गो-महिमा—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी

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Gita Press Literature

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May 14, 2013, 12:08:52 PM5/14/13
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गौएँ प्राणियों का आधार तथा कल्याण की निधि है | भूत और भविष्य गौओं के ही हाथ में है | वे ही सदा रहने वाली पुष्टिका कारण तथा लक्ष्मी की जड हैं | गौओं की सेवा में जो कुछ दिया जाता है, उसका फल अक्षय होता है | अन्न गौओं से उत्पन्न होता है, देवताओं को उत्तम हविष्य (घृत) गौएँ देती है तथा स्वाहाकार (देवयज्ञ) और वषटकार (इन्द्रयाग) भी सदा गौओं पर ही अवलंबित है | गौएँ ही यज्ञ का फल देने वाली है | उन्हीं में यज्ञौ की प्रतिष्ठा है | ऋषियों को प्रात:काल और सांयकाल में होम के समय गौएँ ही हवंन के योग्य घृत आदि पदार्थ देती है | जो लोग दूध देने वाली गौ का दान करते है, वे अपने समस्त संकटों और पाप से पार हो जाते है | जिनके पास दस गायें हो वह एक गौ का दान करे,जो सौ गाये रखता हो, वह दस गौ का दान करे और जिसके पास हज़ार गौएँ मौजूद हो, वह सौ गाये दान करे तो इन सबको बराबर ही फल मिलता है |

जो सौ गौओं का स्वामी होकर भी अग्निहोत्र नहीं करता, जो हज़ार गौएँ रखकर भी यज्ञ नहीं करता तथा जो धनी होकर भी कंजूसी नहीं छोड़ता-ये तीनो मनुष्य अर्घ्य (सम्मान) पाने के अधिकारी नही है |

प्रात:काल और सांयकाल में प्रतिदिन गौओं को प्रणाम करना चाहिये | इससे मनुष्य के शरीर और बल की पुष्टि होती है | गोमूत्र और गोबर देखर कभी घ्रणा न करे | गौओं के गुणों का कीर्तन करे | कभी उसका अपमान न करे | यदि बुरे स्वप्न दीखायी दे तो गोमाता का नाम ले | प्रतिदिन शरीर में गोबर लगा के स्नान करे | सूखे हुए गोबर पर बैठे | उस पर थूक न फेकें | मल-मूत्र न त्यागे | गौओं के तिरस्कार से बचता रहे | अग्नि में गाय के घृत का हवन करे, उसीसे स्वस्तिवाचन करावे | गो-घृत का दान और स्वयं भी उसका भक्षण करे तो गौओं की वृद्धि होती हैं | (महा० अनु० ७८ |५-२१)

गौओं को यज्ञ का अंग और साक्षात् यज्ञस्वरूप बतलाया गया है | इनके बिना यज्ञ किसी तरह नहीं हो सकता | ये अपने दूध और घी से प्रजा का पालन-पोषण करती है तथा इनके पुत्र (बैल) खेती के काम आते है और तरह तरह के अन्न एवं बीज पैदा करते है, जिनसे यज्ञ संपन्न होते है और हव्य-कव्य का भी काम चलता है | इन्हीं से दूध, दही और घी प्राप्त होते है | ये गौए बड़ी पवित्र होती है और बैल भूक प्यास कष्ट सह कर अनेको प्रकार के बोझ ढोते रहते है | इस प्रकार गौ-जाति अपने काम से ऋषियों तथा प्रजाओं का पालन करती रहती है | उसके व्यवहार में शठता या माया नहीं होती | वह सदा पवित्र कर्म में लगी रहती है | इसी से ये गौएँ हम सब लोगों के उपर स्थान में निवास करती है | इसके सिवा गौएँ वरदान भी प्राप्त कर चुकी है तथा प्रसन्न होने पर वे दूसरों को वरदान भी देती है |  (महा० अनु० ८३ |१७-२१)
गौएँ सम्पूर्ण तपस्विओं से भी बढकर है | इसलिए भगवान शंकर ने गौओं के साथ रहकर तप किया था | जिस ब्रह्मलोक में सिद्ध ब्रह्मर्षि भी जाने की इच्छा करते हैं, वहीँ ये गौएँ चन्द्रमा के साथ निवास करती है | ये अपने दूध, दही, घी, गोबर, चमड़ा, हड्डी, सींग और बालों से भी जगत का उपकार करती है | इन्हें सर्दी, गर्मी और वर्षा का कष्ट विचलित नहीं करता | ये गौएँ सदा ही अपना काम किया करती है | इसलिए ये ब्राह्मणों के साथ ब्रह्मलोक में जाकर निवास करती है | इसे से गौ और ब्राह्मण को विद्वान पुरुष एक बताते है |  (महा० अनु० ६६ |३७-४२) .......शेष अगले ब्लॉग में .

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!! 

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