सृज् धातु का अर्थ है - रचना करना, बनाना । रुद् = रोना ।
धातु से जब -अन या -अनीय प्रत्यय लगता है तो धातु के अन्तिम इक् ( = ह्रस्व या दीर्घ इ उ , ऋ, लृ ) स्वर एवं लघु उपधा (penultimate short) इक् स्वर का गुण ( = इ --> ए ; उ --> ओ ; ऋ --> अर् ; लृ --> अल् ) हो जाता है ।
उदाहरण --->
लिख् -- लिखित; परन्तु लेखन
विश् -- प्रविष्टि ; परन्तु निवेशन
गुप् -- गुप्त; परन्तु गोपनीय
मुह् -- मुग्ध ; परन्तु मोहन
कृष् -- आकृष्ट, कृषि; परन्तु आकर्षण
दृश् -- दृष्टि ; परन्तु दर्शन, दर्शनीय
उसी प्रकार
रुद् -- रोदन ; रुदन नहीं
सृज् -- सर्जन ; सृजन नहीं
--- नारायण प्रसाद
अन्य उदाहरण
छिद् --> छिन्न ; परन्तु छेदन
भिद् --> भिन्न ; परन्तु भेदन
स्वरान्त धातु के उदाहरणः
(नोटः सन्धि कार्य --> ने + अन = नयन ; पो + अन = पवन )
चि --> संचित (= सम् + चित) ; परन्तु चयन ( --> चि + अन --> चे + अन --> चयन)
नी --> विनीत, नीति ; परन्तु नयन ( --> नी + अन --> ने + अन --> नयन)
स्तु --> स्तुति, प्रस्तुति ; परन्तु स्तवन ( --> स्तु अन --> स्तो अन --> स्तवन)
च्यु --> च्युत ; परन्तु च्यवन
स्रु --> उत्स्रुत (cartesian well) ; परन्तु स्रवण (बहना)
श्रु --> श्रुति, श्रुतिलेख ; परन्तु श्रवण (सुनना, कान)
पू --> पूत (पवित्र या निर्मल किया हुआ); परन्तु पवन