३८६३. मैं तो दिल का साफ़ किसीको चिउँटी काटूँ क्या---१०-४-२०१२
मैं तो दिल का साफ़ किसीको चिउँटी काटूँ क्या
मेरे पास नहीं कुछ भी औरों को बाँटूँ क्या
मैं तो अपनी गलती को ही रोक नहीं पाता
क्या अधिकार मुझे है मैं औरों को डाँटूँ क्या
दूजे दिल की बात जगत में कौन समझ पाया
अच्छा कौन बुरा है मैं मित्रों में छाँटूँ क्या
मो सम कौन कुटिल खल कामी कह गए संत सभी
दुर्गुण मुझमें भरे हुए जो उनसे नाटूँ क्या
उम्र चुकी है ख़लिश फ़कत बोनस का जीना है
मान भला, अपमान बुरा क्या, इनको चाटूँ क्या.
महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’
४ अप्रेल २०१२