पदरत्नाकर—परम श्रद्धेय नित्यलीलालीन श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार

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Gita Press Literature

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Jul 15, 2013, 9:27:12 PM7/15/13
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॥श्री हरि:॥

 

 

81 

जला दो उर मेरे विरहानल।

प्रियतम ! बिना तुम्हारे, बीते दु:खमय युग-सम मेरा पल-पल॥

भोगासक्ति-कामना-ममता जग-ज्वाला‌एँ सब जायें जल।

मिट जाये सब दुःखयोनि आद्यन्तवन्त भोगोंका अरि-दल॥

जाग उठे दैवी गुण, हो वैराग्य-राग-रंजित अन्तस्तल।

मिलन तुम्हारा हो, मिल जाये मानव-जीवनका यथार्थ फल॥

 

82

हमें प्रभु ! दो ऐसा वरदान।

तन-मन-धन अर्पण कर सारा, करें सदा गुण-गान॥

कभी न तुमसे कुछ भी चाहें, सुख-सम्पति-समान।

अतुल भोग परलोक-लोकके खींच न पायें ध्यान॥

हानि-लाभ, निन्दा-स्तुति सम हों, मान और अपमान।

सुख-दुख विजय-पराजय सम हों, बन्धन-मोक्ष समान॥

निरखें सदा माधुरी मूरति, निरुपम रसकी खान।

चरण-कमल-मकरन्द-सुधाका करें प्रेमयुत पान॥

 
—परम श्रद्धेय नित्यलीलालीन श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी , पदरत्नाकर कोड- 50, गीता प्रेस , गोरखपुर

 


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