३७९४. नाराज़ हैं हम आपसे था आपका भरम-- २-३-२०१२
नाराज़ हैं हम आपसे था आपका भरम
ये तो हमारे नाज़-ओ-अंदाज़ थे सनम
हम तो शरारत कर रहे थे, थे नहीं ख़फ़ा
हमको मनाएं आप बस ये चाहते थे हम
माना कि दिल को आपके तकलीफ़ पहुँची है
जो चाहे सज़ा दीजिए हो करके बेरहम
वाज़िब है आपका बहुत होना ख़फ़ा हुज़ूर
अब माफ़ भी कर दीजिए कुछ कीजिए करम
वो प्यार क्या जिसमें न हों शिकवे गिले ख़लिश
फिर से गले हम मिल लिए, झगड़े हुए खतम.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
२ मार्च २०१२