पदरत्नाकर—परम श्रद्धेय नित्यलीलालीन श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार – भाईजी

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Gita Press Literature

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Jul 16, 2013, 9:28:03 PM7/16/13
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पदरत्नाकर

Blog-  http://hanumanprasadpoddarbhaiji.blogspot.in/ ।। सत्संग–सुधा ।।

॥श्रीहरि:॥

८३
प्रभु ! तुम अपनौ बिरद सँभारौ।
हौं अति पतित, कुकर्मनिरत, मुख मधु, मन कौ बहु कारौ॥
तृस्ना-बिकल, कृपन, अति पीडित, काम-ताप सौं जारौ।
तदपि न छुटत विषय-सुख-‌आसा, करि प्रयत्न हौं हारौ॥
अब तौ निपट निरासा छा‌ई, रह्यौ न आन सहारौ।
एक भरोसौ तव करुना कौ, मारौ चाहें तारौ॥

८४
प्रभु ! मोहि दे‌उ साँचौ प्रेम।
भजौं केवल तुमहि, तजि पाखंड, झूँठे नेम॥
जरै बिषय-कुबासना, मन जगै सहज बिराग।
होय परम अनन्य तुहरे पद-कमल-‌अनुराग॥
परम श्रद्धेय नित्यलीलालीन श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार भाईजी , पदरत्नाकर ,कोड- 50, गीताप्रेस , गोरखपुर
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