३७६५. एक अरसे से नहीं मुझको बुलाया उसने— १२-२-२०१२
एक अरसे से नहीं मुझको बुलाया उसने
कोई पैग़ाम नहीं मुझको भिजाया उसने
जाने क्या बात है वो मुझसे ख़फ़ा लगता है
कहीं मुझको तो नहीं दिल से भुलाया उसने
यूँ तो परहेज़ नहीं खुद ही चला जाऊँ मैं
न हो दरबान को ही उलटा सिखाया उसने
उसके अंदाज़ मुझे बदले हुए लगते हैं
शायद है ग़ैर को पहलू में बिठाया उसने
उसे इलज़ाम भला किसलिए दीजे ऐ ख़लिश
तुझे मालिक तो नहीं अपना बनाया उसने.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
११ फ़रवरी २०१२