मेरा सवाल उन लोगो से हे जो देवबन्द उलेमाओ द्वारा दिये गये फतवे (निदेश)
की मुखालेफत कर रहे हे, खासकर उन लोगों से जो देश व किसी भी समाज मे होने
वाली गतीविधि को लेकर बवाल खडा करते है?
दिया गया फतवा केवल उस धर्म विशेष के अनुयायियो के लिए हे न कि सब के
लिये फिर ये बवाल क्यो?
क़्या इस लिये हमारा देश एक Democratic देश हे, क्या एक देश के प्रति
समर्पण कि भावना केवल एक गीत को गाकर ही बताई जा सकती है क्या अब इस देश
मे संविधान की यही हैसियत यही रह गयी है, जबकि उच्चतम न्ययालय ने भी कहा
हे कि वन्दे मातरम गाना आवश्यक नही है.
क़्या हम अपनी आज़ादी को इस तरह खत्म कर देंगे?
क्या कोई भी मज़हब या देश का कानून इसकी इज़ाज़त देता है.
मज़हब नही सिखाता आपस मे बेर रखना,
हिन्दी है हम वतन है हिन्दुस्ता हमारा |
एम. ए. सिद्दिक़ी.
सर बात तो बहुत अच्छी कही आपने. लेकिन एक सवाल आप से भी कि देवबन्द उलेमाओ को फतवा जारी करने की क्या आवश्यक्ता इस में - कंही ना कंही दाल मे कुछ काला है. हम उन्हे शंका से देख रहे या उनको सलाह दे रहे है जो इसके विपक्ष मे खडे है, आज़ादी के लिये जब लोग लडे थे तब इसे बहुत राष्ट्रियता के नाते गाया गया और रज़ामंदी से इसे राष्ट्रगीत का दर्ज़ा मिला फिर अब मज़हब के नाम पर खिलाफत क्यो? सबसे पहला धर्म मानवता फिर राष्ट्रभक्ति और फिर आता है मज़हब. मज़हब के नाम पर ( हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई आदि) केवल लडना सीखते है सही मानो में धर्म के नाम पर केवल हिन्दुस्तानियो को बांटते है.
आशा है सभी धर्म के ठेकेदार लोगो की भावनाओ से ना खेले.
सप्रेम.
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