हिंदी के अन्यतम ऐतिहासिक उपन्यासकार स्व. वृंदावनलाल वर्मा को उनकी जन्म जयंती पर शतशः नमन !!!

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Vijay K. Malhotra

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Jan 8, 2015, 10:53:23 PM1/8/15
to Hindi Vimarsh, Hindishikshakbandu googlegroup, Hind Pocket Books, Ashok Chakradhar, mkv1@york.ac.uk Verma, SAHITYA AAMRIT, Aditya Chaudhary, American Institute of Indian Studies, Prempal Sharma, Sanjay Bhardwaj, Bumroong Kham-Ek, Rishabha Deo Sharma, Ranjana Varshney (Faculty Aravali), geeta sharma, rosaiah konjeti, geeta joshi, ajit gupta, Lalit Kumar, Shrish Jaswal, Priyanka Jain, Shankar, Jishnu, kailash budhwar, Kalim Mekrani, Om Thanvi, Rama Singh, Sanskriti Uk, SUDHA USA, Katha UK
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भारत डिस्कवरी प्रस्तुति

जन्म: 9 जनवरी, 1889 - मृत्यु: 23 फ़रवरी, 1969) ऐतिहासिक उपन्यासकार एवं निबंधकार थे। इनका जन्म मऊरानीपुर, झाँसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनके पिता का नाम अयोध्या प्रसाद था। वृंदावनलाल वर्मा जी के विद्या-गुरु स्वर्गीय पण्डित विद्याधर दीक्षित थे।

जीवन परिचय

वृंदावनलाल वर्मा की पौराणिक तथा ऐतिहासिक कथाओं के प्रति बचपन से ही रुचि थी। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा भिन्न-भिन्न स्थानों पर हुई। बी.ए. करने के पश्चात इन्होंने क़ानून की परीक्षा पास की और झाँसी में वकालत करने लगे। इनमें लेखन की प्रवृत्ति आरम्भ से ही रही है। जब नवीं श्रेणी में थे, तभी इन्होंने तीन छोटे-छोटे नाटक लिखकर इण्डियन प्रेस, प्रयाग को भेजे और पुरस्कार स्वरूप 50 रुपये प्राप्त किये। 'महात्मा बुद्ध का जीवन-चरित' नामक मौलिक ग्रन्थ तथा शेक्सपीयर के 'टेम्पेस्ट' का अनुवाद भी इन्होंने प्रस्तुत किया था।

साहित्यिक जीवन

1909 ई. में वृंदावनलाल वर्मा जी का 'सेनापति ऊदल' नामक नाटक छपा, जिसे सरकार ने जब्त कर लिया। 1920 ई. तक यह छोटी-छोटी कहानियाँ लिखते रहे। इन्होंने 1921 से निबन्ध लिखना प्रारम्भ किया। स्कॉट के उपन्यासों का इन्होंने स्वेच्छापूर्वक अध्ययन किया और उससे ये प्रभावित हुए। ऐतिहासिक उपन्यास लिखने की प्रेरणा इन्हें स्कॉट से ही मिली। देशी-विदेशी अन्य उपन्यास-साहित्य का भी इन्होंने यथेष्ठ अध्ययन किया।

वृंदावनलाल वर्मा जी ने सन् 1927 ई. में 'गढ़ कुण्डार' दो महीने में लिखा। उसी वर्ष 'लगन', 'संगम', 'प्रत्यागत', कुण्डली चक्र', 'प्रेम की भेंट' तथा 'हृदय की हिलोर' भी लिखा। 1930 ई. में 'विराट की पद्मिनी' लिखने के पश्चात कई वर्षों तक इनका लेखन स्थगित रहा। इन्होंने 1939 ई. में धीरे-धीरे व्यंग्य तथा 1942-44 ई. में 'कभी न कभी', 'मुसाहिब जृ' उपन्यास लिखा। 1946 ई. में इनका प्रसिद्ध उपन्यास 'झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई' प्रकाशित हुआ। तब से इनकी कलम अवाध रूप से चलती रही। 'झाँसी की रानी' के बाद इन्होंने 'कचनार', 'मृगनयनी', 'टूटे काँटें', 'अहिल्याबाई', 'भुवन विक्रम', 'अचल मेरा कोई' आदि उपन्यासों और 'हंसमयूर', 'पूर्व की ओर', 'ललित विक्रम', 'राखी की लाज' आदि नाटकों का प्रणयन किया। 'दबे पाँव', 'शरणागत', 'कलाकार दण्ड' आदि कहानीसंग्रह भी इस बीच प्रकाशित हो चुके हैं।

पुरस्कार व उपाधि

वृंदावनलाल वर्मा जी भारत सरकार, राज्य सरकार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश राज्य के साहित्य पुरस्कार तथा डालमिया साहित्यकार संसद, हिन्दुस्तानी अकादमी, प्रयाग (उत्तर प्रदेश) और नागरी प्रचारिणी सभा, काशी के सर्वोत्तम पुरस्कारों से सम्मानित किये गये हैं। अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए वृंदावनलाल वर्मा जी आगरा विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किये गये। इनकी अनेक रचनाओं को केन्द्रीय एवं प्रान्तीय राज्यों ने पुरस्कृत किया है।

कृतियाँ

वृंदावनलाल वर्मा जी की इतिहास, कला, पुरातत्त्व, मनोविज्ञान, साहित्य, चित्रकला एवं मूर्तिकला में विशेष रुचि है। इनकी प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार है-

नाटक

  • 'धीरे-धीरे'
  • 'राखी की लाज'
  • 'सगुन'
  • 'जहाँदारशाह'
  • 'फूलों की बोली'
  • 'बाँस की फाँस'
  • 'काश्मीर का काँटा'
  • 'हंसमयूर'
  • 'रानी लक्ष्मीबाई'
  • 'बीरबल'
  • 'खिलौने की खोज'
  • 'पूर्व की ओर'
  • 'कनेर'
  • 'पीले हाथ'
  • 'नीलकण्ठ'
  • 'केवट'
  • 'ललित विक्रम'
  • 'निस्तार'
  • 'मंगलसूत्र'
  • 'लो भाई पंचों लो'
  • 'देखादेखी'

कहानी संग्रह

  • 'दबे पाँब'
  • 'मेढ़क का ब्याह'
  • 'अम्बपुर के अमर वीर'
  • 'ऐतिहासिक कहानियाँ'
  • 'अँगूठी का दान'
  • 'शरणागत'
  • 'कलाकार का दण्ड'
  • 'तोषी'

निबन्ध

  • 'हृदय की हिलोर'

उपन्यास

  • 'गढ़ कुण्डार' (1930 ई.)
  • 'लगन', (1928 ई.)
  • 'संगम' (1928 ई.)
  • 'प्रत्यागत' (1927 ई.)
  • 'कुण्डलीचक्र' (1932 ई.)
  • 'प्रेम की भेंट' (1928 ई.)
  • 'विराट की पद्मिनी' (1936 ई)
  • 'मुसाहिब जू' (1946 ई.)
  • 'कभी न कभी' (1945 ई.)
  • 'झाँसी की रानी' (1946 ई.)
  • 'कचनार' (1947 ई.)
  • 'अचल मेरा कोई' (1948 ई.)
  • 'माधवजी सिन्धिया' (1957 ई.)
  • 'टूटे काँटें' (1945 ई.)
  • 'मृगनयनी' (1950 ई.)
  • 'सोना' (1952 ई.)
  • 'अमरवेल' (1953 ई.)
  • 'भुवन विक्रम' (1957 ई.)
  • 'अहिल्याबाई'

मुख्य उपन्यास

कचनार

'कचनार' उपन्यास इतिहास और परम्परा पर आधारित है। इस उपन्यास की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक है, घटनाएँ भी सत्य हैं। किन्तु समय और स्थान में ऐतिहासिकता का आग्रह नहीं है। इसमें एक साधारण नारी कचनार के सतत संघर्षशील तथा संयमित जीवन का चित्रण है। साथ ही दुर्व्यवसनग्रस्त गुसाइयों की हीन दशा का भी चित्र प्रस्तुत किया गया है। कथानक का केन्द्र धमोनी है, जो एक समय राजगोंडों की रियासत थी। कचनार की कहानी के साथ ही राजगोंडों की कहानी कहने का भी लेखक का उद्देश्य है।

मृगनयनी

'मृगनयनी' लेखक की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इसमें 15वीं शती के अन्त के ग्वालियर राज्य के मानसिंह तोमर तथा उनकी रानी मृगनयनी की कथा है।

अन्य उपकथाएँ

इनकी अन्य उपकथाएँ भी साथ में हैं, जैसे लाखी और अटल की कथा। इसमें कथानक, चरित्र-चित्रण, देश-काल एवं वातावरण का चित्रण सब कुछ एक सजग कलात्मकता से सम्पन्न हुआ है। साथ ही 15वीं शती की राजनीतिक परिस्थिति का चित्रण भी कुशलता से किया गया है। 'टूटे काँटें' में एक साधारण जाट मोहन लाल तथा उसकी पारिवारिक स्थिति के चित्रण के साथ प्रसिद्ध नर्तकी नूरबाई के उत्थान-पतनमय जीवन का भी चित्रण किया गया है। मोहनलाल तथा नूरबाई के जीवन के परिवार्श्व में ही 18वीं शती के राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन का दिग्दर्शन इन उपन्यासों में कराया गया है।

ऐतिहासिक उपन्यास

'अहिल्याबाई' मराठा जीवन से सम्बन्धित ऐतिहासिक उपन्यास है। जिसमें एक आदर्श हिन्दू नारी अहिल्या बाई की जीवन कथा का समावेश है। 'भुवन विक्रम' में उत्तर वैदिककाल की कथा वस्तु को कल्पना और ऐतिहासिक अन्वेषण के योग से पर्याप्त जीवन रूप में उपस्थित किया गया है। कथा की केन्द्र भूमि अयोध्या है। अयोध्या के राजा रोमक, रानी ममता तथा राजकुमार भुवन इसके मुख्य पात्र हैं। इसमें वैदिक संयम, अनुशासन, आचार-विचार, सभ्यता आदि का यथेष्ट संयोजन है। 'माधवजी सिन्धिया' जटिल घटनायुक्त ऐतिहासिक उपन्यास है। जिसमें 18वीं शती के पेशवा पटेल माधवजी सिन्धिया का महान जीवन चित्रित है। इस उपन्यास के द्वारा 10वीं शती के भारत का सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन प्रत्यक्ष हो जाता है। 'गढ़ कुण्डार', 'झाँसी की रानी', 'विराट की पद्मिनी' के सम्बन्ध में विवरण यथास्थान द्रष्टव्य हैं।

सामाजिक उपन्यास

'लगन', 'संगम', प्रत्यागत', 'प्रेम की भेंट', 'कुण्डलीचक्र', 'कभी न कभी', 'अचल मेरा कोई', 'सोना', तथा 'अमरेवेल' हैं। 'लगन' में प्रेमकथा के साथ बुन्देलखण्ड के भरे-पूरे घर के दो किसानों की आनबान और मानव-संघर्ष का चित्रण है। 'संगम' और 'प्रत्यागत' का सम्बन्ध ऊँच-नीच की रूढ़िगत भावना से है। इन उपन्यासों में तत्कालीन जाति-पाति की कठोरता, रूढ़िग्रस्तता, धर्मान्धता आदि का तथा उससे उत्पन्न अराजकता और पतन का सजीव चित्रण है। 'प्रेम की भेंट' प्रेम के त्रिकोण की एक छोटी-सी कहानी है। 'कुण्डलीचक्र' की पृष्ठभूमि में किसानों और ज़मींदारों का संघर्ष दिखाया गया है। 'कभी न कभी' मज़दूरों से सम्बन्धित है। 'अचल मेरा कोई' मे उच्च मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग का चित्रण है। 'सोना' उपन्यास एक लोककथा के आधार पर लिखा गया है। 'अमरवेल' में सहकारिता तथा श्रमदान के महत्व  को दिखाया गया है।

ऐतिहासिक नाटक

'झाँसी की रानी', 'हंसमयूर', 'पूर्व की ओर', 'बीरबल', 'ललित विक्रम', और 'जहाँदारशाह' हैं। 'झाँसी की रानी' में इसी नाम की औपन्यासिक कृति को नाटक रूप में प्रस्तुत किया गया है। 'फूलों की बोली' में स्वर्ण रसायन द्वारा प्राप्त करने वालों की मूर्खता पर व्यंग्य किया गया है। 'हंसमयूर' का आधार 'प्रभाकर चरित' नामक जैन ग्रन्थ है। 'पूर्व की ओर' पूर्वीय द्वीपों में भारतीय संस्कृति के प्रचार की कथा का नाटकीय रूप है। 'बीरबल' में अकबर के दरबारी बीरबल के उन प्रयत्नों का चित्रण किया गया है, जिन्होंने अकबर को महान बनाने में योग दिया। 'ललित विक्रम' की कथावस्तु 'भुवन विक्रम' उपन्यास से ही गृहीत है। 'जहाँदारशाह' में जहाँदारशाह के संघर्षमय राजनीतिक जीवन का चित्रण किया गया है।

सामाजिक नाटक

'धीरे-धीरे' कांग्रेस सरकार के सन् 1937 ई. के मंत्रिमण्डल की स्थिति से सम्बन्ध रखता है। 'राखी की लाज' में राखी की श्रेष्ठ प्रथा को हिन्दू समाज में बनाये रखने की भावना पर आग्रह व्यक्त किया गया है। 'बाँस की फाँस' कॉलेज के प्रेमसम्बन्धी हल्की मनोवृत्ति से सम्बद्ध है। 'पीले हाथ' में ऐसे सुधारकों का चित्र है, जो बारात की पुरानी प्रथाओं के दास हैं। 'सगुन' में चोरबाज़ारी का पर्दाफ़ाश किया गया है। 'नीलकण्ठ' में वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोणों के समन्वय पर बल दिया गया है। 'केवट' राजनीतिक दलबन्दी से सम्बद्ध है। 'मंगलसूत्र' में एक शिक्षित लड़की के साथ एक अयोग्य लड़के के विवाह की कहानी है। 'खिलौने की खोज' में मनोबल द्वारा अनेक समस्याओं के समाधान का सुझाव है। 'निस्तार' का सम्बन्घ हरिजन सुधार से है। 'देखादेखी' में दूसरों की देखा-देखी में सामाजिक पर्वां पर सीमा से अधिक ख़र्चे करने की वृत्ति पर व्यंग्य है।

कहानियाँ

'शरणागत', 'कलाकार का दण्ड' आदि 7 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें लेखक की विविध समय में रचित विभिन्न प्रकार की कहानियाँ संगृहीत हैं।

विचारधारा

वृंदावनलाल वर्मा की विचारधारा उनके उपन्यासों से स्पष्ट ज्ञात हो जाती है। इनकी दृष्टि सर्वदा राष्ट्र के पुन: निर्माण की ओर रही है। भारत के पतन के मूल कारण रूढ़ि-जर्जर समाज को इन्होंने अपनी सभी प्रकार की रचनाओं में प्रयोगशाला बनाया है तथा सामाजिक कुरीतियों की ओर इंगित किया है। ये श्रम के महत्व  के प्रबल पोषक हैं। वर्माजी मानव जीवन के लिए प्रेम को एक आवश्यक तत्त्व मानते हैं। यही नहीं, उनके विचार से प्रेम एक साधना है, जो साधक को सामान्य भूमि से उठाकर उच्चता की ओर ले जाती है। जीवन के प्रति इनका दृष्टिकोण प्राय: वही है, जिसका प्रतिपादन प्राचीन भारतीय संस्कृति करती है। इनके विचार से मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, फल का नहीं।

भाषा-शैली

वृंदावनलाल वर्मा जी की भाषा अधिकतर पात्रानुकूल होती है। इनकी भाषा में बुन्देलखण्डी का पुट रहता है। जो उपन्यासों की क्षेत्रीयता का परिचायक है। वर्णन जहाँ भावप्रधान होता है, वहाँ भी इनकी शैली अधिक अलंकारमय न होकर मुख्यतया उपयुक्त उपमा-विधान से संयुक्त दिखाई देती है। मुख्यता वृंदावनलाल वर्मा जी की शैली वर्णनात्मक है, जिसमें रोचकता तथा धाराप्रवाहिता, दोनों गुण वर्तमान हैं। ये पात्रों के चरित्र विश्लेषण में तटस्थ रहते हैं। पात्र अपने चरित्र का परिचय घटनाओं, परिस्थितियों एवं कथोपकथन से स्वयं दे देते हैं। इनके उपन्यासों की लोकप्रियता का यह एक प्रमुख कारण है।

कृतित्त्व

ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में वृंदावनलाल वर्मा का कृतित्त्व विशेष महत्व रखता है। इनमें पूर्व हिन्दी साहित्य में ऐसा कोई उपन्यासकार नहीं हुआ, जिसने इतनी व्यापक भावभूमि पर इतिहास को प्रतिष्ठित करके उसके पीछे निहित कथा-तत्त्व को शक्तिसंलग्नता और अंतदृष्टि के साथ सूत्रबद्ध किया हो। वर्माजी के अनेक उपन्यासों में वास्तविक इतिहास रस की उपलब्धि होती है। इस पुष्टि से ये हिन्दी के अन्यतम उपन्यासकार हैं।

सहायक ग्रन्थ

  • वृंदावनलाल-उपन्यास और कला
  • शिवकुमार मिश्र
  • वृंदावनलाल वर्मा-व्यक्तित्व और कृतित्व
  • पद्मसिंह शर्मा 'कमलेश'
  • वृंदावनलाल वर्मा-साहित्य और समीक्षा
  • सियारामशरण प्रसाद

मृत्यु

ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में विख्यात वृंदावनलाल वर्मा जी का 23 फ़रवरी, 1969 को निधन हो गया।

 



विजय कुमार मल्होत्रा
पूर्व निदेशक (राजभाषा),
रेल मंत्रालय,भारत सरकार

Vijay K Malhotra
Former Director (OL),
Ministry of Railways,
Govt. of India
Mobile:91-9910029919
     


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