"साँस" स्त्रीलिंग है या पुल्लिंग

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चोपड़ा

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Oct 18, 2015, 12:18:45 PM10/18/15
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
महानुभावो,

साँस के लिंग के बारे में भ्रम बना हुआ है। मैंने इसका स्त्रीलिंग और पुल्लिंग - दोनों रूपों में प्रयोग देखा है। शुद्ध रूप कौन-सा है?

इनमें से कौन-सा ठीक है:

गहरा साँस लें

गहरी साँस लें

सादर,

चोपड़ा

Dhananjay V Zalte

unread,
Oct 18, 2015, 12:32:58 PM10/18/15
to hindian...@googlegroups.com

साँस स्त्रीलिंग ही शुद्ध है

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Kanta Rani

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Oct 18, 2015, 12:34:45 PM10/18/15
to hindian...@googlegroups.com
Gahari saans

Streeling ling shabd hai
--

Vijay K. Malhotra

unread,
Oct 18, 2015, 1:00:48 PM10/18/15
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
साँस स्त्रीलिंग है.
विजय 

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विजय कुमार मल्होत्रा
पूर्व निदेशक (राजभाषा),
रेल मंत्रालय,भारत सरकार

Vijay K Malhotra
Former Director (OL),
Ministry of Railways,
Govt. of India
Mobile:91-9910029919
     


URL<www.vijaykmalhotra.mywebdunia.com>

mithilesh kumar

unread,
Oct 18, 2015, 1:29:44 PM10/18/15
to hindian...@googlegroups.com
गहरी साँस लें। सही है।


18 अक्तूबर 2015 को 10:30 pm को, Vijay K. Malhotra <malho...@gmail.com> ने लिखा:



--
Regards

Mithilesh.
Mob. 8889388805

Hariraam

unread,
Oct 21, 2015, 2:06:07 AM10/21/15
to hindian...@googlegroups.com
श्वसन - पुल्लिंग????


2015-10-18 22:30 GMT+05:30 Vijay K. Malhotra <malho...@gmail.com>:
साँस स्त्रीलिंग



हरिराम

Vijay K. Malhotra

unread,
Oct 21, 2015, 2:34:07 AM10/21/15
to hindian...@googlegroups.com
श्वसन पुल्लिंग है.
विजय
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(Dr.) Kavita Vachaknavee

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Oct 21, 2015, 11:53:54 PM10/21/15
to ha
श्वसन  :  Masculine vocative singular

bestregards.gif 
 सादर शुभेच्छु
- (डॉ.) कविता वाचक्नवी

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Arvind Kumar

unread,
Oct 22, 2015, 2:47:00 AM10/22/15
to hindian...@googlegroups.com

मैँ कविता जी से सहमत हूँ-

साँस स्त्रीलिंग शब्द है,

इस अर्थ मेँ श्वास और दम पुँल्लिंग.

अरविंद

Yogendra Joshi

unread,
Oct 22, 2015, 7:12:07 AM10/22/15
to hindian...@googlegroups.com
मैं भाषाविद हूं नहीं, अतः दावे के साथ बहुत कुछ नहीं कह सकता। मेरी शंका यह है कि क्या vocative case में शब्द का "लिंग" स्पष्ट होता है। उदाहरणतः "राम, तुम कहां हो?" एवं "सीता, तुम कहां हो?" से राम एवं सीता शब्दों के लिंग का अनुमान लग पाता है?

दूसरी बात यह है कि abstract nown का प्रयोग vocative case में सामान्य है क्या?

मेरी जानकारी के अनुसार श्वसन संस्कृत मूल का नपुंसक लिंग वाला शब्द है। यह पठन, गमन, पतन, भजन, लेखन, दर्शन, श्रवण जैसे तमाम शब्दों की भांति संबंधित क्रियाधातु से "ल्युट्‍" प्रत्यय के संयोग से प्राप्त होता है। ल्युट्‍ प्रत्यय "अन" के रूप में प्रयुक्त होता है। तदनुसार पठ्‍+ल्युट्‍ = पठन, गम्+ल्युट्‍ = गमन, लिख् +ल्युट्‍ = लेखन, दृश्+ल्युट्‍ = दर्शन, आदि। (संस्कृत व्या‍करण के अन्य नियन भी यहांलागू होते हैं।)

हिन्दी में ये शब्द पुल्लिंग की भांति प्रयोग में आते हैं ऐसी मेरी जानकारी है, जैसे पुस्तक का पठन या लेखन, देवता का भजन, प्रतिमा का दर्शन, उपदेशों का श्रवण, आदि। (अपवाद यदि हों तो मैं नहीं जानता।)। अतः श्वसन पुल्लिंग के तौर प्रयोग में लिया जाना चाहिए।

यह भी ज्ञातव्य है कि संस्कृत में नपुंसक लिंग और पुल्लिंग में बहुत भेद नहीं होता। प्रथम दो विभक्तियों (कारकोंं - कर्ता, कर्म) में ही यह परिलक्षित होता है। (अपवाद मैं नहीं जानता।)



22 अक्तूबर 2015 को 12:16 pm को, Arvind Kumar <samant...@gmail.com> ने लिखा:

Vijay K. Malhotra

unread,
Oct 22, 2015, 7:21:48 AM10/22/15
to hindian...@googlegroups.com
आधुनिक व्याकरण में vocative का अर्थ है, संबोधनवाचक. श्वसन infinitive form है , संस्कृत में यह पुल्लिंग अवश्य है, लेकिन हिंदी में साँस स्त्रीलिंग ही है.
विजय

Hariraam

unread,
Oct 22, 2015, 7:38:06 AM10/22/15
to hindian...@googlegroups.com
आम हिन्दीतर-भाषी हिन्दी व्याकरण में नपुंसक लिंग नहीं होने के कारण हर निर्जीव पदार्थोंं को भी स्त्रीलिंग या पुल्लिंग निर्धारित किए जाने से काफी तकलीफ झेलते हैं और हिन्दी को कठिन भाषा मानकर इसका उपयोग करने से डरते/कतराते हैं।

साँस और श्वसन दोनों का अर्थ व प्रयोग एक ही है। फिर एक शब्द स्त्रीलिंग दूसरा पुल्लिंग क्यों? अक्सर हिन्दीतरभाषी बच्चे ऐसे ही प्रश्न करते हैं। अंग्रेजी, ओड़िआ, बंगला,...  आदि अन्य भाषाओं में  ऐसा भ्रम नहीं है।

लोग खिल्ली भी उड़ाते हैं कि 'चीनी' स्त्रींलिंग है, लेकिन "गुड़, शक्क्रर" पुल्लिंग है। दाढ़ी मूँछ पुरुषों के शरीर पर होती है किन्तु स्त्रीलिंग मानी जाती है, जूड़ा महिलाओं के सिर पर होता है पर पुल्लिंग माना जाता है।

अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार तृतीय लिंग को मान्यता मिल चुकी है, विभन्न फार्मों आदि में पु./स्त्री/अन्य के कॉलम छपने लगे हैं। 

He-male, She-male, He-Female, She-Female के लिए हिन्दी शब्द क्या होने चाहिए?

क्या हिन्दी व्याकरण के नियमों में संशोधन करके नुपंसक लिंग के प्रावधान को जोड़ना जरूरी नहीं लग रहा?

हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.in>

Yogendra Joshi

unread,
Oct 22, 2015, 11:21:17 AM10/22/15
to hindian...@googlegroups.com
मुझे लगता है कि यहां पर भाषा संबंधी विचार व्यक्त करने वाले विद्वज्जन व्याकरण के लिंग (gender) तथा जैविक प्रयोजन के लिए प्रयुक्त लिंग (sex or gender) में भेद नहीं करना चाहते हैं।

श्वसन के बारे में जो भी मैंने कहा उसके यह अर्थ नहीं थे कि सांस स्त्रीलिंग नहीं। श्वसन पुल्लिंग के तौर पर प्रयोग में लिया जाना चाहिए ऐसा मैं सोचता हूं। शब्द समानार्थी हों तो आवश्यक नहीं कि व्याकरण की दृष्टि से भी वे समान लिंग के हों।
इस वाक्य पर विचार करें: "चुनाव का महत्व सभी जानते हैं।" और  "चुनाव की महत्ता सभी जानते हैं।"
महत्व एवं महत्ता समानार्थी हैं किन्तु ...
इन पर भी विचार करें: "मेरी दोस्त चली गई।" और "मेरा दोस्त चला गया।"
दोस्त शब्द स्त्री अथवा पुरुष कुछ भी हो सकता है। (इस वाक्य में क्रियापद शब्द द्वारा निर्धारित है।) 
यह समस्या अंगरेजी में भी आती है। आपको स्पष्टता के लिए male friend या female friend का प्रयोग करना पड़ता है। cousin के साथ भी यही समस्या आती है।

अंगरेजी की समस्या काे दृष्टांत पेश करता हूं जो http://www.oxforddictionaries.com/words/he-or-she-versus-they से मैंने लिया है:
If your child is thinking about a gap year, he can get good advice from this website.
If your child is thinking about a gap year, he or she can get good advice from this website.
If your child is thinking about a gap year, they can get good advice from this website.
उक्त शब्दकोश कहता है कि कभी child (male or female?) के लिए he प्रयुक्त होता था लेकिन इसे gender equality के खातिर छोड़ दिया गया  और दूसरा वाक्य प्रयोग लिया गया। लेकिन अब बहुत से अंगरेजीभाषी they को एकबचन में प्रयोग में  लेने लगे हैं । "Man is mortal." के लिए क्या कहेंगे?" 

हिन्दी सीखने में लोगों को कठिनाई होती है कहना बहुत माने नहीं रखता। हर अनजान भाषा को सीखने में आदमी (औरत अर्थ भी इसमें  शामिल है) को दिक्कत होती ही है। चीनी भाषा के बारे में क्या कहा जाएगा? जिसका इंडोयूरोपिअन भाषाओं से  कोई समता ही नहीं, वहां तो अक्षर (वर्ण) या alphabets जैसी चीज ही नहीं और आदमी को characters सीखने पड़ते हैं जिनकी संख्या 50 हजार से अधिक आंकी जाती है।

हर भाषा की अपनी खासियतें और खामियां होती हैं इस बात को हमें सहज रूप से स्वाकारना चाहिए। बहुत माथापच्ची मैं निरर्थक मानता हूं। अंगरेजी न जानने वाले हिन्दीभाषियों को शायद समास्या नहीं है। आवश्यकता पड़े तो अपने हिसाब से तात्कालिक समाधान खोजा जा सकता है।

विजयदशमी की मंगलकामनाएं।




22 अक्तूबर 2015 को 5:08 pm को, Hariraam <hari...@gmail.com> ने लिखा:

डॉ एम एल गुप्ता (Dr. M.L. Gupta)

unread,
Oct 23, 2015, 1:19:06 AM10/23/15
to hindian...@googlegroups.com
इस 'साँस' ने तो जान सांसत में डाल दी ।

22 अक्तूबर 2015 को 8:51 pm को, Yogendra Joshi <yogendr...@gmail.com> ने लिखा:



--
डॉ. एम.एल. गुप्ता 'आदित्य'
वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

Hariraam

unread,
Oct 23, 2015, 9:42:16 AM10/23/15
to hindian...@googlegroups.com
एक विद्यार्थी शिक्षक से पूछता है--
हिन्दी में
  राम जाता है
  सीता जाती है
  वे जाते हैं
होता है।

लेकिन अंग्रेजी में
Ram is going
Sita is going
they are going

सब जगह going ही क्यों होता है। यह गलत नहीं है क्या?
अंग्रेजी में यों होना चाहिए
Ram is goAng
Sita is Going
they are GoEng.


अवधि ब्रज, मैथिली आदि बोलियों में, तथा हिन्दी में ग्रामीण अंचलों में प्रयुक्त भाषा में इस प्रकार क्रिया पर लिंग के प्रभाव का कोई अन्तर नहीं होता--

राम भात खात है या राम भात खावत है
सीता भात खात है या सीता भात खावत है
सब भात खात है या सब भात खावत है

खाता, खाती खाते -- क्रियापदों के स्थान पर मूल क्रिया का ही प्रयोग होता है। अर्थ में कोई बदलाव नहीं आता। सही अर्थ या भाव समझ में नहीं आता।

खड़ी बोली में लिंग को लेकर व्याकरण के नियम भ्रमोत्पादक हैं और हिन्दीतर भाषियों के लिए एक "मखौल, हास्य, आक्षेप" का विषय...






हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.in>

Hariraam

unread,
Oct 23, 2015, 9:45:14 AM10/23/15
to hindian...@googlegroups.com
कृपया पिछले ईमेल में -- निम्न को प्रश्नवाचक चिह्न के साथ पढ़े--
सही अर्थ या भाव समझ में नहीं आता? 

Yogendra Joshi

unread,
Oct 23, 2015, 10:28:06 AM10/23/15
to hindian...@googlegroups.com
पाठकवृंद जरा इस लिंक पर पाठ्य सामग्री भी देख लें। हिन्दी अकेली नहीं जिसकी आलोचना हो रही है।

वैसे अंगरेजी में भी he, she, it आदि नहीं होने चाहिए।

हम भारतीय अंगरेजी के कुप्रभाव में जीते आ रहे है और उसे एक मानक भाषा के रूप में देखते है। हिन्दी का व्याकरण वैसा ही होना चाहिए जैसा अंगरेजी का है। अंगरेजी के चश्मे से देखें तो संस्कृत बहुत घटिया भाषा मानी जायेगी।

भाषाविद अंगरेजी को सर्वोत्तम भाषा नहीं मानते। सबसे बड़ा दोष उसके लिखित पाठ का ध्वन्यात्मक नहीं होना है। चूंकि कई कारणों से वह दुनिया में चल निकली, सो हमने मान लिया कि सभी अच्छाइयां उसी में हैं।

कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि लिपि हो तो लैटिन हो, देवनागरी बेकार है।

आलोचनाओं का कोई अंत नहीं होता है।

23 अक्तूबर 2015 को 7:15 pm को, Hariraam <hari...@gmail.com> ने लिखा:

lalit sati

unread,
Oct 23, 2015, 11:01:28 AM10/23/15
to ha
हिंदी की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे ग़लत लिखें, बोलें, बरतें - सब चलता है (सच तो यह है कि क्या सही है क्या ग़लत है इस पर भी अनेक रायें देखने को मिल जाती हैं)। टूटी-फूटी हिंदी बोलिए, लोग कहेंगे कि हिंदी बोलते हुए कितना क्यूट लगता है। अंग्रेज़ी ग़लत हो जाए तो अपने "सुसंस्कृत" हिंदुस्तानी भाई-बहन कहेंगे - चार लाइनें अंग्रेज़ी की आती नहीं हैं चले हैं ज्ञान बघारने, ये तो एकदमै गँवार है।

बहरहाल, इस चर्चा में योगेन्द्र जी के तर्क मुझे अधिक आकर्षित कर रहे हैं। हरिराम जी ने विचारणीय बिंदु तो उठाया है और उदाहरण भी दिलचस्प प्रस्तुत किए हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हिंदी भाषा में ऐसा कोई बदलाव ज़मीनी तौर पर आने जा रहा है। भाषा बनते-बनते बनती है और आज की तारीख़ में नहीं लगता कि इस समस्या  का कोई ऐसा हल लोकप्रचलन में आ जाए कि "व्याकरण के नियम भ्रमोत्पादक" न लगें। हाँ यह हो सकता है कि इस मामले में भाषाविद उदार रवैया अपनाएँ। वैसे तो, भाषा को कितना ही व्याकरण के नियमों में बाँधा जाए, अपवाद सब जगह रहते हैं। अंग्रेज़ी में भी हैं।

Hariraam

unread,
Oct 24, 2015, 2:27:31 AM10/24/15
to hindian...@googlegroups.com
ललित जी ने बिल्कुल सही एवं व्यावहारिक तथ्य बताया है--

सरकारी निदेश भी हैं कि "बोलचाल की सरल हिन्दी का प्रयोग करें।" 
लोग करें तो सही, हिन्दी का प्रयोग बढ़े तो सही...
जो हिन्दीतर भाषी लोग हिन्दी में कुछ व्याकरण गत गलतियाँ करें, तो उनपर आक्षेप न करके उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

लेकिन हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने जा रही है। 136 देशों का समर्थन मिल गया है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय जगत में कदम रखने पर इसमें काफी कुछ बदलाव और सुधार तो आएगा ही आएगा...

जैसे कि देवनागरी लिपि के कम्प्यूटरीकरण और युनिकोड में मानकीकरण के दौर में इस लिपि में सन् 1988 से लेकर आज तक अनेक सुधार हो चुके हैं और हो रहे हैं...

अतः समय और लोगों के प्रयोग की सुविधा के अनुसार भाषा को भी कदम मिलाकर चलना पड़ता है...

-- हरिराम


2015-10-23 20:31 GMT+05:30 lalit sati <lalit...@gmail.com>:
...आज की तारीख़ में नहीं लगता कि इस समस्या  का कोई ऐसा हल लोकप्रचलन में आ जाए कि "व्याकरण के नियम भ्रमोत्पादक" न लगें। हाँ यह हो सकता है कि इस मामले में भाषाविद उदार रवैया अपनाएँ। वैसे तो, भाषा को कितना ही व्याकरण के नियमों में बाँधा जाए, अपवाद सब जगह रहते हैं। अंग्रेज़ी में भी हैं।
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