A good Hindi poem by my friend BK Mukesh Modi, Bikaner, You would like this,
Barve (Gyani)
नरक से छुटकारा
मासूमियत से सवाल पूछती एक नन्ही सी जान
फैल गया क्यों चारों और हैवानियत का तूफान
सुरक्षित नहीं अपनों में भी यही सोच मैं घबराऊँ
ठौर ना ऐसा कोई जहाँ मैं नींद चैन की सो पाऊँ
अकेली राह पर जाने का मैं निर्णय ना ले पाऊँ
जाने क्या हो साथ मेरे यही सोचकर रुक जाऊँ
जेल बना ये जीवन मेरा घुट घुटकर मैं जीती हूँ
हवस भरी निगाहों का हर रोज जहर मैं पीती हूँ
कब मिलेगा बताओ मुझे इस नरक से छुटकारा
आओ मेरे परमपिता केवल तुम ही मेरा सहारा
*ॐ शांति*