'स्त्री लेखन और अनुवाद' पर हंस की परिचर्चा

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Suyash Suprabh (सुयश सुप्रभ)

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Oct 29, 2022, 1:08:19 AM10/29/22
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अनुवाद नहीं होता तो सभ्यता भी नहीं होती। न संयुक्त राष्ट्र होता न ओलंपिक।
अनुवाद के प्रति अज्ञानता का यह हाल है कि कभी सुप्रीम कोर्ट के जज गूगल ट्रांसलेट से काम चलाने की बात कह देते हैं तो कभी बिना किसी तैयारी के अकादमिक पुस्तकों का अनुवाद कर दिया जाता है।
यह भी आश्चर्य की बात है कि दुनिया जिसके बिना एक दिन नहीं चल सकती उसकी इतनी अनदेखी कैसे होती आई है।
उम्मीद है दिल्ली के साथी इस कार्यक्रम के लिए समय निकालेंगे।
हंस के मंच पर अपनी बात रखने का यह मेरा पहला मौक़ा है।
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Yogendra Prasad Joshi

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Oct 29, 2022, 2:23:00 AM10/29/22
to hindian...@googlegroups.com
भाषाओं के प्रति लगाव ही न हो तो क्या उम्मीद की जा सकती है? हिंदी को अपनी मातृभाषा बताने वाले तथकथित हिन्दीभाषियों को हिंदी से लगाव है क्या? देशवासी कहते हैं कि सब कार्य जब अंग्रेजी में होने हैं तो हिंदी से क्या करेंगे। कामचलाऊ हिंदी तो वे जानते ही हैं, और जहां गाड़ी अटक रही हो वहां अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग तो आम चलन बन ही चुका है। चूंकि अनुवाद करना 'पड़ता है' कुछ मौकों पर सो अंग्रेजी से काम चल ही जाता है। 

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