रेखाचित्र
रेखाचित्र आधुनिक युग में विकसित एक गद्य विधा है जो अन्य आधुनिक विधा की तरह ही पश्चिम से आई है और अंग्रेजी के ‘स्केच’ के समानार्थी है। रंगविहीन रेखाओं के दायरे को घटाना-बढ़ाना, सूक्ष्म अन्तर्दर्शी कला-चेतना को मांजकर कलाकार जब अपनी आत्मा को रेखाओं की वृतों में घेरकर आकार देता है, वह रेखाचित्र के रूप में हमारे सामने आता है। साहित्यिक क्षेत्र में यही रेखाएं शब्दों में परिवर्तित हो जाती है।
वैसे तो रेखाचित्र की कई परिभाषाएँ प्रस्तुत की गयी हैं, परन्तु सबसे सटीक और व्यापक परिभाषा डॉ. भगीरथ मिश्र की लगती है जिनके अनुसार –
“संपर्क में आये किसी विलक्षण व्यक्ति अथवा संवेदनाओं को जगानेवाली सामान्य विशेषताओं से युक्त किसी प्रतिनिधि चरित्र के मर्मस्पर्शी स्वरुप को, देखी-सुनी या संकलित घटनाओं की पृष्ठभूमि में इस प्रकार उभारकर रखना कि उसका हमारे हृदय पर एक निश्चित प्रभाव अंकित हो जाए रेखाचित्र या शब्दचित्र कहलाता है।”
जिस प्रकार चित्रकार चित्र बनाने के लिए आड़ी-तिरछी रेखाओं का प्रयोग करता है, उसी प्रकार रेखाचित्र लिखने वाला चित्र-शब्दों द्वारा जीवन की विविध घटनाओं, व्यक्तियों और दृश्य का ऐसा सजीव चित्र उपस्थित करता है कि पाठक के सम्मुख वह व्यक्ति, स्थान, वातावरण या प्रसंग साकार हो उठता है। गद्य में लिखे गए इसी चित्र को रेखाचित्र कहते हैं। रेखाचित्रकार अपने मन पर छाई हुई स्मृति रेखाओं और विगत अनुभवों को कला की तूलिका से स्वानुभूति के रंग में रंगकर सजीव शब्द-चित्र का रूप देता है। प्रकाशचन्द्र गुप्त ने अपने रेखाचित्रों के सम्बन्ध में लिखा है –
“मैं शब्दों की रेखाओं से अपने अनुभव के चित्र उतारने का प्रयास कर रहा था और निरंतर सोचता था कि मैं इन रेखाओं को तूलिका या पेंसिल से खींच सकता तो कितना अच्छा होता।”
इस वक्तव्य से स्पष्ट है कि शब्दचित्र छोटे, चलते और जीवंत होते हैं। हिंदी साहित्य कोष के अनुसार – “रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्मस्पर्शी भावपूर्ण एवं सजीव अंकन है।”
[8/25, 4:17 PM] 🙏🏼🙏🏼🙏🏼: रेखाचित्र कहानी से मिलता-जुलता साहित्य रूप है। यह नामअंग्रेज़ी के 'स्केच' शब्द की नाप-तोल पर गढ़ा गया है। स्केचचित्रकला का अंग है। इसमें चित्रकार कुछ इनी-गिनी रेखाओं द्वारा किसी वस्तु-व्यक्ति या दृश्य को अंकित कर देता है-स्केच रेखाओं की बहुलता और रंगों की विविधता में अंकित कोई चित्र नहीं है, न वह एक फ़ोटो ही है, जिसमें नन्हीं से नन्हीं और साधारण से साधारण वस्तु भी खिंच आती है।
साहित्य में रेखाचित्र
साहित्य में जिसे रेखाचित्र कहते हैं, उसमें भी कम से कम शब्दों में कलात्मक ढंग से किसी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य का अंकन किया जाता है। इसमें साधन शब्द है, रेखाएँ नहीं। इसीलिए इसे शब्दचित्र भी कहते हैं। कहीं-कहीं इसका अंग्रेज़ी नाम 'स्केच' भी व्यवहृत होता है।
रेखाचित्र का स्वरूप
रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्म-स्पर्शी, भावपूर्ण एवं सजीव अंकन है। कहानी से इसका बहुत अधिक साम्य है- दोनों में क्षण, घटना या भाव विशेष पर ध्यान रहता है, दोनों की रूपरेखा संक्षिप्त रहती है और दोनों में कथाकार के नैरेशन और पात्रों के संलाप का प्रसंगानुसार उपयोग किया जाता है। इन विधाओं के साम्य के कारण अनेक कहानियों को भी रेखाचित्र कह दिया जाता है और इसके ठीक विपरीत अनेक रेखाचित्रों को कहानी की संज्ञा प्राप्त हो जाती है। कहीं-कहीं लगता है, कहानी और रेखाचित्र के बीच विभाजन रेखा खींचना सरल नहीं है। उदाहरण के लिए रायकृष्णदास लिखित 'अन्त:पुर का आरम्भ' कहानी है, पर वह आदिम मनुष्य की अन्त:वृत्ति पर आधारित 'रेखाचित्र' भी है। रामवृक्ष बेनीपुरी की पुस्तक 'माटी की मूरतें' में संकलित 'रज़िया', 'बलदेव सिंह', 'देव' आदि रेखाचित्र कहानियाँ भी हैं। श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित 'रामा', 'घीसा' आदि रेखाचित्र भी कहानी कह जाते हैं। कहानी और रेखाचित्र में साम्य है अवश्य, पर जैसा कि 'शिप्ले' के 'विश्व साहित्य कोश' में कहा गया है, रेखाचित्र में कहानी की गहराई का अभाव रहता है। दूसरी बात यह भी है कि कहानी में किसी न किसी मात्रा में कथात्मकता अपेक्षित रहती है, पर रेखाचित्र में नहीं।
आत्मकथा और संस्मरण से भिन्न
व्यक्तियों के जीवन पर आधारित रेखाचित्र लिखे जाते हैं, पर रेखाचित्र जीवनचरित नहीं है। जीवनचरित के लिए यथातथ्यता एवं वस्तुनिष्ठता अनिवार्य है। इसमें कल्पना के लिए अवकाश नहीं रहता, लेकिन रेखाचित्र साहित्यिक कृति है- लेखक अपनी भावना एवं कल्पना की तूलिका से ही विभिन्न चित्र अंकित करता है। जीवनचरित में समग्रता का भी आग्रह रहता है, इसमें सामान्य एवं महत्त्वपूर्ण सब प्रकार की घटनाओं के चित्रण का प्रयत्न रहता है, लेकिन रेखा चित्रकार गिनी-चुनी रेखाओं, गिनी-चुनी महत्त्वपूर्ण घटनाओं का ही उपयोग करता है। इन बातों से यह भी स्पष्ट है कि रेखाचित्र आत्मकथा और संस्मरण से भी भिन्न अस्तित्व रखता है।
रेखाचित्र की विशेषता
रेखाचित्र की विशेषता विस्तार में नहीं, तीव्रता में होती है। रेखाचित्र पूर्ण चित्र नहीं है-वह व्यक्ति, वस्तु, घटना आदि का एक निश्चित विवरण की न्यूनता के साथ-साथ तीव्र संवेदनशीलता वर्तमान रहती है। इसीलिए रेखाचित्रांकन का सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण है, उस दृष्टिबिन्दु का निर्धारण, जहाँ से लेखक अपने वर्ण्य विषय का अवलोकन कर उसका अंकन करता है। इस दृष्टि से व्यंग्य चित्र और रेखाचित्र की कलाएँ बहुत समान हैं। दोनों में दृष्टि की सूक्ष्मता तथा कम से कम स्थान में अधिक से अधिक अभिव्यक्त करने की तत्परता परिलक्षित होती है। रेखाचित्र के लिए संकेत सामर्थ्य भी बहुत आवश्यक है- रेखाचित्रकार शब्दों और वाक्यों से परे भी बहुत कुछ कहने की क्षमता रखता है। रेखाचित्र के लिए उपयुक्त विषय का चुनाव भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसकी विषय वस्तु ऐसी होती है, जिसे विस्तृत वर्णन और रंगों की अपेक्षा न हो और जो कुछ ही रेखाओं के संघात से चमक उठे।
उदाहरण-
चाँदनी रात में 'ताजमहल' की शोभा को रेखाचित्र में बाँधा जा सकता है, पर शाहजहाँ और मुमताज़ महल की प्रेमकथा को रेखाचित्र की सीमा में बाँध सकना कठिन काम है।
विषय और शैली
रेखाचित्र के लिए विषय का बन्धन नहीं रहता, सब प्रकार के विषयों का इसमें समावेश हो सकता है। मूल चेतना के आधार पर रेखाचित्रों को अनेक वर्गों में रखा जा सकता है-
संस्मरणात्मकवर्णनात्मकव्यंग्यात्मकमनोवैज्ञानिक आदि
हिंदी में रेखाचित्र
हिन्दी में अनेक लेखकों ने रेखाचित्र लिखे हैं। इस क्षेत्र के कुछ महत्त्वपूर्ण नाम हैं-
बनारसीदास चतुर्वेदी : 'रेखाचित्र'महादेवी वर्मा : 'अतीत के चलचित्र', 'स्मृति की रेखाएँ' और 'शृंखला की कड़ियाँ'रामवृक्ष बेनीपुरी : 'माटी की मूरतें' तथा 'गेहूँ और गुलाब'प्रकाशचन्द्र गुप्त : 'पुरानी स्मृतियाँ और नये स्केच तथा रेखाचित्र'कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' : 'भूले हुए चेहरे' आदि।
[8/25, 4:22 PM] 🙏🏼🙏🏼🙏🏼: रेखाचित्र एवं संस्मरण का सम्बन्ध
पाश्चात्य साहित्य विशेषकर अंग्रेजी साहित्य के स्केचों से प्रभावित रेखाचित्र वस्तुतः कहानी और निबंध के मध्य झूलती विधा है। हिंदी में निबंध तथा कहानी पर लिखी गयी आलोचना पुस्तकों में रेखाचित्र को कहानी या निबंध-कला की सहायक शैली मान लिया गया है अथवा कहानी और निबंध की रचना-सीमाओं को फैलाकर रेखाचित्र को उन्हीं के अंतर्गत समाविष्ट करने का प्रयास किया गया है। रेखाचित्र में कहानी से अधिक मार्मिकता, निबंध से अधिक मौलिकता एवं रोचकता होती है। इसमें कहानी का कौतूहल है तो निबंध की गहराई भी है। वस्तुतः रेखाचित्र विभिन्न विधाओं की विशेषताओं का विचित्र समुच्चय है।
यशपाल के अनुसार –
“रेखाचित्र कहानी की कला से प्रेरणा पाकर उत्पन्न हुई कला की नव विकसित स्वतंत्र शाखा है।”
संस्मरण रेखाचित्र के अत्यधिक निकट है। दोनों ही संवेदनशील स्मृतियों का प्रत्यक्षीकरण है जिसके सूत्र किसी साधारण अथवा विशिष्ट व्यक्ति से जुड़े होते हैं। रेखाचित्र और संस्मरण के ऊपरी खोल एक से प्रतीत होते हैं, किन्तु एक ही सतह से जुड़ी इन विधाओं में भी थोड़ा अंतर है। संस्मरण संस्मरणकार का अनुभूत यथार्थ होता है जिसका सम्बन्ध अतीत से होता है। उसमें कल्पना के लिए कोई स्थान नहीं होता। वह विवेच्य व्यक्ति, घटना या प्रसंग की यथातथ्यता को बनाए रखकर उनमें संचरित भीतरी संवेदना को पकड़ता है। रेखाचित्र संस्मरण के इन गुणों का अनुपालन नहीं करता। वह तो चित्रकला से उत्प्रेरित एक साहित्यिक विधा है। जिस प्रकार चित्रकार रेखाओं में अपने विवेच्य विषय को पूर्ण और सूक्ष्म आकार न देकर केवल आकार का आभास प्रदान करता है, ठीक उसी प्रकार साहित्यिक रेखाचित्रकार शब्दों में अपने विवेच्य विषय के स्वरुप का आकारात्मक आभास देता है। इस तरह रेखाचित्र और संस्मरण में स्पष्ट अंतर है।
कहानी अथवा निबंध से कहीं अधिक रेखाचित्र और संस्मरण के बीच की निकटता पर विद्वानों ने अपनी राय व्यक्त की है। दरअसल संस्मरण और रेखाचित्र दोनों एक दूसरे के इतना निकट है कि कभी-कभी तो दोनों को अलग करना कठिन हो जाता है। संस्मरण संवेदनशील स्मृतियों का प्रत्यक्षीकरण है जिसके सूत्र किसी साधारण अथवा विशिष्ट व्यक्ति से जुड़े होते हैं। रेखाचित्र के केंद्र में भी यही संवेदनशील स्मृति है, जो शब्दचित्र के रूप में वर्णित होता है। किन्तु इतना साम्य होने पर भी ये दोनों दो भिन्न विधाएँ हैं।
बाबू गुलाब राय ने दोनों विधाओं की तुलना करते हुए लिखा है कि –
“जहाँ रेखाचित्र वर्णनात्मक अधिक होते हैं, वहां संस्मरण विवरणात्मक अधिक होते हैं।” दूसरी ओर डॉ. नगेन्द्र दोनों को एक ही जाति का मानते हैं। महादेवी वर्मा और पं. बनारसीदास चतुर्वेदी की मान्यता है कि संस्मरण का सम्बन्ध अतीत से है और रेखाचित्र वर्तमान का भी हो सकता है। एक ही सतह से जुड़ी इन दोनों विधाओं में पर्याप्त समानता होने पर भी कई स्पष्ट अंतर भी हैं।
क्या आप जानते हैं ?
हिंदी में अनेक साहित्यकारों ने रेखाचित्र लिखे हैं। उनमें सशक्त हस्ताक्षर हैं – महादेवी वर्मा, पं. श्री राम शर्मा,
रामवृक्ष बेनीपुरी, पद्मसिंह शर्मा, बनारसी दास चतुर्वेदी, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’, निराला, प्रकाशचंद्र गुप्त, रांगेय राघव, अज्ञेय, दिनकर, उपेन्द्रनाथ अश्क, देवेन्द्र सत्यार्थी आदि।
रेखाचित्र अपेक्षित, अपरिचित साधारण व्यक्ति के असाधारण व्यक्तित्व पर आधारित होते हैं, जबकि संस्मरण बहुधा परिचित, असाधारण व्यक्तित्व पर आधारित होते हैं। रेखाचित्र में वर्णनात्मक चित्रण की प्रधानता रहती है जबकि संस्मरण में विवरणों की प्रधानता रहती है। संस्मरण में कथाओं और प्रसंगों का उपयोग किया जाता है जबकि रेखाचित्र में रूप की अभिव्यक्ति पर ध्यान केन्द्रित होता है। संस्मरण में देशकाल और परिस्थितियों की प्रधानता होती है जबकि रेखाचित्र में वर्ण्य-विषय या वस्तु की। संस्मरण प्रायः बीती बातों या दिवंगत व्यक्तियों से सम्बंधित होते हैं जबकि रेखाचित्र में समकालीन घटनाओं या दृश्यों का वर्णन भी हो सकता है। रेखाचित्र में सामान्यतः लेखक की दृष्टि संवेदनात्मक होती है जबकि संस्मरण में श्रद्धात्मक होती है। रेखाचित्र में अक्सर लेखक समास शैली का आश्रय लेता है जबकि संस्मरण में लेखक व्यास शैली में अपनी रचना लिखता है। रेखाचित्र में प्रवृति गागर में सागर भरने की होती है। यही नहीं संस्मरणों में लेखक की अपनी रूचि-अरुचि, राग-द्वेष आदि विभिन्न प्रतिक्रियाओं और टिप्पणियों के माध्यम से व्यक्त होती चलती है, जबकि रेखाचित्र में लेखक इन सबसे तटस्थ होता है।
संस्मरण में अतीत की स्मृति भावात्मक, क्षणिक, अस्पष्ट, अपूर्ण और आंशिक होती है, किन्तु रेखाचित्र की स्मृति अपेक्षाकृत अधिक सघन, अधिक स्पष्ट, अपने में अधिक पूर्ण और बारम्बार हृदय को झकझोरने वाली होती है। रेखाचित्र में सत्य होते हुए भी स्वच्छंदता रहती है। संस्मरण में स्वच्छंदता और कल्पना तत्त्व का समावेश नहीं होता।
रेखाचित्र या 'आरेखण' (ड्राइंग) एक दृश्य कला है जो द्वि-आयामी साधन को चिह्नित करने के लिए किसी भी तरह के रेखाचित्र उपकरणों का उपयोग करता है। आम उपकरणों में शामिल है ग्रेफाइट पेंसिल, कलम और स्याही, स्याहीदार ब्रश, मोम की रंगीन पेंसिल, क्रेयोन, चारकोल, खड़िया, पैस्टल,मार्कर, स्टाइलस, या विभिन्न धातु सिल्वरपॉइंट। एक रेखाचित्र पर काम करने वाले कलाकार को नक्शानवीस या प्रारूपकार के रूप में उद्धृत किया जा सकता है।
सामग्री की अल्प मात्रा एक द्वि-आयामी साधन पर डाली जाती है, जो एक गोचर निशान छोड़ती है - यह प्रक्रियाचित्रकारी के समान ही है। रेखाचित्र के लिए सबसे आम सहायक है कागज़, हालांकि अन्य सामग्री, जैसे गत्ता, प्लास्टिक, चमड़ा, कैनवास और बोर्ड का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। अस्थायी रेखाचित्रों को ब्लैकबोर्ड पर या व्हाईटबोर्ड पर या निस्संदेह लगभग हर चीज़ पर बनाया जा सकता है। यह माध्यम, स्थायी मार्कर की सुलभता के कारणभित्ति चित्रण के माध्यम से सार्वजनिक अभिव्यक्ति का एक लोकप्रिय साधन भी बन गया है।
सिंहावलोकन
मैडम पालमिरे अपने कुत्ते के साथ, 1897. हेनरी डी टूलूज़-लाऊट्रेक .
रेखाचित्र, दृश्य अभिव्यक्ति का एक रूप है और दृश्य कला के अंतर्गत प्रमुख रूपों में से एक है। कार्टून सहित, रेखाचित्र की कई उपश्रेणियां हैं। रेखाचित्र के कुछ तरीके या दृष्टिकोण जैसे, "डूड्लिंग" और रेखाचित्र की अन्य अनौपचारिक विधियां जैसे भाप स्नान के कारण बने धूमिल दर्पण पर चित्र बनाना, या "इन्टॉप्टिक ग्राफोमेनिया" का अतियथार्थवादी तरिका, जिसमें सादे कागज पर अशुद्धता के स्थानों पर बिंदु बनाए जाते हैं और फिर इन बिन्दुओं के बीच रेखाएं बनाई जाती हैं, इसे "फाइन आर्ट्स" के रूप में "रेखाचित्र" का हिस्सा नहीं भी माना जा सकता है। इसी तरह अनुरेखण, कागज के एक पतले टुकड़े पर रेखाचित्र बनाने को, कभी-कभी इसी उद्देश्य के लिए डिजाइन किया गया (अनुरेखण कागज), पूर्व-मौजूद आकृतियों की बाह्य-रेखा के आसपास जो इस कागज़ से दिखती है, फाइन आर्ट नहीं माना जाता, हालांकि यह नक़्शानवीस की तैयारी का हिस्सा हो सकता है।
'रेखाचित्र' के लिए अंग्रेज़ी के शब्द 'ड्रॉइंग' का प्रयोग एक क्रिया और एक संज्ञा, दोनों के रूप में किया जाता है:
ड्रॉइंग (क्रिया) एक छवि, रूप या आकार बनाने के लिए किसी सतह पर निशान बनाने का कार्य है।निर्मित छवि को भी एक ड्रॉइंग (संज्ञा) कहा जाता है। एक त्वरित, अपरिष्कृत रेखाचित्र को एक स्केच के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
रेखाचित्र का सम्बन्ध आमतौर पर कागज पर रेखाओं और टोन के क्षेत्र के अंकन के साथ है। पारंपरिक चित्र मोनोक्रोम थे, या कम से कम उनमें थोड़ा रंग होता था,[1] जबकि आधुनिक रंगीन-पेंसिल के रेखाचित्र, रेखाचित्र और चित्रकला की सीमा तक या उसके पार जा सकते हैं। पश्चिमी शब्दावली में, तथापि, रेखाचित्र इस तथ्य के बावजूद चित्रकला से भिन्न है कि दोनों ही कार्यों में समान माध्यमों का प्रयोग होता है। शुष्क माध्यम, जिसका सम्बन्ध आम तौर पर रेखाचित्र से होता है, जैसे चॉक, उसका प्रयोग पैस्टल चित्रकारी में किया जा सकता है। रेखाचित्र को ब्रश या कलम के प्रयोग से एक तरल माध्यम से किया जा सकता है। इसी प्रकार, समान तरीके से दोनों को किया जा सकता है: चित्रकारी में आम तौर पर तैयार कैनवास या पैनल पर तरल रंग का प्रयोग शामिल होता है, लेकिन कभी-कभी उसी सतह पर पहले एक अधो-रेखाचित्र को बनाया जाता है। रेखाचित्र अक्सर खोजपूर्ण होते है, जिसमें अवलोकन, समस्या समाधान और संरचना पर काफी जोर होता है। रेखाचित्र को एक पेंटिंग की तैयार करने में नियमित रूप से प्रयोग किया जाता है, जिसे बाद में धुंधला कर दिया जाता है।
इतिहास
चित्र:Masson automatic drawing.jpg
आन्ड्रे मेसन. स्वत: रेखाचित्रण. 1924. कागज पर स्याही, 23.5 x 20.6 सेमी. मॉडर्न आर्ट का संग्रहालय, न्यूयॉर्क.
लोगों ने प्रागैतिहासिक काल से ही शिला और गुफा चित्र बनाए हैं। 12वीं 13वीं शताब्दी तक, सम्पूर्ण यूरोप में मठों में चर्मपत्र पर सचित्र पांडुलिपि तैयार करने वाले भिक्षु अपने लेखन और अपने चित्रों की रूपरेखा के लिए रेखा खींचने के लिए लेड स्टाइलि का उपयोग कर रहे थे। जल्द ही कलाकारों ने चित्रों और अधो-चित्रों के लिए आम तौर पर चांदी का उपयोग करना शुरू किया। शुरू में उन्होंने ऐसे रेखाचित्रों के लिए तैयार जमीन के साथ लकड़ी की गोलियों का इस्तेमाल और पुनः-इस्तेमाल किया। 14वीं सदी से जब कागज आम तौर पर उपलब्ध होने लगा तो कलाकारों के चित्र, प्रारंभिक अध्ययन और अंतिम रूप, दोनों ही तेज़ी से आम बन गए।
उल्लेखनीय नक्शानवीस
14वीं सदी से, प्रत्येक सदी ने ऐसे कलाकारों को जो जन्म दिया जिन्होंने महान चित्रों का निर्माण किया।
14वीं, 15वीं और 16वीं शताब्दियों में उल्लेखनीय नक्शानवीसों में शामिल थे लियोनार्डो दा विंसी, अल्ब्रेक्ट ड्युरर, माइकल एंजेलो, रफेल और डोनाटेलो.17वीं सदी में: क्लाउड, निकोलस पोसिन, रेम्ब्रांट,गुएर्सिनो और पीटर पॉल रूबेंस.18वीं सदी में: ज़ो-ओनर फ्रागोनार्ड, जिओवन्नी बतिस्ता तिआपोलो और अंटोनी वताऊ19वीं सदी के दौरान उल्लेखनीय नक्शानवीसों में शामिल हैं पॉल सिज़ेन, जैक लुइस डेविड, पियरे पॉल प्रूढोन, एडगर डेगास, थिओडोर गेरिकाउल्ट, फ्रांसिस्को गोया, जीन इन्ग्रेस,ओडिलोन रेडोन, हेनरी डी टूलूज़-लौट्रेक, ओनर डौमिएरऔर विन्सेन्ट वैन गौग1900 में उल्लेखनीय चित्र बनाने वालों में शामिल हैं कैथे कोलविट्ज़, मैक्स बेक्मन, जीन दुबुफेट, एगोन शीले,आर्शील गोर्की, पॉल कली, ऑस्कर कोकोश्का, एम. सी. एशर, आंद्रे मेसन, जुल्स पास्किन और पाब्लो पिकासो.
माध्यम
माध्यम वह साधन है जिससे स्याही, रंगद्रव्य, या रंग को रेखाचित्र सतह पर लगाया जाता है। रेखाचित्र के अधिकांश माध्यम शुष्क होते हैं (जैसे ग्रेफाइट, चारकोल, पैस्टेल, कोंटे, सिल्वरपॉइंट), या जल-आधारित होते हैं (मार्कर, कलम और स्याही).[2] जलरंग पेंसिल को साधारण पेंसिल की तरह सूखा इस्तेमाल किया जा सकता है और फिर विभिन्न प्रभावों को प्राप्त करने के लिए एक गीले ब्रश से सिक्त किया जा सकता है। कलाकारों ने, शायद ही कभी अदृश्य स्याही से चित्र बनाया है (आमतौर पर कूटित).[3] धातु रेखाचित्र में आमतौर पर दो ही धातुओं का प्रयोग किया जाता है: चांदी या सीसा.[4] सोना, प्लेटिनम, तांबा, पीतल, कांसा और टिन का शायद ही कभी इस्तेमाल किया गया।
माध्यम का प्रयोग
लगभग सभी नक्शानवीस, माध्यमों के प्रयोग के लिए अपने हाथों और उंगलियों का उपयोग करते हैं जिसका अपवाद कुछ ऐसे विकलांग व्यक्ति हैं जो अपने मुंह या पैर के उपयोग से यह कार्य करते हैं।[5]
एक छवि पर काम करने से पहले, कलाकार संभावित रूप से यह समझ हासिल करना चाहेगा कि विभिन्न माध्यम कैसे काम करेंगे. रेखाचित्र बनाने के विभिन्न तरीकों को अभ्यास शीट पर आज़माया जा सकता है ताकि मूल्य और बनावट का निर्धारण हो सके और यह पता चल सके कि विभिन्न प्रभावों को उत्पन्न करने के लिए साधन को कैसे लागू करें.
रेखाचित्र साधन के स्पर्श का इस्तेमाल, छवि के स्वरूप को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। स्याही आरेखण में आम तौर पर रेखाछाया (हैचिंग) का उपयोग होता है जो समानांतर रेखाओं के समूहों से बने होते हैं।[6] क्रॉस-हैचिंग में हैचिंग का उपयोग एक गहरे लहज़े को बनाने के लिए दो या दो से अधिक भिन्न दिशाओं में होता है। खंडित रेखाछाया, या आंतरायिक टूट के साथ रेखाएं, का प्रयोग हलके लहज़े को बनाने के लिए किया जाता है और टूट के घनत्व को नियंत्रित करने के द्वारा लहज़े के अंशांकन को प्राप्त किया जा सकता है। बिंदु-चित्रण में लहज़ा, बनावट या छायाउत्पन्न करने के लिए बिंदुओं का उपयोग किया जाता है।
स्केच रेखाचित्र में इसी तरह की तकनीकों का उपयोग होता है, हालांकि पेंसिल और ड्रॉइंग स्टिक के साथ टोन में निरंतर भिन्नता हासिल की जा सकती है। सर्वश्रेष्ठ परिणामों के लिए एक स्केच में रेखाएं आम तौर पर सतह के रूपरेखा वक्र का अनुगमन करने के लिए बनाई जाती हैं, इस प्रकार ये गहराई का एक प्रभाव निर्मित करती हैं। बालों को बनाते समय, स्केच की रेखाएं बालों के विकास की दिशा का अनुसरण करती हैं।
आम तौर पर एक रेखाचित्र को इस आधार पर भरा जाएगा कि कलाकार किस हाथ को पसंद करता है। दाएं हाथ का कलाकार छवि को धब्बे से बचाने के लिए बाएं से दाएं की ओर बनाना चाहेगा. कभी-कभी कलाकार, छवि के एक खंड को खाली छोड़ना चाहेगा जबकि चित्र के शेष हिस्से को वह भरेगा. इस उद्देश्य के लिए एक फ्रिस्केट का इस्तेमाल किया जा सकता है। संरक्षित किये जाने वाले क्षेत्र के आकार कोफ्रिस्केट से बाहर काट लिया जाता है और फिर फलित आकार को रेखाचित्र के सतह पर प्रयोग किया जाता है। इससे, भरे जाने के लिए तैयार होने से पहले सतह की किसी भी अनावश्यक दाग से रक्षा होगी.
छवि के एक खंड को संरक्षित करने के लिए एक अन्य विधि है सतह पर एक स्प्रे-ऑन बंधक लगाना. इससे ढीली सामग्री शीत पर अधिक मजबूती से जमेगी और दाग-धब्बे से इसका बचाव करेगी. हालांकि बंधक स्प्रे में आमतौर पर ऐसे रसायनों का उपयोग होता है जो श्वसन प्रणाली को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए इसे एक अच्छी तरह संवातित क्षेत्र में संपादित किया जाना चाहिए, जैसे घर के बाहर.
सामग्रियां
विभिन्न आकारों के और गुणवत्ता वाले कागज़ पाए जाते हैं, जो समाचार पत्र के स्तर से लेकर उच्च गुणवत्ता तक और अपेक्षाकृत महंगे कागज़ जिसे एकल शीट के रूप में बेचा जाता है।[2] कागज़, गीले होने की स्थिति में बनावट, रंग, अम्लता और शक्ति के मामले में भिन्न हो सकते हैं। चिकना कागज़ सूक्ष्म विवरणों के प्रतिपादन के लिए अच्छा है, लेकिन एक अधिक "खुरदरा" कागज़ रेखाचित्र की सामग्री को बेहतर तरीके से ग्रहण करेगा. इस प्रकार एक दानेदार सामग्री एक गहरे वैषम्य को उत्पन्न करने के लिए उपयोगी है।
अखबारी कागज और टाइपिंग कागज़, अभ्यास और कच्चे स्केच के लिए उपयोगी हो सकते हैं। अनुरेखण कागज का उपयोग अर्ध-पूर्ण रेखाचित्र पर प्रयोग करने के लिए और एक शीट से दूसरी शीट पर डिज़ाइन अंतरण के लिए किया जाता है। कार्ट्रिज कागज, रेखाचित्र कागज़ का बुनियादी प्रकार है जिसे पैड में बेचा जाता है। ब्रिस्टल बोर्ड और यहां तक कि अक्सर चिकनी बनावट वाले भारी एसिड-मुक्त बोर्डों का इस्तेमाल सूक्ष्म विवरण बनाने के लिए किया जाता है और जब उन पर गीले माध्यम (स्याही, जलरंग) का प्रयोग किया जाता है तो वे विकृत नहीं होते. चर्मपत्र बेहद चिकने होते हैं और ये अत्यंत सूक्ष्म विवरणों के लिए उपयुक्त है। कोल्डप्रेस्ड जलरंग कागज़ को इसकी बनावट की वजह से स्याही रेखाचित्र के लिए चुना जा सकता है।
एसिड-मुक्त, अभिलेखीय गुणवत्ता वाला कागज़, लकड़ी की लुगदी आधारित कागज़ जैसे अखबारी कागज की तुलना में जो शीघ्र ही पीला होकर भंगुर हो जाता है अपने रंग और बनावट को लम्बे समय तक बनाए रखता है।
बुनियादी उपकरण हैं ड्रॉइंग बोर्ड या मेज, पेंसिल शार्पनरऔर खुरचनी और स्याही रेखाचित्र के लिए सोख्ता कागज़. उपयोग किए जाने वाले अन्य उपकरण हैं चक्र कम्पास, स्केल और सेट स्क्वायर. बंधक पेन्सिल और क्रेयौन के धब्बों को लगने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ड्रॉइंग सतह पर कागज़ को लगाने के लिए ड्राफ्टिंग टेप का इस्तेमाल किया जाता है और साथ ही छिड़काव या अन्य तरीके से पड़ने वाले आकस्मिक निशान से मुक्त रखने के लिए किसी क्षेत्र को ढका जाता है। रेखाचित्र सतह को एक उपयुक्त स्थिति में रखने के लिए एक चित्रफलक या तिरछी मेज का इस्तेमाल किया जाता है, जो आम तौर पर पेंटिंग में इस्तेमाल स्थिति से अधिक क्षैतिज होती है।
रंग-विन्यास
रक्तवर्ण में लियोनार्डो डा विंसी द्वारा लाइन ड्रॉइंग.
सामग्री की रंगत और साथ ही साथ छाया के स्थानों को दर्शाने के लिए कागज पर रंग-विन्यास के मूल्यों को बदलने की तकनीक है छायांकन. परिलक्षित प्रकाश, छाया और उभार पर विशेष ध्यान डालने से छवि का एक बहुत यथार्थवादी प्रस्तुतीकरण होता है।
मूल आरेखण स्पर्श को हल्का करने या फैलाने के लिए सम्मिश्रण एक साधन का उपयोग करता है। सम्मिश्रण को सबसे आसानी से एक ऐसे माध्यम के साथ किया जाता है जो तुरंत ही नहीं चिपक जाता, जैसे ग्रेफाइट, चौक, या चारकोल, हालांकि ताज़ा लगाई गई स्याही, कुछ ख़ास प्रभावों के लिए बिखराई जा सकती है अथवा गीली या सूखी हो सकती है। छायांकन और सम्मिश्रण के लिए, कलाकार एक सम्मिश्रण स्टंप, ऊतक, एक गूंथी खुरचनी, उंगली के पोर, या इनमें से किसी के भी संयोजन का उपयोग कर सकता है। साबर का टुकड़ा, एक चिकने गठन के निर्माण और रंग-विन्यास को कम करने के लिए सामग्री को हटाने के लिए उपयोगी है। सतत रंग-विन्यास को सम्मिश्रण के बिना एक चिकनी सतह पर ग्रेफाइट के साथ प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन तकनीक श्रमसाध्य है, जिसमें कुछ कुंद बिंदु के साथ छोटे गोल या अंडाकार स्ट्रोक शामिल हैं।
छायाप्रभाव की तकनीक जो रेखाचित्र में बनावट भी उत्पन्न करती है उसमें हैचिंग और स्टिप्लिंग शामिल हैं। चित्र में गठन उत्पन्न करने के अन्य कई तरीके हैं: एक उपयुक्त कागज चुनने के अलावा, रेखाचित्र सामग्री के प्रकार और रेखाचित्र तकनीक से भिन्न गठन फलित होगी. गठन के स्वरूप को तब और अधिक यथार्थवादी दर्शाया जा सकता है जब इसे एक विषम गठन के नज़दीक बनाया जाए; एक मोटी बनावट उस वक्त और अधिक स्पष्ट होगी जब इसे एक चिकने मिश्रित क्षेत्र के बगल में रखा जाएगा. ऐसे ही एक समान प्रभाव को, भिन्न रंग-विन्यास को आपस में नज़दीक बनाकर प्राप्त किया जा सकता है, एक गहरी पृष्ठभूमि के बगल में एक हल्का किनारा आंखों को सीधे दिखेगा और सतह से लगभग ऊपर तैरता हुआ दिखाई देगा.
लेआउट
चित्रकारी में अवरुद्ध करते हुए एक विषय के आयाम को मापना, विषय के एक यथार्थवादी प्रस्तुतीकरण के लिए महत्वपूर्ण कदम है। कम्पास जैसे उपकरण का प्रयोग विभिन्न पक्षों के कोण को मापने के लिए किया जा सकता है। इन कोणों को रेखाचित्र सतह पर पुनः प्रस्तुत किया जा सकता है और फिर यह सुनिश्चित करने के लिए फिर से जांचा जा सकता है कि वे सटीक हैं। मापन का एक अन्य रूप है विषय के विभिन्न हिस्सों के सापेक्ष आकार की एक दूसरे की तुलना में तुलना करना. रेखाचित्र उपकरण के पास एक बिंदु पर उंगली रख कर छवि के उस आयाम की तुलना अन्य भागों के साथ की जा सकती है। एक रेखनी का इस्तेमाल एक सीधी-किनारी और अनुपात की गणना करने की एक युक्ति, दोनों के रूप में किया जा सकता है।
एक जटिल आकार के निर्माण के समय जैसे एक मानव आकृति, यह सुविधाजनक होता है कि शुरुआत में स्वरूप को आरंभिक आकारों के एक सेट से दर्शाया जाए. लगभग किसी भी रूप को घन, क्षेत्र, बेलन और शंकु के कुछ संयोजन के द्वारा दर्शाया जा सकता है। एक बार ये बुनियादी आकार जब एक स्वरूप में इकट्ठे कर दिए जाते हैं, तो आरेखण को एक अधिक सटीक और साफ़ रूप में परिष्कृत किया जा सकता है। आरंभिक आकृतियों की रेखाओं को अंतिम आकार द्वारा हटा और प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। अंतर्निहित निर्माण का आरेखण, प्रतिनिधित्ववादी कला के लिए एक बुनियादी कौशल है और यह कई किताबों और स्कूलों में पढ़ाया जाता है, क्योंकि इसका सही आवेदन अधिकांश छोटे विवरणों की अनिश्चितताओं का समाधान कर देगा और अंतिम छवि को आत्म-स्थिर बना देगा.
आकृति चित्रांकन की एक अधिक परिष्कृत कला, कलाकार के मानव अनुपात और शारीरिक रचना की गहरी समझ पर निर्भर करती है। एक प्रशिक्षित कलाकार कंकाल संरचना, जोड़ अवस्थिति, मांसपेशिय स्थान, पुट्ठे की हरकत से परिचित होता है और यह जानता है कि हरकत के दौरान शरीर के विभिन्न हिस्से किस प्रकार से क्रिया करते हैं। इससे कलाकार को अधिक प्राकृतिक भंगिमाओं को पेश करने की अनुमति मिलती है जो कृत्रिम रूप से कड़ी नहीं दिखाई देती. कलाकार इस बात से भी परिचित होता है कि विषय की उम्र के आधार पर कैसे अनुपात बदलता है, खासकर एक रेखाचित्र के निर्माण के समय.
परिप्रेक्ष्य
रैखिक परिप्रेक्ष्य, एक सपाट सतह पर वस्तुओं के चित्रण की एक ऐसी विधि है जिसमें दूरी के साथ आयाम सिकुड़ते जाते हैं। किसी भी वस्तु के समानांतर, सीधे किनारे, चाहे एक इमारत हो या एक मेज, उन रेखाओं का अनुगमन करेंगे जो अंततः अनन्तता में अभिसरण करेंगे. आम तौर पर अभिसारिता का यह बिंदु क्षितिज के लगे होता है, चूंकि इमारतों को सपाट सतह के स्तर के साथ निर्मित किया जाता है। जब कई संरचनाएं एक दूसरे के साथ मिली होती हैं जैसे एक सड़क के किनारे बनी इमारतें, तब संरचनाओं का अनुप्रस्थ शीर्ष और तल आम तौर पर एक लोपी बिंदु पर मिलते हैं।
दो-सूत्रीय परिप्रेक्ष्य रेखाचित्र.
जब इमारत के सामने और बगल के हिस्से को बनाया जाता है तब एक पक्ष का निर्माण करने वाली समानांतर रेखाएं क्षितिज के लगे हुए एक दूसरे बिंदु पर मिलती हैं (जो रेखाचित्र के कागज़ से बाहर हो सकता है।) यह एक "दो सूत्रीय परिप्रेक्ष्य" है। आकाश में एक बिंदु पर यह खड़ी रेखाओं का अभिसरण करता है और फिर एक "तीन-सूत्री परिप्रेक्ष्य" उत्पन्न करता है।
गहराई को भी उपरोक्त परिप्रेक्ष्य दृष्टिकोण के अलावा कई अन्य तकनीकों द्वारा दर्शाया जा सकता है। समान आकारकी वस्तुएं दर्शक से जितनी दूर होंगी उतनी ही छोटी प्रतीत होंगी. इस तरह एक गाड़ी का पिछला पहिया सामने वाले पहिया से छोटा दिखाई देगा. गहराई को बनावट के उपयोग के माध्यम से दर्शाया जा सकता है। जैसे-जैसे एक वस्तु की बनावट दूर होती जाती है यह और अधिक संकुचित और घनी हो जाती है और एक पूरी तरह से अलग स्वरूप लेती है उस तुलना में जब यदि यह पास होती. गहराई को, अधिक दूर की वस्तुओं की वैषम्यता की मात्रा को कम करने के द्वारा चित्रित किया जा सकता है और रंग को अधिक फीका करने के द्वारा भी. इससे वायुमंडलीय धुंध के प्रभाव को पुनरुत्पादित किया जा सकता है और आंखों को उन वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने को प्रेरित करता है जिन्हें अग्रभूमि में बनाया गया है।
कलात्मकता
विलियम-अडोल्फ बौगरौ द्वारा चिअरोसकुरो अध्ययन रेखाचित्र
एक कलात्मक उच्चता की दिलचस्प कृति के निर्माण के लिए तस्वीर की संरचना एक महत्वपूर्ण तत्त्व है। कलाकार, दर्शकों के साथ विचारों और भावनाओं को संप्रेषित करने के लिए कला में तत्वों की अवस्थिति की योजना बनाता है। संरचना, कला के केंद्र को निर्धारित कर सकती है और एक सामंजस्यपूर्ण समग्रता को फलित करती है जो सौंदर्यबोध की दृष्टि से अपील और उत्तेजित करता है।
एक कलात्मक कृति बनाने में विषय की सजावट भी एक महत्वपूर्ण तत्व है और प्रकाश और छाया की परस्पर क्रिया कलाकार के पिटारे में एक मूल्यवान तरीका है। प्रकाश स्रोतों की अवस्थिति प्रस्तुत किये जा रहे संदेश की प्रकृति में काफी फर्क कर सकती है। उदाहरण के लिए, बहु-प्रकाश स्रोत किसी व्यक्ति के चेहरे पर झुर्रियों को ख़त्म कर सकते हैं और एक अधिक युवा रूप को प्रदान कर सकते हैं। इसके विपरीत, एक एकल प्रकाश स्रोत, जैसे दिन का तेज़ प्रकाश, किसी भी बनावट या दिलचस्प लक्षणों को उजागर करने का काम कर सकता है।
एक वस्तु या आकृति बनाते समय, एक कुशल कलाकार छायाचित्र के भीतर और जो बहार है, दोनों क्षेत्र की ओर ध्यान देता है। बाहरी क्षेत्र को नकारात्मक स्थान कहा जाता है और प्रस्तुतीकरण में यह उतना ही महत्वपूर्ण हो सकता है जितनी की आकृति. आकृति की पृष्ठभूमि में रखी गई वस्तु उचित रूप से रखी हुई दिखनी चाहिए जहां उसे देखा जा सकता है।
एक अध्ययन एक ड्राफ्ट ड्रॉइंग है जिसे एक योजनाबद्ध अंतिम तस्वीर के लिए तैयार किया जाता है। अध्ययन का उपयोग, पूरी हो चुकी तस्वीर के विशिष्ट भागों के रूप को निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है या अंतिम लक्ष्य को पूरा करने हेतु सबसे अच्छे दृष्टिकोण के साथ प्रयोग करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि एक अच्छी तरह से तैयार अध्ययन अपने आप में कला की एक कृति हो सकती है और एक अध्ययन को पूरा करने में कई घंटे की सतर्क क्रिया लग सकती है।
डिजिटल चित्रसंपादित करें
चित्र:Wiki.Picture by Drawing Machine 2.jpg
ड्रॉइंग मशीन 2 द्वारा उत्पन्न चित्र, एक गणितीय मॉडल से उत्पन्न छवि
मुख्य लेख : digital illustration और digital art
कंप्यूटर कला, कलाकार के सीधे प्रभाव में छवि उत्पन्न करने के लिए डिजिटल उपकरणों का प्रयोग है, आमतौर पर किसी इंगित उपकरण के माध्यम से जैसे एक टैबलेट या एकमाउस. इसे कंप्यूटर-जनित कला से अलग पहचाना जाता है, जिसे कलाकार द्वारा निर्मित गणितीय मॉडल के प्रयोग से कंप्यूटर द्वारा उत्पन्न किया जाता है।
कंप्यूटर कला, तस्वीरों के डिजिटल हेरफेर से भी इस मामले में भिन्न है, कि यह "शून्य से" एक मूल निर्माण है। इस तरह के कार्यों में फोटोग्राफी तत्व को शामिल किया जा सकता है, लेकिन वे उनके लिए प्राथमिक आधार या स्रोत नहीं हैं।
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हिन्दी रेखाचित्र का इतिहास
रेखाचित्र का अर्थ : ‘रेखाचित्र’ शब्द अंग्रेजी के 'स्कैच' शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। जैसे ‘स्कैच’ में रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति या वस्तु का चित्र प्रस्तुत किया जाता है, ठीक वैसे ही शब्द रेखाओं के माध्यम से किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके समग्र रूप में पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है। ये व्यक्तित्व प्रायः वे होते हैं जिनसे लेखक किसी न किसी रूप में प्रभावित रहा हो या जिनसे लेखक की घनिष्ठता अथवा समीपता हो।
आरंभिक युग
रेखाचित्र को स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने का श्रेय पद्म सिंह शर्मा कृत ‘पद्म पराग’ को दिया जा सकता है। ‘पद्म पराग’ में संस्मरणात्मक निबंधों और रेखाचित्रों का संकलन है। इन रेखाचित्रों में समकालीन महत्वपूर्ण लोगों को विषय बनाया गया है। पद्म सिंह शर्मा से प्रभावित होकर श्रीराम शर्मा, हरिशंकर शर्मा और बनारसीदास चतुर्वेदी आदि ने रेखाचित्र लिखने आरंभ किए। श्रीराम शर्मा के रेखाचित्रों का प्रथम संग्रह ‘बोलती प्रतिमा’ शीर्षक से सन् 1937 में प्रकाशित हुआ। इसकी विशेषता यह है कि इसमें समाज के निम्नवर्ग के पात्रों का सजीव चित्रण हुआ है।
बनारसीदास चतुर्वेदी के रेखाचित्रों की शैली सरस और व्यंग्यपूर्ण है। रेखाचित्र के स्वरूप के बारे में इन्होंने सैद्धांतिक विवेचन भी किया है। इनका कथन है कि, ‘‘जिस प्रकार एक अच्छा चित्र खींचने के लिए कैमरे का लैंस बढ़िया होना चाहिए और फिल्म भी काफी कोमल या सैंसिटिव, उसी प्रकार साफ चित्रण के लिए रेखाचित्रकार में विश्लेषणात्मक बुद्ध तथा भावुकतापूर्ण हृदय दोनों का सामंजस्य होना चाहिएऋ पर-दुःखकातरता, संवेदनशीलता, विवेक और संतुलन इन सब गुणों की आवश्यकता है।’’ निस्संदेह बनारसीदास चतुर्वेदी के लेखन में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हम देख सकते हैं। राष्ट्रीयता की भावना के साथ-साथ वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को इनके रेखाचित्रों में देखा जा सकता है। इनके रेखाचित्र ‘हमारे साथी’ और ‘प्रकृति के प्रागंण’ नामक ग्रंथों में संकलित हैं।
उत्कर्ष युग
रामवृक्ष बेनीपुरी निर्विवाद रूप से हिंदी के सर्वश्रेष्ठ रेखाचित्रकार माने जाते हैं। इनके रेखाचित्रों में हम सरल भाषा शैली में सिद्धहस्त कलाकारी को देख सकते हैं। परिमाण की दृष्टि से इन्होंने अनेक रेखाचित्रों की रचना की है। ‘माटी की मूरतें’ (सन् 1946) संग्रह से इन्हें विशेष ख्याति मिली। इस संग्रह में इन्होंने समाज के उपेक्षित पात्रों को गढ़कर नायक का दर्जा दे दिया। उदाहरणस्वरूप ‘रजिया’ नामक रेखाचित्र के माध्यम से निम्नवर्ग की एक बालिका को जीवंत कर दिया गया है। इस संग्रह के अन्य रेखाचित्रों में बलदेव सिंह, मंगर, बालगोबिन भगत, बुधिया, सरजू भैया प्रमुख हैं। इन रेखाचित्रों की श्रेष्ठता का अनुमान मैथिलीशरण गुप्त के इस कथन से लगाया जा सकता है, ‘‘लोग माटी की मूरतें बनाकर सोने के भाव बेचते हैं पर बेनीपुरी सोने की मूरतें बनाकर माटी के मोल बेच रहे हैं।’’ सन् 1950 में रामवृक्ष बेनीपुरी का दूसरा रेखाचित्रसंग्र्रह ‘गेहूँ और गुलाब’ प्रकाशित हुआ। इसमें इनके 25 रेखाचित्र संकलित हैं। कलेवर की दृष्टि से लेखक ने इन्हें अपने पुराने रेखाचित्रों की अपेक्षा छोटा रखा है। रामवृक्ष बेनीपुरी के रेखाचित्रों की भाषा भावना प्रधान है। कुछ आलोचक तो उनकी भाषा को गद्य काव्य की संज्ञा भी दे चुके हैं। बेनीपुरी के रेखाचित्रों के बारे में संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इन्हें जीवन में जो भी पात्र मिले इन्होंने अपनी कुशल लेखनी से उन्हें जीवंत कर दिया। विषय की विविधता और शैली की सरसता का इनके यहाँ अपूर्व संयोजन मिलता है।
महादेवी वर्मा के रेखाचित्रों ने विधा के रूप में संस्मरण और रेखाचित्र की सीमाओं का उल्लंघन किया। उनके लेखन को संस्मरणात्मक रेखाचित्रों की श्रेणी में रखा जा सकता है। ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘पथ के साथी’ और ‘शृंखला की कड़ियाँ’ इनके संग्रह हैं। ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘स्मृति की रेखाएँ’ में समाज के षोषित वर्ग और नारी के प्रति इनकी सहानुभूति प्रकट हुई है। ‘पथ के साथी’ में इन्होंने अपने साथी साहित्यकारों के चित्रों को लिपिबद्ध किया है।
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर को शैली की दृष्टि से रामवृक्ष बेनीपुरी के समान ही सम्मान प्राप्त है। इनके बहुविध विषयों में जीवन की प्रेरणा देने वाले रेखाचित्रों की भरमार है। ‘भूले हुए चेहरे’, ‘बाजे पायलिया के घुंघरू’, ‘ज़िन्दगी मुस्काई’, ‘दीप जले शंख बजे’, ‘क्षण बोले कण मुस्काए’, ‘महके आँगन चहके द्वार’ और ‘माटी हो गई सोना’ इनके रेखाचित्रों के संग्रह हैं।
प्रकाशचंद्र गुप्त ने इस विधा को स्थापित करने के लिए ‘रेखाचित्र’ नाम से ही संकलन प्रकाशित कराया। इनके रेखाचित्रों की विशेषता यह है कि इन्होंने अपने विषयों को मनुष्य की परिधि से बाहर ले जाते हुए पेड़-पौधों तथा पशु-पक्षियों तक को अपने रेखाचित्रों में स्थान दिया है।
विष्णु प्रभाकर के रेखाचित्र ‘जाने-अनजाने’, ‘कुछ शब्द कुछ रेखाएँ’ और ‘हँसते निर्झर दहकती भट्टी’ में संकलित हैं। इनके रेखाचित्रों में विशाल कैनवस पर सामाजिक सजगता के साथ मानवीय चित्र उकेरे गए हैं। इनके अन्य समकालीन रेखाचित्रकारों में देवेंद्र सत्यार्थी, डॉ. नगेन्द्र, विनयमोहन शर्मा, जगदीशचंद्र माथुर आदि का नाम लिया जा सकता है। समकालीन हिंदी साहित्य में रचनाकारों ने विधा के बंधनों को थोड़ा शिथिल किया है। आज हम परंपरागत मानदंडों पर कसकर कई विधाओं को नहीं देख सकते। रेखाचित्र विधा का भी रूप बदला है। उसको हम कहीं कहानी के भीतर तो कहीं संस्मरण अथवा आत्मकथा के भीतर अन्तर्भुक्त पाते हैं और कहीं स्वतंत्र विधा के रूप में भी देख सकते हैं। हिंदी रेखाचित्र ने अपनी सीमाओं का लगातार अतिक्रमण किया है। यह इस विधा के भविष्य के लिए शुभ संकेत है।
रेखाचित्र
रेखाचित्र कहानी से मिलता-जुलता साहित्य रूप है। यह नाम अंग्रेज़ी के 'स्केच' शब्द की नाप-तोल पर गढ़ा गया है। स्केच चित्रकला का अंग है। इसमें चित्रकार कुछ इनी-गिनी रेखाओं द्वारा किसी वस्तु-व्यक्ति या दृश्य को अंकित कर देता है-स्केच रेखाओं की बहुलता और रंगों की विविधता में अंकित कोई चित्र नहीं है, न वह एक फ़ोटो ही है, जिसमें नन्हीं से नन्हीं और साधारण से साधारण वस्तु भी खिंच आती है।
साहित्य में रेखाचित्र
साहित्य में जिसे रेखाचित्र कहते हैं, उसमें भी कम से कम शब्दों में कलात्मक ढंग से किसी वस्तु, व्यक्ति या दृश्य का अंकन किया जाता है। इसमें साधन शब्द है, रेखाएँ नहीं। इसीलिए इसे शब्दचित्र भी कहते हैं। कहीं-कहीं इसका अंग्रेज़ी नाम 'स्केच' भी व्यवहृत होता है।
रेखाचित्र का स्वरूप
रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाव का कम से कम शब्दों में मर्म-स्पर्शी, भावपूर्ण एवं सजीव अंकन है। कहानी से इसका बहुत अधिक साम्य है- दोनों में क्षण, घटना या भाव विशेष पर ध्यान रहता है, दोनों की रूपरेखा संक्षिप्त रहती है और दोनों में कथाकार के नैरेशन और पात्रों के संलाप का प्रसंगानुसार उपयोग किया जाता है। इन विधाओं के साम्य के कारण अनेक कहानियों को भी रेखाचित्र कह दिया जाता है और इसके ठीक विपरीत अनेक रेखाचित्रों को कहानी की संज्ञा प्राप्त हो जाती है। कहीं-कहीं लगता है, कहानी और रेखाचित्र के बीच विभाजन रेखा खींचना सरल नहीं है। उदाहरण के लिए
रायकृष्णदास लिखित 'अन्त:पुर का आरम्भ' कहानी है, पर वह आदिम मनुष्य की अन्त:वृत्ति पर आधारित 'रेखाचित्र' भी है। रामवृक्ष बेनीपुरी की पुस्तक 'माटी की मूरतें' में संकलित 'रज़िया', 'बलदेव सिंह', 'देव' आदि रेखाचित्र कहानियाँ भी हैं। श्रीमती महादेवी वर्मा लिखित 'रामा', 'घीसा' आदि रेखाचित्र भी कहानी कह जाते हैं। कहानी और रेखाचित्र में साम्य है अवश्य, पर जैसा कि 'शिप्ले' के 'विश्व साहित्य कोश' में कहा गया है, रेखाचित्र में कहानी की गहराई का अभाव रहता है। दूसरी बात यह भी है कि कहानी में किसी न किसी मात्रा में कथात्मकता अपेक्षित रहती है, पर रेखाचित्र में नहीं।