सरल शब्दो का उपयोग

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Sahiba Chauhan

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Aug 26, 2017, 4:08:36 AM8/26/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
मुझे अनुवादकों से शिकायत रहती है की वह हिंदी को इतना कठिन क्यों कर देते है
कि आम इंसान को समझने मे कठिनाई हो
अरे भई हिंदी लिखनी उन्हीं शब्दों में चाहिए जिन शब्दों मे आम नागरिक समझ सके की वह क्या कहना चहा रहे है।
अब हिंदुस्तान मे ज्यादा हिंदी ही लिखी,बोली व पढ़ी जाती है
तो उसे इतना कठिन क्यों बनना कि बच्चें युवा पीढ़ी हमारी मातृभाषा हय की दृष्टि से देखे।
क्यों वे अनुवादक जिसे शब्दों का अच्छा खासा ज्ञान है अपनी पंडिताई झाड़ने मे लगा रहता है।
ऐसा करके वह क्या साबित करना चाहते है की वह शब्दों के मामले सबसे श्रेष्ठ है??
हिंदी को कठिन बनाने मे सबसे बड़ा तुम्हारा हाथ है,
स्कूलों की किताबों मे इतने कठिन शब्द डालने कि क्या आवश्यकता जबकि वहाँ सरल शब्दों से काम बन सकता है।

अब मैट्रो मे आए हुए कुछ यात्रियों को "Exit" समझ आता है।
परंतु वो जिन्हें अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं है वे तो हिंदी में देखेगा ना
ऐसे आप लोग "बाहर जाए" की जगह आप "निकास" लिख देते है।
जो बच्चें भी ना समझ पाए
और हमारे माॅर्डन युवा जिन्हें "Exit" तो पता है लेकिन "निकास" ऐसे हैरानी से देखते है जैसे हिंदी शब्द दूसरे ग्रह से आया हो

ऐसे में जिम्मेदार अनुवादक ही है जो भाषा और शब्द को इतना कठिन बना देते है कि हिंदी से हम दूर भागते है।

तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि हिंदी अंग्रेजी के सामने कैसे टिक पाएगी जहाँ हिंदी को इतना कठिन बना दिया जाता है हमारे देश के युवा और बच्चें अंग्रेजी का रूख कर लेते है
और फिर बैठकों यह सवाल आता है कि "हिंदी को कैसे आगे बढ़ाया जाए"
😡😡😡😡
#साहिबाचौहान

#Centraltranslationbureau
#केंद्रीयअनुवादब्यूरो
#राजभाषाविभाग
#गृहमंत्रालय

abhishek singhal

unread,
Aug 26, 2017, 4:41:13 AM8/26/17
to hindian...@googlegroups.com
 सही बात

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Yogendra Joshi

unread,
Aug 26, 2017, 12:12:38 PM8/26/17
to hindian...@googlegroups.com
अच्छा होता कि कमेंट (टिप्पणी) करने वाली मैडम (महोदया) दस-पंद्रह उदाहरण देकर सिचुएशन (वस्तुस्थिति) अधिक क्लियर (स्पष्ट) करतीं।

नयी पीढ़ी के बच्चों को (मैं तो पुराने जमाने का 70-साला बूढ़ा हूं) को व्हाइट (सफेद) शर्ट, ब्लैक (काली) पेन, ज़ू (चिड़ियाघर) के टाइगर (बाघ), बाजार की फ़िश (मछली), ऐपल (सेब) एवं उसकी प्राइस (दाम) सेवंटी रुपीज़ (सत्तर रुपया), बॉडी-टेम्परेचर (शरीर का तापमान) आदि अधिक फ़ैमिलिअर (परिचित) लगने लगे हैं। इसलिए अब हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों का अधिकाधिक  प्रयोग होने लगा है। उदाहरण - पतंजलि का विज्ञापन हिन्दी में - "पतंजलि हनी, प्योरिटी की हंड्रेड पर्सेंट गारंटी"। यह हिन्दी में है क्योंकि शब्दक्रम उसी के अनुसार है और संबंधबोधक कारक "की" का प्रयोग हुआ है। अन्यथा सभी शब्द अंग्रेजी के हैं और आज के शहरियों के लिए सुपरिचित हैं। अब बच्चे हनी जानते हैं न कि मधु/शहद को, सभी प्योर कहते हैं न कि शुद्ध। भविष्य की हिन्दी यही बनने वाली है।

भारतीयों में भाषाई अभिमान (प्राइड) दरअसल नहीं के बराबर है। मध्यम एवं उसके ऊपर का सामाजिक वर्ग 
अब अंग्रेजियत में ढल रहा है। पश्चिम के तौर तरीके वह अधिक से अधिक अपना रहा है। उसके लिए भाषा उसकी पहचान का हिस्सा नहीं है, बल्कि जिन्दगी में भौतिक स्तर पर सफल होने का साधन है। चूंकि सर्वत्र अंग्रेजी छाई हुई है और उसी को आगे बढ़ने का रास्ता बना दिया गया है इसलिए उसी पर सबका जोर है, गरीब से लेकर अमीर तक का। हर कोई यह पूछता है कि हिन्दी सीखकर क्या मिलेगा, क्यों न पूरी ताकत अंग्रेजी पर लगा दी जाए, आदि। 

एक समय होता था जब लोग कामचलाऊ शब्दसंपदा से आगे बढ़कर अपनी शब्दसामर्थ्य को भी बढ़ाते थे। आज स्थिति यह है कि जयशंकर प्रसाद जी की जैसे कविता लिखने की कोई हिम्मत नहीं करेगा, हिन्दी में स्नातक-स्नातकोत्तर लोग भी नहीं। कामचलाऊ हिन्दी बस काफी है। ऐसा नहीं कि लोगों की अंग्रेजी अच्छी हो, वह भी नहीं। जितने से काम चले वही काफी।

एक समय था जब मैं अपने विश्वविद्यालय में बी.एससी के छात्रों को कंप्यूटर विज्ञान भी पढ़ाता था और उन्हें भौतिकी (फिज़िक्स) भी पढ़ाता था। वे भौतिकी में रुचि नहीं लेते थे; कहते थे हमें कंप्यूटर में एम.एससी करना है फिज़िक्स पढ़कर क्या करेंगे? वह तो हम पास कर ही लेंगे। हिन्दी के प्रति भी लोगों का नजरिया कुछ ऐसा ही है।

देश भारत भूलकर इंडिया बन चुका है। आगे क्या होगा अनुमान लगाया जा सकता है। - योगेन्द्र जोशी


26 अगस्त 2017 को 2:11 pm को, abhishek singhal <abhi19...@gmail.com> ने लिखा:
 सही बात



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Narayan Prasad

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Aug 26, 2017, 2:18:18 PM8/26/17
to hindian...@googlegroups.com
 मैं श्री योगेन्द्र जोशी जी की बातों से पूर्ण रूप से सहमत हूँ ।

<<अच्छा होता कि कमेंट (टिप्पणी) करने वाली मैडम (महोदया) दस-पंद्रह उदाहरण देकर सिचुएशन (वस्तुस्थिति) अधिक क्लियर (स्पष्ट) करतीं।>>

जिन लोगों को "निकास" जैसे चलते-फिरते शब्द की अपेक्षा केवल "Exit" जैसे शब्द अधिक आसान प्रतीत होते हैं, ऐसे लोगों से किस प्रकार के स्तर की हिन्दी की जानकारी की आशा की जा सकती है ? ऐसे ही उनकी हिन्दी के स्तर की पोल खुल गई, और अधिक उदाहरण देने से क्या दशा होती ?
--- नारायण प्रसाद


 सही बात



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पीयूष ओझा

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Aug 26, 2017, 2:28:40 PM8/26/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
'निकास' तो बहुत साधारण शब्द है। आज भी शायद हिंदी पट्टी का हर ग़रीब व्यक्ति जिसके घर में बारिश में पानी भर जाता है इस शब्द से परिचित है।

शनिवार, 26 अगस्त 2017 को 9:08:36 पूर्व UTC+1 को, Sahiba Chauhan ने लिखा:

Gagan Manotra

unread,
Aug 26, 2017, 3:02:27 PM8/26/17
to hindian...@googlegroups.com

मेरे ख्याल से इस तरह की टिप्पणी से अनुवादकों का उत्साह भंग होगा जबकी हमें उनके सही काम की प्रशंसा करनी चाहिए। रही बात सरल और कठिन की तो जो चीज़ आप सीख जाते हैं वो आपके लिए सरल हो जाती और जो नही सीखते वो कठिन होती है। मान लो किसी छोटे बच्चे को हम कोई चीज बार बार दिखाते हैं तो उस बच्चे के दिमाग में उस चीज़ की छवि बन जाती है। ठीक उसी तरह हम सभी के दिमाग में एेसे शब्द घर कर गए हैं। हम हर जगह जैसे सिनेमाघर, रेलवे स्टेशन आदि जगहों पर  EXIT  शब्द बचपन से देखते आए हैं इसलिए निकास शब्द अब अटपटा लगने लगा है जबकि हिन्दी का सही शब्द तो निकास ही है। अगर हर जगह एेसे छोटे छोटे अंग्रेजी के शब्दों को बाहर कर दिए जाएं और हिन्दी के शब्दों का प्रयोग करने का प्रयास किया जाए तो धीरे धीरे  यह शब्द हमें अपनें लगने लगेंगे।

गगन

Binay Shukla

unread,
Aug 27, 2017, 12:24:08 AM8/27/17
to hindian...@googlegroups.com
शत प्रतिशत सहमत हूँ

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sunitigupta47

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Aug 27, 2017, 4:59:58 AM8/27/17
to hindian...@googlegroups.com
मैं श्री जोशी जी के विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ । आज की वस्तुस्थिति यही है 



Sent from my Samsung Galaxy smartphone.

-------- Original message --------
From: Yogendra Joshi <yogendr...@gmail.com>
Date: 27/08/2017 04:12 (GMT+12:00)
Subject: Re: {हिंदी अनुवादक} सरल शब्दो का उपयोग

अच्छा होता कि कमेंट (टिप्पणी) करने वाली मैडम (महोदया) दस-पंद्रह उदाहरण देकर सिचुएशन (वस्तुस्थिति) अधिक क्लियर (स्पष्ट) करतीं।

नयी पीढ़ी के बच्चों को (मैं तो पुराने जमाने का 70-साला बूढ़ा हूं) को व्हाइट (सफेद) शर्ट, ब्लैक (काली) पेन, ज़ू (चिड़ियाघर) के टाइगर (बाघ), बाजार की फ़िश (मछली), ऐपल (सेब) एवं उसकी प्राइस (दाम) सेवंटी रुपीज़ (सत्तर रुपया), बॉडी-टेम्परेचर (शरीर का तापमान) आदि अधिक फ़ैमिलिअर (परिचित) लगने लगे हैं। इसलिए अब हिन्दी में अंग्रेजी शब्दों का अधिकाधिक  प्रयोग होने लगा है। उदाहरण - पतंजलि का विज्ञापन हिन्दी में - "पतंजलि हनी, प्योरिटी की हंड्रेड पर्सेंट गारंटी"। यह हिन्दी में है क्योंकि शब्दक्रम उसी के अनुसार है और संबंधबोधक कारक "की" का प्रयोग हुआ है। अन्यथा सभी शब्द अंग्रेजी के हैं और आज के शहरियों के लिए सुपरिचित हैं। अब बच्चे हनी जानते हैं न कि मधु/शहद को, सभी प्योर कहते हैं न कि शुद्ध। भविष्य की हिन्दी यही बनने वाली है।

भारतीयों में भाषाई अभिमान (प्राइड) दरअसल नहीं के बराबर है। मध्यम एवं उसके ऊपर का सामाजिक वर्ग 
अब अंग्रेजियत में ढल रहा है। पश्चिम के तौर तरीके वह अधिक से अधिक अपना रहा है। उसके लिए भाषा उसकी पहचान का हिस्सा नहीं है, बल्कि जिन्दगी में भौतिक स्तर पर सफल होने का साधन है। चूंकि सर्वत्र अंग्रेजी छाई हुई है और उसी को आगे बढ़ने का रास्ता बना दिया गया है इसलिए उसी पर सबका जोर है, गरीब से लेकर अमीर तक का। हर कोई यह पूछता है कि हिन्दी सीखकर क्या मिलेगा, क्यों न पूरी ताकत अंग्रेजी पर लगा दी जाए, आदि। 

एक समय होता था जब लोग कामचलाऊ शब्दसंपदा से आगे बढ़कर अपनी शब्दसामर्थ्य को भी बढ़ाते थे। आज स्थिति यह है कि जयशंकर प्रसाद जी की जैसे कविता लिखने की कोई हिम्मत नहीं करेगा, हिन्दी में स्नातक-स्नातकोत्तर लोग भी नहीं। कामचलाऊ हिन्दी बस काफी है। ऐसा नहीं कि लोगों की अंग्रेजी अच्छी हो, वह भी नहीं। जितने से काम चले वही काफी।

एक समय था जब मैं अपने विश्वविद्यालय में बी.एससी के छात्रों को कंप्यूटर विज्ञान भी पढ़ाता था और उन्हें भौतिकी (फिज़िक्स) भी पढ़ाता था। वे भौतिकी में रुचि नहीं लेते थे; कहते थे हमें कंप्यूटर में एम.एससी करना है फिज़िक्स पढ़कर क्या करेंगे? वह तो हम पास कर ही लेंगे। हिन्दी के प्रति भी लोगों का नजरिया कुछ ऐसा ही है।

देश भारत भूलकर इंडिया बन चुका है। आगे क्या होगा अनुमान लगाया जा सकता है। - योगेन्द्र जोशी

26 अगस्त 2017 को 2:11 pm को, abhishek singhal <abhi19...@gmail.com> ने लिखा:
 सही बात
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abhishek singhal
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Yogendra Joshi

unread,
Aug 27, 2017, 6:22:07 AM8/27/17
to hindian...@googlegroups.com
मैं गगन मनोत्राजी की बातों को अस्वीकर नहीं करता।

मैं स्वयं अनुवादक नहीं हूं भले ही अपने काम के लिए स्वयं ही अनुवाद करता हूं हिन्दी-अंग्रेजी को लेकर। मुझे अनुवादकों से सहानुभूति है। उन्हें शायद कई मौकों पर असमंजस का सामना करना पड़ सकता है यह सोचते हुए कि हिन्दी का "तथाकथित कम प्रचलित" शब्द का प्रयोग करें अथवा अंग्रेजी के ही शब्द को यथावत् अपने पाठ में स्थान दें, जिसके बारे में यह आम धारणा हो कि अधिकांश जन उससे सुपरिचित रहते हैं। दिक्कत अनुवादक के शब्द-भांडार की नहीं होती है बल्कि पाठक के सीमित भाषाई शब्दों के ज्ञान की। पाठक को यदि उन शब्दों का ज्ञान ही न हो जिनको अनुवादक प्रयोग में लेने की सोचता हो तब क्या करना चाहिए? अस्तु, यह बात अपनी कल्पना के आधार पर कह रहा हूं। वास्तविक स्थिति क्या है या हो सकती है यह तो वे ही लोग बता सकते हैं।

एक और बात मेरे मन में उठती है। मैं सिनेमा-घरों की नहीं जानता जहां मैं दशकों से नहीं गया हूं। बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों, अस्पतालों, मॉलों आदि स्थानों पर मैंने अंग्रेजी (यानी लैटिन लिपि) में EXIT लिखा देखा है न कि हिन्दी (देवनागरी) में एक्सिट/एग्ज़िट। सवाल उठता कि क्या ऐसे शब्दों को लैटिन में ही लिखना अधिक सुविधाजनक नही होगा, पढ़ने में भी और बोलने/समझने में भी? दूसरे शब्दों में क्या यह उपयोगी नहीं होगा कि लैटिन "लेटरों" को अपनाते हुए  हिन्दी वर्णमाला को विस्तारित किया जाए? कई लोगों का मत है कि अब हिन्दी को रोमन लिपि में लिखा जाना चाहिए; सोशल साइटों पर तो यह हो ही रहा है। - योगेन्द्र जोशी

27 अगस्त 2017 को 9:54 am को, Binay Shukla <binays...@gmail.com> ने लिखा:


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Sahiba Chauhan

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Aug 28, 2017, 2:53:12 AM8/28/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
bilkul sahi baat
 सही बात



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पीयूष ओझा

unread,
Aug 28, 2017, 6:51:51 AM8/28/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)

योगेन्द्र जी,


दूसरी भाषा के शब्दों को यथावत् या थोड़ा बदलकर अपनी भाषा में ग्रहण करना और लिप्यंतरित करके लिखना तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जहाँ भ्रम की सम्भावना हो वहाँ लोग रोमन अक्षरों में लिखते ही हैं हालांकि यदि ऐसा बहुत किया जाए तो लिखावट अटपटी दिखने लगती है।


(अंग्रेज़ी शब्दों को हिंदी में ग्रहण करने का एक सुंदर उदाहरण मैंने शायद बीबीसी हिंदी के पन्नों में देखा था: ख़बर थी कि दिल्ली में सब्ज़ीवाले अब ब्रॉक्ली (broccoli) बेचने लगे हैं, बरकोली के नाम से।)


हिंदी को व्यापक स्तर पर रोमन लिपि में लिखने का सुझाव कुछ लोगों ने दिया है। ऐसा ही सुझाव सुना है राजेन्द्र यादव, नामवर सिंह आदि ने उर्दू के बारे में दिया था, कि उर्दू की 'जान बचाने के लिए' उसे नागरी अक्षरों में लिखा जाना चाहिए।


मैं समझता हूँ कि लिपि भाषा के स्वरूप का अनिवार्य अंग है। लिपि बदलने पर भाषा नहीं बची रहेगी।


इस विषय पर एक परिचर्चा में शमीम हनफ़ी साहब ने बहुत सही बात कही है: भाषा और लिपि का सम्बन्ध शरीर और कपड़ों का नहीं है कि बदल दिए बल्कि शरीर और चमड़ी का है। लिपि बदलना भाषा की खाल खींचने के बराबर है।


दूसरी बात उन्होंने यह कही कि ऐसा प्रयोग तुर्की में किया गया था। लिहाज़ा नई पीढ़ियाँ अपनी साहित्यिक धरोहर पढ़ने-समझने में पूर्णत: असमर्थ हैं।


शमीम हनफ़ी साहब के विचार निम्न लिंक पर सुने जा सकते है (१४:०० पर):


https://www.youtube.com/watch?v=qsXwNk7PEDg



अशोक वाजपेयी साहब ने भी एक चर्चा में ऐसा ही कुछ कहा है (:०० पर):


https://www.youtube.com/watch?v=xeNM3OcdHL8


सादर


पीयूष ओझा

हरिराम

unread,
Aug 28, 2017, 7:06:48 AM8/28/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करने के लिए सरकारी निदेश हैं।
ग्रामीण बोलचाल भी चलती है।

अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को समर्थ बनाना है तो साम, दाम, दंड, भेद सारे तरीके अपनाना चाहिए।
लेकिन हिंदी के बारे में राष्ट्रपति के आदेशों तक का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन होता है, क्योंकि कोई दंडविधान लागू नहीं है।
केवल 'दाम' अर्थात् 'प्रोत्साहन' राशि के बल पर चलाकर तो हिंदी की दुर्गति ही हो रही है।

हरिराम

Binay Shukla

unread,
Aug 28, 2017, 9:28:25 AM8/28/17
to hindianuvaadak
आपकी बात एकदम सत्य है। आसान हिंदी का मतलब हिंदी ही होना चाहिए न कि अंग्रेजी का सम्मिश्रण। एक विडंवना यह भी है कि विद्वजन आसान हिंदी के नाम पर अंग्रेजी के शब्दों को अपनाने की बात की वकालत तो करते हैं पर कभी यह नहीं कहते कि हिंदी में भारतीय भाषाओं को समाहित कर इसे अपने देश मे सर्वग्राह्य बनाया जाए। अब तो अखबार नवीश भी अखबारों के कुछ ही अक्षर हिंदी का रख पूरा वाक्य हिंगलिश में लिख डालते हैं।अब हम हिंदी को समृद्ध करने की बात करते हैं या उसे लूटने की यह तो राम जाने.........


 
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Gagan Manotra

unread,
Aug 28, 2017, 10:54:33 AM8/28/17
to hindian...@googlegroups.com

अक्सर देखा जाता है कि अनुवाद करवाने वाले या कई बार खुद अनुवादक भी पहले से यह कल्पना कर लेते हैं कि पाठक को फलाना शब्द समझ नहीं आएगा। मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या पाठक अनपढ़ है यां आप पाठक से ज्यादा बुद्धिमान हैं। अरे आप अपना अनुवाद तो सटीक रखें। रही बात पाठक के समझ में आने की तो इसकी चिंता पाठक को करने दें।  हिंदी अनुवाद में अंग्रेजी के शब्द जबरदस्ती घुसाने के कारण कई बार आप उपहास के पात्र भी बन जाते हैं। हां कुछ बेहद जटिल शब्दों की बात अलग है जो शायद अंग्रजी में ही लिखे जाएं तो बेहतर है जैसे रेल, रेलवे स्टेशन, चिकित्सा से जुड़े शब्द आदि।


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Binay Shukla

unread,
Aug 28, 2017, 11:06:21 AM8/28/17
to hindianuvaadak
सत्य वचन

Yogendra Joshi

unread,
Aug 28, 2017, 12:42:09 PM8/28/17
to hindian...@googlegroups.com
पीयूष ओझाजी,

मुझे अंग्रेजी के उन शब्दों के प्रयोग पर आपत्ति नहीं हैं जिनके तुल्य शब्द हिन्दी में नहीं है या ऐसे तुल्य शब्द आम प्रचलन में न रहे हों। लेकिन यहां तो हिन्दी के सभी शब्दों को शनैः-शनैः अंग्रेजी शब्दों से विस्थापित करने की प्रक्रिया चल रही है। तथाकथित हिन्दी-भाषियों के सामने वह कौन-सी विवशता रहती है कि उन्हें काले को ब्लैक, बाघ को टाइगर, गले को थ्रोट, "और" को "ऐंड" इत्यादि कहना पड़ता है।

क्या प्रचलन में है क्या नहीं यह भी समय के साथ बदल जाता है। मेरा अनुमान है कि अगले २०-२५ सालों में ऊपर के तमाम शब्द लोगों की जबान पर इस कदर छा जाएंगे कि यही प्रचलन में कहलाएंगे। हम उसी दिशा में अग्रसर हो रहे हैं।

चलिए मान लेता हूं कि यह सब हिन्दी को समृद्ध करने के हमारे उत्साह का द्योतक है, हमारे भाषाई उदारता का परिचायक है। लेकिन यही उदारता हम अंग्रेजी में हिन्दी आदि के शब्दों को प्रयोग में लेकर क्यों नही दिखाते? हमारी अंग्रेजी देशवासियों के लिए है तो फिर यहां की भाषाओं के शब्द धड़ल्ले से इस्तेमाल क्यों नहीं होने चाहिए? लेकिन तब हम अंग्रेजी की शुद्धता के प्रति सचेत हो जाते हैं। हिन्दी के लिए? सब चलता है।

जहां तक लैटिन लिपि का सवाल है उसका प्रयोग उसी प्रकार आपत्तिजनक है जिस प्रकार अंग्रेजी में देवनागरी का, या किसी भी अन्य बाषा में।

लेकिन हम सुविधावादी समाज हैं। जिसमें सुविधा लगे वह कर लो की मानसिकता के धनी!

माफ करें कि मेरी उपर्युक्त टिप्पणी में अनेक ऐसे शब्द हैं जिन्हें लोग अटपटे, क्लिष्ट, एवं अवांछित कहेंगे। लेकिन मेरी मजबूरी है कि ...


28 अगस्त 2017 को 6:58 pm को, Binay Shukla <binays...@gmail.com> ने लिखा:
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पीयूष ओझा

unread,
Aug 28, 2017, 5:20:57 PM8/28/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)

दूसरे शब्दों में क्या यह उपयोगी नहीं होगा कि लैटिन "लेटरों" को अपनाते हुए हिन्दी वर्णमाला को विस्तारित किया जाए?”



योगेन्द्र जी,


मेरी टिप्पणी केवल हिंदी रोमन लिपि में लिखने के सुझाव और नागरी लिपि के विस्तार पर थी। मेरे विचार से लिपि भाषा के स्वरूप का अनिवार्य अंग है और, बक़ौल शमीम हनफ़ी, लिपि बदलना भाषा की खाल खींचने के बराबर है।


लिपि का विस्तार, जैसे कि उर्दू ध्वनियों की व्यक्ति के लिए नुक़्ते का प्रयोग, केवल स्वीकार्य ही नहीं, स्वागत-योग्य है क्योंकि इससे हिंदी का स्वरूप समृद्ध हुआ है, खंडित नहीं। केंद्रीय हिंदी निदेशालय की पुस्तिका देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण में नागरी लिपि में अन्य भारतीय भाषाओं की विशिष्ट ध्वनियाँ व्यक्त करने के लिए विशेष चिह्न दिए गए हैं। यह सब बहुत अच्छा है। किंतु जहाँ दूसरी भाषा के शब्दों को नागरी में लिखा जा सकता है, वहाँ लिपि विस्तार की क्या आवश्यकता है? रोमन अक्षरों का नागरी में समावेश क्यों किया जाए?


हिंदी में अंग्रेज़ी शब्दों के प्रयोग के बारे में मैं आपसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ ( हंड्रेड परसेंट नहीं! ) – अंग्रेज़ी तथा अन्य भाषाओं से शब्द तभी लिए जाएँ जब हिंदी में समानार्थी शब्द उपलब्ध या सुलभ न हों और ऐसे शब्दों को नागरी लिपि में लिखा जाए। यदि नागरी में लिप्यंतरण से भ्रम की सम्भावना हो तो कोष्ठक में मूल शब्द उसकी स्वाभाविक लिपि में लिखा जाए। तकनीक, विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में यह लम्बे समय से हो रहा है।


हिंगलिश से मुझे भी उतनी ही कोफ़्त होती है जितनी आपको।


सादर


पीयूष ओझा




Vinod Sharma

unread,
Aug 31, 2017, 2:25:34 PM8/31/17
to hindian...@googlegroups.com
​इस चर्चा के सभी सहभागियों से क्षमा याचना सहित निवेदन करना चाहता हूँ कि यह चर्चा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो की जिन महोदया की टिप्पणी से आरंभ हुई है, उनकी हिंदी की कुछ बानगियाँ पेश हैं:-
आम नागरिक समझ सके की वह क्या कहना चहा रहे है​ अब हिंदुस्तान मे ज्यादा हिंदी ही लिखी,बोली व पढ़ी जाती है
तो उसे इतना कठिन क्यों बनना कि बच्चें युवा पीढ़ी हमारी मातृभाषा हय की दृष्टि से देखे।
​ ​
ऐसा करके वह क्या साबित करना चाहते है की वह शब्दों के मामले सबसे श्रेष्ठ है?हिंदी को कठिन बनाने मे सबसे बड़ा तुम्हारा हाथ है,

स्कूलों की किताबों मे इतने कठिन शब्द डालने कि क्या आवश्यकता जबकि वहाँ सरल शब्दों से काम बन सकता है।

अब मैट्रो मे आए हुए कुछ यात्रियों को "Exit" समझ आता है।
परंतु वो जिन्हें अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं है वे तो हिंदी में देखेगा ना
ऐसे आप लोग "बाहर जाए" की जगह आप "निकास" लिख देते है
जो बच्चें भी ना समझ पाए
और हमारे माॅर्डन युवा जिन्हें "Exit" तो पता है लेकिन "निकास" ऐसे हैरानी से देखते है जैसे हिंदी शब्द दूसरे ग्रह से आया हो

ऐसे में जिम्मेदार अनुवादक ही है जो भाषा और शब्द को इतना कठिन बना देते है कि हिंदी से हम दूर भागते है

तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि हिंदी अंग्रेजी के सामने कैसे टिक पाएगी जहाँ हिंदी को इतना कठिन बना दिया जाता है हमारे देश के युवा और बच्चें अंग्रेजी का रूख कर लेते है
और फिर बैठकों यह सवाल आता है कि "हिंदी को कैसे आगे बढ़ाया जाए"

क्षमा चाहता हूँ कि मैं विषयांतर कर रहा हूँ, लेकिन मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि मोहतरमा हिंदी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं और केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो जैसी संस्था से संबद्ध भी हैं। भाषा के इस स्तर के परिप्रेक्ष्य में ही अनुवादकों के संबंध में उनकी शिकायत को देखना उचित होगा।​
​ मेरा आशय मोहतरमा के प्रति सम्मान में कोई कमी करना नहीं है। एक प्रश्न उन्होंने उठाया तो एक प्रश्न मैंने उठा दिया है।

सादर,
विनोद शर्मा 


 
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Pramod Tiwari

unread,
Sep 1, 2017, 3:35:00 AM9/1/17
to hindian...@googlegroups.com
विनोद शर्माजी, ऐसी मोहतरमाओं का सम्‍मान भला कैसे किया जा सकता है, जिन्‍हें हिन्‍दी का एक वाक्‍य लिखना नहीं आता। वे भाषा पर टिप्‍पणी कर रहीं हैं, हद है। थोड़ी भी शर्म बची हो तो ऐसे लोगों को तत्‍काल अपने पद से त्‍यागपत्र देनाा चाहिए। इसके बाद एक व्‍यक्ति के रूप में येे सम्‍मानीय हो सकती हैं।  
सादर,
प्रमोद

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डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर
गुजरात के‍न्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय
गांधीनगर 

Narayan Prasad

unread,
Sep 1, 2017, 6:40:38 AM9/1/17
to hindian...@googlegroups.com
>>मोहतरमा हिंदी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं
>  जिन्‍हें हिन्‍दी का एक वाक्‍य लिखना नहीं आता। 

   ???!!!


डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर
गुजरात के‍न्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय
गांधीनगर 

--

Anand

unread,
Sep 1, 2017, 8:43:47 AM9/1/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
माफ करें, चर्चा विषय पर ही केंद्रित रहे तो अच्छा है। 

मैं सटीक शब्दों का उपयोग जरूरी मानता हूँ, भले ही वह सु‍नने में अपरिचित लगे या कठिन जान पड़े। यह अनुवादकों की समस्या नहीं है, कुछ श्रम पाठकों को भी करना चाहिए। प्रस्तुत उदाहरण में "बाहर जाएँ" के बजाए "निकास" छोटा और सरल है, इसलिए यही उपयुक्त है।

विषय जटिल हो सकता है, नीरस हो सकता है, कई दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन हर बात के लिए अनुवादकों को दोषी ठहराया जाता है, और यह कोई नई बात नहीं है। यूँ विषय छोड़कर ऐसी बात करना ही क्यों जिससे कोई हर्ट हो सकता है?

आनंद

Shri Krishna Sharma

unread,
Sep 1, 2017, 8:59:43 AM9/1/17
to hindian...@googlegroups.com
मैं भी ऐसा मानता हूँ कि कोई मौका मिले और हम किसी का शिकार करने के लिए तत्पर हो जाएं, यह उचित नहीं है। 
लोगों में कमियां हो सकती हैं लेकिन इस मंच से, उनका उपहास उड़ाना उचित नहीं है। 

श्रीकृष्ण 

Yogendra Joshi

unread,
Sep 1, 2017, 10:58:14 AM9/1/17
to hindian...@googlegroups.com
इस देश का मध्यम एवं उच्चवर्गीय समाज हिन्दी को लेकर जिस गुलाम मानसिकता के ग्रस्त है उसका कोई इलाज नहीं है। प्रायशः (बहुधा) वे अंग्रेजी के समक्ष इस सीमा तक अभिभूत अथवा पराभूत हो चुके हैं कि उन्हें लगता है अंग्रेजी शब्द ही तो हिन्दी के असली सरल शब्द हैं। हिन्दी का भविष्य इन्हीं लोगों के हाथों संवरने जा रहा है। परिणाम क्या होंगे समझदार को समझने में देर नहीं लगेगी। 
उपर्युक्त (उपरोक्त नहीं!) अनुच्छेद में मैंने उन दो-चार शब्दों का जानबूझकर प्रयोग किया है जिनका ज्ञान तक आज के कई हिन्दी-सेवियों को नहीं होगा।
(विज्ञान का छात्र होने के कारण मैंने तो हिन्दी केवल इंटरमीडिएट तक पढ़ी है, शेष ज्ञान स्वरुचिजनित है।)
अवसर मिले तो कृपया मेरी इस ब्लॉग-पोस्ट "उनकी हिन्दी बनाम मेरी हिन्दीको पढ़ने  कष्ट करें:


1 सितंबर 2017 को 6:29 pm को, Shri Krishna Sharma <kris2...@gmail.com> ने लिखा:

Narayan Prasad

unread,
Sep 1, 2017, 1:39:36 PM9/1/17
to hindian...@googlegroups.com
<<इस देश का मध्यम एवं उच्चवर्गीय समाज हिन्दी को लेकर जिस गुलाम मानसिकता के ग्रस्त है उसका कोई इलाज नहीं है। प्रायशः (बहुधा) वे अंग्रेजी के समक्ष इस सीमा तक अभिभूत अथवा पराभूत हो चुके हैं कि उन्हें लगता है अंग्रेजी शब्द ही तो हिन्दी के असली सरल शब्द हैं। >>

मुझे नहीं लगता कि इंटरमेडिएट तक भी हिंदी माध्यम से शिक्षित और विज्ञान एवं तकनीकी विषय में उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भी ऐसी खराब हिंदी लिखते होंगे (मैं बोलचाल की हिंदी की बात नहीं कर रहा) । 

आजकल लोग अंग्रेजी तो बीस साल लगाते हैं सीखने में, लेकिन हिंदी को सीखने की आवश्यकता नहीं समझते, बोलचाल की हिंदी ही उनके लिए हिंदी भाषा है, उच्च विचार की अभिव्यक्ति के लिए भी गली-कूची की भाषा का प्रयोग करना चाहते हैं । अंग्रेजी मिश्रित हिंदी लिखने का एक बड़ा कारण यह भी है कि ऐसे लोगों का संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं के बराबर होता है, इसलिए हिंदी भी उनकी कमजोर होती है ।

--- नारायण प्रसाद

हरिराम

unread,
Sep 4, 2017, 1:32:43 AM9/4/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
साहिबा जी,

सरल हिंदी शब्द प्रयोग करने को कहने वजाए, सरल अंग्रेजी शब्द प्रयोग करने को कहना चाहिए आपको।

अंग्रेजी में यदि Entrance और Exit लिखा गया हो तो उसका हिंदी अनुवाद 'प्रवेश' और 'निकास' या 'प्रस्थान' ही होगा ना।

यदि सरल अंग्रेजी में IN और OUT लिखा गया हो तो उसका सरल हिंदी रूप 'अन्दर' और 'बाहर' होगा।

अधिकांश अनुवादकों को, विशेषकर सरकारी अनुवादकों को प्रशासनिक शब्दावली का प्रयोग करना होता है। शब्दावलियाँ हजारों विद्वानों द्वारा वर्षों की साधना से इसीलिए बनाई गई हैं, कि सरकारी क्षेत्र में शब्दों के प्रयोग में एकरूपता हो, यदि कोई 'प्रस्थान' लिखे, कोई 'बाहर' लिखे, कोई 'निकास' लिखे तो एकरूपता कैसे रहेगी?

अतः सरल हिंदी की दुहाई देनेवालों से निवेदन है कि वे सरल अंग्रेजी के प्रयोग को अनिवार्य बनाने के लिए वकालत करें।

EXIT का अर्थ भारत की 90% आम जनता नहीं समझती, न ही इसका सही उच्चारण कर पाती है। इसके बदले OUT का प्रयोग क्यों नहीं करते? भारत के 20 करोड़ विद्यार्थियों में से मुट्ठीभर (जी नहीं, चुटकी भर) अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े बच्चों को, आपके ही शब्दों में 'माडर्न युवा' को भले ही यह शब्द सरल लगता हो। देश के 80% बच्चे ग्रामीण सरकारी स्कूलों पर ही निर्भर हैं।



हरिराम
प्रगत भारत <http://hariraama.blogspot.in>

Yogendra Joshi

unread,
Sep 4, 2017, 4:49:20 AM9/4/17
to hindian...@googlegroups.com
मेरे पिताश्री (अब स्वर्गीय) ने संस्कृत भाषा लेकर एम.ए. (आग्रा वि.वि.) किया था कदाचित् ८०-९० वर्ष पूर्व। जैसा उस समय व्यवस्था थी उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से एम.ए. किया जाता था अर्थात् सवालों के उत्तर अंग्रेजी  में लिखना होता था। वह अंग्रेजों का समय था। लगता है सुश्री साहिबा चौहान ने किसी ऐसे ही वि.वि.से हिन्दी पढ़ी हो जहां हिन्दी के लिए भी अंग्रेजी माध्यम हो। आज भी देश में कहीं ऐसा हो रहा हो तो आश्चर्य नहीं। 

4 सितंबर 2017 को 11:02 am को, हरिराम <hari...@gmail.com> ने लिखा:

Vinod Sharma

unread,
Sep 4, 2017, 11:00:10 AM9/4/17
to hindian...@googlegroups.com
मित्रगण क्षमा करें, मैंने उन मोहतरमा के केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में पदस्थ होने पर आश्चर्य मात्र व्यक्त किया था। मेरा आशय कदाचित किसी के सम्मान को ठेस पहुँचाना नहीं था।
सेवारत रहते हुए मैंने अनेक अनुवादकों को इसी केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में प्रशिक्षण के लिए भेजा था। इसलिए मैं कदाचित अपने आवेश को नियंत्रित नहीं कर सका। पुनः क्षमा याचना करता हूँ।
सादर,
विनोद शर्मा 

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Kartik Saini

unread,
Sep 5, 2017, 10:32:34 AM9/5/17
to hindian...@googlegroups.com
Kitni bhi koshish kr lo. Ye log kitni bhi English seekh let ya sika le. Pr angrej nahi ban pyenge. Rahenge(bloody)

 Indian hi. 

Kartik Saini

unread,
Sep 5, 2017, 10:41:33 AM9/5/17
to hindian...@googlegroups.com
Ye hi vo log Hain Jo kahte hain- sir! Mera Hindi poor hai. Kise kosen school ko ya inki soch ko. Mere purane Mobile men Hindi setting dekh kr ek 12 pass bola Hindi to gaon Vale use karte hai. Jubki use khudko English nahi ati. Ye soch hai desh ke logon ki / yuaon ki

Sahiba Chauhan

unread,
Sep 25, 2017, 6:40:26 AM9/25/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
मैं प्रशिक्षु हूँ सर
हिंदी अनुवादक नहीं
हाँ मुझसे काफी गलतियाँ हुई होंगी
जिसके लिए मैं क्षमा मांगती हूँ।

Rajeev Saxena

unread,
Nov 30, 2017, 2:36:59 AM11/30/17
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
साहिबा जी मैं आपसे असहमत हूँ,

शब्द कठिन या क्लिष्ट नहीं होते, उनका उपयोग न करके हम उन्हें कठिन और क्लिष्ट बना देते हैं, जैसे कि 'प्रस्थान' शब्द को शायद सभी हिंदीभाषी जानते हैं, पर यदि हम इसका उपयोग बेहद सीमित कर देंगे, तो आगामी पीढ़ी को यह भी क्लिष्ट लगने लगेगा, इसलिए उपाय ये नहीं है कि हम ऐसे शब्दों का प्रयोग बंद कर दें, बल्कि ये है कि हम अपने शब्दकोश का अधिकाधिक उपयोग करें।

शनिवार, 26 अगस्त 2017 को 1:38:36 अपर UTC+5:30 को, Sahiba Chauhan ने लिखा:

Sahiba Chauhan

unread,
Mar 30, 2018, 10:17:15 AM3/30/18
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
सर,
मैं केवल एक विद्यार्थी हूं,हाँ गलतियाँ हुई और बहुत हुई है। मेरा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से कोई संबंध नहीं है। मैंने अनुवाद से परिषद से अनुवाद में डिप्लोमा किया है। मैं किसी भी संस्था से नही जुड़ी हुई हूं। महज़ 23 वर्ष की हूं और जिज्ञासु हूं। जिस तरह से छोटा बच्चा चलना सिखता उसी तरह मेरे भी मन में यह सवाल आया, अनुवाद की दुनिया में नई थी इसलिए पूछ डाला,पर आप लोगों ने मेरे चलने तक पर प्रश्न उठा दिया कि मुझे चलना भी ढंग से नही आता। जानती भाषा को लिखने मे कई तरह की त्रुटियाँ हुई पर मेरा प्रश्न के पीछे आपने जिज्ञासा नही देखी, काश देखी होती तो आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देते यू खुले मंच बेज्जइत ना करते। धन्यावाद सर लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।

Binay Shukla

unread,
Mar 30, 2018, 10:56:43 AM3/30/18
to hindianuvaadak
आपकी भावना का सम्मान करता हूँ तथा आपकी बातों से सहमत भी हूँ

On Fri 30 Mar, 2018, 7:47 PM Sahiba Chauhan, <shivs...@gmail.com> wrote:
सर,
मैं केवल एक विद्यार्थी हूं,हाँ गलतियाँ हुई और बहुत हुई है। मेरा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से कोई संबंध नहीं है। मैंने अनुवाद से परिषद से अनुवाद में डिप्लोमा किया है। मैं किसी भी संस्था से नही जुड़ी हुई हूं। महज़ 23 वर्ष की हूं और जिज्ञासु हूं। जिस तरह से छोटा बच्चा चलना सिखता उसी तरह मेरे भी मन में यह सवाल आया, अनुवाद की दुनिया में नई थी इसलिए पूछ डाला,पर आप लोगों ने मेरे चलने तक पर प्रश्न उठा दिया कि मुझे चलना भी ढंग से नही आता। जानती भाषा को लिखने मे कई तरह की त्रुटियाँ हुई पर मेरा प्रश्न के पीछे आपने जिज्ञासा नही देखी, काश देखी होती तो आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देते यू खुले मंच बेज्जइत ना करते। धन्यावाद सर लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।

Anil Janvijay

unread,
Mar 30, 2018, 12:45:35 PM3/30/18
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
साहिबा जी,
सबसे पहले तो आप हिन्दी की वर्तनी सीखें। फिर हिन्दी का व्याकरण सीखें। और उसके बाद अनुवाद करना सीखें।
इसमें समय तो लगेगा। लेकिन एक अच्छा अनुवादक बनने के लिए यह ज़रूरी है।
सादर
अनिल

2018-03-30 17:56 GMT+03:00 Binay Shukla <binays...@gmail.com>:
आपकी भावना का सम्मान करता हूँ तथा आपकी बातों से सहमत भी हूँ
On Fri 30 Mar, 2018, 7:47 PM Sahiba Chauhan, <shivs...@gmail.com> wrote:
सर,
मैं केवल एक विद्यार्थी हूं,हाँ गलतियाँ हुई और बहुत हुई है। मेरा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से कोई संबंध नहीं है। मैंने अनुवाद से परिषद से अनुवाद में डिप्लोमा किया है। मैं किसी भी संस्था से नही जुड़ी हुई हूं। महज़ 23 वर्ष की हूं और जिज्ञासु हूं। जिस तरह से छोटा बच्चा चलना सिखता उसी तरह मेरे भी मन में यह सवाल आया, अनुवाद की दुनिया में नई थी इसलिए पूछ डाला,पर आप लोगों ने मेरे चलने तक पर प्रश्न उठा दिया कि मुझे चलना भी ढंग से नही आता। जानती भाषा को लिखने मे कई तरह की त्रुटियाँ हुई पर मेरा प्रश्न के पीछे आपने जिज्ञासा नही देखी, काश देखी होती तो आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देते यू खुले मंच बेज्जइत ना करते। धन्यावाद सर लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।

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Dr. Paritosh Malviya

unread,
Mar 31, 2018, 1:26:56 AM3/31/18
to hindian...@googlegroups.com
साहिबा जी, 

मुझे अफ़सोस है कि आपको इन शब्दों में नसीहत दी गयी। वरिष्ठ होने भर से कुछ नही होता, विनम्रतापूर्वक अपनी बात रखनी आनी चाहिए। 

आपको शुभकामनाएं। गंभीरता और लगन सब सिखा देती है। आप भविष्य में बेहतर अनुवादक बनेंगी, ऐसी कामना है। 

On Fri, Mar 30, 2018, 22:15 Anil Janvijay <anilja...@gmail.com> wrote:
साहिबा जी,
सबसे पहले तो आप हिन्दी की वर्तनी सीखें। फिर हिन्दी का व्याकरण सीखें। और उसके बाद अनुवाद करना सीखें।
इसमें समय तो लगेगा। लेकिन एक अच्छा अनुवादक बनने के लिए यह ज़रूरी है।
सादर
अनिल
2018-03-30 17:56 GMT+03:00 Binay Shukla <binays...@gmail.com>:
आपकी भावना का सम्मान करता हूँ तथा आपकी बातों से सहमत भी हूँ
On Fri 30 Mar, 2018, 7:47 PM Sahiba Chauhan, <shivs...@gmail.com> wrote:
सर,
मैं केवल एक विद्यार्थी हूं,हाँ गलतियाँ हुई और बहुत हुई है। मेरा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से कोई संबंध नहीं है। मैंने अनुवाद से परिषद से अनुवाद में डिप्लोमा किया है। मैं किसी भी संस्था से नही जुड़ी हुई हूं। महज़ 23 वर्ष की हूं और जिज्ञासु हूं। जिस तरह से छोटा बच्चा चलना सिखता उसी तरह मेरे भी मन में यह सवाल आया, अनुवाद की दुनिया में नई थी इसलिए पूछ डाला,पर आप लोगों ने मेरे चलने तक पर प्रश्न उठा दिया कि मुझे चलना भी ढंग से नही आता। जानती भाषा को लिखने मे कई तरह की त्रुटियाँ हुई पर मेरा प्रश्न के पीछे आपने जिज्ञासा नही देखी, काश देखी होती तो आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देते यू खुले मंच बेज्जइत ना करते। धन्यावाद सर लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।

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हरिराम

unread,
Mar 31, 2018, 3:21:09 AM3/31/18
to हिंदी अनुवादक (Hindi Translators)
जो कोई हमारी किसी गलती का सुधार करता है, उसे टोकना न समझ कर, धन्यवाद देकर आभार प्रकट करना चाहिए। क्योंकि उन्होंने अपना बहुमूल्य समय व श्रम देकर भविष्य में हमें उत्कृष्टता पाने के लिए प्रेरित किया है।...

हरिराम

आपने लिखा --
....  लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी। .... 
 

Kartik Saini

unread,
Apr 3, 2018, 6:07:54 AM4/3/18
to hindian...@googlegroups.com
Exit  के लिए कई जगह मैंने केवल 'बाहर' लिखा भी देखा है और इससे कोई दुविधा भी नहीं होती। अनुवाद करते समय हमें स्थानीय बोलचाल में तथा क्षेत्रीय भाषाओं में से भी बहुत सरल शब्द मिल जाते हैं। जैसे रेलवे  स्टेशन के लिए -  रेल स्थानक (मराठी), बस स्थानक/बस अड्डा,  इसी तरह - बस स्टाॉप के लिए - बस स्थानक, कार के लिए - गाड़ी , ऐसे ही अन्य भारतीय भाषाओं से स्थानीय शब्द लिए जा सकते हैं।  नहीं तो अंग्रेजी के बोल  चाल के तो हिंदी में आ ही गए हैं। आखिर अंग्रेज हमारे राजा रहे हैं। उर्दु फारसी अरबी पुर्तगाली तथा अन्य योरोपिय भाषाओं के शब्द भी इसीलिए तो हमारी हिंदी में घुसे हैं।  

2017-08-26 13:38 GMT+05:30 Sahiba Chauhan <shivs...@gmail.com>:
मुझे अनुवादकों से  शिकायत रहती है की वह हिंदी को इतना कठिन क्यों कर देते है

कि आम इंसान को समझने मे कठिनाई हो
अरे भई हिंदी लिखनी उन्हीं शब्दों में चाहिए जिन शब्दों मे आम नागरिक समझ सके की वह क्या कहना चहा रहे है।
अब हिंदुस्तान मे ज्यादा हिंदी ही लिखी,बोली व पढ़ी जाती है
तो उसे इतना कठिन क्यों बनना कि बच्चें युवा पीढ़ी हमारी मातृभाषा हय की दृष्टि से देखे।
क्यों वे अनुवादक जिसे शब्दों का अच्छा खासा ज्ञान है अपनी पंडिताई झाड़ने मे लगा रहता है।
ऐसा करके वह क्या साबित करना चाहते है की वह शब्दों के मामले सबसे श्रेष्ठ है??
हिंदी को कठिन बनाने मे सबसे बड़ा तुम्हारा हाथ है,
स्कूलों की किताबों मे इतने कठिन शब्द डालने कि क्या आवश्यकता जबकि वहाँ सरल शब्दों से काम बन सकता है।

अब मैट्रो मे आए हुए कुछ यात्रियों को "Exit" समझ आता है।
परंतु वो जिन्हें अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं है वे तो हिंदी में देखेगा ना
ऐसे आप लोग "बाहर जाए" की जगह आप "निकास" लिख देते है।
जो बच्चें भी ना समझ पाए
और हमारे माॅर्डन युवा जिन्हें "Exit" तो पता है लेकिन "निकास" ऐसे हैरानी से देखते है जैसे हिंदी शब्द दूसरे ग्रह से आया हो

ऐसे में जिम्मेदार अनुवादक ही है जो भाषा और शब्द को इतना कठिन बना देते है कि हिंदी से हम दूर भागते है।

तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि हिंदी अंग्रेजी के सामने कैसे टिक पाएगी जहाँ हिंदी को इतना कठिन बना दिया जाता है हमारे देश के युवा और बच्चें अंग्रेजी का रूख कर लेते है
और फिर बैठकों यह सवाल आता है कि "हिंदी को कैसे आगे बढ़ाया जाए"
😡😡😡😡
#साहिबाचौहान

#Centraltranslationbureau
#केंद्रीयअनुवादब्यूरो
#राजभाषाविभाग
#गृहमंत्रालय

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