अंतर्राष्‍ट्रीय बनाम अंतरराष्‍ट्रीय

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प्रकाश शर्मा

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Oct 3, 2012, 12:07:12 AM10/3/12
to hindian...@googlegroups.com
जी हां।
अनुवाद एक जटिल कार्य है जब आपको पता हो कि एक से अधिक स्‍वीकृत संस्‍करण मौजूद हैं एक ही संस्‍करण के। यानी समीक्षक को कान मरोड़ने का मौका मिलेगा ही मिलेगा।

बरसों से अंतर्राष्‍ट्रीय लिखता आ रहा हूं

पर 
फ़ादर कामिल बुल्‍के का शब्‍दकोश
नभाटा जैसे बड़े अखबार
अंतरराष्‍ट्रीय 
इस वर्तनी का इस्‍तेमाल ज्‍यादा से ज्‍यादा कर रहे हैं।

देखा जाए तो

अंत: राष्‍ट्रीय

यदि इन दो शब्‍दों को जोड़ा जाए तो विसर्ग लुप्‍त होकर हलन्‍त र् ही बनेगा, 
जिसे अंतर्राष्‍ट्रीय ही लिखा जाएगा।

लेकिन फिर भी विद्वानों की राय जानने का मौका गंवाना नहीं चाहूंगा।

तो कहिए मित्रों, आपका क्‍या ख्‍याल है। क्‍या आपके विचार मेरे विचार से अलग हैं?

उत्त्‍रापेक्षी,
प्रकाश शर्मा
 

Jai Pushp

unread,
Oct 3, 2012, 12:21:49 AM10/3/12
to hindian...@googlegroups.com
मेरी जानकारी के अनुसार
अंत:राष्‍ट्रीय का अर्थ है राष्‍ट्र के पैमाने पर यानी intra-national
अंतर-राष्‍ट्रीय का अर्थ है कई राष्‍ट्रों के पैमाने पर यानी inter-national
इसलिए
अंत:राष्‍ट्रीय = अंतर्राष्‍ट्रीय = intranational

अंतर-राष्‍ट्रीय = अंतरराष्‍ट्रीय = international

लेकिन व्‍यावसायिक अनुवाद की दुनिया में 'अंतरराष्‍ट्रीय' शब्‍द का प्रयोग कम ही होता
है और मैं भी मजबूरी में international के लिए 'अंतर्राष्‍ट्रीय' शब्‍द का ही प्रयोग
करता हूं।

व्‍याकरण की जानकारी रखने वाले मित्र इस विषय पर और प्रकाश डाल सकते हैं।

-- जय पुष्‍प
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Yogendra Joshi

unread,
Oct 3, 2012, 1:25:44 AM10/3/12
to hindian...@googlegroups.com
संस्कृत के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय (अन्तर्देशीय) शब्द राष्ट्र/देश के भीतर को इंगित करता है, जब कि अन्तरराष्ट्रीय (अन्तरदेशीय) शब्द राष्ट्र/देश के बाहर का संकेत देता है। देश के भीतर पत्राचार के लिए अन्तर्देशीय पत्रों का चलन है जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अस्वीकार्य हैं। हिंदी में न्तरराष्ट्रीय  के लिए अन्ताराष्ट्रीय/अन्ताराष्ट्रिय भी शब्दकोश सुझाते हैं। 

कुछ समय पहले इसी स्थाल पर मैंने एक सज्जन को निम्नलिखित बातें लिखीं थीं। वे मौजूदा   प्रसंग में सार्थक हो सकती हैं। उन्हें आगे प्रस्तुत कर रहा हूं। - योगेन्द्र जोशी

"अपनी सीमित जानकारी के अनुसार उक्त प्रश्न का आपको उत्तर देने का मेरा विचार था, किंतु कतिपय कारणों से ऐसा समय पर नहीं कर सका । संभव है आपको समाधान मिल चुका हो, फिर भी अपनी बात लिख रहा हूं । कृपया संलग्न DOC फ़ाइल का अवलोकन करें । इसमें मेरे शब्दकोश से चुने गये तीन पृष्ठों की छबियां शामिल हैं । आपको ‘अन्तर्‌’ एवं ‘अन्तर’ के भेद समझने में इनसे मदद मिल सकती है ।

"अन्तर्  उपसर्ग की भांति प्रयुक्त होता है और सामान्यतः किसी एक वस्तु या भाव के भीतर अन्य के होने का भाव व्यक्त करता है, अंदर समाया हुआ, आदि । इसके विपरीत अन्तर शब्द ‘दो/बहुतों के बीच’ को व्यक्त करता है । तदनुसार अन्तर्राष्ट्रीय = अन्तर्‌+राष्ट्रीय = राष्ट्र के भीतर, और अन्तरराष्ट्रीय = अन्तर+राष्ट्रीय = अलग-अलग राष्ट्रों के बीच । मुझे संस्कृत में अन्ताराष्ट्रीय शब्द नही दिखा । हो सकता है यह हिंदी में ही अन्तरराष्ट्रीय के लिए कालांतर में प्रयुक्त होने लगा हो । हिंदी शब्दकोश में यह है । यह भी ध्यान दें कि अन्तर्देशीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समानार्थी हैं ।

"गौर करें तो यह भी आप पायेंगे की अन्तर्‌ तथा अंतर कभी-कभी समनार्थी भी बन जाते हैं । जब शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होने लगते हैं तो उनका अंतर कभी-कभी अस्पष्ट हो जाता है । ऐसा एक उदाहरण ‘वि’ उपसर्ग का है जो कब कैसे अर्थ बदलेगा कह पाना कठिन होता है । आप इन शब्द-युग्मों पर गौर करें: 
"क्रय-विक्रय कृति-विकृति  ख्यात-विख्यात गुण-विगुण जय-विजय ज्ञान-विज्ञान देश-विदेश नत-विनत पक्ष-विपक्ष फल-विफल भक्त-विभक्त भाग-विभाग भिन्न-विभिन्न भूति-विभूति मति-विमति मुक्त-विमुक्त योग-वियोग रति-विरति राग-विराग लय-विलय शुद्ध-विशुद्ध शेष-विशेष सम-विषम संगत-विसंगत स्मित-विस्मित हार-विहार ।
"आप पायेंगे कि कहीं तो शब्द कमोबेश वही रहते हैं, तो कहीं उसकी तीव्रता/उत्कृष्टता बढ़ जाती है; कहीं विपरीत अर्थ देखने को मिलता है तो कहीं नया अर्थ पूर्णतः असंबद्ध-सा रहता है ।

"अंत में यह भी ध्यान दिला दूं कि संस्कृत में अन्त आदि को अंत आदि लिखना वर्जित है, जो कि हिंदी में स्वीकार्य है । वस्तुत:  व्यंजनमाला के किसी वर्ग (कवर्ग से पवर्ग) के व्यंजनों के पहले (शब्द के भीतर) अनुस्वार नहीं लिखा जाता है । अनुस्वार के स्थान पर उस वर्ग का पंचम वर्ण होना चाहिए, यथा अंक नही अङ्क, चंचल नहीं चञ्चल, कंठ नहीं कण्ठ, अंतर नहीं अन्तर, तथा संपर्क नहीं सम्पर्क, आदि । इसके विपरीत य से ह तक के आठ व्यंजनों के पूर्व अनुस्वार लिखा जाता है, जैसे संयम, हिंसा, आदि ।

"आपको इतने से कुछ मदद मिलेगी यह आशा है । - योगेन्द्र जोशी"

3 अक्तूबर 2012 10:09 am को, Suyash Suprabh (सुयश सुप्रभ) <translate...@gmail.com> ने लिखा:
प्रकाश जी,

हिंदी में 'अंतरराष्ट्रीय' और 'अंतर्राष्ट्रीय' दोनों प्रचलित हैं। ऐसे शब्दों में एकरूपता पर ध्यान देना चाहिए। लेखक को एक ही पाठ में इन दोनों वर्तनियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

'अंतरराष्ट्रीय' को बेहतर वर्तनी बताने वाले लोग यह तर्क देते हैं कि 'अंतर्राष्ट्रीय' का अर्थ है 'राष्ट्र देश के भीतर का'। इसे आप 'अंतर्देशीय' शब्द के संदर्भ में बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। 'अंतर्देशीय' का अर्थ है 'देश के भीतर का'। 'अंतरराष्ट्रीय' में जिस 'अंतर' का प्रयोग हुआ है उससे एक से अधिक देशों के बीच की बात वाला संदर्भ बेहतर ढंग से सामने आता है।

केंद्रीय हिंदी निदेशालय की 'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' नाम की किताब में 'अंतरराष्ट्रीय' का प्रयोग हुआ है।

सादर,

सुयश


 

3 अक्तूबर 2012 9:37 am को, प्रकाश शर्मा <prakaa...@gmail.com> ने लिखा:

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The Word ANTAR.doc

Vinod Sharma

unread,
Oct 3, 2012, 1:40:25 AM10/3/12
to hindian...@googlegroups.com
आशा है श्रद्धेय योगेंद्रजी द्वारा प्रस्तुत विषद विवेचन के बाद अब किसी प्रकार का कोई संशय नहीं रहना चाहिए।
 
2012/10/3 Yogendra Joshi <yogendr...@gmail.com>

Suyash Suprabh (सुयश सुप्रभ)

unread,
Oct 3, 2012, 12:38:20 PM10/3/12
to hindian...@googlegroups.com
प्रकाश जी,

हिंदी में 'अंतरराष्ट्रीय' और 'अंतर्राष्ट्रीय' दोनों प्रचलित हैं। ऐसे शब्दों में एकरूपता पर ध्यान देना चाहिए। लेखक को एक ही पाठ में इन दोनों वर्तनियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

'अंतरराष्ट्रीय' को बेहतर वर्तनी बताने वाले लोग यह तर्क देते हैं कि 'अंतर्राष्ट्रीय' का अर्थ है 'राष्ट्र के भीतर का'। इसे आप 'अंतर्देशीय' शब्द के संदर्भ में बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। 'अंतर्देशीय' का अर्थ है 'देश के भीतर का'। 'अंतरराष्ट्रीय' में जिस 'अंतर' का प्रयोग हुआ है उससे एक से अधिक देशों के बीच की बात वाला संदर्भ बेहतर ढंग से सामने आता है।

केंद्रीय हिंदी निदेशालय की 'देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण' नाम की किताब में 'अंतरराष्ट्रीय' का प्रयोग हुआ है।

सादर,

सुयश

3 अक्तूबर 2012 9:37 am को, प्रकाश शर्मा <prakaa...@gmail.com> ने लिखा:

Suyash Suprabh (सुयश सुप्रभ)

unread,
Oct 3, 2012, 12:50:42 PM10/3/12
to hindian...@googlegroups.com
प्रकाश जी,

आपकी यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि समीक्षक को कान मरोड़ने का मौका मिल ही जाता है। अधिकतर समीक्षक इस बात को मानने से इनकार कर देते हैं कि किसी शब्द के एक से अधिक रूप प्रचलित हो सकते हैं। ऐसे मामलों में एकरूपता पर ध्यान देना ही एकमात्र विकल्प होता है। 

'अंतर्राष्ट्रीय' और 'अंतरराष्ट्रीय' दोनों वर्तनियाँ प्रचलित हो गई हैं, इसलिए मैं इन्हें 'international' के पर्याय के रूप में स्वीकार्य मानता हूँ। 

सादर,

सुयश

3 अक्तूबर 2012 9:37 am को, प्रकाश शर्मा <prakaa...@gmail.com> ने लिखा:

abhishek singhal

unread,
Oct 4, 2012, 12:26:25 PM10/4/12
to hindian...@googlegroups.com
भाई साहब,
आखिर समीक्षक भी तो अपने पारिश्रमिक को फलितार्थ करेगा ही। मेरे साथ एक बार ऐसा हुआ कि मेरे वेण्डर मैनेजर साहब समीक्षक की कॉपी मिलते ही लगे जबरदस्त नाराज होने,,, मैंने आग्रह कर समीक्षा मंगवाई और उसे अपनी समीक्षा के साथ वापस लौटाई,, जिससे वेण्डर मैनेजर साहब थोड़ा संतुष्ट नजर आए फिर मैंने कहा जरा इन समीक्षक साहब का कोई काम हो तो जरा दीजिए। मजे मजे में उन्होंने मुझे मेल फॉरवर्ड कर दिया। फिर जो मैंने समीक्षा की तो समीक्षक साहब का रिप्लाई देखने लायक था। अब समीक्षकों की समीक्षा के तीर तो झेलने ही पड़ेंगे।

2012/10/3 Suyash Suprabh (सुयश सुप्रभ) <translate...@gmail.com>



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abhishek singhal
jaipur
09829266068
www.abhishek-singhal.blogspot.com



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