[मन पाए विश्राम जहाँ] जागा कोई, कौन सो गया

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Anita

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Jan 6, 2012, 4:08:57 AM1/6/12
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जागा कोई, कौन सो गया

ढूँढ रहा जो तृप्ति जग में
प्यास और भी तीव्र बढ़े, 
सूना-सूना सा जीवन वन
जब तक उससे नयन न लड़े !

जब तक कुछ भीतर न पाया
बाहर का सब कुछ फीका है,
मौन उतर जाता जब भीतर
जग भी तब लगता नीका है !

वाणी खो गयी मौन प्रकटता
शब्द निशब्द में ले जाते हैं,
जग भी यह सीढ़ी बन जाता
उस असीम तक हम जाते हैं !

जो कहना था कह न पाया
कह-कह कर मन मौन हो गया
भीतर गूंजी धुन वंशी की
जागा कोई, कौन सो गया !

भीतर बाहर जो मौन है
वह मन लीन हुआ है धुन में,
डूब गया जो उस अनंत में
जागा है बस उस गुन-गुन में !  


--
Anita द्वारा मन पाए विश्राम जहाँ के लिए 1/06/2012 02:38:00 PM को पोस्ट किया गया
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