श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार - भाईजी

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Gita Press Literature

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Jun 21, 2013, 12:09:10 AM6/21/13
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मनुष्य का परम कर्तव्य है भगवानके गुणोंका, उनके नामका, उनकी लीला का श्रवण, कथन तथा कीर्तन एवं स्मरण करनेमें ही जीवन को लगाना । बुद्धिमान मनुष्यको तो दूसरोंके न तो गुण-दोषका चिंतन करना चाहिए, न देखना चाहिए और न उनका वर्णन ही करना चाहिए । उसे तो भगवद-गुण चिंतनसे ही समय नहीं मिलना चाहिए । पर यदि देखे बिना न रहा जाए तो दूसरोंके गुण देखने चाहिए और ढूँढ-ढूँढकर अपने दोष देखने चाहिए । न रहा जाए तो दूसरों के सच्चे गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए और अपने दोषोंकी साहस के साथ निंदा । वास्तव में परमार्थ की दृष्टि से तो यह सब कुछ न करके भगवत-चिन्तन तथा भगवन्नाम-गुणका कथन-कीर्तन-चिंतन ही करना चाहिए ।
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग , पुस्तक कोड ३६४, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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