जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)
राष्ट्रीय कार्यालय: ए /29-30, हाजी हबीब बिल्डिंग, नायगाव क्रास रोड, दादर (पू.), मुंबई 400014 |
ई-मेल: napmindia@gmail.com | वेब:www.napm-india.org
ट्विटर: @napmindia | ब्लॉग: www.napmindia.wordpress.com
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
‘निरंकुश सत्ता’ के ख़िलाफ़ लड़ रही महिला पहलवानों के साथ एकजुटता ।
ब्रजभूषण सिंह को गिरफ़्तार करो। खेल प्राधिकरणों में लोकतांत्रिक प्रणाली बहाल करो ।
10 मई,2023: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) हमारे देश की उन सभी महिला खिलाड़ियों के साथ एकजुटता व्यक्त करती है, जो भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यू.एफ.आई) के अध्यक्ष और कैसरगंज से भा.ज.पा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह द्वारा महिला खिलाड़ियों के साथ, बार-बार यौन उत्पीड़न किए जाने के कारण, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए आंदोलन कर रही है। हम केंद्र सरकार की निर्दयतापूर्ण और मनमानी भरे रवैये की कड़ी निंदा करते हैं, जो पॉस्को कानून के दो गंभीर आरोपों में मामला दर्ज होने के बावजूद, ब्रजभूषण सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है; उल्टे उसे बचाने में लगी है। जबकि पिछले दो वर्षों से महिला पहलवानों द्वारा यौन शोषण का मामला केंद्र सरकार के संज्ञान में लाया जाता रहा है। आखिर में, माननीय उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप पर मामला दर्ज किया गया है।
23 अप्रैल, 2023 से न्याय के लिए जंतर मंतर पर बैठे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवानों के आंदोलन को देश समेत पूरा विश्व देख रहा है। वहीं उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा खिलाड़ियों को न केवल न्याय से, बल्कि विरोध प्रदर्शन करने के अधिकार से, वंचित करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। पहले हुए लोकतांत्रिक आंदोलन जैसे किसान आंदोलन के तरह इस आंदोलन को भी बदनाम करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान जानकारी के अनुसार, खेल मंत्रालय और भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा जाँच के लिए बनाई गई कमिटी केवल आँखों में धूल झोंकने का प्रयास भर है। भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यू.एफ़.आई) और सरकार की उदासीनता, निष्क्रियता और ग़ैर-जवाबदेही पूर्ण रवैये को देखते हुए, श्री सिंह को डब्ल्यू.एफ़.आई अध्यक्ष पद से निष्कासित करने एवं एक स्वतंत्र जाँच कमिटी गठन किए जाने की माँग का हम पूर्ण समर्थन करते हैं।
सरकार के प्रणालीगत उदासीन रवैये के ख़िलाफ़ जंतर मंतर और दिल्ली के अन्य हिस्सों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे खिलाड़ियों तथा छात्रों के साथ जिस तरह दिल्ली पुलिस ने मारपीट की है, हम उसका पुरज़ोर विरोध करते हैं। प्रति रोध दर्ज करने के अधिकार से वंचित करने का यह एक निंदनीय प्रयास है। यह बिलकुल स्पष्ट है की ब्रजभूषण सिंह जैसे लोग इस सरकार के संस्थानों के भीतर मौजूद अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के सूचक है, जिन्हें प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जैसे उच्चतम स्तर का संरक्षण प्राप्त है।
कार्यस्थलों पर यौन हिंसा और उत्पीड़न एक गंभीर अपराध है। इसकी व्यापकता को देखते हुए, भारत में नारीवादी आंदोलनों के लंबे संघर्षों के बाद, भारतीय संसद द्वारा यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम (पी.ओ.एस.एच) अधिनियम, 2013 में अधिनियमित किया गया था। यह बड़े शर्म की बात है कि कानून पारित होने के एक दशक बाद भी, भारत में आधे से अधिक खेल संघों ने अभी भी आंतरिक शिकायत समितियों का गठन नहीं किया है, जो देश के सभी सरकारी और निजी संगठनों के लिए अनिवार्य है। यह हमारे समाज में सार्वजनिक, संस्थागत और कार्यक्षेत्रों की पूरी तरह से पितृसत्तात्मक प्रकृति को दर्शाता है।
कठुआ, गुजरात, हाथरस जैसे मामलों के तरह, इस मामले ने भी एक बार फिर महिलाओं और लड़कियों को ‘सशक्त’ करने के खोखले दावों को न केवल उजागर किया है, बल्कि अपने निहित स्वार्थ के लिए ताकतवर अपराधियों के साथ, सत्ता दीक्षों की मिलीभगत को भी दर्शा रहा है। यहाँ तक कि विश्व भर में देश का नाम रोशन करने वाले भी इस सरकार के प्रकोप से नहीं बचे। यह अपने आप में काफ़ी कुछ बयाँ करता है। जब फासीवादी सत्ता अपने अहंकार के मद में चूर है और देश के कथित ‘बड़े चेहरे’ इस मुद्दे पर ख़ामोश है, ऐसे समय में देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से पहलवानों के संघर्ष के लिए बढ़ती आम जनता की एकजुटता, वास्तव में आशा की एक किरण है।
हमारी माँग हैं:
Ø दर्ज एफ.आई.आर के आधार पर, भारत सरकार ब्रजभूषण शरण सिंह को तुरंत गिरफ़्तार करे।
Ø श्री सिंह पर लगे यौन उत्पीड़न, भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के मामले और डब्ल्यू.एफ़.आई की भूमिका की जाँच के लिए एक स्वतंत्र कमिटी का गठन किया जाये।
Ø पहलवानों तथा उनके साथ एकजुटता दिखाने वालों के विरोध के अधिकार को पूरी तरह से बरकरार रखा जाये और हिंसक ज़्यादतियाँ करने वाले पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाये।
Ø सभी खेल प्राधिकरणों और निकायों में लोकतांत्रिक प्रणाली क़ायम की जाये तथा पदों पर भ्रष्ट व आपराधिक चरित्र के व्यक्तियों की जगह पर ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया जाये, जो सक्षम है और खेल के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
Ø यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम (पी.ओ.एस.एच), 2013 को सभी कार्यस्थलों पर अक्षरशः और पूरी भावना के साथ क्रियान्वयन किया जाये।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय द्वारा जारी
ई-मेल: napm...@gmail.com
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)
राष्ट्रीय कार्यालय: ए /29-30, हाजी हबीब बिल्डिंग, नायगाव क्रास रोड, दादर (पू.), मुंबई 400014 |
ई-मेल: napmindia@gmail.com | वेब:www.napm-india.org
ट्विटर: @napmindia | ब्लॉग: www.napmindia.wordpress.com
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
दिल्ली में अन्यायपूर्ण विध्वंश और बेदखली बंद करो
तुग़लकाबाद और सभी बस्तियों के विस्थापित निवासियों के साथ एकजुटता
G-20 शिखर सम्मेलन क्रूर बुलडोजर-राज का बहाना नहीं हो सकता !
17 मई, 2023: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) तुगलकाबाद और नई दिल्ली की कुछ अन्य बस्तियों के उन हज़ारों पीड़ित निवासियों के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त करती है, जिनके घरों को पहले भी और अभी G-20 शिखर सम्मेलन के संदर्भ में तबाह कर दिया गया है। उनके न्यूनतम कल्याण की अवहेलना और उनके अधिकारों का घोर उल्लंघन बेहद निराशाजनक है और हम इस पर तत्काल ध्यान देने और निवारण की मांग करते हैं। हम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ए.एस.आई) की कार्रवाइयों की निंदा करते हैं, जिसने हाल ही में एक बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया, जिसमें लगभग 1,000 घर नष्ट हो गए।साथ ही अन्य बस्तियों में भी सैकड़ों घर तोड़े गए हैं। कुछ स्थानों पर, कानून का उल्लंघन करते हुए, फेरीवालों को भी क्रूर तरीके से बेदखली का भी सामना करना पड़ा है।
अधिकारियों द्वारा किए गए जबरन विस्थापन और विध्वंस ने न केवल 2.6 लाख निवासियों सहित लगभग 1,600 परिवारों को बेघर कर दिया है, बल्कि उनकी सम्पत्ति और आजीविका का भी नुकसान हुआ है। 'बेदखली' करने के किसी भी कदम से पहले, उचित पुनर्वास और न्यायोचित सहायता की अभाव से, हाशिए पर जी रहे समुदायों की दुर्बल स्थिति और विकट हो गई है। नागरिकों को उनके घरों से बार-बार विस्थापित करने में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की भूमिका निंदनीय है।
विध्वंस अभियान के दौरान कानूनों और नियमों का घोर उल्लंघन भी उतना ही भयावह है। ये कार्रवाइयाँ सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद अधिनियम, 1994, और संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों और विकास-आधारित बेदखली पर दिशा-निर्देशों में उल्लिखित सिद्धांतों सहित, कानूनी सुरक्षा उपायों और उचित प्रक्रिया की अवहेलना करती हैं। हम कानून व्यवस्था की इस कदर अवहेलना की कड़ी निंदा करते हैं और सभी श्रमिक समुदायों के प्रति राज्य की जवाबदेही का आग्रह करते हैं। अधिकारियों से तत्काल विध्वंस को रोकने, इन उल्लंघनों की जांच करने और तुग़लकाबाद और अन्य इलाकों के बेघर निवासियों के लिए कानूनन सहायता और निवारण सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं। .
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को एक सुरक्षित घर का अधिकार अंतर्निहित है। लोगों के आश्रय के मौलिक अधिकार पर जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों को प्राथमिकता देते देखना निराशाजनक है। कश्मीरी गेट, यमुना बाढ़ के मैदान, धौला कुआं, महरौली, मूलचंद बस्ती और हाल ही में तुग़लकाबाद जैसे वंचित समुदायों के इलाकों में बेदखली, पहसे से धर्म, जाति, लिंग के कारण हाशिए पर रहने वाले लोगों का जीवन और जटिल कर देता हैं। यह न केवल उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि सबसे कमजोर वर्गों के हकों को सुनिश्चित करने में राज्य की व्यवस्थागत विफलताओं को दर्शाता हैं।
Ø हम सरकार से सभी विध्वंस और जबरन बेदखली तुरंत रोकने का आग्रह करते हैं।
Ø हम मांग करते हैं कि सरकार को सभी प्रभावित व्यक्तियों और परिवारों को संपत्ति के नुकसान और आजीविका के नुकसान सहित, हर नुकसान के लिए पूरी और न्यायपूर्ण रूप से मुआवज़ा देना चाहिए।
Ø हम सरकार से यह भी आग्रह करते हैं कि G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान मकानों के क्रूर विध्वंस के घटनाओं, पुलिस प्रशासन की ज़्याददतियाँ की एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच करें, तथा जिम्मेदार अधिकारियों और कार्यालयों को जवाबदेह ठहराते हुए, इन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाए।
Ø हम केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से भी अपने दमनकारी रवैए को बंद करने और प्रभावित समुदायों के साथ सार्थक बातचीत करने का आग्रह करते हैं, क्योंकि यह राज्य की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करे, ख़ासकर जी-20 जैसे महाकाय आयोजनों के समय, जिसके परिणाम स्वरूप, श्रमिकों के जीवन पर गंभीर असर पड़ता हैं। ऐसा न करने से 'सबका साथ सबका विकास' जैसे बड़े-बड़े नारे खोखली बयानबाजी बनकर रह जाते हैं।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय द्वारा जारी
ई-मेल: napm...@gmail.com
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)
राष्ट्रीय कार्यालय: ए /29-30, हाजी हबीब बिल्डिंग, नायगाव क्रास रोड, दादर (पू.), मुंबई 400014 |
ई-मेल: napmindia@gmail.com | वेब:www.napm-india.org
ट्विटर: @napmindia | ब्लॉग: www.napmindia.wordpress.com
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
दिल्ली में अन्यायपूर्ण विध्वंश और बेदखली बंद करो
तुग़लकाबाद और सभी बस्तियों के विस्थापित निवासियों के साथ एकजुटता
G-20 शिखर सम्मेलन क्रूर बुलडोजर-राज का बहाना नहीं हो सकता !
17 मई, 2023: जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) तुगलकाबाद और नई दिल्ली की कुछ अन्य बस्तियों के उन हज़ारों पीड़ित निवासियों के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त करती है, जिनके घरों को पहले भी और अभी G-20 शिखर सम्मेलन के संदर्भ में तबाह कर दिया गया है। उनके न्यूनतम कल्याण की अवहेलना और उनके अधिकारों का घोर उल्लंघन बेहद निराशाजनक है और हम इस पर तत्काल ध्यान देने और निवारण की मांग करते हैं। हम भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ए.एस.आई) की कार्रवाइयों की निंदा करते हैं, जिसने हाल ही में एक बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया, जिसमें लगभग 1,000 घर नष्ट हो गए।साथ ही अन्य बस्तियों में भी सैकड़ों घर तोड़े गए हैं। कुछ स्थानों पर, कानून का उल्लंघन करते हुए, फेरीवालों को भी क्रूर तरीके से बेदखली का भी सामना करना पड़ा है।
अधिकारियों द्वारा किए गए जबरन विस्थापन और विध्वंस ने न केवल 2.6 लाख निवासियों सहित लगभग 1,600 परिवारों को बेघर कर दिया है, बल्कि उनकी सम्पत्ति और आजीविका का भी नुकसान हुआ है। 'बेदखली' करने के किसी भी कदम से पहले, उचित पुनर्वास और न्यायोचित सहायता की अभाव से, हाशिए पर जी रहे समुदायों की दुर्बल स्थिति और विकट हो गई है। नागरिकों को उनके घरों से बार-बार विस्थापित करने में केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की भूमिका निंदनीय है।
विध्वंस अभियान के दौरान कानूनों और नियमों का घोर उल्लंघन भी उतना ही भयावह है। ये कार्रवाइयाँ सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम, 1971, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद अधिनियम, 1994, और संयुक्त राष्ट्र के बुनियादी सिद्धांतों और विकास