हे प्रभु जी! तेरे नाम में (जुड़ के) मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है, मेरे मन में ख़ुशी पैदा होती है। हे भाई! परमात्मा का नाम सदा-थिर रहने वाला है, प्रभु गुणों (का खज़ाना ) है और धरती के जीवों के दिल की जानने वाला है। गुरु का बक्शीश ज्ञान बताता है की सिरजनहार प्रभु बयंत है, जिसने यह सृष्टि पैदा की है, वो ही इस को नास करता है। जब उस के हुकम में भेजा हुआ (मौत का) पैगाम आता है तो कोई जीव (उस पैगाम को) मोड़ नहीं सकता। परमात्मा खुद ही (जीवों को) पैदा कर के आप ही संभाल करता है, खुद ही हरेक जीव के सिर ऊपर (उस के किये कर्मो अनुसार) लेख लिख देता है, खुद ही (जिव को सही जीवन-राह की) सूझ देता है। मालिक-प्रभु अपहुँच है, जीवों की ज्ञान-इन्द्रियों की उस तक पहुँच नहीं हो सकती। हे नानक! (उस के दर प् अरदास कर, और कह-हे प्रभु! ) तेरी सदा कायम रहने वाली सिफत-सलाह कर के मेरे अंदर आत्मिक जीवन पैदा होता है (मुझे अपनी सिफत-सलाह बक्श)।१।हे प्रभू जी! तेरे बराबर का और कोई नहीं है, (और जो भी जगत में) आया है, (वह यहाँ से आखिर) चला जाएगा (तू ही सदा कायम रहने वाला है)।
जिस मनुष्य की भटकना (गुरू) दूर करता है, प्रभू के हुकम अनुसार उसके जनम-मरण के चक्कर का खात्मा हो जाता है। गुरू जिसकी भटकना दूर करता है, उससे उस परमात्मा की सिफत सालाह करवाता है जिसके गुण बयान से परे हैं।
वह मनुष्य सदा-स्थिर प्रभू (की याद) में रहता है, सदा स्थिर प्रभू (उसके हृदय में) प्रगट हो जाता है। वह मनुष्य रजा के मालिक प्रभू का हुकम पहचान लेता है (और समझ लेता है कि) प्रभू खुद ही पैदा करता है और खुद ही (अपने में) लीन कर लेता है।
हे प्रभू! जिस मनुष्य ने तेरी सिफत सालाह (की दाति) गुरू से प्राप्त कर ली है, तू उसके मन में आ बसता है और अंत के समय भी उसका साथी बनता है।
हे नानक! मालिक प्रभू सदा कायम रहने वाला है, उस जैसा कोई और नहीं। (उसके दर पर अरदास कर और कह–) हे प्रभू! तेरे नाम में जुड़ने से (लोक-परलोक में) आदर मिलता है।2।
हे अदृष्य रचनहार! तू सदा स्थिर रहने वाला है और सब जीवों को पैदा करने वाला है।
एक ही सृजनहार (सारे जगत का) मालिक है, उसने (पैदा होना और मरना) दो रास्ते चलाए हैं। (उसीकी रजा के अनुसार जगत में) झगड़े बढ़ते हैं। दोनों रास्ते प्रभू ने ही चलाए हैं, सारे जीव उसी के हुकम में हैं, (उसी के हुकम अनुसार) जगत पैदा होता व मरता रहता है। (जीव नाम को भुला के माया के मोह का) जहर-रूपी भार अपने सिर पर इकट्ठा किए जाता है, (और ये नहीं समझता कि) परमात्मा के नाम के बिना और कोई भी साथी मित्र नहीं बन सकता। जीव (परमात्मा के) हुकम अनुसार (जगत में) आता है, (पर माया के मोह में फस के उस) हुकम को नहीं समझता। प्रभू आप ही जीवों को अपने हुकम अनुसार (सीधे रास्ते पर डाल के) सँवारने में समर्थ है।
हे नानक! गुरू के शबद में जुड़ने से ये पहचान हो जाती है कि जगत का मालिक सदा-स्थिर रहने वाला है और सबको पैदा करने वाला है।3।
हे भाई! परमात्मा की भक्ति करने वाले बंदे परमात्मा की हजूरी में शोभते हैं, क्योंकि गुरू के शबद की बरकति से वह अपने जीवन को सुंदर बना लेते हैं। वह लोग आत्मिक जीवन देने वाली बाणी अपनी जीभ से उचारते रहते हैं, जीव को उस बाणी के साथ एकरस कर लेते हैं। भक्त जन प्रभू के नाम के साथ जीभ को रसित कर लेते हैं, नाम में जुड़ के (नाम के वास्ते उनकी) प्यास बढ़ती है, गुरू के शबद से वह प्रभू-नाम से कुर्बान होते हैं, (नाम की खातिर और सब शारीरिक सुख कुर्बान करते हैं)।
हे प्रभू! जब (भक्तजन) तेरे मन को प्यारे लगते हैं, तो वह गुरू पारस से छू के स्वयं भी पारस बन जाते हैं (औरों को पवित्र जीवन देने के लायक बन जाते हैं)।
जो लोग स्वैभाव दूर करते हैं उन्हें वह आत्मिक दर्जा मिल जाता है जहाँ आत्मिक मौत असर नहीं कर सकती। पर ऐसा कोई विरला ही गुरू के दिए ज्ञान की विचार करने वाला सख्श होता है।
हे नानक! परमात्मा की भक्ति करने वाले बंदे सदा-स्थिर प्रभू के दर पर शोभा पाते हैं, वह (अपने सारे जीवन में) सदा-स्थिर प्रभू के नाम का ही व्यापार करते हैं।4।
जब तक मैं माया के वास्ते भूखा प्यासा रहता हूँ, तब तक मैं किसी भी तरह प्रभू के दर पर पहुँच नहीं सकता। (माया की तृष्णा दूर करने का इलाज) मैं जा के अपने गुरू से पूछता हूँ (और उसकी शिक्षा के अनुसार) मैं परमात्मा का नाम सिमरता हूँ (नाम ही तृष्णा दूर करता है)।
गुरू की शरण पड़ कर मैं सदा-स्थिर नाम सिमरता हूँ सदा-स्थिर प्रभू (की सिफत सालाह) उचारता हूँ, और सदा स्थिर प्रभू से सांझ पाता हूँ। मैं हर रोज उस प्रभू का नाम मुँह से बोलता हूँ जो दीनों का सहारा है जो दया का श्रोत है और जिस पर माया का प्रभाव नहीं पड़ सकता।
परमात्मा ने जिस मनुष्य को अपनी हजूरी से ही नाम-सिमरन का करणीय कार्य करने का हुकम दे दिया, वह मनुष्य अपने मन को (माया की ओर से) मार के तृष्णा के प्रभाव से बच जाता है। हे नानक! उस मनुष्य को प्रभू का नाम ही मीठा व सभी रसों से श्रेष्ठ लगता है, उसने नाम-सिमरन की बरकति से माया की तृष्णा (अपने अंदर से) दूर कर ली होती है।5।2।