३८०४. जो है नहीं मौज़ूद उसे खोजता हूँ मैं—९-३-२०१२

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Dr.M.C. Gupta

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Mar 9, 2012, 9:02:01 AM3/9/12
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३८०४. जो है नहीं मौज़ूद उसे खोजता हूँ मैं९-३-२०१२

 

 

जो है नहीं मौज़ूद उसे खोजता हूँ मैं

मानो तराजुओं में हवा तोलता हूँ मैं

 

दिल में भरा है ग़म मगर दिखलाऊँ किसलिए

हँस कर लिबास एक झूठा ओढ़ता हूँ मैं

 

मुझसे किसीने कह दिया तू बेवकूफ़ है

तबसे बढ़ाऊँ अक्ल कैसे सोचता हूँ मैं

 

शीशे में शक्ल देख लो ये कह गई कोई

इक खूबसूरत आइना अब खोजता हूँ मैं

 

वो यूँ गई कि न कोई निशान दे गई

मायूस हो कर बाल अपने नोचता हूँ मैं

 

तुम जानते हो तो बता दो यार का पता

हर शख्स को दीवाना हुआ टोकता हूँ मैं

 

दिल तो करे है बाजुओं में घेर लूँ उसको

बेताब दिल को मुश्किलों से रोकता हूँ मैं

 

कोई बताए अब ख़लिश वाज़िब है क्या मुझे

दिल में ही दिल की बात खड़ा सोचता हूँ मैं.

 

महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’

८ मार्च २०१२



--
(Ex)Prof. M C Gupta
MD (Medicine), MPH, LL.M.,
Advocate & Medico-legal Consultant
www.writing.com/authors/mcgupta44


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