१५७१. ताबीर जिस की कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ – ७-१-२०१२

12 views
Skip to first unread message

Dr.M.C. Gupta

unread,
Jan 7, 2012, 1:30:05 AM1/7/12
to hindi...@googlegroups.com, Hindienglishpoetry

१५७१. ताबीर जिस की कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ --२०१२



ताबीर जिसकी कुछ नहीं, बेकार का वो ख़्वाब हूँ

कोई जिसे समझा नहीं मैं वो अजब किताब हूँ

 

न रंग है न रूप है, मैं फूल हूँ खिजाओं का

मीज़ान जिसका है सिफ़र वो ना-असर हिसाब हूँ

 

जो आँसुओं को सोख कर भीतर ही भीतर रहे नम

बाहर से दिखे मखमली वो रेशमी हिजाब हूँ

 

हस्ती मेरी किस काम की जीवन ही मेरा घुट गया

जो उम्र-कैद पा चुकी, बोतल की वो शराब हूँ

 

लिखता तो हूँ गज़ल ख़लिश, न शायरों में नाम है

जिस की रियासत न कोई वो नाम का नवाब हूँ.

 

ताबीर = स्वप्नफल

खिजा = पतझड़

मीज़ान = जोड़, कुल जमा

 

महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

२४ मई २००८

Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages