री , र्रि ,र्रू , रिरि ,रुर, रिर ये सभी ऋ के गलत उच्चारण है। क्योकि ये स्वर उच्चारण नहीं है.
ऋ के उच्चारण में दो बाते ध्यान देने योग्य हैं।
१. ऋ एक स्वर ध्वनि है। स्वर ध्वनि की विशेषता है कि उसको कितनी भी देर तक बोला जाये , पूरे अंतराल में एक ही स्वर ध्वनि आती है।
उदाहरण के लिए, पहले एक व्यञ्जन क को देखते है। अगर आप क ध्वनि की लम्बा खींच कर देर तक बोलते हैं तो अंत में केवल अ ध्वनि ही आती है , क धवनि नहीं। हर व्यञ्जन के अंत में अ ध्वनि ही आती है। अब स्वर ई को लम्बा खींचकर देर तक बोलें , आरम्भ से अंत तक हर भाग में ई ध्वनि ही रहेगी। इस बात की पुष्टि ई ध्वनि को रिकार्ड करके , फिर रिकार्डिंग को आधा काट कर भी की जा सकती है। इस कारण स्वर ध्वनियों का प्रयोग व्यञ्जनों पर मात्रा के लिए भी हो पता है।
ऋ के सही उच्चारण में यह विशेषता होनी चाहिए। प्रचलित हिंदी उच्चारण र्रि (या प्रचलित मराठी उच्चारण र्रू ) में यह विशेषता नहीं है।
२. ऋ एक मूर्धन्य स्वर है। मूर्धन्य वर्ण वे हैं जिनके उच्चारण का स्थान मूर्धा है। जैसे ट ठ ड ढ र मूर्धन्य हैं।
ऋ का सही उच्चारण उपरोक्त दोनो बातों को संतुष्ट करेगा।
लेखक-श्रीपाद दामोदर सातवेलकर जी ने "संस्कृत स्वयं शिक्षक" पुस्तक में ऋ के सही उच्चारण करने का सरल तरीका समझाया है, जो इस प्रकार है ।
ऋ के सही उच्चारण का प्रयास करने लिए धर्म शब्द को कम गति से बोलें। धर्म में र उच्चारण के बाद और म उच्चारण से पहले आने वाली स्वर ध्वनि ही ऋ की ध्वनि है। अब ऋ का स्वतन्त्र उच्चारण करें, ध्यान रहे कि र या रि की ध्वनि न हो।
इस youtuber ने सटीक उच्चारण किया है। इसको सुनकर धर्म वाला अभ्यास पुनः करें।
https://www.youtube.com/watch?v=wwdjvLd75mI&feature=youtu.be
एक ही स्थान से उच्चारण के कारण , ऋ का र से सम्बन्ध अवश्य है।
अ + ऋ की अगर सन्धि होती है तो र् बन जाता है।
कृष्ण + ऋद्धि = कृष्णर्द्धि
आ + ऋ
महा + ऋषि = महर्षि
धन्यावद।