ऊसर भूमि का वर्गीकरण
(A) ब+ |
(B) ब |
(C) सी |
- दो फसली |
- एक फसली |
- भूमि परती |
- सिंचित | - सिंचित/असिंचित | - कोई फसल नही ली जाती |
-फसलों की कम उत्पादकता | - कम उत्पादकता | - पी0एच0 8.5 से |
- पी0एच0 8.5 या उससे अधिक | - पी0एच0 8.5 से अधिक |
ऊसर सुधार की विधि (तकनीकी)
ऊसर सुधार की विधि क्रमबद्ध चरणबद्ध तथा समयबद्ध प्रणाली है इस विधि से भूमि को
पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है
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सर्वेक्षण
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बेहतर जल प्रबन्ध एवं जल निकास की समुचित व्यवस्था हेतु सर्वेक्षण
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बोरिंग स्थल का चयन:-
1.स्थल ऊँचे स्थान पर चुना जाये
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2. जिस सदस्थ के खेत में वोरिंग हो वह बकायादार
न हो |
3. एक बोरिंग की दूरी दूसरे से
200 मी0 से कम न हो |
मेड़बन्दी:-
-यह कार्य बरसात में या सितम्बर अक्टूबर में जब भूमि नम रहती है तो शुरू कर देनी
चाहिए |
-मेड़ के धरातल की चौड़ाई
90 सेमी ऊंचाई 30 सेमी तथा मेड़ की ऊपरी सतह
की चौ0 30 सेमी
होनी चाहिए |
-मेड़बन्दी करते समय सिंचाई नाली और खेत जल निकास नाली का निर्माण दो खेतों की मेड़ों
के बीच कर देना चाहिए
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जुताई :-
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भूमि की जुताई वर्षा में या वर्षा के बाद सितम्बर अक्टूबर या फरवरी में करके छोड़
दें जिससे लवण भूमि की सतह पर एकत्र न हो
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-भूमि की जुताई
2-3 बार 14-20 सेमी गहरी की जाये खेत जुताई से पूर्व उसरीले पैच
को 2 सेमी की सतह खुरपी से खुरचकर बाहर नाले में डाल दें
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समतलीकरण:-
-खेत को कम चौड़ी और लम्बी-2 क्यारियों में बाटकर क्यारियों का समतलीकरण करना चाहिए
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-जल निकास नाली की तरफ बहुत हल्का सा ढ़ाल देना चाहिए ताकि खेत का फालतू पानी जल
निकास नाली द्वारा बहाया जाये
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-मिट्टी की जांच करा ले आवश्यक
50 प्रतिशत जिप्सम की मात्रा का पता चल पाता हैं
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सिंचाई नाली, जल निकास नाली तथा स्माल स्ट्रक्चर का निर्माण
-खेत की ढाल तथा नलकूप के स्थान को ध्यान में रखते हुए सिंचाई तथा खेत नाली का
निर्माण करना चाहिए
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-सिंचाई नाली भूमि की सतह से ऊपर बनाई जाये, जो आधार पर
30 सेमी गहरी तथा शीर्ष पर
120 सेमी हो |
-खेत नाली भूमि की सतह से
30 बनाई जाये, जो आधार पर
30 सेमी गहरी तथा शीर्ष पर
75-90 सेंमी
हो |
लिंक ड्रेन
यह 50 सेमी गहरी आधार पर
45 सेमी और शीर्ष पर
145 सेमी और साइड स्लोप
1:1 का होना
चाहिए
जिप्सम का प्रयोग एवं लीचिंग :-
- समतलीकरण करते समय खेत में
5-6 मी चौड़ी और लम्बी क्यारियां बना लें तथा सफेद लवण
को 2 सेमी की सतह खुरपी से खुरच कर बाहर नाले में डाल दें
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- फिर क्यारियों में हल्का सा पानी लगा दें चार पांच दिन बाद निकाल दें जिससे लवण
लीचिंग द्वारा भूमि के नीचे अथवा पानी द्वारा बाहर निकल जायेंगे
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- समतलीकरण का पता लगाने के लिये क्यारियों में हल्का पानी लगा दें
| तथा हल्की जुताई
करके ठीक प्रकार से समतल कर लें
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क्यारियों में जिप्सम मिलाना:-
- जिप्सम का प्रयोग करते समय क्यारियां नम हो
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- बोरियों को क्यारियों में समान रूप से फैला दें
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- इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर की सहायता से भूमि की ऊपरी
7-8 सेमी की सतह में
जिप्सम मिला दें और फिर हल्का पाटा लगाकर क्यारियों को समतल कर लें
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लीचिंग:-
- क्यारियों में जिप्सम मिलाने के बाद
10-15 सेमी पानी भर दें और उसे
10 दिनों तक
लीचिंग क्रिया हेतु छोड़ दें
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- 10 दिनों तक क्यारियों
में 10 सेमी पानी खड़ा रहना चाहिए
| यदि खेत में पानी कम हो
जाये तो पानी और भर देना चाहिए
|इसलिए जरूरी है कि क्यारियों में दूसरे-तीसरे दिन
पानी भरते रहें
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- लीचिंग क्रिया हर हालत
में 5 जुलाई तक पूरी हो जाये जिससे
10 जुलाई तक धान की
रोपाई की जा सकें
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लीचिंग के बाद जल निकासी
- 10 दिनों बाद खेत का लवणयुक्त पानी खेत नाली द्वारा बाहर निकाल दें
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लीचिंग के बाद अच्छा पानी लगाकर धान की रोपाई,
5 सेमी पानी भरकर ऊसर रोधी प्रजाति
की 35-40 दिन आयु के पौधे की रोपाई कर दें
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