मानसिक रोगों से पीड़ितों के लिए राष्ट्रीय नीति की जरूरत/ राष्ट्रीय सहारा
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neetu routela
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Sep 10, 2019, 1:02:29 AM9/10/19
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10.9.19/ राष्ट्रीय सहारा
मानसिक रोगों से पीड़ितों के लिए राष्ट्रीय नीति की जरूरत
नई दिल्ली (भाषा)। देश में आत्महत्या की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही
है, लेकिन विडंबना यह है कि इस क्षेत्र में मानसिक रोगों से पीड़ित और
आत्महत्या की प्रवृत्ति वाले मरीजों की मदद के लिए सरकारी स्तर पर न तो कोई
हेल्पलाइन है और न ही कोई राष्ट्रीय नीति । राष्ट्रीय राजधानी में स्थित
राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मानसिक चिकित्सा विभाग में इन दिनों एक शोध
किया जा रहा है, जिसके नतीजों से राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्याओं को रोकने
के लिए एक ऑनलाइन हेल्पलाइन बनाने में मदद मिल सकती है। इस शोध को भारतीय
चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा केंद्र सरकार के राष्ट्रीय
मानसिक स्वास्य कार्यक्रम (नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम) की मदद से किया जा
रहा है। आरएमएल अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग में वरिष्ठ मनोचिकित्सक और
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. आरपी बेनीवाल ने ‘‘भाषा’ को यह जानकारी दी। मानसिक
स्वास्य के संबंध में विश्व स्वास्य संगठन की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के
अनुसार, दुनिया में हर साल करीब आठ लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। आंकड़ों
के औसत के हिसाब से देखा जाए, तो दुनिया में हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति
आत्महत्या करता है। डॉ. बेनीवाल कहते हैं कि विश्व स्तर पर देखा जाए, तो
भारत में आत्महत्या का आंकड़ा सबसे ज्यादा है, लेकिन इसे रोकने के लिए देश
मे अभी तक कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बनी है। उनके अनुसार देश मे एक
राष्ट्रीय नीति की जरूरत है । साथ ही उनका सुझाव है कि प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी को मन की बात कार्यक्रम में आत्महत्या के मुद्दे को उठाना
चाहिए, ताकि लोग इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील बनें। डॉ. बेनीवाल के अनुसार
आत्महत्या करने वाले लोगों में डिप्रेशन एक मुख्य वजह है। अध्ययन बताते
हैं कि उच्च आय वर्ग में आत्महत्या करने वाले 50 फीसदी लोग, अवसाद यानी
डिप्रेशन से पीड़ित थे । किशोर उम्र के बच्चे डिप्रेशन की चपेट में ज्यादा
आते हैं। डॉ बेनीवाल के अनुसार एक व्यक्ति के आत्महत्या करने से उसके दायरे
में आने वाले 135 लोग प्रभावित होते हैं। डब्ल्यूएचओ फैलो डॉ. बेनीवाल के
अनुसार 15 से 29 आयुवर्ग के बीच यह मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
केंद्रीय स्वास्य मंत्रालय की साल 2015 की रिपोर्ट के अनुसार देश में करीब
10 करोड़ लोग मानसिक रूप से बीमार हैं ,लेकिन इनके इलाज के लिए केवल 3800
मनोचिकित्सक, 898 क्लीनिकल मनोचिकित्सक, 850 सामाजिक कार्यकर्ता, 1500
मनोचिकित्सक नर्सें और 43 मानसिक स्वास्य अस्पताल हैं ।