हिन्दी पट्टी की हृदयस्थली में हिन्दुत्व को मिली शिकस्त के क्या मायने हैं ! - सुभाष गाताडे

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Subhash Gatade

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Jun 11, 2024, 8:32:45 AMJun 11
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(https://janchowk.com/beech-bahas/what-is-the-significance-of-the-defeat-of-hindutva-in-the-heartland-of-the-hindi-belt/)
https://www.newsclick.in/waterloo-ayodhya-whos-stigmatising-hindus-now

दुर्ग में दरार ?
हिन्दी पट्टी की हृदयस्थली में हिन्दुत्व को मिली शिकस्त के क्या मायने हैं !
- सुभाष गाताडे


‘जोर का झटका धीरे से लगे’
किसी विज्ञापन की या किसी गाने में इस्तेमाल यह बात फिलवक्त़ भाजपा को मिले चुनावी झटके की बखूबी व्याख्या करती दिख रही है।
कभी चार सौ पार पाने के किए गए वादे और अब अपने बलबूते बहुमत तक हासिल करने में आयी मुश्किलें इस बात की ताईद करती है। यूँ तो तीसरी दफा ताज़पोशी हो गयी है, लेकिन इसके लिए बाकी दलों का सहारा लेना पड़ा है।  

यूँ तो इस उलटफेर से भक्तों की टोली गोया बौखला गयी है और अपनी चिरपरिचित हरकत पर उतर आयी है।
सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्टस की इन दिनों भरमार है जो अपनी भड़ास हिन्दुओं पर ही निकालते दिख रहे हैं। हिन्दु एकता की बात करने वाले तथा भारत को हिन्दु राष्ट्र  घोषित करने के लिए बेचैन रहे रथियों-महारथियांे के उद्धरण भी जगह जगह चस्पां करके इसी बात को रेखांकित किया जा रहा है कि ‘अन्य’ आसानी से एकता बना लेते हैं, मगर हिन्दु कभी एक नहीं हो पाते और इसी वजह से वह सदियों  से ‘गुलाम बने हुए हैं’।'


अयोध्या के आम लोग  निशाने पर

गौरतलब है कि अयोध्या के आम नागरिक - वही नगर जिसे वह हिन्दु राष्ट्र की अघोषित राजधानी बनाना चाहते थे - खासकर वहां के हिन्दु  इस हमले का आसान शिकार हुए हैं, उन्हें ‘गददार’ कहा जा रहा है, और तरह तरह के अन्य लांछन उन पर लगाए जा रहे हैं। वजह साफ है कि उन्होंने इन चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी को - जो पिछले दो बार से वहां सांसद चुने गए थे - पचास हजार वोटों से हराया है। गौरतलब है कि इस सामान्य सीट से उन्होंने समाजवादी पार्टी से जुडे़, इंडिया गठबंधन के दलित तबके के प्रत्याशी को जीत दिलाई है।

लगभग 75 साल पहले अपनाए गए संविधान द्वारा हर नागरिक को जो अधिकार दिए गए हैं, जो वोट देने का हक़ दिया है उसी का प्रयोग करके अयोध्या-फैजाबाद की जनता ने यह करिश्मा कर दिखाया है ; लेकिन यही बात हिन्दुत्ववादी जमातों का नागवार गुजरी है। उन्हें निशाना बना कर तरह तरह के नफरती वक्तव्य, मीम्स साझा किए जा रह हैं, जहां उन्हें अपशब्द कहे जा रहे हैं, तरह तरह से अपमानित किया जा रहा है।(https://x.com/zoo_bear/status/1798150696073838901) गौरतलब है कि अयोध्या-फैजाबाद के निवासियों को इस तरह अपशब्द कहने की मुहिम में वह फिल्म स्टार्स भी जुड़ गए है, जिनकी एकमात्रा खासियत यह थी कि उन्होंने रामायण सीरियल में कोई किरदार निभाया था।(https://www.ndtv.com/india-news/sunil-lahiri-arun-govil-up-election-results-on-bjps-ayodhya-loss-ramayan-actors-betrayed-true-king-remark-5828871
)
ट्रोल आर्मी और हिन्दुत्व वर्चस्ववादी ताकतों से सम्ब़द्ध आई टी सेल  के लोगों को यह जिम्मा सौंपा गया है। ‘राष्टद्रोही’, ‘अर्बन नक्सल’ या ‘घुसपैठियों’ के खिलाफ नफरत भरे बयानों की फैक्टरी चलाने में संलग्न यह लोग इन दिनों हिन्दुओं के उस हिस्से के खिलाफ अनापशनाप बक रहे है , जिन्होंने भावनात्मक मुददों से सम्मोहित होने के बजाय अपने जीवनयापन से जुड़े सवालों को चुनाव में अहम माना तथा उसी हिसाब से निर्णय लियां, शायद उन्हें  यह बात भी अब समझ आ रही है कि हिन्दुत्व वर्चस्ववादी ताकते भले ही हिन्दु धर्म की दुहाई देते रहें, हिन्दुओं का एक करने की बात करते रहें, लेकिन उनका असली मकसद राजनीतिक सत्ता हासिल करने के अलावा कुछ भी नहीं है।

नफरती संदेशों को साझा करने वाले इन कारिन्दों और उनके आंकाओं के लिए आज भी यह समझना मुश्किल है कि अयोध्यावासियों ने अपनी कर्ताशक्ति/एजेंसी का प्रयोग किया और इस तरह हक़ीकत और दावों के बीच के व्यापक अंतराल को उजागर कर दिया।

हार के संकेत

यह सही है कि चार सौ पार जीतने की ऐसी हवा गोदी मीडिया के सहारे बना दी गयी थी कि खुद भाजपावाले भी उसके शिकार हुए, उन्हें यही लगने लगा था कि ‘मोदी की गारंटी’ उनकी जीत की गारंटी होगी, लेकिन हुआ बिल्कुल उलटा।

जाहिर है कि हार के चार दिन बीत जाने के बाद भी उन्हें  यह समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए और किस तरह गलती उन्हीं की थी। सोशल मीडिया पर यह बात भी चल पड़ी है कि इस 'हार के पीछे विदेशी ताकतों की साज़िश है , जो भारत के बढ़ते गौरव से परेशान हैं '

वैसे अगर जमीन के संकेतों पर गौर होता तो उन्हें पता चलता कि क्या हवा चल रही है। अयोध्या फैजाबाद क्षेत्रा के चलने वाले चर्चित अख़बार  जनमोर्चा के संपादक सुमन गुप्ता अपने साक्षात्कार में इसी बात को विस्तार से समझाते हैं कि किस तरह ‘संविधान ने भाजपा को हराया’ ( https://www.rediff.com/news/interview/india-votes-2024-why-bjp-lost-faizabad-home-to-ayodhya/20240605.htm?utm_source=substack&utm_medium=email)
 
‘.. दरअसल बाहरी लोगों को कभी नहीं लगा कि भाजपा यहां हार जाएगी, लेकिन स्थानीय लोग जानते थे कि इस बार भाजपा नहीं जितेगी !दरअसल अयोध्या ही नहीं पूर्वांचल में भाजपा के खिलाफ जनता के बीच गुस्से को महसूस किया जा सकता था।...भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या थी देशी विदेशी पर्यटकांे को आकर्षित करने लिए अयोध्या फैजाबाद के ‘‘सौदर्यीकरण’’ की बनी योजना। अयोध्या के तमाम लोगांे की जमीनें, मकान और दुकानंे या उनका एक हिस्सा सबकुछ सरकारी फरमान के तहत ध्वस्त किया गया और और ध्वस्तीकरण के बाद उन्हंे ठीक से मुआवज़ा भी नहीं मिला, जिसने मतदाताओं मे जबरदस्त गुस्सा पनपा। / वही/

उनके मुताबिक
‘‘इसके बारे में लोग इसलिए मौन रहे क्योंकि डर काम कर रहा था, उन्हें लगता था कि अगर वह शिकायत करेंगे तो बुलडोजर उन्हीं के घर पर आ जाएगा।’’/वही/

कहा जा रहा है कि लगभग 14 किलोमीटर लंबे ‘रामपथ’ बनाने में 2,200 दुकानें, 800 मकान, 30 मंदिर, 9 मस्जिदें और 6 मज़ारों का ध्वस्त किया गया। और जैसा कि आम नागरिकों के बयान बताते हैं कि इस ध्वस्तीकरण की कार्रवाई मंे बहुत कुछ मनमाना था , (https://youtu.be/fkHDlCA8_8M) और अभी भी लोगों को मुआवजा नहीं मिला है। (https://indianexpress.com/article/political-pulse/in-bjps-ayodhya-loss-a-grouse-temple-for-outsiders-bjp-forgot-to-work-for-us-9372426/?utm_source=substack&utm_medium=email)
 
वैसे मकानों, दुकानों के इस ध्वस्तीकरण पर काफी कुछ लिखा गया है कि किस तरह आम निवासियों को विश्वास में लिए बिना इस काम को अंजाम दिया गया। स्थानीय निवासियों ने पत्रकारों को यह भी बताया कि ध्वस्तीकरण के पहले कुछ दुकानदारों से वायदा किया गया था कि शाॅपिंग कम्लेक्स में उन्हंे दुकान दी जाएगी, लेकिन जब सब ध्वस्त कर दिया गया और इन दुकानदारों ने दुकानों की मांग की तो उनसे काफी पैसे मांगे गए।

हक़ीकत यही है कि काफी समय से अयोध्या फैजाबाद के आम लोग बिल्कुल मूकदर्शक बन गए थे।  इलाके की जमीनों को बेहद सस्ते दामांें पर सत्ता के करीबी हथिया रहे थे, ऐसी जमीनें भूमाफियाआंें को कौड़ी के दाम सोंपने के इन्तज़ाम किए जा रहे थे और खुद राज्य की बागडोर संभाले लोग भी इसके प्रति मौन थे(https://www.newslaundry.com/2021/06/19/exclusive-bjp-mayors-nephew-bought-land-for-20-lakh-sold-it-to-ram-temple-trust-for-25-crorehttps://scroll.in/latest/1030028/ayodhya-ram-temple-congress-urges-supreme-court-to-take-cognisance-of-alleged-land-scam  )
 
अंततः उन्होंने बोलना तय किया और नतीजा सभी के सामने हैै।

ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दुत्व वर्चस्ववादियों  केेे आंकाओं  के हिसाब से यह सबसे अच्छी बात होती कि अयोध्या के तमाम पीड़ित जन - जो अपने मकानांें, दुकानों, अपने अपने इलाके के प्रार्थनास्थलों से वंचित कर दिए गए थे और जिन्हे  आए दिन किसी न किसी वीआईपी के आगमन के नाम पर तमाम बंदिशों का सामना करना पड़ता था, उन्होंने उनकी इस स्थिति को अपनी नियति मान कर खामोशी बरती होती, भूमाफियाओं, एक असंवेदनशील और निर्मम प्रशासन/सरकार और उनके करीबी दरबारी पूंजीपतियों - अडानी आदि - की इस तिकड़ी की मनमानी को बरदाश्त किया होता, मगर संविधान ने जो उन्हें बोलने का हक़ दिया है, उसका प्रयोग उन्होंने किया तो उन्हीं पर कहर बरपा हो गया।

खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे ?

अयोध्या के आम नागरिकों पर ही नहीं बल्कि समूचे हिन्दु समाज पर किया जा रहा यह दोषारोपण एक तरह से खिसियानी बिल्ली के खंभे नोचने जैसी कवायद है।

वैसे यूपी में भाजपा की सीटें आधी से भी कम होना उनके लिए चिन्ता /बेइज्जती की बात है ही जबकि वहां डबल इंजन की सरकार चल रही है और योगी आदित्यनाथ तो शेष भारत के अन्य प्रांतों में भी प्रचार के लिए बुलाए जाते हैं।

वाराणसी जहां से मोदी तीसरी बार चुनाव लड़ रहे थे, वहां उनके वोटों  में तीन लाख से अधिक की गिरावट इसी बात का संकेत देती है। कहां तो दावे किए गए थे कि दस लाख से अधिक मार्जिन से वह जीत जाएंगे और आलम यह था कि वोटों  की गिनती के कई दौर में  वह कांग्रेस के अजय राय से पिछड़ रहे थे।

 अयोध्या -फैजाबाद की तरह ही खुद वाराणसी के भी सौंदर्यीकरण के नाम पर आम नागरिकांे की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं के साथ , उनकी आस्था के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उसकी तो चर्चा भी कहीं नहीं हुई है। तमाम पत्रकारांे ने, सामाजिक कार्यकर्ताआंे ने इसके बारे में लिखा है, आवाज़ बुलंद की है, मगर मीडिया के गोदीकरण का ऐसा आलम है कि कहीं अधिक चर्चा नहीं हो पायी। ीhttps://followupstories.com/politics/ten-years-report-card-of-varanasi-loksabha-under-mp-and-pm-narendra-modi/ 

वैसे क्या यह छोटी बात है कि इन चुनावों में मोदी मंत्रिमंडल के एक चौथाई सदस्य हार गए हैं।

जनाब मोदी या उनकी भक्त मंडली इस बात को कबूल करे या नहीं, लेकिन 2024 के चुनावों ने हिन्दुत्व एजेंडा को पंक्चर कर दिया है।

यह समझना मुश्किल नहीं है कि हिन्दी पटटी में खासकर उत्तर प्रदेश जैसी उसकी हदयस्थली में उसकी दुर्गत क्यों  हुई, बशर्ते भाजपा-संघ का नेतृत्व  बेहद ठंडे दिमाग से विश्लेषण करने को तैयार हो । (https://scroll.in/article/1068791/why-the-bjp-took-a-hit-in-uttar-pradesh)अपनी गलती पर आत्ममंथन करने के बजाय दोषारोपण करने के लिए किसी ‘अन्य’ को ढंूढने की उनकी कवायद उनकी समझदारी में इजाफा नहीं कर सकती।

बेहद वस्तुनिष्ठ तरीके से देखने की वह कोशिश करें तो उसे  पता चलेगा कि किस तरह इस चुनाव में हिन्दु मुसलमान का मसला नहीं बन सका बल्कि इसके विपरीत आम लोगों के जिन्दगी और जीवनयापन से जुड़े सवाल, महंगाई, बेरोजगारी, आवारा पशु, सामाजिक न्याय आदि ही हावी रहे। दस साल की अपनी हुकूमत की उपलब्धियों का गुणगान करने के बजाय, उन्हें जनताा के सामने प्रस्तुत करने के बजाय कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों  के प्रति नकारात्मक बातें  परोसना, जनता को नागवार गुजरा और उन्होंने इसे नकारा।

संविधान बदलने का छिपा एजेंडा ?

इन चुनावों का एक अहम मसला बना संविधान की रक्षा का, जब भाजपा के नेताओं ने अपने ही मुंह से बोलना शुरू किया कि 400 सीटें  आएंगी तो वह सबसे पहले संविधान बदलेगे।
 
भाजपा के इस खुले ऐलान ने सामाजिक तौर पर उत्पीड़ित तबकांे के बीच भी यह चिन्ता उठी कि अगर ऐसा हुआ तो उन्हें मिलने वाले तमाम अवसर समाप्त होंगे, आरक्षण समाप्त होगा। मध्यमवर्ग के एक हिस्से ने भी इस बात को अस्वीकार किया, जिन्हें जनतंत्र की अहमियत, संविधान के सिद्धांतों और मूल्यों की अहमियत का गहरे से एहसास है। आंकड़े बताते है कि दलितो आदिवासियों  के बीच इस बार भाजपा की सीटें  काफी घर्टी । (https://www.telegraphindia.com/elections/lok-sabha-election-2024/bjp-suffers-25-per-cent-loss-in-reserved-lok-sabha-seats-in-2024-compared-to-what-it-had-won-in-2019/cid/2024916)

दरअसल आम लोग संघ-भाजपा के संविधान के प्रति रूख को लेकर पहले से ही आशंकित रहते आए हैं क्योंकि  इतिहास बताता है कि संघ ने कभी भी तहेदिल से संविधान बनाने का समर्थन नहीं किया और यही चाहा कि मनुस्मृति  को ही भारत के संविधान का दर्जा दिया जाए।
 
भाजपा के बड़बोले नेताओं के वक्तव्यों ने जनता के व्यापक हिस्से में भी इस बात को बेपर्द किया कि किस तरह संविधान को लेकर उनका यह ढुलमूल रवैया पहले से ही चला आ रहा है और उसमें कोई गुणात्मक बदलाव नहीं हुआ है।https://thewirehindi.com/273053/bjp-rss-and-their-desire-to-change-indian-constitution

इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त नरेन्द्र मोदी, भारत के वजीरे आज़म का पद तीसरी बार संभाल चुके हैं, लेकिन इस बार हालात बदले बदले हैं, उन्हें  सहयोगी दलों का साथ लेना पड़ा है। 

वैसे जनाब मोदी की नैतिक हार को रेखांकित करने वाला यह चुनाव और बाद की यह स्थिति उनके लिए तथा व्यापक  संघ-भाजपा परिवार के लिए कई सबक पेश करती  है, अब उन्हें  यह तय करना है कि वह आत्ममंथन करेंगे  या किसी अन्य के माथे दोषारोपण करके इतिश्री कर लेंगे ! 
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