विद्या, चिह्न या विद्‍या, चिह्‍न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)

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Suyash Suprabh

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May 3, 2009, 1:01:38 PM5/3/09
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
सन् 2003 में आयोजित अखिल भारतीय संगोष्ठी में निर्धारित नियम के अनुसार
द और ह के संयुक्ताक्षर बनाने के लिए हल् चिह्न का प्रयोग करना चाहिए।

उपर्युक्त नियम के अनुसार विद्या और चिह्न को क्रमश: विद्‍या और चिह्‍न
लिखना चाहिए।

व्यावहारिक कारणों से इस नियम का पालन नहीं हो पाता है। अधिकतर लोग
कंप्यूटर पर हल् चिह्न टाइप नहीं कर पाते हैं।

इंटरनेट पर भी केवल 'विद्या' और 'चिह्न' के उदाहरण मिलते हैं।

अनेक अनुभवी अनुवादकों का यह मानना है कि यह नियम वास्तविकता की अनदेखी
करते हुए बनाया गया है।

क्या आप भी इस नियम में संशोधन की आवश्यकता महसूस करते हैं?

सादर,

सुयश
http://anuvaadkiduniya.blogspot.com

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Suyash Suprabh

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May 3, 2009, 1:10:57 PM5/3/09
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: Hariraam <hari...@gmail.com>
दिनांक: ३ मई २००९ ०९:१६
विषय: Re: विद्या, चिह्न या विद्‍या, चिह्‍न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)
प्रति: "हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)"
<hindian...@googlegroups.com>


सुयश जी,

जी हाँ, मैं इन नियमों में संशोधन की नितान्त आवश्यकता महसूस करता हूँ।
क्योंकि ये नियम तत्कालीन लेखन तथा टंकण (मैनुअल टाइपराइटर पर) के कार्य
को ही ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे। आधुनिक Computing needs की इसमें
पूरी अनदेखी की गई है।

वर्तमान देवनागरी विश्वव्यापी हो गई है, विशेषकर युनिकोड के प्रचलन से।
युनिकोड में केवल कोड-प्वाइंट ही computing में save और process होते
हैं। पारम्परिक (संयुक्ताक्षर रूप में ) रूप में प्रदर्शन तथा मुद्रण के
लिए ओपेन टाइप फोंट में glyph substitution तथा glyph possitioning आदि
जटिल प्रक्रियाओं का सहारा लिया जाता है।

विशेषकर Automatic Database Management, OCR, online forms, Advance
forms, Dynamic forms, speech to text तथा text to speech आदि के उन्नत
अनुप्रयोगों लिए देवनागरी के मूल स्वरूप को ही एकमुखी रूप में प्रयोग
करना होगा।

चिह्न शब्द यों save होता है
च + इ(मात्रा) + ह + हलन्त + न

जबकि प्रदर्शन यों होता है
इ(मात्रा) + च + ह्न (संयुक्ताक्षर)

यह प्रदर्शन आपरेटिंग सीस्टम से rendering engine और OT fonts की glyph
substitution प्रक्रिया के सहारे on the fly किया होता है, जिसका यूजर को
पता तक नहीं चलता। 3 tier system के आधार पर देवनागरी लिपि process होती
है, इसी कारण इसे Complex Script वर्ग में रख गया है।

किन्तु भावी single tier computing को ध्यान में रखते हुए सभी स्तर पर
व्यपाक परिवर्तन हो रहे हैं। देवनागरी कूट-निर्धारण और वर्तनी के नियमों
में भी तदनुकूल भारी परवर्तन होगा।

-- हरिराम

On May 3, 10:01 pm, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com>
wrote:

Suyash Suprabh

unread,
May 3, 2009, 1:12:20 PM5/3/09
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: Yogendra Joshi <yogendr...@gmail.com>
दिनांक: २ मई २००९ १७:३३

विषय: Re: विद्या, चिह्न या विद्‍या, चिह्‍न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)
प्रति: Suyash Suprabh <translate...@gmail.com>


सुयशजी,
एकल अक्षरों के माध्यम से संयुक्ताक्षरों को निरूपित करने की प्रथा
देवनागरी ही नहीं अन्य भारतीय लिपियों में भी देखने को मिलती है ।
हस्तलेखन में कोई दिक्कत कदाचित्‌ किसी को नहीं होती है । जिस नियम का
जिक्र आपने किया उसके पीछे क्या तर्क रहे हैं मुझे नहीं मालूम । लेकिन
इतना कह सकता हूं कि किस-किस संयुक्ताक्षर के लिए ऐसा हो और किस के लिए
नहीं इस पर विचार होना चाहिए । क्त, क्ष, ज्ञ, त्र, त्त, द्द, द्ध, द्व,
ह्म, ह्य, ह्व आदि के बारे में क्या नियम हैं?
- योगेन्द्र जोशी

Hariram

unread,
May 3, 2009, 9:50:04 PM5/3/09
to Suyash Suprabh, hindian...@googlegroups.com, technic...@googlegroups.com
आप
(1) क्क (2) क्‍क (3) क्‌क
तीनों रूपों में टाइप कर सकते हैं।
 
यदि आप विण्डोज के इनस्क्रिप्ट की-बोर्ड का उपयोग करते हैं तो
 
क्क तो सामान्यत प्रकट होगा - क + हलन्त + क टाइप करके
 
क्‍क रूप के लिए -- क + हलन्त + control-F1(अर्थात् zwj) + क
 
क्‌क रूप के लिए -- क + हलन्त + control-F2(अर्थात् zwnj) + क
 
 
यहाँ एक आधा अक्षर और एक पूरा अक्षर टाइप करने के लिए चार-चार कोड type, save & process करने पड़ते हैं।
 
अर्थात डेढ़ अक्षर के लिए चार अक्षरों का कूट
 
जबकि दो अक्षरों के लिए दो ही कूट लगेंगे यदि सिर्फ "कक" लिखना हो तो।
 
 
यही है देवनागरी युनिकोड कूट-निर्धारण में हुई त्रुटियों की विडम्बना,
जिसके कारण Sortig, Indexing, Auto-Database, OCR, STT, TTS इत्यादि सभी computing के प्रयोग बिगड़ जाते हैं।
 
उदाहरण के लिए -- यदि किसी शब्दकोष में उपर्युक्त तीन रूपों में "क्क, क्‍क या क्‌क" का प्रयोग हुआ हो तो तीनों का क्रम-विन्यास (alphabetical sorting) अलग अलग होगा और तीनों रूपों में प्रयुक्त वर्ण अलग-अलग स्थानों पर प्रकट होंगे।
 
-- हरिराम
 
2009/5/3 Suyash Suprabh <translate...@gmail.com>
हरिराम जी,

क्षमा करें, थोड़ी देर पहले गूगल समूह में 'विद्या और चिह्न' वाली पोस्ट मुझसे मिट गई थी।

मैंने इस पोस्ट को अपने इनबॉक्स से हिंदी अनुवादकों के गूगल समूह को पुन: अग्रेषित किया है।

मैं आशा करता हूँ कि आप इसी तरह हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।

क्या 'क' के नीचे आधा 'क' जोड़कर लिखना संभव है? मैं 'क्क' तो टाइप कर लेता हूँ, लेकिन मैं इसे दूसरे रूप में टाइप  नहीं कर पा रहा हूँ।

सादर,

सुयश


On May 3, 10:10 pm, Suyash Suprabh <translatedbysuy...@gmail.com> wrote:
> ---------- अग्रेषित संदेश ----------
> प्रेषक: Hariraam <harira...@gmail.com>

> दिनांक: ३ मई २००९ ०९:१६
> विषय: Re: विद्या, चिह्न या विद्‍या, चिह्‍न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)

Hariram

unread,
May 3, 2009, 10:45:01 PM5/3/09
to technic...@googlegroups.com, hindian...@googlegroups.com
नारायण जी, सुयश जी एवं अन्य सभी विद्वानो
 
सही विकास के लिए न तो भाषा को मशीन के अनुकूल बनाने हेतु तोड़ा-मरोड़ा जाना चाहिए, और न ही भाषा में कुछ गलत प्रयोगों के कारण घुस आई अवैज्ञानिकता को अन्धविश्वास तथा अन्धश्रद्धा के आधार पर प्रश्रय देते हुए वैज्ञानिक नियमों के आधार पर बनी मशीनों (कम्प्यूटर) की प्रणाली को बिगाड़ा जाना चाहिए।
 
बल्कि दोनों के बीच सही ताल-मेल करते हुए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे प्रचलित पारम्परिक रूप में प्रयोग करनेवाले उपयोक्ता को उसके अनुरूप प्रदर्शन और मुद्रण मिल सके और मशीन(कम्प्यूटर) के आन्तरिक संसाधन के लिए कोई विघ्न बाधा या तर्कहीन अवैज्ञानिक रोड़ा आए व प्रोसेसिंग सरल और तीव्र हो।
 
इसके लिए ही Open Type Fonts का विकास हुआ है, जिसमें मूलतः encoded characters और non-encoded characters (संयुक्ताक्षरों यथा ज्ञ, क्ष, त्र, द्व, द्ध... इत्यादि) दोनों को शामिल किया जा पा रहा है, तथा प्रोसेसिंग तथा उपयोक्ता के लिए  पारम्परिक रूप में प्रकट करने दोनों की क्षमता है। इसी कारण आज देवनागरी लिपि विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित हो पा रही है।
 
OT fonts में एक ही फोंट में कुल 65536 संयुक्ताक्षरों, वर्णों, मात्राओं को शामिल कर सकते हैं। जबकि अभी तक देवनागरी OT font में केवल 760 glyphs ही रखे गए हैं। नारायण जी के मतानुसार संस्कृत के पारम्परिक विद्वानों के अनुकूल और जितने चाहें संयुक्ताक्षर डिजाइन करके शामिल किए जा सकते हैं।
 
युनिकोड देवनागरी में अभी तक 106 कूट निर्धारित किए गए हैं। जबकि संस्कृत के व्याकरणविदों के 16 स्वर+33व्यंजन कुल 49 ही मूल अक्षर होते हैं। कुछ मात्राओं तथा संयुक्ताक्षरों की भी encoding हुई है।
 
आधुनिक तकनीकी विज्ञान दिनों दिन छोटा और अधिक शक्तिशाली होता जा रहा है। अभी कम्प्यूटर सिमिटकर मोबाईल फोन में समाने लगा है। मोबाईल फोन में speech to text sms, mms, इत्यादि होने लगे हैं। सूक्ष्म सॉफ्टवेयर बन रहे हैं, इसलिए भाषा, वर्ण आदि भी संक्षित होते जा रहे हैं। लोग इण्टरनेट, वेबपेज, ई-मेल आदि भी मोबाइल से ही करने लगे हैं। अतः उनके लिए आवश्यक है ऐसे IME का निर्माण जो मोबाइल फोन की 10-15 कुंजियों से ही हिन्दी ही नहीं, विश्व की समस्त भाषाओं के युनिकोड आधारित तीव्र टंकण करके सन्देश/पाठ/डैटा भेजने हेतु T9 जैसी स्कीम उपयोग की जा रही है।
 
कोई जरूरी नहीं है कि CJK आदि के हजारों अक्षरों के इनपुट के लिए हजारों कुंजियों वाला बड़ा मोबाईल फोन बनाया जाए, जिसे ढोने के लिए फिर एक गाड़ी साथ रखनी पड़े।
 
1989-90 के दौरान जब देवनागरी के कूटों का निर्धारण युनिकोड में हुआ, उस दौरान कुछ त्रुटियाँ रह गईं, जिनसे अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक दो-चार वर्षों बाद अवगत हुए तथा इन्हें सुधारने का प्रयास भी काफी हुआ। किन्तु युनिकोड की stability policy के कारण "this can't be changed, even if completely wrong" नियम के तहत कोई सुधार सम्भव नहीं हो पाया।
जो भी हो अब सारांश में ऐसी व्यवस्था की जा रही है जिससे मूल कोड कम से कम हों जिनकी कुंजियों के संचालन से लाखों वर्णों को अत्यन्त सरलता से और तीव्रगति से इनपुट किया जा सके। समाज के सभी वर्गों के लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक सभी सुविधाएँ मिलें। मूल कोड प्वाइंट कम से कम हो और आउटपुट में संयुक्ताक्षर आदि अधिक से अधिक मिल सकें।
 
-- हरिराम

 
2009/5/3 narayan prasad <hin...@gmail.com>

"भाषा" पत्रिका में मेरा निम्नलिखित लेख छपा था -
"नारायण प्रसाद (2007): "वैज्ञानिक तथा अभियंता हेतु अनुप्रयुक्त संस्कृत", भाषा (वर्षः 46  अंक 6 ; जुलाई-अगस्त), केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली, पृष्ठ 13-19."

इसमें मेरे द्वारा प्रयुक्त युक्ताक्षरों को आपके द्वारा निर्दिष्ट मानकीकरण को आधार बनाकर परिवर्तित करके छापा गया था ।

बहुतेरे आधुनिक विद्वज्जन भाषा को आधुनिक मशीन से बने Procrustean Bed पर सुलाना चाहते हैं । उनकी दृष्टि में मशीन के अनुसार वर्णमाला और वर्तनी को फिट होना चाहिए, न कि इसके विपरीत अर्थात् धर्म (religion) मानव के कल्याण के लिए न होकर, मानव को वैसा बनना है जिससे धर्म का कल्याण हो ।  इसी बात को लेकर 1950 के दशक में कुछ लोग देवनागरी वर्णमाला को ही परिवर्तित करके अंगरेजी टाइपराइटर के अनुसार फिट करना चाहते थे । आचार्य रघुवीर ने इसका कड़ा विरोध किया था । उनका कहना था कि मशीन को ही परिवर्तित करके देवनागरी के लायक बनाना चाहिए । इसके लिए उन्होंने चीन में निर्मित चीनी लिपि में टाइप करने के लिए चालीस हजार कुंजियों वाले टाइपराइटर का उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज तो जैसा आपलोग भी जानते हैं, यूनिकोड CJK चिह्नों की संख्या लगभग अस्सी हजार है । चीनी लोग तो एक लाख से ऊपर प्रयुक्त सभी चीनी चिह्नों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं । और हमारे देश में कुछ इने-गिने देवनागरी चिह्नों ही की दुर्गति करके अंगरेजी ढर्रे पर ढालकर कुछ ही चिह्नों को शेष रखना चाहते हैं । 

नोटः


--
हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.com>

Suyash Suprabh

unread,
May 7, 2009, 11:59:37 AM5/7/09
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
---------- अग्रेषित संदेश ----------
प्रेषक: abhishek singhal <abhi19...@gmail.com>
दिनांक: ५ मई २००९ ००:५६
विषय: Re: विद्या, चिह्न या विद्‍या चिह्‍न? (मानक हिंदी के संदर्भ में)
प्रति: Suyash Suprabh <translate...@gmail.com>

सुयश जी..
मैं आपकी बात से सहमत हूं। मुझे भी लगता है कि हिन्दी में अनावश्यक नियम
बनाने की बजाय श्रुति और स्मृति के आधार पर बने नियमों का ही पालन किया
जाना चाहिए। द्य और ह्न पर्याप्त प्रकार से प्रचलित हैं और इनका ही उपयोग
किया जाना चाहिए.।
सादर।

> > बहुतेरे आधुनिक विद्वज्जन भाषा को आधुनिक मशीन से बने *Procrustean Bed* पर


> > सुलाना चाहते हैं । उनकी दृष्टि में मशीन के अनुसार वर्णमाला और वर्तनी को फिट
> > होना चाहिए, न कि इसके विपरीत अर्थात् धर्म (religion) मानव के कल्याण के लिए न
> > होकर, मानव को वैसा बनना है जिससे धर्म का कल्याण हो ।  इसी बात को लेकर 1950
> > के दशक में कुछ लोग देवनागरी वर्णमाला को ही परिवर्तित करके अंगरेजी टाइपराइटर
> > के अनुसार फिट करना चाहते थे । आचार्य रघुवीर ने इसका कड़ा विरोध किया था ।
> > उनका कहना था कि मशीन को ही परिवर्तित करके देवनागरी के लायक बनाना चाहिए ।
> > इसके लिए उन्होंने चीन में निर्मित चीनी लिपि में टाइप करने के लिए चालीस हजार
> > कुंजियों वाले टाइपराइटर का उदाहरण प्रस्तुत किया था । आज तो जैसा आपलोग भी
> > जानते हैं, यूनिकोड CJK चिह्नों की संख्या लगभग अस्सी हजार है । चीनी लोग तो एक
> > लाख से ऊपर प्रयुक्त सभी चीनी चिह्नों को शामिल करने की योजना बना रहे हैं । और
> > हमारे देश में कुछ इने-गिने देवनागरी चिह्नों ही की
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