया है।
7 अप्रैल को हज़ारो लोग चीन सीमा पर स्थित छांगथांग की ओर बढेंगे। गांधीजी द्वारा सबसे लंबा चला हुआ अनशन 21 दिन का था। उस आधार पर, 21 दिन का अनशन पूरा करने पर, स्थानीय संघर्षशील साथियों व सोनम वांगचुक के नेतृत्व में, अब दांडी यात्रा के आधार पर अगला कदम पश्मीना मार्च का है, जो गांधीजी के अहिंसात्मक मार्ग से ही निर्धारपूर्वक चलेगा। यह एक ऐतिहासिक घड़ी है। लद्दाख आंदोलन व्दारा देश के नागरिकों को ऐलान किया गया है कि इस आंदोलन के समर्थन में, देश-भर में अपने-अपने क्षेत्र में, अपने-अपने मुद्दों को लेकर मार्च / यात्रओं का आयोजन करें और अपने पहाड़, अपनी नदियां, आपने जंगल और जैव-विविधता बचाने के इस आंदोलन का साथ दे।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम), लद्दाख के इस आंदोलन का पूरा समर्थन करते हुए, सक्रियता के साथ एकजुटता व्यक्त करेगा। देश के सभी जन आंदोलनों, संगठनों, समूहों, साथियों से निवेदन है कि 7 अप्रैल को, लद्दाख के पश्मीना मार्च के समर्थन में अपने क्षेत्र में, अपने मुद्दों के साथ जोडते हुए, पदयात्रा तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन करें और लद्दाख की पीडा, लद्दाख का संघर्ष, समाज और सरकार तक पहुंचाये। इस आंदोलन से जुड कर, अपने क्षेत्रों में ग्राम सभा, बस्ती सभा सशक्त करने की तथा स्थानीय संसाधनों पर स्थानिकों का प्रथम अधिकार हासिल करने की, पर्यावरण बचाते हुए, लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण के लिये दीर्घकालीन कदम उठाने की पहल हम करें, यह आग्रह है। इस संदर्भ में एन.ए.पी.एम की प्रस्तावित विकेंद्रित जन जागरण यात्रा (20 से 30 अप्रैल, 2024) का निवेदन अवश्य पढे, और अपने इलाकों में इसे आगे बढ़ाएं।
लद्दाख बचाओ। हिमालय बचाओ।।
पर्यावरण बचाओ। लोकतंत्र बचाओ।
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जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय
लद्दाख के साथ, देश-भर बचाना ज़रूरी है: प्रकृति, जनतंत्र और संविधान!
ग्राम सभा, बस्ती सभा के द्वारा ही संभव है सही विकास!
20 से 30 अप्रैल, 2024: जन जागरण यात्रा !
आम जनता की सहभागिता की पुकार। जागरण यात्रा से करेंगे
जन-जन को तैयार।।
साथियों, जिंदाबाद!
आप सब जानते ही होंगे कि लद्दाख में लंबे समय से चल रहा जन आंदोलन के तहत, सोनम वांगचुक जी के 21 दिन उपवास के बाद, अब महिला, युवा आदि उपवास पर उतर रहे हैं। इस आंदोलन से जो अहम मुद्दा उभरा है, वो हैं विकेंद्रित विकास नियोजन का! उसी से जनतंत्र, लोक-सहभागिता सही अर्थ से संभव होकर, 'विकास' के नाम पर गलत प्राथमिकता नहीं, सही अर्थ से ज़रूरत पूर्ति करने वाला, समता-न्यायपूर्ण और विनाश-विस्थापन न बढ़ाते हुए, निरंतर विकास हासिल होगा। ‘विकास’ के नाम पर खेती-जमीन, जल-नदी, जंगल, भूजल-खनिज पर आक्रमण, कॉर्पोरेट लूट और जलवायु परिवर्तन जो आज जन-जन भुगत रहे हैं, वह आगे नहीं बढ़ेगा! लद्दाख के जन आंदोलन इसलिए मांग कर रहे है, 'राज्य' का दर्जा और लद्दाख में संविधान की छठी सूची लागू करने की!
संविधान के अनुच्छेद 243 और 244, साथ ही 73वें और 74वें संशोधन - आदिवासी, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत शासन के लिए कानूनी ढांचा हैं। वर्तमान में, छठी अनुसूची चार उत्तर-पूर्वी राज्यों और पांचवीं अनुसूची 10 अन्य राज्य में (आदिवासी बाहुल्य क्षत्रों में) लागू होती है; जो पेसा पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 जैसे कानूनों के माध्यम से, स्थानीय लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पंचायती राज अधिनियमों और नगर पालिका अधिनियमों के माध्यम से त्रि-स्तरीय रूपरेखा, जिसमें ग्राम सभाएं और वार्ड व बस्ती सभाएं शामिल हैं, प्रमुख निर्णय लेने वाली संस्थाएं हैं, मगर अक्सर उपेक्षित होती हैं।
हालाँकि, भारत-भर में जन आंदोलनों और हस्तक्षेपों के कई सफल उदाहरण हैं, जिससे इन अधिकारों को एक हद तक हासिल किया गया है, लेकिन बहुत कुछ करने की जरूरत है, खासकर आज के केंद्रीकरण और कॉर्पोरेट लूट के समय में। लेकिन जनता ने अपने-अपने गांव / बस्ती में अपना अधिकार लेने के लिए, इस कानूनी और संवैधानिक दायरे को पूर्ण रूप से जानना, समझना, मानना और प्रत्यक्ष में अधिकार हासिल करने की प्रक्रिया, संघर्ष-संवाद निरंतर चलाना ज़रूरी है।
इसीलिए, आने वाली ग्राम सभा या विशेष ग्राम सभा (जरूरी समस्या के लिए) में, अपने गाँव के सभी भाई-बहनों को पूरी संख्या में उपस्थित रहकर, अपने सभी मुद्दे, समस्या, शासन से अपेक्षा, ज़रुरती कार्य संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव (एक नहीं, अनेक!) पारित करना ज़रूरी और संभव है। प्रस्तावों में गांव / बस्ती के आवास, भोजन, रास्ते, सफ़ाई, पानी, बिजली, किसानी ज़रूरतें, 'मनरेगा' से रोज़गार, राशन, पेंशन, आदि कई अधिकार संबंधी शासनकर्ताओं को एक प्रकार से आदेश ही आप देंगे। प्रस्ताव लेकर, जनता स्थानिक प्रतिनिधियों के पीछे लगे और शासन से उन पर अमल करवाए, यह भी संभव होगा। शासन से या किसी निजी हितसंबंधी से गांव / बस्ती में कुछ अन्यायकारी कार्य होता है या होने वाला / प्रस्तावित है, तो उस संबंधी अपनी भूमिका पर भी प्रस्ताव पारित हो सकेगा; जैसे गाँव की सहमति के बिना, शासन द्वारा कोई बड़ी परियोजना थोपना! (खनन, जंगल कटाई, ज़मीन, जल स्त्रोत हस्तांतरण आदि का विरोध)
इस प्रक्रिया द्वारा गांव-गांव, बस्ती-बस्ती में प्रबोधन करना ज़रूरी है, वह भी तत्काल! लद्दाख की जनता और सोनम जी ने आवाहन किया ही है, अपने-अपने क्षेत्र में 'मार्च' यानी पदयात्रा निकालने का! तो आइये, हम तय करें, अपने-अपने क्षेत्र में पैदल चलकर, गांव-गांव, बस्ती-बस्ती में पहुंचे... और वहां लोगों से संवाद करते हुए, ग्राम सभाओं व बस्ती/ वार्ड सभाओं का आयोजन में भूमिका निभाएं। इसे सफ़ल करने के लिए, सभी गांव वासी/ बस्ती वासी नागरिकों को जागृत करें, माहौल तैयार करें, जन प्रतिनिधियों को चेतावनी दे!
हमारा प्रस्ताव और संकल्प है कि हम 20 से 30 अप्रैल तक यह आयोजन अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में करें, ताकि जन जागरण काफ़ी महत्वपूर्ण और असरकारक रहेगा। इसमें लद्दाख के संघर्ष को समर्थन जाहिर करते हुए, एक पत्र पर हस्ताक्षर अभियान चलाते हुए, हम अपने अधिकारों की भी बात आगे बढ़ाएं। साथ ही, उन सत्ता-धारी पार्टियों और उनके ‘प्राथमिकताओं’ को भी चुनौती देते हैं, जो जन-विरोधी, पर्यावरण-विरोधी और संविधान-विरोधी हैं। आगामी चुनाव में, हम अपना वोट का नागरिक हक का भी सही इस्तेमाल करते हुए, संविधान-विरोधी सत्ताधीशों को हराने का संकल्प लेते हैं।
'हमारा नागरिक अधिकार! विकास में जनतंत्र और संवैधानिक पुकार!!
इसके आधार पर हम घोषणा करे कि हम शासन के ‘गुलाम’ बिल्कुल नहीं, सिर्फ़ मतदाता या ‘लाभार्थी’ भी नहीं, विकास के नियोजन-कर्ता बनेंगे, बने रहेंगे। इसी मार्ग पर चलकर, संवैधानिक और लोकतांत्रिक मंजिल तक पहुंच पाएंगे। अपने जल, जंगल, जमीन, खनिज, प्रकृति, लोकतांत्रिक हक और समता - न्यायवादी संस्कृति को बचा पाएंगे! धर्म, लिंग, जाति भेदभाव और शोषण मिटाएंगे। आइए, तय करें अपना योगदान और कार्यक्रम भी !
‘विकास’ के नाम पर विनाश नामंजूर !
विकास में हो सामाजिक-पर्यावरणीय न्याय ज़रूर !