कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम कुष्ठ रोग के उन्मूलन के लिए प्रतिबध्द

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Oct 1, 2005, 3:42:42 PM10/1/05
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*कुष्ठ रोग निवारण दिवस 2 अक्तूबर

कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम कुष्ठ रोग के उन्मूलन के लिए प्रतिबध्द

राकेश शर्मा निशीथ*

ईसा से 600 वर्ष पूर्व भारत में चिकित्सा ग्रंथों में कुष्ठ रोग के नाम से वर्णन मिलता है । चीन में ईसा से 400 वर्ष पूर्व इस बीमारी का पता चला । जापान में ईसा से 326 वर्ष पूर्व एलेक्जेण्डर की सेना के सिपाहियों में यह बीमारी पाई गई थी । ईसा से 48 वर्ष पूर्व रोमन सिपाहियों में भी यह बीमारी थी । इसके बाद इटली और दूसरे यूरोपीय देशों में भी इसके रोगी पाए गए थे । 16वीं शताब्दी में अमरीका में भी कुष्ठ रोगी मौजूद थे। विभिन्न देशों में इस बीमारी को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे अरबी में जुज़ाम, चीनी में डॉ. फेंग, फ्रेंच में ला लिपरे, जर्मन में ओसट्ज या लेपरा, जापानी में रेबियो और रूसी में प्रोकाजा आदि ।

       वर्ष 1985 में विश्व के 122 देशों में कुष्ठ रोग व्याप्त था । यह संख्या 1999 में घटकर 24 रह गई । भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में कुष्ठ रोगी हैं। ये देश हैं -- ब्राजील, इंडोनेशिया, नेपाल, म्यांमार, नाइजीरिया, मोजाम्बिक, मेडागास्कर, लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो, गिनी और मध्य अफ्रीकन गणराज्य आदि । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2003 में करीब 5 लाख नए मामले प्रकाश में आए ।

       विज्ञान पत्रिका साइंस के एक अंक के अनुसार फ्रांस में किए गए अनुवांशिकी अध्ययन में कुष्ठ रोग को जन्म देने वाले बैक्टीरिया की विभिन्न नस्लों की तुलना की गई । इस तुलना से पुरानी मान्यता कि कुष्ठ रोग का जन्म भारत में हुआ था, को खारिज कर दिया गया है । नये शोध के अनुसार पूर्वी अफ्रीका या मध्य पूर्व में कुष्ठ रोग का जन्म हुआ है। पांच महाद्वीपों के 21 देशों से रोगाणुओं की करीब 175 नस्लों का अध्ययन करने के बाद यह परिणाम सामने आया ।

       कुष्ठ रोग, जो संक्रमण हो जाने के बाद 9 माह से लेकर 20 वर्ष की लम्बी अवधि वाला एक जीवाणु रोग है । यह सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है । यदि उपयुक्त देखभाल न की जाए तो रोगी कुल मिलाकर अपने हाथों, पैरों और आंखों की संवेदना खो देता है । उसके असंवेदगी अंगों की क्षति होने से विरूपता हो सकती है ।  भारत में स्वतंत्रता के समय कुष्ठ रोग का कोई इलाज नहीं था । 1951 में कुष्ठ रोग के 13.7 लाख मामले थे ।

भ्रांति

       कुष्ठ रोग के साथ अनेक गलत धारणाएं जुड़ी हुई हैं । कुष्ठ रोगी को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है । यहां तक कि कुछ व्यक्ति यह भी कहते सुने जाते हैं कि कुष्ठ रोग पूर्व जन्म में किए गए बुरे कर्मों का फल है । कुष्ठ रोग के विषय में यह भी गलत धारणा फैली हुई है कि यह रोग वंशानुगत होता है और छूत से फैलता है, जबकि  कुष्ठ रोग सभी संचारी रोग जैसे क्षय रोग आदि में से सबसे कम संक्रमणीय है ।

       किसी भी प्रकार का सफेद दाग कुष्ठ रोग की निशानी नहीं है । कुष्ठ दो प्रकार का होता है, एक हाथ-पैरों का घाव होने के बाद गलना, दूसरे शरीर पर भूरे रंग के सुन्न दाग होना । यह रोग माइक्रो बैक्टिरियम लेप्री बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है । परन्तु यह बहुत ही कमजोर वायरस है और मल्टी ड्रग थैरेपी की दो-चार खुराकों से ही इस पर काबू पाया जा सकता है । अगर रोग काफी पुराना भी हो तो भी छह महीने के उपचार के बाद रोग पर काबू पाया जा सकता है । मूलतः यह रोग टीबी के वर्ग का ही है और टीबी के बैक्टिरिया की तरह ही फैलता है । लंबे समय तक रोगी के साथ रहने से ही यह बैक्टीरिया संक्रमण करता है ।

इलाज

       1980 के दशक के शुरूआत से ही एमडीटी (बहु औषध उपचार) के कारण कुष्ठ रोग के इलाज में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है । यह उपचार रिफेम्पीसिन, क्लोफेजीमाइन और डैप्सोन -इन तीन दवाइयों का मिश्रण है और इस रोग का गारंटीशुदा इलाज है । यहां तक कि एमडीटी की एक ही खुराक कुष्ठ रोग के 99.9 प्रतिशत रोगाणुओं का सफाया कर देती है । इसका एक अन्य लाभ यह है कि इस दवाई के विशेष दुष्प्रभाव नहीं होते । यह दवाई सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर निःशुल्क उपलब्ध है । एमडीटी चिकित्सा से शारीरिक कुरूपता भी रुकती है और रोगी में औषधि की प्रतिकूल प्रतिक्रिया कम होती है ।

विभिन्न कार्यक्रम

       वर्ष 1955 में सरकार ने राष्ट्रीय कुष्ठ रोग नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया था । वर्ष 1983 में इसे राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एन.एल.ई.पी.) के रूप में बदल दिया गया । विश्व बैंक की सहायता से राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन परियोजना के रूप में इसके पहले चरण का विस्तार 1993-94 से सितम्बर, 2000 तक किया गया ।

       पहली बार इसके खिलाफ राष्ट्रीय स्तर का अभियान 1981 में शुरू किया गया । तब कुष्ठ रोगियों की अनुमानित संख्या चालीस लाख थी । 1997 में पहली बार संशोधित कुष्ठ निवारण अभियान शुरू किया गया तब इन रोगियों की संख्या चार लाख साठ हजार थी । 1999-2000 में दूसरे चरण के अभियान में कुष्ठ रोगियों की संख्या घटकर दो लाख 11 हजार रह गई । अक्तूबर 2001 से तीसरे चरण का संशोधित अभियान शुरू किया गया ।

       राष्ट्रीय कुष्ठ रोग नियंत्रण कार्यक्रम वर्ष 1955 से ही चलाया जा रहा है । वर्ष 1983 में इस कार्यक्रम का नाम बदलकर राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम कर दिया गया । कुष्ठरोधी दवा सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है । राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम की योजना बनाने, उसे लागू करने और उस पर निगरानी रखने के लिए 27 प्रमुख राज्यों में कुष्ठ रोग उन्मूलन समितियां गठित की गई हैं ।

       वर्ष 1998 से 2003 तक राष्ट्रीय स्तर पर कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता पैदा करने और बहुऔषध चिकित्सा के विशेष मरीजों की पहचान के लिए कुष्ठ उन्मूलन अभियान चलाया गया है । इस अभियान द्वारा 9.3 लाख कुष्ठ रोगियों की पहचान करके बहुऔषध चिकित्सा प्रणाली से उनका इलाज किया गया है ।

       संशोधित कुष्ठ रोग उन्मूलन अभियान वर्ष 2003-04 के अंतर्गत आठ राज्यों-बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में 48,500 नए रोगियों का पता चला और उन्हें बहुऔषधीय थेरेपी उपलब्ध कराई गई । कुष्ठ रोगियों की संख्या 1981 में प्रति 10,000 लोगों पर 57.6 थी जो घटकर मार्च, 2004 तक 2.44 रोगियों पर आ गई है । मार्च, 2004 तक 17 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों से कुष्ठ रोग लगभग खत्म हो गया था । देश के 590 जिलों में से 250 जिलों (42.37 प्रतिशत) ने कुष्ठ रोग उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है तथा 105 जिले (17.5 प्रतिशत) उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त करने के निकट है । मात्र 68 जिलों (11.53 प्रतिशत) में प्रति 10,000 की आबादी पर व्याप्तता दर 5 से अधिक है ।

       इस अभियान के पिछले दो चरणों में देश के 13 राज्यों से कुष्ठ रोग का पूरी तरह से उन्मूलन किया जा चुका है । तीसरे चरण में कुष्ठ रोग के नाम पर लोगों को ठग रहे नीम हकीमों के खिलाफ भी कार्यवाही की जाएगी । इस समय देश के 520 जिलों में कुष्ठ निवारण सोसाइटियां बनी हुई हैं ।

       सरकारी प्रयासों पर निर्भर रहने वाला कोई भी कार्यक्रम कितना भी श्रेष्ठ क्यों न हो वह लोगों के विश्वास, रवैये में परिवर्तन नहीं ला सकता, जब तक कि लोगों के मन से अंधविश्वास और गलत धारणाओं को न निकाला जाए । अतः कुष्ठ रोग के विषय में भारतीय समाज में फैली गलत धारणाओं को निकाल बाहर फेंकना होगा, तभी कुष्ठ रोग उन्मूलन की दिशा में सार्थक पहल हो सकती है ।

 

*कुष्ठ रोग निवारण दिवस 2 अक्तूबर

 

 

 

 

 

 

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