
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)
राष्ट्रीय कार्यालय: ए /29-30, हाजी हबीब बिल्डिंग, नायगाव क्रास रोड, दादर (पू.), मुंबई 400014 |
ई-मेल: napm...@gmail.com | वेब:www.napmindia.org | ट्विटर: @napmindia
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पूरा विश्लेषण व सम्पूर्ण वक्तव्य लिए संलग्न दस्तावेज़ देखें:
बिहार के लाखों मेहनतकश लोगों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए
व्यवस्थागत बदलाव की आवश्यकता !
बिहार चुनाव के संदर्भ में मजदूरों का अजेंडा
5 नवंबर, 2025: बिहार में चुनाव शुरू होने के साथ, हम राज्य का जायज़ा उसके लाखों मेहनतकश लोगों के नज़रिए से लेते हैं, जो न सिर्फ़ बिहार, बल्कि पूरे देश के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और अपना योगदान देते हैं।
पिछले 20 सालों से राज्य में लगातार एनडीए सरकारों (सिवाय 2015-17 के) द्वारा अपनाई गई नवउदारवादी नीतियों का असर इस चुनावी मौसम में साफ़ दिख रहा है। इस ऐतिहासिक चुनाव के शुरू होने के साथ, एन.ए.पी.एम. राज्य के श्रमिक लोगों के सामने खड़ी गंभीर चुनौतियों की ओर ध्यान दिलाना चाहता है। साथ ही, हम कुछ ठोस सुझावों और माँगों को भी रख रहे हैं, जो मौजूदा हालात में बेहद ज़रूरी हैं।
एन.ए.पी.एम की मांगें :
हमारा मानना है कि बिहार के श्रमिकों के सामने मौजूद चुनौतियों का एक व्यवस्थित समाधान आवश्यक है। इस संदर्भ में, मात्र योजनाएँ पर्याप्त नहीं हैं। समय की माँग है कि रणनीति में स्पष्ट बदलाव लाया जाए ताकि राज्य श्रमिकों का समर्थन करे, न कि पूँजी के हितों का। इस दिशा में, हम निम्नलिखित माँगें करते हैं:
1. बिहार के लिए एक नई कृषि रणनीति: उपजाऊ मिट्टी और प्रचुर सतही जल के बावजूद, नवउदारवादी युग से ही कृषि को संस्थागत समर्थन का अभाव रहा है। कृषि को पुनर्जीवित करने और इसे स्थानीय आर्थिक पुनरोद्धार का आधार बनाने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। इससे लाभकारी रोज़गार और स्थानीय अर्थव्यवस्थाएँ निर्मित होंगी। भूमि और अन्य संसाधनों का समान वितरण और पहुँच, राज्य द्वारा उचित मूल्य पर खरीद, एक विकेन्द्रीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली, स्थानीय ग्राम-आधारित सहकारी समितियों को प्रोत्साहन, स्थानीय कृषि/गैर-कृषि संबंधों पर ज़ोर, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्य और राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (नरेगा) का विस्तार ऐसी रणनीति के कुछ मुख्य हिस्से हैं।
2. राज्य क्षमता निर्माण एवं कर्मचारी भर्ती: बिहार आर्थिक विकास के साथ-साथ मानव विकास की चुनौतियों का भी सामना कर रहा है। इसके लिए बुनियादी अधिकारों और सेवाओं का प्रावधान आवश्यक है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, राज्य सरकार को सभी रिक्ति स्थानो को यथाशीघ्र भरना होगा और जनसंख्या-सरकार अनुपात को पूरा करने के लिए अपने कार्यों का विस्तार करना होगा। केंद्र सरकार से विशेष दर्जा अनुदान इस विस्तार को सुगम बनाएगा। ठेका प्रथा को पूरी तरह समाप्त किया जाना चाहिए और आरक्षित वर्ग के पदों को भरने पर पर्याप्त ध्यान देते हुए, स्थायी कर्मचारियों की भर्ती के लिए वास्तविक प्रयास किए जाने चाहिए।
3. व्यापक सामाजिक सुरक्षा ढाँचा: निजी क्षेत्र की नौकरियों की अत्यधिक अनिश्चित प्रकृति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि सरकार उन सभी श्रमिकों के लिए एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा स्थापित करे जिन्हें कॉर्पोरेट भारत ने बेसहारा छोड़ दिया है।इस सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में गिग श्रमिक, महिलाओं और अनौपचारिक श्रमिकों के प्रति संवेदनशीलता होना चाहिए।
4. नरेगा को मज़बूत करना और शहरी रोज़गार गारंटी अधिनियम को लागू करना: सभी श्रमिकों को समय पर मज़दूरी का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए; मज़दूरी ₹800 तक बढ़ाना और प्रतिदिन और प्रति वर्ष 200 व्यक्ति-दिवस रोज़गार किया जाना चाहिए। नरेगा की तर्ज़ पर, बिहार में शहरी रोज़गार गारंटी अधिनियम (UEGA) लागू किया जाना चाहिए, जिसमें प्रति वर्ष/प्रति व्यक्ति को कम से कम 150-200 सुनिश्चित कार्यदिवस प्रदान किए जाएँ, ताकि बिहार के युवा कार्यबल के लिए उत्पादक संपत्तियाँ और एक शहरी मज़दूरी आधार तैयार किया जा सके।
5. माइक्रोफाइनेंस ऋणों की माफ़ी: बिहार में अनौपचारिक क्षेत्र के लाखों श्रमिकों, खासकर महिलाओं, के लिए माइक्रोफाइनेंस ऋणों का ख़तरा गंभीर तनाव का कारण रहा है । उनमें से कई को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है, जिसके कारण कुछ ने आत्महत्या भी कर ली है। हम माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (एम.एफ.आई) द्वारा दिए गए ₹1 लाख से कम के सभी ऋणों की तत्काल माफ़ी की मांग करते हैं।
6. प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा: बिहार की श्रमिक आबादी का एक बड़ा हिस्सा "बेहतर जीवन" की तलाश में देश के अन्य हिस्सों में काम कर रहा है, लेकिन उन्हें अक्सर अनिश्चित व चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। मज़दूर-विरोधी श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन और अंतर-राज्यीय प्रवासी कर्मकार अधिनियम, 1979 को निरस्त करने से, प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा करने वाले कानूनी ढाँचे को गंभीर क्षति पहुँची है। हम सभी प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मज़बूत कानून की माँग करते हैं, चाहे वे अपने गृह राज्य में हों या अपने गंतव्य/कार्यस्थल राज्य पर। सभी प्रवासी श्रमिकों के लिए डाक मतपत्र सुनिश्चित किए जाने चाहिए।
7. सार्वजनिक शिक्षा को मज़बूत करना: राज्य को प्राथमिक स्तर से ही सार्वजनिक शिक्षा में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि करने की आवश्यकता है ताकि एक मज़बूत शिक्षण आधार सुनिश्चित किया जा सके और इसे उच्च स्तर पर भी जारी रखा जा सके, जिसका उद्देश्य शिक्षा में पीढ़ी दर पीढ़ी सुधार लाना है। इसके लिए तेज़ी से फैल रहे निजी क्षेत्र पर कड़ा नियंत्रण और शिक्षा के और अधिक निजीकरण व निगमीकरण को रोकना भी आवश्यक है।
8. जन-केंद्रित आर्थिक विकास की ओर: एक के बाद एक सरकारों ने बड़े निजी निगमों के हितों को प्राथमिकता दी है, जिन्होंने दशकों से बिहारी मज़दूरों के कम वेतन वाले श्रम से अनुपातहीन रूप से लाभ उठाया है । इस दिशा में सुधार ज़रूरी हैं। इनमें प्रगतिशील कर के माध्यम से पर्याप्त संसाधन जुटाना, सामाजिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण और रखरखाव में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, पेंशन आदि जैसे सामाजिक अधिकारों को सुनिश्चित करना और सामाजिक रूप से निर्धारित प्राथमिकताओं के साथ बाज़ार संरेखण को सुगम बनाना शामिल है।
उपरोक्त उपायों के साथ-साथ, सभी हाशिए पर खड़े समूहों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। आर्थिक विकास को सार्थक बनाने के लिए, सामाजिक न्याय को केंद्र में रखना होगा। कृषि श्रमिकों / खेत मजदूरों, नरेगा श्रमिकों, रसोइया / मध्याह्न भोजन श्रमिकों, घरेलू श्रमिकों गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों, निर्माण श्रमिकों, सफाई कर्मचारियों, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों, गृह-आधारित श्रमिकों, मत्स्य पालन श्रमिकों, वन श्रमिकों, रेहड़ी-पटरी श्रमिकों, प्रवासी श्रमिकों और अनौपचारिक कार्य क्षेत्र की अन्य सभी श्रेणियों को उचित और समान वेतन, आजीविका और सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, बीमा आदि सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
बिहार के सभी मज़दूर बेहतर सुविधाओं के हक़दार हैं। आख़िरकार, चुनाव नागरिकों के नाम पर लड़े जाते हैं, और बिहार जैसे राज्यों में, और वास्तव में पूरे भारत में, मज़दूर वर्ग आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। उनकी नागरिकता को SIR जैसी संदिग्ध गतिविधियों या मज़दूर वर्ग-विरोधी विकास मॉडल से नकारा नहीं जा सकता ।
जारीकर्ता:
आशीष रंजन (जन जागरण शक्ति संगठन - JJSS, बिहार)
थॉमस फ्रेंको (मतदाता अधिकार संरक्षण आंदोलन, तमिलनाडु)
सौम्या दत्ता (मौसम व NACEJ- नई दिल्ली)
उस्मान जावेद (स्वतंत्र शोधकर्ता, मुंबई)
मीरा संघमित्रा (अखिल भारतीय नारीवादी मंच: अलीफा – एन.ए.पी.एम, तेलंगाना)
अखिल भारतीय श्रमिक मंच व जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) के राष्ट्रीय कार्य समूह द्वारा जारी: अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: 9953947739 / 9973363664
ई – मेल: napm...@gmail.com