इस समूह पर हिन्दी में नए शब्दों के निर्माण पर समय समय पर चर्चा होती
रहती है। संस्कृत व्याकरण के कुछ विद्वान इस समूह के सदस्य हैं और उनके
ज्ञान का हम सभी लाभ उठाते रहते हैं।
किन्तु भाषा में शब्दावली की सबसे सहज वृद्धि तब होती है जब उस भाषा को
बोलने वाले लोग उसी भाषा में सोचते और चिन्तन करते हैं।
आज पंडित बिरजू महाराज के एक कार्यक्रम में गया था, और वे कुछ ठुमरियाँ
गाने बैठे तो माइक का आगे का गोल सिरा उन के मुँह के बहुत पास था। तो
बोले, "भइया ये बहुत पास नहीं है क्या? मुझे तो डर लग रहा है कि कहीं मैं
इस लड्डू से टकरा न जाऊँ!"
तब मुझे ज्ञात हुआ कि हिन्दी में माइक को लड्डू कहते हैं। रिमोट कंट्रोल
को बन्दूक और करसर को तितली कहते हैं, यह तो मैं पहले से ही जानता था!
:-)
सादर,
- अगस्त्य
लेकीन 'ब्लयुटुथ', 'सीडीएमए',
'मधरबोर्ड', 'रेम', 'रोम', 'सीडी',
'डीवीडी' ये सब नाम नये है.
जीस भाषामे जो चीज की खोज
हुइ हो उस भाषामे खोज का नाम
व्यापक होता है. और दुसरी
भाषामे भाषांतर करना शायद
हरेक कीस्से मे ठीक नहि.
वैसे हिन्दी मे भी नये शब्द
खोज करना - हिन्दी मे हो रही
नई खोजो के लीये आवश्यक है
लेकीन जो चीज प्रचलित हुइ
उसका भाषांतर क्या उतना
प्रचलित होगा? क्या लोग नये
शब्द इस्तेमाल करेंगे? हां,
सामान्य जनता हरेक चीज को
अपने आप नाम देती है और वो
शब्दो को व्यापक रुप में
उपयोग करने मे हमे शर्म नहि
आनी चाहीये.
मैने सुना था की कीसी गांव
मे हीन्दी जानने वाले बच्चो
को कम्प्युटर दिया गया तो वो
'माउस एरो' को 'सूया' बोलते थे.
अब एसे शब्द व्यापक होने
चाहीये. सिर्फ भाषांतर के
लिये बनाये गये शब्दों को
लोग स्वीकृत नहि करते. जैसे
हमने बचपन मे जीवशास्त्र मे
जो कंकाल, पार्श्व, पृष्ठ सब
पढा वैसा अब नहि बोलते.
कलानाथ जी,
धूम्रसटक विश्रामालय में जो व्यंग्य है, वह इन शब्दों से बिलकुल भिन्न है। माइक को लड्डू या रिमोट को बन्दूक कह कर माइक या रिमोट का मज़ाक नहीं उड़ाया जा रहा… इन वस्तुओं के आकार और प्रयोग प्रणाली के आधार पर आम आदमी अपने आप एक ज्ञात शब्द में एक नया अर्थ भरता है।
सादर,
अगस्त्य
On 9/28/06, kalanath mishra <kala...@gmail.com> wrote:
आप को हिन्दी के ऎसे शब्द कहां से मिल गए. यह तो उसीतरह हुआ जैसे कुछ लोग स्टेसन के लिये व्यंग्य मे धूम्र्सटक विश्रामालय कहते थे.कलानाथ