मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखाना ...

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Afaque Siddiqui

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Nov 6, 2009, 3:27:51 PM11/6/09
to hindibhasha
मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखाना ...

मेरा सवाल उन लोगो से हे जो देवबन्द उलेमाओ द्वारा दिये गये फतवे (निदेश)
की मुखालेफत कर रहे हे, खासकर उन लोगों से जो देश व किसी भी समाज मे होने
वाली गतीविधि को लेकर बवाल खडा करते है?

दिया गया फतवा केवल उस धर्म विशेष के अनुयायियो के लिए हे न कि सब के
लिये फिर ये बवाल क्यो?

क़्या इस लिये हमारा देश एक Democratic देश हे, क्या एक देश के प्रति
समर्पण कि भावना केवल एक गीत को गाकर ही बताई जा सकती है क्या अब इस देश
मे संविधान की यही हैसियत यही रह गयी है, जबकि उच्चतम न्ययालय ने भी कहा
हे कि वन्दे मातरम गाना आवश्यक नही है.

क़्या हम अपनी आज़ादी को इस तरह खत्म कर देंगे?

क्या कोई भी मज़हब या देश का कानून इसकी इज़ाज़त देता है.

मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखना,
हिन्दी है हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा |


एम. ए. सिद्दिक़ी.

Kuldip Gupta

unread,
Nov 6, 2009, 9:58:34 PM11/6/09
to nikhil hindi
But why no Muslims raise their voice against such Fatwas by Ulemas.Historically muslims had no reservations against Bande Matram. In the first freedom struggle that ensued  Post Bengal Division Bande Matram was sung by all rebellions/freedom fighters irrespective of their faith. To term Bande Matram as any other song is Negating its historical importance.Bande Matram is not just a song,It is the National Song of India and was icon of our freedom struggle. To trivialize National Flag may be called a piece of Cloth etc.,
Mr Siddiqui have you even bothered to read about Bande Matram and its historical significance.But for Nehru, Bande Matram would had been selected as National Anthem. It has the same importance as Jan Gan Man as per our constitution. To call it a mere song is blasphemy.
NOT THE MAJAHAB BUT THESE ULEMAS THE MAJAHAB HEAD MEN ARE TEACHING APAS ME BAIR RAKHANA
Kuldip Gupta 
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> Date: Sat, 7 Nov 2009 01:57:51 +0530
> Subject: [Hindi Bhasha] मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखाना ...
> From: afaque....@gmail.com
> To: hindi...@googlegroups.com
>
> मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखाना ...

>
> मेरा सवाल उन लोगो से हे जो देवबन्द उलेमाओ द्वारा दिये गये फतवे (निदेश)
> की मुखालेफत कर रहे हे, खासकर उन लोगों से जो देश व किसी भी समाज मे होने
> वाली गतीविधि को लेकर बवाल खडा करते है?
>
> दिया गया फतवा केवल उस धर्म विशेष के अनुयायियो के लिए हे न कि सब के
> लिये फिर ये बवाल क्यो?
>
> क़्या इस लिये हमारा देश एक Democratic देश हे, क्या एक देश के प्रति

> समर्पण कि भावना केवल एक गीत को गाकर ही बताई जा सकती है क्या अब इस देश
> मे संविधान की यही हैसियत यही रह गयी है, जबकि उच्चतम न्ययालय ने भी कहा
> हे कि वन्दे मातरम गाना आवश्यक नही है.
>
> क़्या हम अपनी आज़ादी को इस तरह खत्म कर देंगे?
>
> क्या कोई भी मज़हब या देश का कानून इसकी इज़ाज़त देता है.
>
> मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखना,

> हिन्दी है हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा |
>
>
> एम. ए. सिद्दिक़ी.
>
>

विजयराज चौहान

unread,
Nov 7, 2009, 1:35:49 AM11/7/09
to hindi...@googlegroups.com
Bahut achchha bahi ji !

2009/11/7 Afaque Siddiqui <afaque....@gmail.com>

Dinesh R Saroj

unread,
Nov 6, 2009, 9:05:00 PM11/6/09
to hindi...@googlegroups.com
आदरणीय एम्. ए. सिद्दीकी जी,

जब आप यह गीत गा सकते हैं..

"मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखना,
हिन्दी है हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा |"

तो "वन्दे मातरम" से इतना गुरेज क्यों....
मैंने इससे पहले भी इसी तरह के किसी पोस्ट में कहा था की, "वन्दे मातरम" कहें या "मादरे वतन" कहें दोनों का आशय एक ही है....
तो फिर अपने वतन परस्ती की भावना दर्शाने के के भाव को हम मजहब और भाषा के झरोखों से क्यों देखते हैं यह कहाँ तक तर्क संगत लगता है??????

भावना, प्रेम और जज्बात दिल में दबा कर रखने के लिए नहीं होती है, उसे जताए बिना आप उसको सम्पूर्णता नहीं दे सकते....

और बात यह नहीं है की आप यह गीत नहीं गायेंगे तो आप अपनी देशभक्ति साबित नहीं कर रहे हैं..... एसे कई गैर मुस्लिम या मुस्लिम नेता आज भी हैं जिन्हें पूरा "वन्दे मातरम" कंठस्त नहीं है.... इन नेताओं को कौन चुन कर भेजते हैं???? तो यदि ये नेता देशभक्त नहीं येन तो इन्हें चुनकर भेजने वाले भी देश भक्त कटाई नहीं हो सकते....!

और आप यह भूल रहे हैं की इसी "वन्देमातरम" गीत नें आजादी की क्रांति की लहर में जान फूँक दी थी..... यह जान-मानस को देशभक्ति के जज्बे से ओत-प्रेत करने वाला गीत हुआ करता था.... पर अफसोस की बात है की आज मजहब की खींचातानी में फँस कर रह गया है..... और आप सवाल कर रहे हैं की क्या केवल गीत गाकर ही देश भक्ति जताई जा सकती है....

यदि गीत गाकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना निरर्थक होता तो बॉलीवुड की फिल्मों में गीत-संगीत के लिए कोई जगह नहीं होती..... कोई ऐसा पल नहीं हो गा जब कहीं न कहीं या यूँ कहें की हर कही फिल्मों के गीत बज रहे हों, और उसे सुन कर लोग मन्त्र-मुग्ध हो गीत की भावना अपने दिलों-दिमाग पर महसूस कर रहे हों,..... इन फिल्मों के गीतों को सुनते समय कोई मजहब लोगों के आड़े नहीं आता...! अपने प्रेम का इजहार करना किसी को काफ़िर नहीं बनाता... चाहे वो किसी व्यक्ति विशेष के लिए हो या अपने वतन के लिए..... और यदि कोई प्रेम का इजहार करने से कतराता है या मना करता है तो यकीनन वह प्रेम नहीं करता.....

और निश्चिंत रहे भारत देश का संविधान आजादी से लेकर आज तक धर्मनिरपेक्ष रहा है और रहेगा.... पर क्या इस देश की जनता पूरी तरह से कभी भी धर्मनिरपेक्ष बन पायेगी.... जरूर पर जब मजहबी लोग उन्हें बरगलाना बंद कर दें.....!!!

कृपया देश-प्रेम और मजहब को उनके विसुध्ध रूप में देखें उन्हें आपस में न टकराए .........

~~~~~~~~~~~~~~
- दिनेश सरोज

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७ नवम्बर २००९ १:५७ AM को, Afaque Siddiqui <afaque....@gmail.com> ने लिखा:

pratibimba

unread,
Nov 7, 2009, 1:50:04 AM11/7/09
to hindi...@googlegroups.com
सर बात तो बहुत अच्छी कही आपने. लेकिन एक सवाल आप से भी कि देवबन्द उलेमाओ को फतवा जारी करने की क्या आवश्यक्ता इस में - कंही ना कंही दाल मे कुछ काला है. हम उन्हे शंका से देख रहे या उनको सलाह दे रहे है जो इसके विपक्ष मे खडे है, आज़ादी के लिये जब लोग लडे थे तब इसे बहुत राष्ट्रियता के नाते गाया गया और रज़ामंदी से इसे राष्ट्रगीत का दर्ज़ा मिला फिर अब मज़हब के नाम पर खिलाफत क्यो? सबसे पहला धर्म मानवता फिर राष्ट्रभक्ति और फिर आता है मज़हब. मज़हब के नाम पर ( हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई आदि) केवल लडना सीखते है सही मानो में धर्म के नाम पर केवल हिन्दुस्तानियो को बांटते है.
आशा है सभी धर्म के ठेकेदार लोगो की भावनाओ से ना खेले.
सप्रेम.
 
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