भगवान प्रेम स्वरूप हैं —श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी

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Gita Press Literature

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May 17, 2013, 12:50:26 AM5/17/13
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कुछ लोगों की धारणा है कि भगवान दण्ड देते है | पर असल में भगवान दण्ड नहीं देते | भगवान प्रेमस्वरूप है | वे स्वाभाविक ही सर्वसुहृद है | सुहृद होकर किसी को तकलीफ कैसे दे सकते है ? विश्वकल्याण के लिए विश्व का शासन कुछ सनातन नियमों के द्वारा होता है | यदि हम उन नियमों का अनुसरण करके उनके साथ जीवन का सामंजस्य कर लेते है तो हमारा कल्याण होता है; परन्तु यदि हम लापरवाही से या जानबूझ कर उन प्राकृत नियमों का उल्लंघन करते है तो हमे तदनुसार उसका बुरा फल भी भोगना पड़ता है, पर वह भी होता है हमारे कल्याण के लिए ही ; क्योंकि कल्याणमय भगवान के नियम भी कल्याणकारी है | अत: भगवान किसी को दण्ड नहीं देते, मनुष्य आप ही अपने को दण्ड देता है | भगवान प्रेमस्वरूप है-सर्वथा प्रेम है और वे जो कुछ है, वे ही सबको सर्वदा वितरण कर रहे है !  

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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