३७६०. ज़िंदगी की डगर मैं अकेला चला— ८-२-२०१२

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Dr.M.C. Gupta

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Feb 8, 2012, 4:01:12 AM2/8/12
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३७६०. ज़िंदगी की डगर मैं अकेला चला ८-२-२०१२


 

ज़िंदगी की डगर मैं अकेला चला

एक तनहाई में है सफ़र ये कटा

 

यूँ ज़माने में हैं लोग लाखों मिले

वक़्त मेरे लिए न किसीको रहा

 

मुश्किलों की नहीं राह में है कमी

है सभीका कँटीला बहुत रास्ता

 

कोई पौंछे मेरे अश्क तो किसलिए

कुछ नहीं है किसीके लिए भी किया

 

बो चुके जो वही काटना है ख़लिश

इस नियम के तहत है सभीने जिया.

 

महेश चन्द्र गुप्तख़लिश

फ़रवरी २०१२

 



--
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44


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