अब मैट्रो मे आए हुए कुछ यात्रियों को "Exit" समझ आता है।
परंतु वो जिन्हें अंग्रेज़ी का ज्ञान नहीं है वे तो हिंदी में देखेगा ना
ऐसे आप लोग "बाहर जाए" की जगह आप "निकास" लिख देते है।
जो बच्चें भी ना समझ पाए
और हमारे माॅर्डन युवा जिन्हें "Exit" तो पता है लेकिन "निकास" ऐसे हैरानी से देखते है जैसे हिंदी शब्द दूसरे ग्रह से आया हो
ऐसे में जिम्मेदार अनुवादक ही है जो भाषा और शब्द को इतना कठिन बना देते है कि हिंदी से हम दूर भागते है।
तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि हिंदी अंग्रेजी के सामने कैसे टिक पाएगी जहाँ हिंदी को इतना कठिन बना दिया जाता है हमारे देश के युवा और बच्चें अंग्रेजी का रूख कर लेते है
और फिर बैठकों यह सवाल आता है कि "हिंदी को कैसे आगे बढ़ाया जाए"
😡😡😡😡
#साहिबाचौहान
#Centraltranslationbureau
#केंद्रीयअनुवादब्यूरो
#राजभाषाविभाग
#गृहमंत्रालय
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मेरे ख्याल से इस तरह की टिप्पणी से अनुवादकों का उत्साह भंग होगा जबकी हमें उनके सही काम की प्रशंसा करनी चाहिए। रही बात सरल और कठिन की तो जो चीज़ आप सीख जाते हैं वो आपके लिए सरल हो जाती और जो नही सीखते वो कठिन होती है। मान लो किसी छोटे बच्चे को हम कोई चीज बार बार दिखाते हैं तो उस बच्चे के दिमाग में उस चीज़ की छवि बन जाती है। ठीक उसी तरह हम सभी के दिमाग में एेसे शब्द घर कर गए हैं। हम हर जगह जैसे सिनेमाघर, रेलवे स्टेशन आदि जगहों पर EXIT शब्द बचपन से देखते आए हैं इसलिए निकास शब्द अब अटपटा लगने लगा है जबकि हिन्दी का सही शब्द तो निकास ही है। अगर हर जगह एेसे छोटे छोटे अंग्रेजी के शब्दों को बाहर कर दिए जाएं और हिन्दी के शब्दों का प्रयोग करने का प्रयास किया जाए तो धीरे धीरे यह शब्द हमें अपनें लगने लगेंगे।
गगन
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योगेन्द्र जी,
दूसरी भाषा के शब्दों को यथावत् या थोड़ा बदलकर अपनी भाषा में ग्रहण करना और लिप्यंतरित करके लिखना तो एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जहाँ भ्रम की सम्भावना हो वहाँ लोग रोमन अक्षरों में लिखते ही हैं हालांकि यदि ऐसा बहुत किया जाए तो लिखावट अटपटी दिखने लगती है।
(अंग्रेज़ी शब्दों को हिंदी में ग्रहण करने का एक सुंदर उदाहरण मैंने शायद बीबीसी हिंदी के पन्नों में देखा था: ख़बर थी कि दिल्ली में सब्ज़ीवाले अब ब्रॉक्ली (broccoli) बेचने लगे हैं, बरकोली के नाम से।)
हिंदी को व्यापक स्तर पर रोमन लिपि में लिखने का सुझाव कुछ लोगों ने दिया है। ऐसा ही सुझाव सुना है राजेन्द्र यादव, नामवर सिंह आदि ने उर्दू के बारे में दिया था, कि उर्दू की 'जान बचाने के लिए' उसे नागरी अक्षरों में लिखा जाना चाहिए।
मैं समझता हूँ कि लिपि भाषा के स्वरूप का अनिवार्य अंग है। लिपि बदलने पर भाषा नहीं बची रहेगी।
इस विषय पर एक परिचर्चा में शमीम हनफ़ी साहब ने बहुत सही बात कही है: भाषा और लिपि का सम्बन्ध शरीर और कपड़ों का नहीं है कि बदल दिए बल्कि शरीर और चमड़ी का है। लिपि बदलना भाषा की खाल खींचने के बराबर है।
दूसरी बात उन्होंने यह कही कि ऐसा प्रयोग तुर्की में किया गया था। लिहाज़ा नई पीढ़ियाँ अपनी साहित्यिक धरोहर पढ़ने-समझने में पूर्णत: असमर्थ हैं।
शमीम हनफ़ी साहब के विचार निम्न लिंक पर सुने जा सकते है (१४:०० पर):
https://www.youtube.com/watch?v=qsXwNk7PEDg
अशोक वाजपेयी साहब ने भी एक चर्चा में ऐसा ही कुछ कहा है (८:०० पर):
https://www.youtube.com/watch?v=xeNM3OcdHL8
सादर
पीयूष ओझा
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अक्सर देखा जाता है कि अनुवाद करवाने वाले या कई बार खुद अनुवादक भी पहले से यह कल्पना कर लेते हैं कि पाठक को फलाना शब्द समझ नहीं आएगा। मैं यह पूछना चाहता हूं कि क्या पाठक अनपढ़ है यां आप पाठक से ज्यादा बुद्धिमान हैं। अरे आप अपना अनुवाद तो सटीक रखें। रही बात पाठक के समझ में आने की तो इसकी चिंता पाठक को करने दें। हिंदी अनुवाद में अंग्रेजी के शब्द जबरदस्ती घुसाने के कारण कई बार आप उपहास के पात्र भी बन जाते हैं। हां कुछ बेहद जटिल शब्दों की बात अलग है जो शायद अंग्रजी में ही लिखे जाएं तो बेहतर है जैसे रेल, रेलवे स्टेशन, चिकित्सा से जुड़े शब्द आदि।
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“दूसरे शब्दों में क्या यह उपयोगी नहीं होगा कि लैटिन "लेटरों" को अपनाते हुए हिन्दी वर्णमाला को विस्तारित किया जाए?”
योगेन्द्र जी,
मेरी टिप्पणी केवल हिंदी रोमन लिपि में लिखने के सुझाव और नागरी लिपि के विस्तार पर थी। मेरे विचार से लिपि भाषा के स्वरूप का अनिवार्य अंग है और, बक़ौल शमीम हनफ़ी, लिपि बदलना भाषा की खाल खींचने के बराबर है।
लिपि का विस्तार, जैसे कि उर्दू ध्वनियों की व्यक्ति के लिए नुक़्ते का प्रयोग, केवल स्वीकार्य ही नहीं, स्वागत-योग्य है क्योंकि इससे हिंदी का स्वरूप समृद्ध हुआ है, खंडित नहीं। केंद्रीय हिंदी निदेशालय की पुस्तिका देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण में नागरी लिपि में अन्य भारतीय भाषाओं की विशिष्ट ध्वनियाँ व्यक्त करने के लिए विशेष चिह्न दिए गए हैं। यह सब बहुत अच्छा है। किंतु जहाँ दूसरी भाषा के शब्दों को नागरी में लिखा जा सकता है, वहाँ लिपि विस्तार की क्या आवश्यकता है? रोमन अक्षरों का नागरी में समावेश क्यों किया जाए?
हिंदी में अंग्रेज़ी शब्दों के प्रयोग के बारे में मैं आपसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ ( हंड्रेड परसेंट नहीं! ) – अंग्रेज़ी तथा अन्य भाषाओं से शब्द तभी लिए जाएँ जब हिंदी में समानार्थी शब्द उपलब्ध या सुलभ न हों और ऐसे शब्दों को नागरी लिपि में लिखा जाए। यदि नागरी में लिप्यंतरण से भ्रम की सम्भावना हो तो कोष्ठक में मूल शब्द उसकी स्वाभाविक लिपि में लिखा जाए। तकनीक, विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में यह लम्बे समय से हो रहा है।
हिंगलिश से मुझे भी उतनी ही कोफ़्त होती है जितनी आपको।
सादर
पीयूष ओझा
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डॉ. प्रमोद कुमार तिवारीअसिस्टेंट प्रोफ़ेसरगुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालयगांधीनगर
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सर,
मैं केवल एक विद्यार्थी हूं,हाँ गलतियाँ हुई और बहुत हुई है। मेरा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से कोई संबंध नहीं है। मैंने अनुवाद से परिषद से अनुवाद में डिप्लोमा किया है। मैं किसी भी संस्था से नही जुड़ी हुई हूं। महज़ 23 वर्ष की हूं और जिज्ञासु हूं। जिस तरह से छोटा बच्चा चलना सिखता उसी तरह मेरे भी मन में यह सवाल आया, अनुवाद की दुनिया में नई थी इसलिए पूछ डाला,पर आप लोगों ने मेरे चलने तक पर प्रश्न उठा दिया कि मुझे चलना भी ढंग से नही आता। जानती भाषा को लिखने मे कई तरह की त्रुटियाँ हुई पर मेरा प्रश्न के पीछे आपने जिज्ञासा नही देखी, काश देखी होती तो आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देते यू खुले मंच बेज्जइत ना करते। धन्यावाद सर लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।
आपकी भावना का सम्मान करता हूँ तथा आपकी बातों से सहमत भी हूँ
On Fri 30 Mar, 2018, 7:47 PM Sahiba Chauhan, <shivs...@gmail.com> wrote:
सर,
मैं केवल एक विद्यार्थी हूं,हाँ गलतियाँ हुई और बहुत हुई है। मेरा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से कोई संबंध नहीं है। मैंने अनुवाद से परिषद से अनुवाद में डिप्लोमा किया है। मैं किसी भी संस्था से नही जुड़ी हुई हूं। महज़ 23 वर्ष की हूं और जिज्ञासु हूं। जिस तरह से छोटा बच्चा चलना सिखता उसी तरह मेरे भी मन में यह सवाल आया, अनुवाद की दुनिया में नई थी इसलिए पूछ डाला,पर आप लोगों ने मेरे चलने तक पर प्रश्न उठा दिया कि मुझे चलना भी ढंग से नही आता। जानती भाषा को लिखने मे कई तरह की त्रुटियाँ हुई पर मेरा प्रश्न के पीछे आपने जिज्ञासा नही देखी, काश देखी होती तो आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देते यू खुले मंच बेज्जइत ना करते। धन्यावाद सर लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।
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अनिलइसमें समय तो लगेगा। लेकिन एक अच्छा अनुवादक बनने के लिए यह ज़रूरी है।साहिबा जी,सबसे पहले तो आप हिन्दी की वर्तनी सीखें। फिर हिन्दी का व्याकरण सीखें। और उसके बाद अनुवाद करना सीखें।
सादर
2018-03-30 17:56 GMT+03:00 Binay Shukla <binays...@gmail.com>:
आपकी भावना का सम्मान करता हूँ तथा आपकी बातों से सहमत भी हूँ
On Fri 30 Mar, 2018, 7:47 PM Sahiba Chauhan, <shivs...@gmail.com> wrote:
सर,
मैं केवल एक विद्यार्थी हूं,हाँ गलतियाँ हुई और बहुत हुई है। मेरा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो से कोई संबंध नहीं है। मैंने अनुवाद से परिषद से अनुवाद में डिप्लोमा किया है। मैं किसी भी संस्था से नही जुड़ी हुई हूं। महज़ 23 वर्ष की हूं और जिज्ञासु हूं। जिस तरह से छोटा बच्चा चलना सिखता उसी तरह मेरे भी मन में यह सवाल आया, अनुवाद की दुनिया में नई थी इसलिए पूछ डाला,पर आप लोगों ने मेरे चलने तक पर प्रश्न उठा दिया कि मुझे चलना भी ढंग से नही आता। जानती भाषा को लिखने मे कई तरह की त्रुटियाँ हुई पर मेरा प्रश्न के पीछे आपने जिज्ञासा नही देखी, काश देखी होती तो आप मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर देते यू खुले मंच बेज्जइत ना करते। धन्यावाद सर लेकिन छोटे बच्चों को भी आप उसकी भाषा में व्याकरण लाने पर टोकेंगे तो देखेंगे उसके सोचने और लिखने का समुद्र रूक चुका है अब सिर्फ वो वही लिखता जो आप उसे कहेंगे, ना क्रिएटिविटी आएगी और सोचने की क्षमता भी सीमित हो जाएगी।
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आपने लिखा --
मुझे अनुवादकों से शिकायत रहती है की वह हिंदी को इतना कठिन क्यों कर देते है
कि आम इंसान को समझने मे कठिनाई हो
अरे भई हिंदी लिखनी उन्हीं शब्दों में चाहिए जिन शब्दों मे आम नागरिक समझ सके की वह क्या कहना चहा रहे है।
अब हिंदुस्तान मे ज्यादा हिंदी ही लिखी,बोली व पढ़ी जाती है
तो उसे इतना कठिन क्यों बनना कि बच्चें युवा पीढ़ी हमारी मातृभाषा हय की दृष्टि से देखे।
क्यों वे अनुवादक जिसे शब्दों का अच्छा खासा ज्ञान है अपनी पंडिताई झाड़ने मे लगा रहता है।
ऐसा करके वह क्या साबित करना चाहते है की वह शब्दों के मामले सबसे श्रेष्ठ है??
हिंदी को कठिन बनाने मे सबसे बड़ा तुम्हारा हाथ है,
स्कूलों की किताबों मे इतने कठिन शब्द डालने कि क्या आवश्यकता जबकि वहाँ सरल शब्दों से काम बन सकता है।
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और फिर बैठकों यह सवाल आता है कि "हिंदी को कैसे आगे बढ़ाया जाए"
😡😡😡😡
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