A Poem in Hindi

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Rahul Sharma

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Jun 29, 2014, 2:08:28 AM6/29/14
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आरज़ू

जब तुम थे तो कुछ ग़म ना था
हम थे एक बेख़बर परिंदे के तरह
कभी इस कदर तन्हा होके याद करेंगे तुम्हे
सोचा ना था
ज़िंदगी तुम्हारे बिना भी जियेंगे सोचा ना था
आज आलम ये है की तुम्हारा नाम तक याद नही रहता
हम कभी तुम्हारे थे इसका इल्म तक नही रहता
लोंगो के सामने अदाकारी करते करते हक़ीकत ही बन गयी है ये
की ना तुम हो ना तुम्हारी यादें है बस एक धुंधला सा
कोहरा आ जाता है आखों के सामने कभी कभी
और कभी कभी मोह्बब्त के गानो पे आँखों के कोने मैं
कुछ हल्का सा पानी आ जाता है
अक्सर तो सबसे छुपा लेते हैं पैर कभी कभी जैसे
ये दिल बैठ जाता है, तब इससे समझा नही पाते
कुछ इतना बेज़ार हो जाता है की कुछ भी आरज़ू नही करता
एक वक़्त था दिल कीई बेवक़्त आरज़ू से परेशन थे हम
और एक आज का दौर है आरज़ू की कमी से हैरान है हम.
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