उपर्युक्त नियम के अनुसार विद्या और चिह्न को क्रमश: विद्या और चिह्न
लिखना चाहिए।
व्यावहारिक कारणों से इस नियम का पालन नहीं हो पाता है। अधिकतर लोग
कंप्यूटर पर हल् चिह्न टाइप नहीं कर पाते हैं।
इंटरनेट पर भी केवल 'विद्या' और 'चिह्न' के उदाहरण मिलते हैं।
अनेक अनुभवी अनुवादकों का यह मानना है कि यह नियम वास्तविकता की अनदेखी
करते हुए बनाया गया है।
क्या आप भी इस नियम में संशोधन की आवश्यकता महसूस करते हैं?
सादर,
सुयश जी,
जी हाँ, मैं इन नियमों में संशोधन की नितान्त आवश्यकता महसूस करता हूँ।
क्योंकि ये नियम तत्कालीन लेखन तथा टंकण (मैनुअल टाइपराइटर पर) के कार्य
को ही ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे। आधुनिक Computing needs की इसमें
पूरी अनदेखी की गई है।
वर्तमान देवनागरी विश्वव्यापी हो गई है, विशेषकर युनिकोड के प्रचलन से।
युनिकोड में केवल कोड-प्वाइंट ही computing में save और process होते
हैं। पारम्परिक (संयुक्ताक्षर रूप में ) रूप में प्रदर्शन तथा मुद्रण के
लिए ओपेन टाइप फोंट में glyph substitution तथा glyph possitioning आदि
जटिल प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाता है।
विशेषकर Automatic Database Management, OCR, online forms, Advance
forms, Dynamic forms, speech to text तथा text to speech आदि के उन्नत
अनुप्रयोगों लिए देवनागरी के मूल स्वरूप को ही एकमुखी रूप में प्रयोग
करना होगा।
चिह्न शब्द यों save होता है
च + इ(मात्रा) + ह + हलन्त + न
जबकि प्रदर्शन यों होता है
इ(मात्रा) + च + ह्न (संयुक्ताक्षर)
यह प्रदर्शन आपरेटिंग सीस्टम से rendering engine और OT fonts की glyph
substitution प्रक्रिया के सहारे on the fly किया होता है, जिसका यूजर को
पता तक नहीं चलता। 3 tier system के आधार पर देवनागरी लिपि process होती
है, इसी कारण इसे Complex Script वर्ग में रख गया है।
किन्तु भावी single tier computing को ध्यान में रखते हुए सभी स्तर पर
व्यपाक परिवर्तन हो रहे हैं। देवनागरी कूट-निर्धारण और वर्तनी के नियमों
में भी तदनुकूल भारी परवर्तन होगा।
-- हरिराम
On May 3, 10:01 pm, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com>
wrote:
सुयशजी,
एकल अक्षरों के माध्यम से संयुक्ताक्षरों को निरूपित करने की प्रथा
देवनागरी ही नहीं अन्य भारतीय लिपियों में भी देखने को मिलती है ।
हस्तलेखन में कोई दिक्कत कदाचित् किसी को नहीं होती है । जिस नियम का
जिक्र आपने किया उसके पीछे क्या तर्क रहे हैं मुझे नहीं मालूम । लेकिन
इतना कह सकता हूं कि किस-किस संयुक्ताक्षर के लिए ऐसा हो और किस के लिए
नहीं इस पर विचार होना चाहिए । क्त, क्ष, ज्ञ, त्र, त्त, द्द, द्ध, द्व,
ह्म, ह्य, ह्व आदि के बारे में क्या नियम हैं?
- योगेन्द्र जोशी
हरिराम जी,
क्षमा करें, थोड़ी देर पहले गूगल समूह में 'विद्या और चिह्न' वाली पोस्ट मुझसे मिट गई थी।
मैंने इस पोस्ट को अपने इनबॉक्स से हिंदी अनुवादकों के गूगल समूह को पुन: अग्रेषित किया है।
मैं आशा करता हूँ कि आप इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
क्या 'क' के नीचे आधा 'क' जोड़कर लिखना संभव है? मैं 'क्क' तो टाइप कर लेता हूँ, लेकिन मैं इसे दूसरे रूप में टाइप नहीं कर पा रहा हूँ।
सादर,
सुयश
On May 3, 10:10 pm, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com> wrote:
> ---------- अग्रेषित संदेश ----------
> प्रेषक: Hariraam <harira...@gmail.com>
> दिनांक: ३ मई २००९ ०९:१६
> विषय: Re: विद्या, चिह्न या विद्या, चिह्न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)
"भाषा" पत्रिका में मेरा निम्नलिखित लेख छपा था -
"नारायण प्रसाद (2007): "वैज्ञानिक तथा अभियंता हेतु अनुप्रयुक्त संस्कृत", भाषा (वर्षः 46 अंक 6 ; जुलाई-अगस्त), केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, पृष्ठ 13-19."इसमें मेरे द्वारा प्रयुक्त युक्ताक्षरों को आपके द्वारा निर्दिष्ट मानकीकरण को आधार बनाकर परिवर्तित करके छापा गया था ।
बहुतेरे आधुनिक विद्वज्जन भाषा को आधुनिक मशीन से बने Procrustean Bed पर सुलाना चाहते हैं । उनकी दृष्टि में मशीन के अनुसार वर्णमाला और वर्तनी को फिट होना चाहिए, न कि इसके विपरीत अर्थात् धर्म (religion) मानव के कल्याण के लिए न होकर, मानव को वैसा बनना है जिससे धर्म का कल्याण हो । इसी बात को लेकर 1950 के दशक में कुछ लोग देवनागरी वर्णमाला को ही परिवर्तित करके अंगरेजी टाइपराइटर के अनुसार फिट करना चाहते थे । आचार्य रघुवीर ने इसका कड़ा विरोध किया था । उनका कहना था कि मशीन को ही परिवर्तित करके देवनागरी के लायक बनाना चाहिए । इसके लिए उन्होंने चीन में निर्मित चीनी लिपि में टाइप करने के लिए चालीस हजार कुंजियों वाले टाइपराइटर का उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज तो जैसा आपलोग भी जानते हैं, यूनिकोड CJK चिह्नों की संख्या लगभग अस्सी हजार है । चीनी लोग तो एक लाख से ऊपर प्रयुक्त सभी चीनी चिह्नों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं । और हमारे देश में कुछ इने-गिने देवनागरी चिह्नों ही की दुर्गति करके अंगरेजी ढर्रे पर ढालकर कुछ ही चिह्नों को शेष रखना चाहते हैं ।
नोटः
सुयश जी..
मैं आपकी बात से सहमत हूं। मुझे भी लगता है कि हिन्दी में अनावश्यक नियम
बनाने की बजाय श्रुति और स्मृति के आधार पर बने नियमों का ही पालन किया
जाना चाहिए। द्य और ह्न पर्याप्त प्रकार से प्रचलित हैं और इनका ही उपयोग
किया जाना चाहिए.।
सादर।
> > बहुतेरे आधुनिक विद्वज्जन भाषा को आधुनिक मशीन से बने *Procrustean Bed* पर
> > सुलाना चाहते हैं । उनकी दृष्टि में मशीन के अनुसार वर्णमाला और वर्तनी को फिट
> > होना चाहिए, न कि इसके विपरीत अर्थात् धर्म (religion) मानव के कल्याण के लिए न
> > होकर, मानव को वैसा बनना है जिससे धर्म का कल्याण हो । इसी बात को लेकर 1950
> > के दशक में कुछ लोग देवनागरी वर्णमाला को ही परिवर्तित करके अंगरेजी टाइपराइटर
> > के अनुसार फिट करना चाहते थे । आचार्य रघुवीर ने इसका कड़ा विरोध किया था ।
> > उनका कहना था कि मशीन को ही परिवर्तित करके देवनागरी के लायक बनाना चाहिए ।
> > इसके लिए उन्होंने चीन में निर्मित चीनी लिपि में टाइप करने के लिए चालीस हजार
> > कुंजियों वाले टाइपराइटर का उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज तो जैसा आपलोग भी
> > जानते हैं, यूनिकोड CJK चिह्नों की संख्या लगभग अस्सी हजार है । चीनी लोग तो एक
> > लाख से ऊपर प्रयुक्त सभी चीनी चिह्नों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं । और
> > हमारे देश में कुछ इने-गिने देवनागरी चिह्नों ही की
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