25.9.19/ राष्ट्रीय सहारा
कितना कारगर होगा तलाक पर कानून
कुमुदनीपति
सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक़ पर कानून (जिसे
मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण कानून 2019 कहा गया है) के संबंध में
मुस्लिम ऐडवोकेट्स ऐसोसिएशन द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार के
नाम नोटिस जारी किया है। ऐसोसिएशन ने अदालत से ‘‘कोर्ट स्टे’ की मांग की
है कि यह कानून पूरी तरह से असंवैधानिक है और मुस्लिम महिलाओं व पुरु षों
के बुनियादी अधिकारों का हनन करता है। नोटिस जारी करने वाली पीठ की
अध्यक्षता जस्टिस एनवी रमणा कर रहे थे। तीन तलाक के मामले में पहले भी कई
याचिकाएं दर्ज हुई हैं, इसलिए उन्हें भी इसी जन हित याचिका के साथ टैग कर
दिया गया। समस्थ केरल जमायतुल उलेमा ने पहले ही कई याचिकाओं के जरिये कानून
पर सवाल उठाया था फिर सय्यद फारुकी और बाद में जमायत-उलेमा-ए-हिन्द ने
प्रश्न उठाया कि जब 22 अगस्त 2017 को सर्वोच्च न्यायालय एक बार में तीन
तलाक यानी तलाक़-ए-बिद्दत को गैर-कानूनी घोषित कर उसे निरस्त कर चुका था तो
सरकार को पुन: अपराधिक कानून बनाने की क्या जरूरत आन पड़ी थी? याचिका में
यह भी पूछा गया कि जब मुसलमानों के बीच विवाह सिविल या नागरिक करार माना
गया है तो कानून तलाक़ को अपराध की श्रेणी में कैसे रख सकता है? साथ-साथ
प्रश्न भी उठाया गया कि तलाक -बिद्दत से कहीं अधिक गंभीर मामलों को जब
अपराध नहीं माना गया और उनमें आसानी से जमानत मिल जाती है तो इसे गंभीर
अपराध मानकर 3 साल की जेल व जुर्माना लगाना; साथ में बिना पत्नी के अदालत
में पेश हुए जमानत न देना कहां तक कानून-संगत है? याचिका में बताया गया कि
कई मामलों में (पढ़िये: हिन्दू विवाहों में भी) तो पति द्वारा पत्नी का
परित्याग कर चला जाना तक अपराधिक कानून के दायरे नहीं माना गया है। वर्तमान
कानून में सज़ा दोष की गंभीरता से कहीं अधिक है। दूसरी महत्वपूर्ण बात
उठाई गई है कि खण्ड 6 के अनुसार बच्चों की कस्टडी मां को दे दी जाएगी; यह
हमेशा बच्चों के हित में नहीं भी हो सकता है। याचिका के द्वारा मांग की गई
है कि अन्य इस्लामिक देशों की भांति हमारे देश में एक बार में तीन तलाक के
उच्चारण को एक बार के उच्चार के बराबर मान लिया जा सकता है। उसे अपराधिक
कानून के जरिये हल करना उचित नहीं है। तीन तलाक पर जिस हड़बड़ी में कानून
बना दिया गया उससे कई महिला संगठनों और कानूनविदों को लगा कि इसके पीछे कुछ
दूसरे मकसद हैं। राज्य सभा में पारित होने से पूर्व लेख लिखे, साक्षात्कार
दिये, प्रधानमंत्री को पत्र लिखे और टीवी पर बहस भी की। इस पर कोई विचार
नहीं किया गया। ऐसा लगने लगा कि मुस्लिम महिलाओं को राहत दिलाने के बजाए
उनके मुद्दे पर राजनीति चलने लगी, क्योंकि वे बड़ा वोट बैंक निर्मित करती
हैं। महिलाओं से संबंधित कानूनों पर काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन मजलिस
की संस्थापिका फ्लेविया एगिस का कहना है कि मुसलमनों पर कितने सारे
अत्याचार सरेआम हो रहे थे, तब प्रधानमंत्री मौन रहे। भीड़ हत्याएं हुईं,
बीफ खाने को लेकर शक पर लोगों को मार डाला गया। तीन तलाक के मामले पर जो कम
संगीन मामला है, अचानक मुस्लिम औरतों के भाई बन गए! वह कहती हैं कि
मुसलमान पुरु ष को राक्षस बनाकर पेश किया गया-वह बहुपत्नी प्रथा को
व्यवहार में लाता है, गो-मांस खाता है, हिन्दू लड़कियों से जबरन ब्याह
रचाता है, तीन तलाक़ के माध्यम से पत्नी को उत्पीड़ित करता है, वह हिंसक है
आदि। दरअसल तीन तलाक पर बहस को बड़े सुनियोजित तरीके से भारतीय मुस्लिम
महिला आन्दोलन के जरिये सामने लाया गया था। उसने बताया कि सव्रे से पता चला
है कि मुस्लिम औरतों की सबसे बड़ी समस्या है बहुपत्नी प्रथा और तीन तलाक।
जज ने रिपोर्ट स्वप्रेरणा से ली। मुसलमान औरत शायरा बानो का केस 2016 से
कोर्ट चल रहा था। शायरा का पति दहेज और गाड़ी के लिये उसे प्रताड़ित करता
था। उसे मारता, भूखा रखता और कई-कई दिनों तक कोठरी में बन्द रखता। उसने
पत्र के माध्यम से तीन तलाक दे दिया। शायरा ने शायद यह कभी सोचा न था कि
उसके केस को लेकर कितना बड़ा राजनीतिक खेल खेला जाएगा। उसने अपने बयान में
कहा ‘‘‘‘भाजपा को न्यायालय के फैसले पर श्रेय नहीं लेना चाहिये, न मुद्दे
का राजनीतिकरण करना चाहिये। इसे राजनीतिक ऐजेन्डा कतई नहीं बनाया जा सकता।’
पहले भी शाहबानो के केस पर जिस तरह राजनीति की गई थी ,वह काफी दुखद था।
कहीं-न-कहीं उस केस में भी मुसलमान (पढ़ें: पुरु ष) प्रतिक्रिया से डरकर
फैसला किया गया था। आज कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें मुस्लिम
महिलाएं आगे बढ़कर तीन तलाक के कानून के तहत अपनी शिकायत दर्ज करा रही हैं।
उसका नतीजा हर बार अच्छा नहीं होता। पूरे भारत में मुस्लिम महिलाओं को
तीन तलाक पर कानून के बारे में शिक्षित किया जाए। शिकायत दर्ज करने का
खामियाजा मुस्लिम औरतों को ही भुगतना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर
में महिला ने जब तीन तलाक के विरुद्ध केस दर्ज कर उसे वापस लेने से मना कर
दिया तो उसकी नाक काट ली गई। मुजफ्रनगर में महिला ने जब ससुराल वालों के
खिलाफ दहेज प्रताड़ना के लिए केस दर्ज किया तो उसके पति ने, जो कुवैत में
मज़दूरी करता है, वाट्सएप पर तीन तलाक लिख दिया। जबसे कानून बना है, करीब
216 मुस्लिम महिलाओं ने नए कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। सबसे अधिक
केस मेरठ में (26), उसके बाद साहारनपुर में (17) और शामली में (10) और
वाराणसी में (10) दर्ज किये गए हैं। छत्तीसगढ़ और दिल्ली में गिरफ्तारियां
हुई हैं पर उत्तर प्रदेश में केवल 3 गिरफ्तारियां हुईं तो पुलिस से सरकार
ने पूछताछ की है कि कड़ाई क्यों नहीं हुई। इस कानून के तहत गिरफ्तारी के
वारंट की ज़रूरत नहीं पड़ती है। अब गिरफ्तारी होने पर इन पीड़ित महिलाओं के
साथ आगे क्या होगा यह देखना अभी बाकी है क्योंकि केस दर्ज करने के बाद
सबसे अधिक भुगतना पड़ेगा गरीब मुस्लिम औरतों को, जिनके मां-बाप नहीं हैं या
बहुत गरीब हैं, जिसके कारण अपनी बेटी को रखने में असमर्थ हैं। ससुराल में
जब बेटा जेल में हो तो उसके माता-पिता की प्रतिक्रिया क्या होगी, हमें
अनुमान है। घर का कमाने वाला अगर मज़दूर होगा तो वह जेल में रहकर
गुज़ारा-भत्ता भी न दे सकेगा। बच्चों का स्कूल जाना बन्द होगा और खाने तक
के लाले पड़ जाएंगे। दूसरी ओर जो पैसे वाले होंगे, उनकी इज्ज़त को चोट आएगी
तो वे ज़रूर औरत को घर से निकालने या मार डालने की कोशिश करेंगे। केस
रफा-दफा करने की कोई समय-अवधि न होने के कारण ऐसा भी हो सकता है कि मामला
कई वर्षों तक ख्ंिाचेर्। मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि ऐसी स्थिति में
उनको कानून की धारा 6 के तहत बच्चों का संरक्षण तो मिल जाएगा पर गरीब औरतों
को पालन-पोषण के लिए पैसा नहीं मिलेगा। अब बरेली जैसे कुछ विविद्यालयों
में एलएलबी और एलएलएम के कोर्स में इस कानून को पढ़ाया जाएगा। उसके
व्यवहारिक निहितार्थ को भी समझा जाए। कुल मिलाकर मुस्लिम महिलाओं के सिर पर
गाज गिरी है। देखना है कि जिस उत्साह के साथ भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन
ने इस कानून के निर्माण के लिए पैरवी की थी, उसी उत्साह के साथ क्या वह
कानून के फलस्वरूप पीड़ित हो रही महिलाओं का सहयोग करेंगा?
आधी बात पूरी बात
आज कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें मुस्लिम महिलाएं आगे बढ़कर तीन
तलाक के कानून के तहत अपनी शिकायत दर्ज़ करा रही हैं पर उसका नतीजा हर बार
अच्छा नहीं होता। भारत में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक पर कानून के बारे
में शिक्षित किया जाए।
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