३८५६. मैं हूँ मस्त पवन जाऊँ जिस ओर मेरा मन करता रे—२-४-२०१२

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Dr.M.C. Gupta

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Apr 2, 2012, 12:06:50 AM4/2/12
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३८५६. मैं हूँ मस्त पवन जाऊँ जिस ओर मेरा मन करता रे२-४-२०१२


 

मैं हूँ मस्त पवन जाऊँ जिस ओर मेरा मन करता रे

मैं जब चाहे मंद बहूँ, चाहे जब वेग उमड़ता रे

 

बगिया में हौले-हौले मैं ही आँचल को लहराऊँ

मैं ही बनके तूफ़ाँ जग में रूप प्रलय का धरता रे

 

मेरे कारण ही करते हैं जल-कण अम्बर में विचरण

घेर उन्हें जब लाऊँ मैं तब ही तो मेघ गरजता रे

 

मेरे बिन ये धरती कैसे अपनी प्यास बुझाएगी

झंझावातों को मेरे कारण ही तो बल मिलता रे

 

तेज बहूँ या मंद ख़लिश यह मेरी मर्ज़ी पर निर्भर

देख मेरी गति मानव पल में रोता पल में हँसता रे.

 

महेश चन्द्र गुप्तख़लिश

१ अप्रेल २०१२



--
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44


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