PMOPG/E/2025/0155899
संबन्धित मंत्रालय : प्रधान मंत्री कार्यालय।
भारत के साथ पाकिस्तान की झड़प बहुत बार हुई है किंतु कभी भी पाकिस्तान की भूमि पर कब्जा नहीं किया गया। 1971 में तत्कालीन सरकार ने कब्जा के हुई भूमि भी लौटा दी तथा अपने हिस्से का कश्मीर भी वापिस नहीं लिया। इस प्रकार के प्रथम दृष्ट्या अदूरदर्शी निर्णय किन कारणों से लिए गए ये एतिहासिक तथ्यों पर गंभीर प्रश्न चिह्न लगाते हैं। वर्तमान में POK के हालात देखते हुए इसके शीघ्र भारत में विलय की संभावनाएं धूमिल लगती हैं। दीर्घ अवधि में यहाँ के निवासियों की मानसिकता के विषय में कुछ भी निर्णायक रूप से अनुमान लगाना एक चुनौती है। इस संदर्भ में मेरा अनुरोध है की अगले किसी भी संघर्ष के दौरान या उससे पहले भारत POK में नियंत्रण रेखा से लगती हुई सरकारी भूमि का अधिग्रहण करने का प्रयास करे। रेखा से सेना उस बिन्दु तक बढ़े जहां तक कोई निजी भूमि नहीं है। ऐसा प्रयास हमारे भू-घटन की हानि को प्रभावी रूप से काम कर सकता है तथा पाकिस्तान के लिए समस्याएं बढ़ा सकता है। निजी भूमि न होने से, भारत के ऊपर किसी के लालन पालन का अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। इस्राइल हमास के संघर्ष ने यह भली भांति बताया दिया है की अन्य राष्ट्र केवल शक्ति को ही मानते हैं। स्विट्जरलेन्ड जैसे देश का भारत पर कश्मीर में मानव अधिकारों के हनन का आरोप लगाना यह सिद्ध करता है की वास्तविकता से कोसों दूर अन्य लोग केवल वही बोलते हैं जो उनको पढ़ाया जाता है। ऐसे में हमारा भूमि को वापिस अपने अधिकार में लेना सर्वथा न्याय संगत है।
इसके साथ हम एक संदेश के विषय में भी सोचे और दबाव बनाने के उद्देश्य से पाकिस्तान को पूर्ण स्पष्टता से यह बता दें की चीन को 5000 वर्ग किलोमीटर उपहार में दी हुई भूमि जब तक वापिस नहीं मिलती भारत उसे के अनुपात में पाकिस्तानी भूमि पर कब्जे का अधिकार रखता है। भारत को अपने इस मंतव्य को समय-समय पर दोहराना होगा तथा अपने इस दावे को जीवित रखना होगा।
इस नीतिगत निर्णय के विषय में विचारार्थ प्रस्तुत।