निम्न कुछ तथ्यपरक व चुनौतीपूर्ण प्रश्न
9वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में पधारे विद्वानों से करते हुए इनका
उत्तर एवं समाधान मांगा जाना चाहिए...
(1)
हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए कई वर्षों से आवाज
उठती आ रही है, कहा जाता है कि इसमें कई सौ करोड़ का खर्चा आएगा...
बिजली व पानी की तरह भाषा/राष्ट्रभाषा/राजभाषा भी एक इन्फ्रास्ट्रक्चर
(आनुषंगिक सुविधा) होती है....
अतः चाहे कितना भी खर्च हो, भारत सरकार को इसकी व्यवस्था के लिए
प्राथमिकता देनी चाहिए।
(2)
-- हिन्दी की तकनीकी रूप से जटिल (Complex)
मानी गई है, इसे सरल बनाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?
-- कम्प्यूटरीकरण के बाद से हिन्दी का आम प्रयोग काफी कम होता जा रहा
है...
-- -- हिन्दी का सर्वाधिक प्रयोग डाकघरों (post offices) में होता था,
विशेषकर हिन्दी में पते लिखे पत्र की रजिस्ट्री एवं स्पीड पोस्ट की
रसीद अधिकांश डाकघरों में हिन्दी में ही दी जाती थी तथा वितरण हेतु
सूची आदि हिन्दी में ही बनाई जाती थी, लेकिन जबसे रजिस्ट्री और स्पीड
पोस्ट कम्प्यूटरीकृत हो गए, रसीद कम्प्यूटर से दी जाने लगी, तब से
लिफाफों पर भले ही पता हिन्दी (या अन्य भाषा) में लिखा हो, अधिकांश
डाकघरों में बुकिंग क्लर्क डैटाबेस में अंग्रेजी में लिप्यन्तरण करके
ही कम्प्यूटर में एण्ट्री कर पाता है, रसीद अंग्रेजी में ही दी जाने
लगी है, डेलिवरी हेतु सूची अंग्रेजी में प्रिंट होती है।
-- -- अंग्रेजी लिप्यन्तरण के दौरान पता गलत भी हो जाता है और
रजिस्टर्ड पत्र या स्पीड पोस्ट के पत्र गंतव्य स्थान तक कभी नहीं पहुँच
पाते या काफी विलम्ब से पहुँचते हैं।
-- -- अतः मजबूर होकर लोग लिफाफों पर पता अंग्रेजी में ही लिखने लगे
है।
डाकघरों में मूलतः हिन्दी में कम्प्यूटर में
डैटा प्रविष्टि के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?
(3)
-- -- रेलवे रिजर्वेशन की पर्चियाँ त्रिभाषी रूप में छपी होती हैं, कोई
व्यक्ति यदि पर्ची हिन्दी (या अन्य भारतीय भाषा) में भरके देता है, तो
भी बुकिंग क्लर्क कम्प्यूटर डैटाबेस में अंग्रेजी में ही एण्ट्री कर
पाता है। टिकट भले ही द्विभाषी रूप में मुद्रित मिल जाती है, लेकिन
उसमें गाड़ी व स्टेशन आदि का नाम ही हिन्दी में मुद्रित मिलते हैं, जो
कि पहले से कम्प्यूटर के डैटा में स्टोर होते हैं, रिजर्वेशन चार्ट में
नाम भले ही द्विभाषी मुद्रित मिलता है, लेकिन "नेमट्रांस" नामक
सॉफ्टवेयर के माध्यम से लिप्यन्तरित होने के कारण हिन्दी में नाम
गलत-सलत छपे होते हैं। मूलतः हिन्दी में भी डैटा एण्ट्री हो, डैटाबेस
प्रोग्राम हो,
इसके लिए व्यवस्थाएँ क्या की जा
रही है?
(4)
-- -- मोबाईल फोन आज लगभग सभी के पास है, सस्ते स्मार्टफोन में भी
हिन्दी में एसएमएस/इंटरनेट/ईमेल की सुविधा होती है, लेकिन अधिकांश लोग
हिन्दी भाषा के सन्देश भी लेटिन/रोमन लिपि में लिखकर एसएमएस आदि करते
हैं। क्योंकि हिन्दी में एण्ट्री कठिन होती है... और फिर हिन्दी में एक
वर्ण/स्ट्रोक तीन बाईट का स्थान घेरता है। यदि किसी एक प्लान में
अंग्रेजी में 150 अक्षरों के एक सन्देश के 50 पैसे लगते हैं, तो हिन्दी
में 150 अक्षरों का एक सन्देश भेजने पर वह 450 बाईट्स का स्थान घेरने
के कारण तीन सन्देशों में बँटकर पहुँचता है और तीन गुने पैसे लगते
हैं... क्योंकि हिन्दी (अन्य भारतीय भाषा) के सन्देश UTF8 encoding में
ही वेब में भण्डारित/प्रसारित होते हैं।
हिन्दी सन्देशों को सस्ता बनाने के लिए क्या
उपाय किए जा रहे हैं?
(5)
-- -- अंग्रेजी शब्दकोश में अकारादि क्रम में शब्द ढूँढना आम जनता के
लिेए सरल है, हम सभी भी अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश में जल्दी से इच्छित
शब्द खोज लेते हैं,
-- -- लेकिन हमें यदि हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश में कोई शब्द खोजना हो
तो दिमाग को काफी परिश्रम करना पड़ता है और समय ज्यादा लगता है, आम
जनता/हिन्दीतर भाषी लोगों को तो काफी तकलीफ होती है। हिन्दी
संयुक्ताक्षर/पूर्णाक्षर को पहले मन ही मन वर्णों में विभाजित करना
पड़ता है, फिर अकारादि क्रम में सजाकर तलाशना पड़ता है...
विभिन्न डैटाबेस देवनागरी के विभिन्न sorting order का उपयोग करते हैं।
हिन्दी (देवनागरी) को अकारादि क्रम युनिकोड
में मानकीकृत करने तथा सभी के उपयोग के लिए उपलब्ध कराने के लिए
क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(6)
-- -- चाहे ऑन लाइन आयकर रिटर्न फार्म भरना हो, चाहे किसी भी वेबसाइट
में कोई फार्म ऑनलाइन भरना हो, अधिकांशतः अंग्रेजी में ही भरना पड़ता
है...
-- -- Sybase, powerbuilder आदि डैटाबेस अभी तक हिन्दी युनिकोड का
समर्थन नहीं दे पाते। MS SQL Server में भी हिन्दी में ऑनलाइन डैटाबेस
में काफी समस्याएँ आती हैं... अतः मजबूरन् सभी बड़े संस्थान अपने
वित्तीय संसाधन, Accounting, production, marketing, tendering,
purchasing आदि के सारे डैटाबेस अंग्रेजी में ही कम्प्यूटरीकृत कर पाते
हैं। जो संस्थान पहले हाथ से लिखे हुए हिसाब के खातों में हिन्दी में
लिखते थे। किन्तु कम्प्यूटरीकरण होने के बाद से वे अंग्रेजी में ही
करने लगे हैं।
हिन्दी (देवनागरी) में भी ऑनलाइन फार्म आदि
पेश करने के लिए उपयुक्त डैटाबेस उपलब्ध कराने के लिए क्या कदम
उठाए जा रहे हैं?
(7)
सन् 2000 से कम्प्यूटर आपरेटिंग सीस्टम्स स्तर पर हिन्दी का समर्थन
इन-बिल्ट उपलब्ध हो जाने के बाद आज 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक
अधिकांश जनता/उपयोक्ता इससे अनभिज्ञ है।
आम
जनता को जानकारी देने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(8)
भारत IT से लगभग 20% आय करता है, देश में हजारों/लाखों IITs या
प्राईवेट तकनीकी संस्थान हैं, अनेक कम्प्यूटर शिक्षण संस्थान हैं, अनेक
कम्प्टूर संबंधित पाठ्यक्रम प्रचलित हैं, लेकिन किसी भी पाठ्यक्रम में
हिन्दी (या अन्य भारतीय भाषा) में कैसे पाठ/डैटा संसाधित किया जाए?
ISCII codes, Unicode Indic क्या हैं? हिन्दी का रेण्डरिंग इंजन कैसे
कार्य करता है? 16 bit Open Type font और 8 bit TTF font क्या हैं,
इनमें हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाएँ कैसे संसाधित होती हैं? ऐसी जानकारी
देनेवाला कोई एक भी पाठ किसी भी कम्प्यूटर पाठ्यक्रम के विषय में शामिल
नहीं है। ऐसे पाठ्यक्रम के विषय अनिवार्य रूप से हरेक computer courses
में शामिल किए जाने चाहिए। हालांकि केन्द्रीय विद्यालयों के लिए CBSE
के पाठ्यक्रम में हिन्दी कम्प्यूटर के कुछ पाठ बनाए गए हैं, पर यह सभी
स्कूलों/कालेजों/शिक्षण संस्थानों अनिवार्य रूप से लागू होना चाहिए।
इस्की और युनिकोड(इण्डिक) पाठ्यक्रम अनिवार्य
करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(9)
हिन्दी की परिशोधित मानक वर्तनी के आधार पर समग्र भारतवर्ष में पहली
कक्षा की हिन्दी "वर्णमाला" की पुस्तक का संशोधन होना चाहिए।
कम्प्यूटरीकरण व डैटाबेस की "वर्णात्मक" अकारादि क्रम विन्यास की जरूरत
के अनुसार पहली कक्षा की "वर्णमाला" पुस्तिका में संशोधन किया जाना
चाहिए। सभी हिन्दी शिक्षकों के लिए अनिवार्य रूप से तत्संबंधी
प्रशिक्षण प्रदान किए जाने चाहिए।
इसके लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
(10)
अभी तक हिन्दी की मानक वर्तनी के अनुसार युनिकोड आधारित कोई भी
वर्तनी संशोधक प्रोग्राम/सुविधा वाला साफ्टवेयर आम जनता के उपयोग
के लिए निःशुल्क डाउनलोड व उपयोग हेतु उपलब्ध नहीं कराया जा सका
है। जिसके कारण हिन्दी में अनेक अशुद्धियाँ के प्रयोग पाए जाते
हैं। इसके लिए क्या व्यवस्थाएँ की जा रही हैं?
-- हरिराम
(वास्तव में हिन्दी के प्रति अधिकांश लोगों की श्रद्धा अति
निम्नस्तर की है...
इसका कारण राजनैतिक नेताओं के स्वार्थ.है..., लोगों की मानसिकता नहीं
है... इत्यादि उत्तर विद्वान बताते हैं, लेकिन कुछ विशेषज्ञों के
अनुसार हिन्दी (देवनागरी) की तकनीकी जटिलता ही मुख्य कारण है.)
On 23-09-2012 11:32, Yogendra Joshi wrote:
देखिए इस देश में अंगरेजी हावी
है ही इसीलिए कि अंगरेजी के हिमायती लोगों ने पूरी कोशिशें की
हैं कि हिंदी किसी भी तरह आगे न बढ़ पाये। यह तथ्य वस्तुतः
सामाजिक अस्तित्व से जुढ़ा है। दुर्भाग्य से
इस देश में एक ऐसी व्यवस्था स्थापित हो चुकी है जिसके
अंतर्गत किसी भी क्षेत्र में अंगरेजी
के ही बल पर व्यक्ति सफ़ल हो
पाता है, न कि हिंदी के बल पर। हिंदी के पक्ष में
सतही तौर पर लोग जितनी भी बातें कर लें, हकीयत ये है
कि अंगरेजी के प्रति आकर्षण और उसे प्रयोग में लेने की प्रबल लालसा
प्राय: सभी भरतीयों में देखी जा सकती है। .....