३७०८. है दोस्त मेरा एक जो पर्दानशीन है—६-१-२०१२
है दोस्त मेरा एक जो पर्दानशीन है
रहता है इस गुरूर में कि वो हसीन है
उसपे नज़्रर जो पड़ गई इक बार भूल से
यूँ सोचने लगा कि रुख उसका ज़हीन है
समझे है ज्यों सब लोग उससे ही मुखातिब हैं
अपने नज़रिये को बहुत माने महीन है
जोड़े है मुझसे वास्ता बिन बात ही हर दम
उसका यही अंदाज़ है जो बेहतरीन है
जाने दिलाऊँ किस तरह उसको ख़लिश यकीं
उससे बहुत ही मुख्तलिफ़ मेरी ज़मीन है.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
२७ दिसंबर २०११