संगीता पुरी
unread,Jan 2, 2008, 5:33:06 AM1/2/08Sign in to reply to author
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to Hindi Bhasha
नए वर्ष 2008 के स्वागत के लिए इसकी पूर्व सन्ध्या पर लगभग सभी हिन्दी
ब्लोगों के लेखक-लेखिका भाई.बहन इकट्ठे हुए। भले ही इस कार्यक्रम की
परिकल्पना रवीन्द्र प्रभातजी के द्वारा की गयी थी , लेकिन आरंभ संजीव
तिवारीजी के द्वारा ही किया गया, जिसके आयोजन के लिए सर्वसम्मति से
उमाशंकरजी के वैली आफ ट्रूथ का चुनाव किया गया। यह स्थान इतना खूबसूरत था
कि अफलातूनजी आखिर कह ही उठे , यही है वह जगह , जिसका उन्हें इंतजार था।
फिर संजय गुलाटीजी मुसाफिर के हृदय.पटल से निकला इसके लिए एक शुभ
मुहूर्त्त । द्विवेदीजी के अनवरत प्रयास से यह कार्यक्रम सफल हो पाया।
चिट्ठाकार भाई.बहनों की कमियों और खूबियों का विश्लेषण करने चिटठाचर्चा
की पूरी चर्चाकार मंडली यानि अनूप शुक्लाजी , तरूणजी , नोटपैड , आशीष
श्रीवास्तवजी , देबाशीषजी , राकेश खंडेलवालजी , सृजन शिल्पीजी , रवि
रतलामीजी , नीलिमाजी , संजय बेंगानीजी , जीतेन्द्र चौधरीजी , आर केजी ,
उड़नतश्तरीजी , अतुल अरोड़ाजी , संजय तिवारीजी , मसीजीवीजी , सागर चद
नाहरजी , गिरिराज जोशीजी और तुषार जोशीजी पहुंचे। फुरसतियाजी की तरह ही
अहमदाबाद से डा सुरेश भदौरियाजी , उत्तरांचल से तरूणजी , सात समंदर पार
से अतुल अरोड़ाजी ,दिल्ली दरभंगा छोटी लाइन से अविनाशजी और झारखंड से
राजेश कुमारजी फुरसत निकालकर आए। बात हिन्दी ब्लाग की हो और भला आर सी
मिश्राजी और अंकुर गुप्ताजी न पहुंचें ? अविनाशजी के मोहल्ले से शिवकुमार
मिश्राजी और ज्ञानदत्त पांडेयजी साथ साथ पहुंचें। महाजाल से मुक्त होकर
सुरेश चिपलूनकरजी भी पहुंचे। मुन्ने के बापू न कह दिए जाएं , यह सोंचकर
उन्मुक्तजी अपनी पत्नी और बच्चे के बिना ही उन्मुक्त होकर आए। जट जैसे
मस्त रमेश पटेलजी हरिरामजी और घुघुती बासुतीजी भी पहुंचें। झारखंडी
घनश्याम के रूप में घन्नूजी और आवारा बंजारा बनकर संजीत त्रिपाठीजी आए।
प्रत्यक्षाजी ने हिन्दी किताबों का कोना सजाया। बच्चों को लेकर जाकिर अली
रजनीशजी ने बाल.उद्यान बनाया।
सबसे पहले नितिनजी ने अपना पहला पन्ना खोला , जीतेन्द्र
चौधरीजी के द्वारा संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ किया गया। समर्पित लेखक ,
अनुसंधानकर्त्ता और हिन्दीसेवी चिट्ठाकारी गुरू जे सी फिलिपजी , मिर्ची
सेठ पंकज नरूलाजी सर्वज्ञ और ई पंडित श्रीशजी ने ब्लागरों की भ्रांतियों
को दूर किया और सफल ब्लागर बनने के गुर सिखाएं। सेहतनामा के संबंध में
संजयजी और फिटनेस फैक्टस् देने में ज्ञान गुरूजी भी पीछे न रहें।
शिवनारायणजी की खेत.खलिहान की बातों और पंकज अवधियाजी की पारंपरिक
चिकित्सीय ज्ञान की बातों से सभी लाभान्वित हुए। जहां प्रक्रूतिजी का
इलेक्ट्रो त्रिदोष ग्राफ और प्रभातजी की होम्योपैथ नई सोंच नई दिशाएं
देनेवाली रही, कानून से जुड़े पहलुओं पर द्वारा विधिचर्चा भी
की गयी। आज के आर्थिक युग के अनुरूप कमल शर्माजी की वाह मनी और आलोकजी का
स्मार्ट निवेश लोगों को बहुत पसंद आया। जहा विवेक सत्यव्रतमजी ने
बाटी.चोखा खिलाकर लोगों को भोजपुरी संस्कृति की जानकारी दी , वहीं
शिल्पीजी ने अपनी बातों से मैथिल संस्कृति की। जब दीपक भारतदीपजी ने अपने
चिंतन से सबको अवगत कराया तो तरूणजी का निठल्ला चिंतन भी लोगों को सुनना
ही पड़ा। अनिल रघुराजजी ने एक हिन्दुस्तानी की और राजेश कुमारजी ने
क्राइम डायरी पढ़कर सुनायी। रंजूजी की कहानी.कलश कहानियां और राकेश
खंडेलवालजी की गीत.कलश गीतें छलकाती रहीं। विमला तिवारीजी विभोर उन सब
बातों की चर्चा करती रही, जो जीवन में उनहोनें देखा , महर्षिजी की जिंदगी
के अनुभव भी सुनने को मिले। सबों ने अमित गुप्ताजी की नजर से भी दुनिया
देखी। योगेश समदर्शीजी द्वारा शब्दसृजन किए गए। डा अनिल चड्ढाजी कुछ मन
की कुछ जग की चर्चा की , तो कामोदजी ने कुछ खट्टी कुछ मीठी बातें की ।
मिहिरजी तत्वचर्चा करते दिखें, तो जीतुजी का पन्ना और काकेशजी की कतरनें
भी उड़ती रहीं। पंकज बेंगानीजी का मंतब्य भी लोगों ने सुना ,तो
प्रियंकरजी ने भी अपना अहनद.नाद सुनाया। जब सत्येन्द्रजी द्वारा जिंदगी
के रंग दिखाए गए , तो लोगों को राजेन्द्र त्यागीजी का आलाप भी सुनना
पड़ा। अनुराग आर्याजी ने अपने दिल की बात कही , तो इरफानजी ने टूटी हुई ,
बिखरी हुई बातें भी। पर्यावरण की जानकारी पर्यानाद ने दी , प्रियदर्शनजी
ने भी बात पते की ही की। ऐसे माहौल में आज के युग के अनुरूप विकसित किए
गए गत्यात्मक ज्योतिष के महत्व को बताने में मैं भी पीछे न रही।
अंकुर वर्माजी की निंदापुराण तथा देबाशीषजी की नुक्ताचीनी को
देखकर महिलाएं भी स्तब्ध हुईं। सुनने में चक्रधरजी की चकल्लस , आलोक
पुराणिकजी का अगड़म.बगड़म और आई आई टी बम्बई की वाणी भी सबको अच्छी लगी।
माना गुस्ताखजी ने गुस्ताखी की , पर अरूणजी ने भी कम पंगेबाजी नहीं की।
जे पी नारायणजी बेहियाई करते हुए हर्षवर्द्धनजी की बात का बतंगड़ बनाया ,
फिर महाशक्तिजी अपनी महाशक्ति दिखाने में क्यो चूकते। नसीरूद्यीनजी ने
ढाई आखर तो कहे , डा अमर कुमारजी की तरह यूं ही निठल्ले नहीं बैठे रहें।
लतीफे सुनाते हुए पवनकुमार मालजी के साथ राजीव तनेजाजी द्वारा पूरे
कार्यक्रम में हंसाते रहने के प्रयास की बात भी खूब रही। जहां विनोद
पाराशरजी के हंसगुल्ले लोगों को पचाने पड़े वहीं रजनीशजी की गाली
'ब्लागिया कहीं का' भी सबको सुननी पड़ी। सबों ने वसंत आर्याजी के साथ
ठहाका लगाया।राहूल उपाध्यायजी पता नहीं किस उधेड़बुन में लगे रहें , कि
गाहे.बगाहे विनीतकुमारजी भी उसमें शामिल हो जाते थे। संजय तिवारीजी की
बातें विस्फोट करने लायक रहीं। रचना सिंहजी कुछ ऐसे ही , कुछ यूं ही कहती
रही , रवीश कुमारजी को भी कहने को मन करता था ,रचना बजाजजी भी कहती
रहीं , 'मुझे भी कुछ कहना है ' । सुनील दीपकजी कुछ ना कह सकें और मीतजी
पूछते ही रह गए कि वे अपनी बात किससे कहें। सागर नाहरजी और अनिता कुमारजी
मौका ढूंढ़ते ही रह गए कि वे कुछ कहें। यशवंतसिंहजी ने सबको अपनी भड़ास
निकालने को कहा ।
खुशहाल सिंह पुरोहितजी ने पर्यावरण डाइजेस्ट, अतुल
चौहानजी ने हिन्दी टूडे, मुखियजी ने बिहार टूडे , बोधिसत्वजी ने
विनयपत्रिका और आलोकजी ने अक्षरग्राम की एक.एक कापी सबों को भेंट की। सभी
ने शांतारामजी की ग्रीन रेनबो पार्टी की सदस्यता ली, सत्येन्द्र नारायणजी
के साथ इंकलाब और उमाशंकरजी के साथ जय जवान जय किसान का नारा लगाया।
लोकेशजी की अदालत में रवि रतलामीजी जैसे रचनाकार के हिन्दी ब्लाग को
प्रथम पुरस्कार देने का फैसला किया गया। फिर सभी ने समीरलालजी की
उड़नतश्तरी द्वारा सुनीलजी की कल्पना जगत की उडान भरी। संजयजी और नारदजी
ने दुनिया का आंखो देखा हाल उवाचा । सबों के साथ अभय तिवारीजी ने भी
निर्मल आनंद लिया। हेम ज्योत्सनाजी पराशर दीप के साथ हमने भी अपनी जिंदगी
के कुछ लम्हें मनोरंजन से भरपूर बिताएं। राकेश खंडेलवालजी जैसे गीतकार की
कलम , दीपक श्रीवास्तवजी के दीपक जोक , जगजीतसिंहजी की गजलें और विमल
वर्माजी की ठुमरी आदि का अन्नपूर्णाजी के द्वारा रेडियोनामा , यूनूस
खानजी की रेडियोवाणी , डा प्रवीण चोपड़ाजी की रेडियो धमाल और ममता टी वी
से प्रसारण को सुनते देखते हुए सभी भाई.बहन खो ही गए होते, यदि जगजीत
सिंहजी के न्यूज ने लोगों को देश.दुनिया की खबरें न दी होती। महेन्द्र
मिश्राजी का समयचक्र काफी तेजी से व्यतीत हो चुका था। इतनी तेजी से कि
वहां से निकलने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे , हमें रास्ता दिखानेवाले
आशीष तिवारीजी सारी व्यवस्था करने के बाद नौ दो ग्यारह हो गए थे। परमजीत
बालीजी ने सभी दिशाएं छान मारी, मगर रास्ता न मिला। बहुत कोशिश कर आनंद
प्रधानजी ने एक तीसरा रास्ता ढूंढ़ा , जिससे सब बाहर आएं , सबों ने नए
वर्ष की बधाई देते हुए सबों से विदा लिया , अगले वर्ष पुनः मिलने का वादा
करते हुए।
(कोरी कल्पना पर आधारित , जिसमें पूरे एक सौ पच्चीस ब्लागों के नाम हैं।
जिनको शामिल करने से प्रवाह में कमी आ रही थी , वैसे बहुत से ब्लागर
भाई.बहनों के नाम छूट गए हैं , जिसके लिए खेद है , कृपया अन्यथा न लें।)