३७५१. एक दिन चोला मेरा यूँ ही धरा रह जाएगा— ५-२-२०१२
एक दिन चोला मेरा यूँ ही धरा रह जाएगा
नाम मेरा वक्त के सैलाब में बह जाएगा
और पत्थर मार लो दो चार मेरे दोस्तो
साँस बाकी है अभी कुछ दर्द दिल सह जाएगा
इस तरह देखो न रस्ते में पड़ी इस लाश को
ये महल जो है तुम्हारा एक दिन ढह जाएगा
न मेरा न ही तुम्हारा बच रहेगा कुछ वज़ूद
एक पत्थर का निशाँ सब दास्ताँ कह जाएगा
खून से सींचा ख़लिश, ये आँसुओं में है बुझा
आह का है तीर, काफ़ी दूर तक यह जाएगा.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
२९ जनवरी २०१२
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आह का है तीर, काफ़ी दूर तक यह जाएगा.