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Bhumi Adhikar Andolan: Call for Nationwide Protests on 30th June against Forest Land Exploitation and Regressive Amendments to the Forest Conservation Act

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Jun 27, 2023, 3:06:32 AM6/27/23
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भूमि अधिकार आन्दोलन


वन भूमि के अनियंत्रित दोहन और वन संरक्षण अधिनियम में लगातार बढ़ते संशोधनों के विरोध में, 30 जून को राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध का आह्वान

साथियों,

भूमि अधिकार आंदोलन की तरफ से अभिवादन! हम आशा करते है कि यह पत्र आपको कुशल स्वास्थ्य और पूरे उत्साह में प्राप्त हो हम आप सभी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं और एक सामूहिक कार्यवाही की मांग करते हैं

देश भर में वन भूमि का आशातीत दोहन, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर क्षति पहुँचा रहा है और परम्परागत समुदायों को विस्थापित होने पर मजबूर कर रहा है। वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित यह संशोधन, इन समुदायों के अधिकारों की कब्र खोदने का काम कर रहे हैं। समय रहते अगर इस बारे में कुछ किया ना गया तो कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद हासिल किये गये वन अधिकार अधिनियम जैसे मबूत कानून को बेहद कमज़ोबना दिया जाएगा।

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 में प्रस्तावित संशोधनों ने अनेक महत्वपूर्ण चिंताओं और विरोध की आवश्यकता को जन्म दिया है। इन संशोधनों के खिलाफ हमारे विरोध के कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं:

  1. वन क्षेत्रों को घटाना: प्रस्तावित संशोधन, वनों को पुनः जिस तरह से परिभाषित और उनकी समीक्षा करते हैं सकी वजह से काफी बड़ा वन क्षेत्र, वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) की सुरक्षा से बाहर किया जा सकेगा। वन संरक्षण के प्रति की गई उपेक्षा के कारण वनों की कटाई बहुत बढ़ेगी, और पर्यावरण एवम आजीविका के साथ-2 जैव विविधता को भी भारी नुकसान होगा। इसके नतीजे यह होंगे कि पारंपरिक रूप से वनों पर निर्भर समुदायों को भुखमरी और विस्थापन का सामना करना पड़ेगा।
  2. हाशिये पर मौजूद समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन: प्रस्तावित संशोधन, वन अधिकार अधिनियम 2006 (एफआरए) और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 (एलएआरआर) के प्रावधानों को नजरंदाज करता है, जिससे हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों का सीधा उल्लंघन होता है। एफसीए, एफआरए के प्रावधानों को सीमित करता है, जिससे स्थानीय स्वशासित ग्राम सभा को प्राप्त अधिकारों के तहत दी जाने वाली अनुमति के बिना ही वन भूमि का डायवर्जन किया जा सकेगा यह हाशिये के समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को कमज़ोर करेगा और वन अधिकार कानून के तहत सदियों पुराने जिस ऐतिहासिक अन्याय को माना गया था, उसे बरकरार रखेगा     
  3. सत्ता का सकेंद्रीकारण: इस संशोधन की वजह से केंद्र सरकार को अप्रतिम शक्तियाँ मिल जाएंगी, जिसकी मदद से वह किसी को भी भूमि आवंटित कर सकती है शक्ति का यह केन्द्रीकरण, मौजूदा ढांचों की जाँच के तरीकों और उनके संतुलन को कमज़ोर बना देगा, जैसे वन सलाहकार समिति और केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समितियां यह संशोधन, केंद्र के साथ स्थानीय शासन एवं वन-निवासी समुदायों की संवादात्मक प्रक्रिया के महत्व को नजरंदा करता है और निर्णय लेने के अधिकार को और अधिक केंद्रीकृत कर देता है    
  4. अनावश्यक छूट और सही निरिक्षण की कमी: यह संशोधन, रणनीतिक परियोजनाओं, सुरक्षा-संबंधी बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक उपयोगिता की परियोजनाओं के लिए छूट के साथ-साथ इको-पर्यटन सुविधाओं, सिल्वीकल्चरल संचालन और चिड़ियाघर और सफारी के लिए प्रावधान पेश करते हैं। इस तरह के छूटें निजी संस्थाओं को पर्याप्त वन स्वीकृति के बिना ही वनों और वन संसाधनों पर नियंत्रण हासिल करने के अवसर पैदा करती हैं। इन पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों और नियामक निरीक्षण का आंकलन किये बिना ही यह वन के पर्यावास, वन्य प्रजातियों और वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए जोखिम पैदा करती हैं
  5. ग्राम सभाओं को शक्तिहीन बनाना: अंत में, यह प्रस्तावित संशोधन ग्राम सभा की शक्तियों को कमज़ोर करता है और केंद्र सरकार को शासन की शक्ति प्रदान करता है स्थानीय स्तर पर किये जा रहे जैव विविधता संरक्षण को कम आँकते हुए, यह संवैधानिक प्रावधानों का खंडन करता है और वन अधिकारों और समुदायों के निर्णय लेने की क्षमता को बाधित करता है

उपरोक्त चिंताओं को देखते हु, यह आवश्यक हो जाता है कि वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित किये गये संशोधनों का कड़ा विरोध किया जाना चाहिए हम इन संशोधनों को वापस लेने और वन संरक्षण अधिनियम को वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के साथ लाने की मांग करते हैं इससे वन अधिकारों को मान्यता मिलेगी और ग्राम सभाओं के निर्णय लेने का अधिकार सुनिश्चित किया जा सकेगा। किसी भी स्थानीय समुदाय की भागीदारी और सहमति के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के संरक्षण को किसी भी तरह के वन संरक्षण और सरकारी ढांचे में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

इस चिंताजनक स्थिति को देखते हु, भूमि अधिकार आन्दोलन दृढ़ता पूर्वक सभी जन-समर्थक संस्थाओं और व्यक्तियों से 30 जून 2023 को काला दिवस के रूप में मानाने का आग्रह करता है यह दिन वन भूमि की बेतहाशा निरंकुश लूट और वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित जनविरोधी संशोधनों के खिलाफ विरोध के एक शक्तिशाली प्रतिरोध के रूप में हमारे बयान का काम करेगा।    

अपने संवैधानिक अधिकारों को दृढ़तापूर्वक जताने के लिए, हम अपने सभी सदस्यों का, समर्थकों का और समान विचारधारा रखने वाले व्यक्तियों का ब्लॉक स्तर और राज्य स्तर पर प्रतिरोध प्रदर्शन करने के लिए अह्वान करते हैं। हम ऐसा मानते है कि हमारी सामूहिक कार्यवाही के द्वारा सत्ता में मौजूद लोगों को एक दृढ संदेश जायेगा कि हम हमारी मांगों और न्याय के लिए, पर्यावरणीय सुरक्षा और वन-निवासी समुदायों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एकजुट होकर खड़े हैं   

प्रतिरोध प्रदर्शन के दौरान नीचे दिए गए संदेश को मुख्य रूप से उठाना है:

  1. वन भूमि दोहन की निंदा: हम वन संसाधनों के हो रहे दोहन की कड़ी आलोचना करते हैं, जो ना केवल पर्यावरण को हानि पहुंचाता है बल्कि वहाँ रह रहे पारम्परिक समुदायों को उनके पूर्वजों की भूमि से विस्थापित(बेदखल) भी करता है
  2. प्रस्तावित संशोधनों की अस्वीकृति: हम वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का पूर्ण विरोध करते है, क्यूंकि ये वन अधिकार अधिनियम में दिए गए प्रावधानों को कमज़ोर करते हैं और वन-निवासी मुदयों के अधिकारों को क्षीण करते हैं।
  3. वन-निवासी समुदायों के साथ एकजुटता: हम वन-निवासी समुदायों के अधिकार के लिए अपना अटूट समर्थन व्यक्त करते है और यह शपथ लेते हैं कि इ समुदायों के न्याय के लिए संघर्ष और दृढ संकल्प का साथ देंगे

हम सभी सदस्यों और समर्थकों से आग्रह करते है कि ब्लॉक स्तर और राज्य स्तर पर भारी संख्या में एकत्रित होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जुलुस और जन सभाओं का आयोजन करें यह महत्वपूर्ण है कि ये सभी प्रक्रियाएँ शंतिपूर्ण और क़ानूनी प्रक्रिया, सभी आवश्यक सुरक्षा नियमावली और क़ानूनी दिशानिर्देशों का पालन करते हु आयोजित हों    

चलिए 30 जून 2023 को एक साथ मिलकर अपनी आवा बुलंद करें और शांतिपूर्ण तरीके से यह सन्देश दें कि हम हमारे जंगलों का शोषण और वन अधिकार अधिनियम को कमज़ोर करने की प्रक्रिया को बर्दाश्त नहीं करेंगे हाथों में हाथ मिलाते हु और समर्थन में साथ खड़े हो कर, हम अपने जंगलों और उनमें निवास करने वाले समुदायों जो वनों पर निर्भर हैं के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं

समर्थन में,

भूमि अधिकार आन्दोलन

जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), अखिल भारतीय किसान सभा (कैनिंग लेन), अखिल भारतीय किसान सभा (अजय भवन), ऑल इंडिया  किसान खेत मज़दूर संगठन, अखिल भारतीय किसान महासभा, ऑल इंडिया एग्रीकल्चर वर्कर्स यूनियन, ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल, भारत जन आंदोलन, भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक असली, बुंदेलखंड मजदूर किसान शक्ति संगठन, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच, दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुपगुजरात खेडुत समाज, हिमधारा कलेक्टिव, जन एकता जन अधिकार आंदोलन, जन संघर्ष समन्वय समिति, जनमुक्ति वाहिनी, ज़िंदाबाद संगठन, कष्टकरी संगठन, किसान मंच, किसान संघर्ष समिति, लोक मुक्ति संगठन, लोकसंघर्ष मोर्चा, लोक शक्ति अभियान, माइंस मिनरल्स एंड पीपल, नर्मदा बचाओ आंदोलन,  छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन,   संयुक्त किसान संघर्ष समिति, सर्व आदिवासी संगठनआदिवासी अधिकार मंच, आदिवासी ऐक्या वेदिका, आदिवासी एकता परिषद, आदिवासी मुक्ति संगठनसर्वहारा जन आंदोलन, शोषित जन आंदोलन, अधिकार मंच, कैमूर मुक्ति मोर्चा, बीजेएसए, जनमतु संगठन, झारखंड बचाओ आंदोलन, लोक संघर्ष मोर्चा, इंसाफ, और अन्य।



और जानकारी के लिए bhumiadhi...@yahoo.com पर संपर्क करें 

या 9954529368 पर कॉल करें.


Bhumi Adhikar Andolan

Call for Nationwide Protest on 30th June against Forest Land Exploitation and Regressive Amendments to the Forest Conservation Act

Dear Comrades,

Warm greetings from Bhumi Adhikar Andolan! We hope this circular finds you in good health and high spirits. We are reaching out to bring your attention to an urgent matter that demands our collective attention and action.

Across our country, forest lands have been relentlessly exploited, leading to severe ecological damage and the displacement of indigenous communities. The proposed amendments to the Forest Conservation Act pose a grave threat to the rights of these communities, further diluting the hard-fought Forest Rights Act.

The proposed amendments in the Forest Conservation Amendment Bill 2023 have raised significant concerns and sparked the need for protest. There are several reasons contributing to our opposition to these amendments:

  1. Exclusion of forest areas: The proposed amendments redefine and review forests in a way that could potentially exclude vast forest areas from the protection of the Forest Conservation Act (FCA). This disregard for forest conservation would result in extensive deforestation, environmental degradation, and the loss of livelihoods and biodiversity. Forest-dependent communities would face hunger, starvation, and displacement as a consequence.
  2. Violation of marginalized communities' rights: The proposed amendments overlook provisions in the Forest Rights Act (FRA) of 2006 and the Land Acquisition, Rehabilitation, and Resettlement Act (LARR) of 2013, thus violating the rights of marginalized communities. By limiting the application of the FCA and FRA, the amendments risk expediting forest diversions without the consent of local self-governance bodies known as Gram Sabhas. This perpetuates historical injustices and undermines the constitutional rights of marginalized communities.
  3. Concentration of power: The amendments grant extensive powers to the central government, enabling them to issue directions and assign forest lands to any party. This concentration of power undermines existing checks and balances, such as the Forest Advisory Committee and the Centrally Empowered Committee. The amendments neglect the importance of consultative processes with state and local governments and forest-dwelling communities, further centralizing decision-making authority.
  4. Exemptions and lack of oversight: The amendments introduce exemptions for strategic projects, security-related infrastructure, and public utility projects, as well as provisions for eco-tourism facilities, silvicultural operations, and zoos and safaris. These exemptions create opportunities for private entities to gain control over forests and forest resources without adequate forest clearance requirements. The lack of impact assessments and regulatory oversight poses risks to habitats, species, and forest ecosystems.
  5. Disempowerment of Gram Sabhas: Lastly, the proposed amendments weaken the authority of Gram Sabhas and concentrate governance power in the hands of the central government. This undermines local-level actions for biodiversity conservation, contradicts constitutional provisions, and hinders the recognition of forest rights and the decision-making processes of communities.

Given these concerns, it is imperative to protest against the proposed amendments to the Forest Conservation Act. We strongly recommend the withdrawal of these amendments and the alignment of the Forest Conservation Act with the provisions of the Forest Rights Act. This would ensure the recognition and vesting of forest rights and the decision-making authority of Gram Sabhas. The involvement and consent of local communities, as well as the preservation of ecosystems and biodiversity, should be prioritized in any forest conservation and governance framework.

In light of these alarming developments, Bhumi Adhikar Andolan urges all pro-people organizations and individuals to observe 30th June 2023 as a Black Day. This day will serve as a powerful statement of our opposition to the unabated loot of forest lands and the regressive amendments proposed in the Forest Conservation Act.

To assert our constitutional rights, we call upon all our members, supporters, and like-minded individuals to organize protest demonstrations at the block level and state level. It is through our collective action that we can send a strong message to those in power that we stand united in our demand for justice, environmental protection, and the preservation of the rights of forest-dwelling communities.

During the protest demonstrations, we must highlight the following key messages:

  1. Condemnation of forest land exploitation: We strongly condemn the ongoing exploitation of forest resources, which not only harms the environment but also displaces indigenous communities from their ancestral lands.
  2. Rejection of the proposed amendments: We vehemently oppose the proposed amendments to the Forest Conservation Act, as they seek to dilute the provisions of the Forest Rights Act and undermine the rights of forest-dwelling communities.
  3. Solidarity with forest-dwelling communities: We express our unwavering support for the rights of forest-dwelling communities and pledge to stand by them in their struggle for justice and self-determination.

We urge all members and supporters to mobilize at the block level and state level, organizing peaceful demonstrations, rallies, and public meetings. It is crucial that these activities are conducted in a peaceful and lawful manner, adhering to all relevant safety protocols and legal guidelines.

Together, let us make our voices heard on 30th June 2023 and send a powerful message that we will not tolerate the exploitation of our forests or the dilution of the Forest Rights Act. By joining hands and standing in solidarity, we can create a better future for our forests and the communities that depend on them.

In solidarity,

Bhumi Adhikar Andolan

National Alliance of People's Movements (NAPM), Chhattisgarh BachaoAndolan, Adivasi Adhikar Manch, Adivasi Aikya Vedike, Adivasi Ekta Parishad, Adivasi Mukti Sangathan, All India Kisan Sabha (Canning Lane), All India Kisan Sabha (Ajay Bhavan), All India Kisan Khet Mazdoor Sangathan, All India Kisan Mahasabha, All India Agriculture Workers Union, All India Union of Forest Working People, Bharat Jan Andolan, Bhartiya Kisan Union Arajnitik Asli, Bundelkhand Mazdoor Kisan Shakti Sangathan, Dalit Adivasi Shakti Adhikar Manch, Delhi Solidarity Group,  Gujarat Khedut Samaj, Himdhara Collective, Jan Ekta Jan AdhikarAndolan, Jan Sangharsh Samanyvay Samiti, Janmukti Vahini, JindabadSangathan, KashtakariSangathan, Kisan Manch, Kisan Sangharsh Samiti, Lok Mukti Sangathan, Lok Sangharsh Morcha, Lok Shakti Abhiyan, Mines Minerals and People, Narmada Bachao Andolan, Sanyukt Kisan Sangharsh Samiti, Sarv Adivasi Sangathan, Sarvahara Jan Andolan, Shoshit Jan Andolan, Adhikar Manch, Kaimoor Mukti Morcha, BJSA, JanmatuSangthan, Jharkhand BachaoAndolan, Lok Sangharsh Morcha, Jan Sangharsh Samanvaya Samiti, INSAF, Kisan Manch, Adivasi Ekata Parishad and others.

For more details contact bhumiadhi...@yahoo.com  or call at 9954529368


===============================================
National Alliance of People’s Movements
National Office:  A/29, Haji Habib Bldg., Naigaon Cross Road, Dadar (E), Mumbai – 400014
Twitter and Instagram: @napmindia
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napm...@gmail.com

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Jun 27, 2023, 3:19:16 AM6/27/23
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भूमि अधिकार आन्दोलन


वन भूमि के अनियंत्रित दोहन और वन संरक्षण अधिनियम में लगातार बढ़ते संशोधनों के विरोध में, 30 जून को राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध का आह्वान

साथियों,

भूमि अधिकार आंदोलन की तरफ से अभिवादन! हम आशा करते है कि यह पत्र आपको कुशल स्वास्थ्य और पूरे उत्साह में प्राप्त हो हम आप सभी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं और एक सामूहिक कार्यवाही की मांग करते हैं

देश भर में वन भूमि का आशातीत दोहन, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर क्षति पहुँचा रहा है और परम्परागत समुदायों को विस्थापित होने पर मजबूर कर रहा है। वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित यह संशोधन, इन समुदायों के अधिकारों की कब्र खोदने का काम कर रहे हैं। समय रहते अगर इस बारे में कुछ किया ना गया तो कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद हासिल किये गये वन अधिकार अधिनियम जैसे मज़बूत कानून को बेहद कमज़ोबना दिया जाएगा।

वन संरक्षण संशोधन विधेयक 2023 में प्रस्तावित संशोधनों ने अनेक महत्वपूर्ण चिंताओं और विरोध की आवश्यकता को जन्म दिया है। इन संशोधनों के खिलाफ हमारे विरोध के कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं:

  1. वन क्षेत्रों को घटाना: प्रस्तावित संशोधन, वनों को पुनः जिस तरह से परिभाषित और उनकी समीक्षा करते हैं सकी वजह से काफी बड़ा वन क्षेत्र, वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए) की सुरक्षा से बाहर किया जा सकेगा। वन संरक्षण के प्रति की गई उपेक्षा के कारण वनों की कटाई बहुत बढ़ेगी, और पर्यावरण एवम आजीविका के साथ-2 जैव विविधता को भी भारी नुकसान होगा। इसके नतीजे यह होंगे कि पारंपरिक रूप से वनों पर निर्भर समुदायों को भुखमरी और विस्थापन का सामना करना पड़ेगा।
  2. हाशिये पर मौजूद समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन: प्रस्तावित संशोधन, वन अधिकार अधिनियम 2006 (एफआरए) और भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 (एलएआरआर) के प्रावधानों को नजरंदाज करता है, जिससे हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों का सीधा उल्लंघन होता है। एफसीए, एफआरए के प्रावधानों को सीमित करता है, जिससे स्थानीय स्वशासित ग्राम सभा को प्राप्त अधिकारों के तहत दी जाने वाली अनुमति के बिना ही वन भूमि का डायवर्जन किया जा सकेगा यह हाशिये के समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को कमज़ोर करेगा और वन अधिकार कानून के तहत सदियों पुराने जिस ऐतिहासिक अन्याय को माना गया था, उसे बरकरार रखेगा     
  3. सत्ता का सकेंद्रीकारण: इस संशोधन की वजह से केंद्र सरकार को अप्रतिम शक्तियाँ मिल जाएंगी, जिसकी मदद से वह किसी को भी भूमि आवंटित कर सकती है शक्ति का यह केन्द्रीकरण, मौजूदा ढांचों की जाँच के तरीकों और उनके संतुलन को कमज़ोर बना देगा, जैसे वन सलाहकार समिति और केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समितियां यह संशोधन, केंद्र के साथ स्थानीय शासन एवं वन-निवासी समुदायों की संवादात्मक प्रक्रिया के महत्व को नजरंदाज़ करता है और निर्णय लेने के अधिकार को और अधिक केंद्रीकृत कर देता है    
  4. अनावश्यक छूट और सही निरिक्षण की कमी: यह संशोधन, रणनीतिक परियोजनाओं, सुरक्षा-संबंधी बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक उपयोगिता की परियोजनाओं के लिए छूट के साथ-साथ इको-पर्यटन सुविधाओं, सिल्वीकल्चरल संचालन और चिड़ियाघर और सफारी के लिए प्रावधान पेश करते हैं। इस तरह के छूटें निजी संस्थाओं को पर्याप्त वन स्वीकृति के बिना ही वनों और वन संसाधनों पर नियंत्रण हासिल करने के अवसर पैदा करती हैं। इन पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों और नियामक निरीक्षण का आंकलन किये बिना ही यह वन के पर्यावास, वन्य प्रजातियों और वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए जोखिम पैदा करती हैं
  5. ग्राम सभाओं को शक्तिहीन बनाना: अंत में, यह प्रस्तावित संशोधन ग्राम सभा की शक्तियों को कमज़ोर करता है और केंद्र सरकार को शासन की शक्ति प्रदान करता है स्थानीय स्तर पर किये जा रहे जैव विविधता संरक्षण को कम आँकते हुए, यह संवैधानिक प्रावधानों का खंडन करता है और वन अधिकारों और समुदायों के निर्णय लेने की क्षमता को बाधित करता है

उपरोक्त चिंताओं को देखते हु, यह आवश्यक हो जाता है कि वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित किये गये संशोधनों का कड़ा विरोध किया जाना चाहिए हम इन संशोधनों को वापस लेने और वन संरक्षण अधिनियम को वन अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के साथ लाने की मांग करते हैं इससे वन अधिकारों को मान्यता मिलेगी और ग्राम सभाओं के निर्णय लेने का अधिकार सुनिश्चित किया जा सकेगा। किसी भी स्थानीय समुदाय की भागीदारी और सहमति के साथ ही पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के संरक्षण को किसी भी तरह के वन संरक्षण और सरकारी ढांचे में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

इस चिंताजनक स्थिति को देखते हु, भूमि अधिकार आन्दोलन दृढ़ता पूर्वक सभी जन-समर्थक संस्थाओं और व्यक्तियों से 30 जून 2023 को काला दिवस के रूप में मानाने का आग्रह करता है यह दिन वन भूमि की बेतहाशा निरंकुश लूट और वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित जनविरोधी संशोधनों के खिलाफ विरोध के एक शक्तिशाली प्रतिरोध के रूप में हमारे बयान का काम करेगा।    

अपने संवैधानिक अधिकारों को दृढ़तापूर्वक जताने के लिए, हम अपने सभी सदस्यों का, समर्थकों का और समान विचारधारा रखने वाले व्यक्तियों का ब्लॉक स्तर और राज्य स्तर पर प्रतिरोध प्रदर्शन करने के लिए अह्वान करते हैं। हम ऐसा मानते है कि हमारी सामूहिक कार्यवाही के द्वारा सत्ता में मौजूद लोगों को एक दृढ संदेश जायेगा कि हम हमारी मांगों और न्याय के लिए, पर्यावरणीय सुरक्षा और वन-निवासी समुदायों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एकजुट होकर खड़े हैं   

प्रतिरोध प्रदर्शन के दौरान नीचे दिए गए संदेश को मुख्य रूप से उठाना है:

  1. वन भूमि दोहन की निंदा: हम वन संसाधनों के हो रहे दोहन की कड़ी आलोचना करते हैं, जो ना केवल पर्यावरण को हानि पहुंचाता है बल्कि वहाँ रह रहे पारम्परिक समुदायों को उनके पूर्वजों की भूमि से विस्थापित(बेदखल) भी करता है
  2. प्रस्तावित संशोधनों की अस्वीकृति: हम वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों का पूर्ण विरोध करते है, क्यूंकि ये वन अधिकार अधिनियम में दिए गए प्रावधानों को कमज़ोर करते हैं और वन-निवासी मुदयों के अधिकारों को क्षीण करते हैं।
  1. वन-निवासी समुदायों के साथ एकजुटता: हम वन-निवासी समुदायों के अधिकार के लिए अपना अटूट समर्थन व्यक्त करते है और यह शपथ लेते हैं कि इ समुदायों के न्याय के लिए संघर्ष और दृढ संकल्प का साथ देंगे

    हम सभी सदस्यों और समर्थकों से आग्रह करते है कि ब्लॉक स्तर और राज्य स्तर पर भारी संख्या में एकत्रित होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जुलुस और जन सभाओं का आयोजन करें यह महत्वपूर्ण है कि ये सभी प्रक्रियाएँ शंतिपूर्ण और क़ानूनी प्रक्रिया, सभी आवश्यक सुरक्षा नियमावली और क़ानूनी दिशानिर्देशों का पालन करते हु आयोजित हों    

    चलिए 30 जून 2023 को एक साथ मिलकर अपनी आवाज़ बुलंद करें और शांतिपूर्ण तरीके से यह सन्देश दें कि हम हमारे जंगलों का शोषण और वन अधिकार अधिनियम को कमज़ोर करने की प्रक्रिया को बर्दाश्त नहीं करेंगे हाथों में हाथ मिलाते हु और समर्थन में साथ खड़े हो कर, हम अपने जंगलों और उनमें निवास करने वाले समुदायों जो वनों पर निर्भर हैं के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं

    समर्थन में,

    भूमि अधिकार आन्दोलन

    जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), अखिल भारतीय किसान सभा (कैनिंग लेन), अखिल भारतीय किसान सभा (अजय भवन), ऑल इंडिया  किसान खेत मज़दूर संगठन, अखिल भारतीय किसान महासभा, ऑल इंडिया एग्रीकल्चर वर्कर्स यूनियन, ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल, भारत जन आंदोलन, भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक असली, बुंदेलखंड मजदूर किसान शक्ति संगठन, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच, दिल्ली सॉलिडेरिटी ग्रुपगुजरात खेडुत समाज, हिमधारा कलेक्टिव, जन एकता जन अधिकार आंदोलन, जन संघर्ष समन्वय समिति, जनमुक्ति वाहिनी, ज़िंदाबाद संगठन, कष्टकरी संगठन, किसान मंच, किसान संघर्ष समिति, लोक मुक्ति संगठन, लोकसंघर्ष मोर्चा, लोक शक्ति अभियान, माइंस मिनरल्स एंड पीपल, नर्मदा बचाओ आंदोलन,  छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन,   संयुक्त किसान संघर्ष समिति, सर्व आदिवासी संगठनआदिवासी अधिकार मंच, आदिवासी ऐक्या वेदिका, आदिवासी एकता परिषद, आदिवासी मुक्ति संगठनसर्वहारा जन आंदोलन, शोषित जन आंदोलन, अधिकार मंच, कैमूर मुक्ति मोर्चा, बीजेएसए, जनमतु संगठन, झारखंड बचाओ आंदोलन, लोक संघर्ष मोर्चा, इंसाफ, और अन्य।

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