कोई समाज जनसंहार को किस तरह याद रखता है?: सुभाष गाताडे

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Subhash Gatade

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Aug 4, 2021, 7:23:16 PM8/4/21
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मृत लेकिन जीवित
कोई समाज जनसंहार को किस तरह याद रखता है?

सुभाष गाताडे

ई बार बेहद छोटे से लगने वाले प्रसंग अतीत के स्याह झरोखों में झांकने का अचानक मौका देते हैं.

दो साल पहले ऐसे ही अनुभव से हम रूबरू थे.

जर्मनी के बॉन शहर की सुनसान सड़क पर एक दुकान के पास मुड़ते हुए सपने में भी नहीं सोचा था कि सड़क पर एक मकान के बिल्कुल सामने करीने से ठोंकी गयीं पीतल की चौकोर प्लेटें- जिन पर कुछ लोगों के विवरण अंकित थे- हमें अचानक लगभग अस्सी साल पहले उसी मकान के चार निवासियों के साथ क्या हुआ था, इसकी दास्तां से रूबरू करवाएंगी.

दरअसल हम लोग अचानक पीतल की उन प्लेटों से टकराए थे, जो उस मकान के सामने दरवाजे के पास ही फुटपाथ पर ठोंकी गयीं थीं.

आप समझ सकते हैं कि मकान का दरवाज़ा फुटपाथ पर ही खुलता था और दरवाजे के दोनों तरह कुछ दुकानें थीं, जैसा दृश्य दुनिया के किसी भी शहर, नगर में देखा जा सकता है.

फुटपाथ में ठोंकी गयीं इन प्लेटों की संख्या चार थी, जिनमें से बायीं तरफ पर शायद परिवार के मुखिया का नाम अंकित था ‘बर्नहार्ड मार्क्स’ जबकि दाहिनी तरफ की प्लेटों में परिवार के अन्य सदस्यों- एरना मार्क्स (जन्म: 1899), हेलेना (जन्म: 1929) और जुली (जन्म: 1938) दर्ज थी और बाकी विवरण वही थे.

जैसा कि विवरण से ही स्पष्ट था कि इन चार प्लेटों का संबंध- जिनका क्षेत्रफल अधिक से अधिक 9 वर्गइंच था- जर्मनी के इतिहास के उस डरावने दौर से था जब लाखों की तादाद में निरपराध लोग- यहुदी, रोमा, जेहोवाज विटनेसेसे सम्प्रदाय से जुड़े लोग, समलैंगिक यहां तक कि राजनीतिक विरोधी भी- सफाये का शिकार हुए थे, जब उन्हें यातना शिविरों में गैस चेम्बर्स में भेज कर मारा गया था और यातना शिविरों के अपने सीमित आवास के दौरान उन पर तरह-तरह के खतरनाक प्रयोग भी चले थे.

उस स्थान के निवासी मार्क्स परिवार को- बर्नहार्ड, उनकी पत्नी एरना और दो बेटियां हेलेना और जुली, चारों को मिन्स्क के यातना शिविर में भेजा गया था और जैसे कि प्लेट पर अंकित तारीख बता रही थी कि वहां पहुंचने के महज चार दिन के अन्दर उनकी हत्या कर दी गयी थी. मिन्स्क यातना शिविर में कितने लोग मारे गए थे, इसका प्रत्यक्ष विवरण तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन दो साल के अंदर वहां कम से कम  65,000 यहूदियों का नस्लीय सफाया कर दिया गया था.

जाहिर है कि इतने बड़े पैमाने पर आयोजित इस जनसंहार में बर्नहार्ड मार्क्स, उनकी पत्नी एरना, और बेटियां हेलेना और जुली, महज एक संख्या के तौर पर गिने जा रहे थे.

हम महज कल्पना ही कर सकते हैं कि उस दुर्भाग्य पूर्ण दिन क्या हुआ होगा.

हो सकता है कि जर्मन सेना के चन्द नुमाइन्दे या नात्सी तूफानी दस्तों के लोग बर्नहार्ड के घर पहुंचे होंगे और उन्होंने उन सभी को साथ में लाए गए किसी ट्रक  में या वाहन में ढकेला होगा, जबकि उनके तमाम मोहल्ले वाले बर्नहार्ड के मकान के इर्दगिर्द इकट्ठे हुए होंगे और जश्न की मुद्रा बना रहे होंगे. जर्मन सेना के उन नुमाइन्दों की हौसला अफजाई कर रहे होंगे.

मुमकिन है सबकुछ इतना ‘व्यवस्थित’ नहीं भी हुआ हो, सैकड़ों की तादाद में भीड़ वहां जमा हुई हो जो  ‘हेल हिटलर’ अर्थात ‘हिटलर की जय हो’ के नारे लगा रही हो और उन्होंने पलक झपकते ही बर्नहार्ड, एरना, हेलेना आदि को पीटना शुरू किया हो, जबकि छोटी जुली अपनी मां के पहलू में अपने आप को छिपाने का असफल प्रयास कर रही हो.

और फिर हो सकता है कि पीटते-पीटते ही उन्हें हिटलर के नात्सी सिपाहियों के सुपुर्द किया गया हो और फिर किसी ट्रेन में या ट्रक में उनकी रवानगी मिन्स्क हुई हो !

चीज़ें जैसे घटित हुईं होंगी इसका विवरण पता नहीं कहीं मिलेगा या नहीं, लेकिन पीतल की प्लेटे- जो बर्नहार्ड मार्क्स परिवार के उस भूतपूर्व मकान के सामने ही फुटपाथ पर ठोंकी गयी थी, इस बात की ताईद जरूर कर रहीं थीं  कि 20 जुलाई 1942 का वह दिन उनके लिए मौत का वारंट लेकर आया था.

( Read the full text here : https://samalochan.com/subhash-gatade/)

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