Shri Bhaiji Hanuman Prasad ji poddar , Sh Jaydayal Ji Goyandka-sethji , स्वामी रामसुखदासजी महाराज

237 views
Skip to first unread message

Gita Press Literature

unread,
Jun 18, 2017, 3:03:14 AM6/18/17
to Gita Press Literature
||Ram||


एक परमात्मा के सिवा किसी का किसी भी काल में कुछ भी सहारा न समझकर लज्जा, भय, मान, बड़ाई और आसक्ति को त्यागकर , शरीर और संसार में अहंता-ममता से रहित होकर, केवल
एक परमात्मा को ही अपना परम आश्रय, परम गति और सर्वस्व समझना तथा अनन्य भाव से, अतिशय श्रद्धा, भक्ति और प्रेमपूर्वक निरंतर भगवान् के नाम, गुण, प्रभाव और स्वरुप का चिंतन करते रहना और भगवान् का भजन-स्मरण करते हुए ही उनके आज्ञानुसार समस्त कर्तव्य-कर्मोंका निःस्वार्थभाव से केवल भगवान् के लिए ही आचरण करते रहना, यही सब प्रकार से परमात्मा के अनन्यशरण होना है |

   इस शरणागति में प्रधानतः चार बातें साधक के लिए समझने की हैं

(१)       सब कुछ परमात्मा का समझकर उसके अर्पण करना |

(२)       उसके प्रत्येक विधान में परम सन्तुष्ट रहना |

(३)       उसके आज्ञानुसार उसी के लिए समस्त कर्तव्य-कर्म करना |

(४)       नित्य-निरंतर स्वाभाविक ही उसका एकतार स्मरण रखना |

 

इन चारों पर विस्तार से विचार कीजिये  |

 

श्रद्धेय जयदयालजी गोयन्दका सेठजी

 

 

जिसके जीवनका लक्ष्य भगवान् होते हैं और जो इस लक्ष्यको दृढ़ताके साथ बनाये रखता है, जगत् की विपत्तियाँ उसके मार्गमें रोड़े नहीं अटका सकतीं। भगवत्कृपासे उसका पथ निष्कण्टक हो जाता है।

संपत्ति बढाने की चाह प्रकारान्तर से अभाव बढाने की चाह करना है। याद रखो अधिक पाने से तुम्हे सुख नहीं होगा वरन् झंझट,कष्ट, और दुःख ही बढ़ेंगे ।

 

- परम श्रद्धेय "भाईजीश्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार

 

॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥

 

सब सुख-आराम चाहते हैं । आप सुख-आराम दो तो आपके कई साथी हो जायँगे । आपके पास कुछ नहीं होगा तो सब छोड़ देंगे । दुनिया का ख्याल ऐसा है, यार सभी का पैसा है। आपने भी देखा है और हमने भी खूब देखा है । थोड़ी उसमें ही बहुत देख लिया कि कोई अपना नहीं है ! भगवान्‌ने कृपा करके चेत करा दिया । जिसका कोई नहीं होता, उसके भगवान् होते हैं । इसलिये हरदम एक परमात्माको ही याद करो, उसीको हे नाथ ! हे नाथ !पुकारो । एक भगवान् और एक उनके सच्चे भक्तइन दोके सिवाय कोई आपका हित चाहनेवाला नहीं है ।

 

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज

 

Blog:

     http://satcharcha.blogspot.com

 

website:

     www.swamiramsukhdasji.org

      www.swamiramsukhdasji.net



हे मेरे प्रभु

सुखी होने के लिये मैंने कौन-सा काम नहीं किया? विवाह किया, संतानें पैदा कीं, धन कमाया, यश-कीर्ति के लिये प्रयास किया, लोगों से प्रेम बढ़ाना चाहा और न मालूम क्या-क्या किया। परन्तु सच कहता हूँ मेरे स्वामी! ज्यों-ज्यों सुख के लिये प्रयत्न किया, त्यों-ही-त्यों परिणाम में दुःख और कष्ट ही मिलते गये। जहाँ मन टिकाया वहीं धोखा खाया! कहीं भी आशा फलवती नहीं हुई। चिन्ता, भय, निराशा और विषाद बढ़ते ही गये। कहीं रास्ता दिखायी नहीं दिया। मार्ग बंद हो गया। तुमने कृपा की, तुम्हारी कृपा से यह बात समझ में आने लगी कि तुम्हारे अभय चरणों के आश्रय को छोड़कर कहीं भी सच्चा और स्थायी सुख नहीं है। चरणाश्रय प्राप्त करने के लिये कुछ प्रयत्न भी किया गया। अब भी प्रयत्न होता है और यह सत्य है कि इसी से सुख-शान्ति और आराम के दर्शन भी होने लगे हैं। परन्तु प्रभु! पूर्वाभ्यासवश बार-बार यह मन विषयों की ओर चला जाता है। रोकने की चेष्टा भी करता हूँ, कभी-कभी रूकता भी है, परन्तु जाने की आदत छोड़ता नहीं! तुम्हारे चरणों के सिवा सर्वत्र भय-ही-भय छाया रहता है। दुःखों का सागर ही लहराता रहता है, यह जानते, समझते और देखते हुए भी मन तुम्हें छोड़कर दूसरी ओर जाना नहीं छोड़ता! इससे अधिक मेरे मन की नीचता और क्या होगी मेरे दयामय स्वामी! तुम दयालु हो, मेरी ओर न देखकर अपनी कृपा से ही मेरे इस दुष्ट मन को अपनी ओर खींच लो। इसे ऐसा जकड़कर बाँध लो कि यह कभी दूसरी ओर जा ही न सके। मेरे स्वामी! ऐसा कब होगा? कब मेरा यह मन तुम्हारे चरणों के दर्शनों में ही तल्लीन हो रहेगा। कब यह तुम्हारी मनोहर मूरति की झाँकी के दर्शन करके कृतार्थ होता रहेगा। अब देर न करो दयामय! जीवन-संध्या समीप है। इससे पहले-पहले ही तुम अपनी दिव्य ज्योति से जीवन में नित्य प्रकाश फैला दो। इससे समुज्ज्वल बनाकर अपने मन्दिर में ले चलो और सदा के लिये वहीं रहने का स्थान देकर निहाल कर दो।

-श्रद्धेय श्री हनुमानप्रसाद जी पोद्दार

 

भोगो के आश्रय से दुःख 

-श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

जैसे कोई बीहड़ जंगल होता है-घना । उसमे न कही रहने का ठीक स्थान, न कही बैठने की जगह, न सोने का आराम, अनेक प्रकार के जन्तुओं से भरा हुआ-सब तरफ अन्धकार और भय है । इसी तरह यह संसारान्य है । यह जगत रुपी जंगल वास्तव में बड़ा भयानक है ।

 

भगवान् ने इसे दु:खालय कहा, असुख कहा । दुःखयोनी कहा, भगवान् बुद्ध ने दुःख-ही-दुःख बतलाया तो इस दुखारन्य में-दुःख के जंगल में सुख खोजना-ये निराशा की चीज है । कभी ये पूरी होती नही । अब भ्रम से मनुष्य यह मान लेता है की अबकी बार का ये कष्ट निकल जाये फिर दूसरा कोई कष्ट नही आएगा । एक उलझन को सुलझाता है, सम्भव है की और उलझ जाये और सम्भव है थोड़ी बहुत सुलझे, फिर नयी उलझन आ जाये । पर उलझनों का मिटना सम्भव नही है ।

 

संसार का यही स्वरुप है । अतएव शान्ति, सुख चाहनेवाले प्रत्येकमनुष्य-बुद्धिमान मनुष्य से कहिये की दूसरा रास्ता नही है, वह जगत से निराश हो जाय ।

जैसे जगत के प्राणी-पदार्थ-परिस्थितियों से उसकी आशा बनी है, जबतक वह अपनी इन आशाओं की पूर्ती के लिए प्रयत्न करता है तो कहीं-कहीं प्रयत्न में सफलता भी दिखायी पडती है, पर वह नई-नई उलझन पैदा करने के लिए हुआ करती है । जगत का अभाव कभी मिटता नही; क्यों नही मिटता ? क्योकि भगवान् के बिना यह जगत अभावमय ही है, अभावरूप ही है-ऐसा कहा है । दु:खो से आत्यंतिक छुटकारा मिलेगा तो तब मिलेगा, जब संसार से छुटकारा मिल जाय और संसार से छुटकारा तभी मिलेगा, जब इसे हम छोड़ देना चाहे ।

 

इसे पकडे रहेंगे और इससे छुटकारा चाहेंगे-नही मिलेगा । इसे पकडे रहेंगे और सुख-शान्ति चाहेंगे-नही मिलेगी । मेरा बहुत काम पड़ा है अब तक बहुत से लोगों से मिलने का, बहुत तरह के लोगों से । पर जब उनसे अनके अन्तर की बात खुलती है तो शायद ही दो-चार ही ऐसे मिले हो, जो वास्तव में संसार से उपरत है ।

 

 

 

पर प्राय: सभी जिनको लोग बहुत सुखी मानते है, बहुत संपन्न मानते है, बाहर से जिनको किसी प्रकार का अभाव नही दीख पड़ता, किसी प्रकार की चिंता का कोई कारण नही दीख पड़ता, हमारी अपेक्षा वे सभी विषयों से बहुत समन्वित और संपन्न दीखते है, ऐसे लोग भी अन्दर से जलते रहते है; क्योकि यहाँ पर जलन के सिवा कुछ है ही नही तो संसार की समस्याओं को, संसार की उलझनों को सुलझाने में ही जीवन उलझा रहता है और वे उलझने नित्य नयी बढती रहती है ।

जैसे रात-दिन उसी में जीवन लगा रहता है । पर असल बात यह है की जबतक संसार से आशा रहेगी, जबतक भोगों में सुख आस्था रहेगी; तबतक सुख नही मिलेगा न आज तक किसी को सुख मिला, न मिल सकता है, न मिलेगा; क्योकि वहां वह है ही नही ।

 

 

 

संसार चाहे यों-का-यों रहे और रहता है, परन्तु जब इसमें सुख की आशा नही रहती, सुख की आस्था नही रहती, उसके बाद यह रहा करे । इसकी कोई उलझन हमारे मन को उलझा सकती है । हमारे मन पर असर नही डाल सकती । चाहे समस्या कठिन हो, चाहे अत्यन्त जटिल हो, वह अपने आप सुलझ जाती है-जब आस्था मिट जाती है तो सब जगह से आशा हटाकर, सब जगह से विश्वाश हटाकर, सब जगह से अपनापन हटाकर प्रभु में लग जाय-

 

 

या जग में जहँ लगि ता तनु की प्रीति प्रतीति सगाई ।

 

 

ते सब तुलसीदास प्रभु ही सों होहि सिमिटी इक ठाई ।।

 

 

इस जगत में जहाँ तक प्रेम, विश्वास और आत्मीयता है, वह सब जगत से सिमटकर एकमात्र प्रभु में केन्द्रित हो जाय-यह बड़ी अच्छी चीज है । न यह ग्रन्थों में सुलझती है, न यह व्याख्यानों से, व्याख्यान सुनने से, न व्याख्यान देना जानने से ।

 

 

ये तो वाग्विलास है । श्रवण-मधुर चीज है, आदत पड गयी सुनने-कहने की । कहते-सुनते है यह-अच्छा व्यसन है, परन्तु जब तक जीवन में वह असली चीज न आये, तब तक उस समस्या का समाधान हुए बिना शान्ति होती नही ।

 

यह समस्या सारी-की-सारी उठी हुई है हमारी भूल से । चाहे उसमे कारण प्रारब्ध हो. चाहे उसमे कारण कोई व्यक्ति हो, चाहे कोई नया कारण बन गया हो, पर मूल कारण है हमारी भूल; तो भूल को जाने बिया, भूल को छोड़े बिना भूल जाती नही 

भूल होती है स्वाश्रित । दुसरे के आश्रय पर भूल नही रहती । भूल रहती है अपने आश्रय से । भूल जब समझ में आ गयी तो भूल नही रहती । इसी प्रकार इस जगत का हाल है ।

 

यहाँ पर नित्य नयी समस्याएं, बहुत सी समस्याए जीवन में उठती है और बहुत सी समस्याओं को लोग लेकर मिलते है, पर समस्याओं के सुलझाने का कोई साधन अपने पास तो है नहीं, जब तक वे स्वयं अपनि समस्या को सुलझाने को तैयार न हों । समस्या सुलझ नही सकती, वह तो ली हुई चीज है । बनायीं हुई चीज है, अपनी निर्माण की चीज है और अपने संकल्प से वह विघटित है, उसको पकड़ रखा है, आधार दे रखा है हमने स्वयं ।

 

हम उसको छोड़ दे अभी तो बस अभी शान्ति मिल जाय । हम जो अनेक विषयों, अनेक पदार्थों, अनेक प्राणियों, अनेक परिस्तिथियों का अपने को दास मानते है । अमुक अमुक परिस्थितियों के , प्राणियों के, पदार्थों के, अधिकार में जब तक हम है; तब तक उन प्राणियों पर, पदार्थों पर, परिस्थितियों पर होने वाला परिणाम; उनमे होने वाला परिवर्तन हम अपने में मानेगे और बिना हुए ही दुखी होते रहेंगे । पर जब इनके न होकर हम भगवान् के हो जाय तो दुःख स्वयं विनष्ट हो जायेगा

 

 

 


Please download these Android Apps if you like. 
1. स्वामी रामसुखदासजी Swami RamsukhdasJi:
साधक संजीवनी एप में साधक संजीवनी गीता के साथ साथ निम्नलिखित  विषय और जोड़े गये हैं कृपया लाभ लेवे - 
1. ऑडियो जोड़े गये हैं। 
2. गीतापाठ - स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज जी की वाणी में।
3. नित्य स्तुति पाठ - गीता भवन , स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज जी की वाणी में।
4. साधन -सुधा-सिंधु पुस्तक - स्वामीजी महाराज


2. श्रीमदभागवत भारतीय वाङ्मयका मुकुटमणि है। भगवान शुकदेवद्वारा महाराज परीक्षितको सुनाया गया भक्तिमार्गका तो मानो सोपानही है। इसके प्रत्येक श्लोकमें श्रीकृष्ण-प्रेमकी सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वयके साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।

3. Gita Chintan, By Bhaiji Sri Hanuman Prasad Ji Poddar is Complete Gita App in Hindi with the following elements

1. Nitya Stuthi - (Morning Prayer as recited in Gita Bhavan-Rishikesh)
2. Gita Path - (A complete Gita Learning Helper with Voice of Sri Swami Ramsukhdas Ji)
3. Gita Concise commentary By Sri Bhai Ji
4. Essays on Bakthi Yog
5. Essays on Gyan Yog 
6. Essays on Karm Yog
This is an in detailed explanation of Srimad Bhagavad Gita. 

4. Srimad Bhagavadgita - Tattva Vivechani - Hindi, is a detailed explanation of the BagavadGita from the true Karma Yogi, Sri Jaydayal Ji Goyandka.

Sri Jaydayal Ji Goyandka, is the founder of Gita Press-Gorkhpur, Gita Bhavan-Rishikesh and Govind Bhavan, Kolkata.

5.Pad Ratnakar (पदरत्नाकर)  is a collection of verses written by Sri Bhai Ji for spiritual aspirants, is an invaluable treasure for mankind. It is originally published by Gita Press Gorakhpur. 

236.jpg
237.jpg
238.jpg
239.jpg
240.jpg
WhatsApp Image 2017-06-18 at 9.08.14 AM.jpeg
Reply all
Reply to author
Forward
0 new messages