रिश्ता-ए-गम
ग़म तो ग़म हैं ग़म का क्या
ग़म आते जाते हैं
किसी को देते तन्हाई
किसी को रुलाते हैं
'दीपक कुल्लुवी' पत्थर दिल है लोग यह कहते हैं
उसको तो यह ग़म भी अक्सर रास आ जाते हैं
किसने देखा उसको रोते किसने झाँका दिल में
किसने पूछा क्यों कर यह ग़म तुझको भाते हैं
कुछ तो बात होगी इस ग़म में कुछ तो होगा ज़रूर
बेवफा न होते यह साथ साथ ही आते हैं
गम से रिश्ता रखो यारो ताउम्र देंगे साथ
यह आखरी लम्हात तक रिश्ता निभाते हैं
दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
०१-१२-२०१०.
है कण कण में तेरा बास श्याम
तू हर दिल में दिखता है
तू प्यार मुहब्बत से सबकी
तकदीरें लिखता है
दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
०१-१२-२०१०.
मेरे आंसुओं में
हंसी है मेरी
मेरी हंसी पे मत जाना
अश्क आपके भी छलक आएँगे
दीपक शर्मा कुल्लुवी
०९१३६२११४८६
०१-१२-२०१०.